विशेष/द बिग पिक्चर: कोरिया विभाजन: 70 वर्ष बाद निकट आ रहे उत्तर-दक्षिण | 01 May 2018
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
27 अप्रैल को उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया ने उस समय नया इतिहास बनाया, जब एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन दोनों देशों ने 70 साल के बाद दोस्ती का हाथ स्वीकार किया। दोनों देशों के नेताओं की शिखर बैठक के बाद विभाजित कोरियाई प्रायद्वीप में स्थायी शांति और पूर्ण निरस्त्रीकरण की दिशा में आगे बढ़ने का इरादा जताया गया।
- इस बैठक के बाद दोनों देशों को विभाजित करने वाली सैन्य विभाजक रेखा (38वीं समानांतर) पर दोनों नेताओं ने ‘पूर्ण निरस्त्रीकरण, परमाणु मुक्त कोरियाई प्रायद्वीप के साझा लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक घोषणापत्र भी जारी किया।
- दोनों नेताओं ने इस बात पर भी सहमति जताई कि वे कोरियाई युद्ध के स्थायी समाधान की दिशा में प्रयास शुरू करेंगे और इसके सैन्य हल के बजाय शांतिपूर्ण संधि से इसे खत्म करने की दिशा में पहल की जाएगी।
- लेकिन यह इतना आसान नहीं है क्योंकि कोरियाई प्रायद्वीप में 7 दशकों के कटु अलगाव के बाद एकीकरण की संभावनाएँ बेहद जटिल और अवास्तविक प्रतीत होती हैं।
- इसके अलावा दक्षिण कोरिया एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बन गया है और वहाँ लोकतांत्रिक शासन है, जबकि उत्तर कोरिया की आर्थिक स्थिति खराब है और वहां किम के वंश का शासन है तथा लोगों को बहुत कम आज़ादी है।
- कोरियाई युद्ध के लगभग 70 वर्ष बाद दक्षिण कोरिया की भूमि पर कदम रखने वाले किम पहले उत्तर कोरियाई शासक हैं।
- शिखर सम्मेलन के लिये पनमुंजम के युद्धविराम संधि के अधीन आने वाले गांव के दक्षिणी किनारे पर स्थित पीस हाउस बिल्डिंगमें दाखिल होने से पहले किम जोंग उन के आमंत्रण पर दोनों नेता एक साथ उत्तर कोरिया में दाखिल हुए। पनमुंजम कोरियाई प्रायद्वीप का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और अमेरिकी सैनिक एक-दूसरे से रूबरू होते हैं।
- उल्लेखनीय है कि पूर्व में दोनों कोरिया के बीच वर्ष 2000 और 2007 में प्योंगयांग में शिखर सम्मेलन हुआ था और इसका समापन भी कुछ इसी तरह हुआ था, लेकिन इस दौरान हुए समझौतों का नतीजा शून्य रहा।
क्यों अलग हुए दोनों देश ?
लाख टके का सवाल यह है कि दोनों देशों के बीच ऐसी दुश्मनी क्यों है?
क्या ये दोनों देश उसी तरह एक हो सकेंगे, जैसे 1990 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को बाँटने वाली बर्लिन की दीवार तोड़ दी गई थी और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दो देशों में बंटा जर्मनी पुनः एक हो गया था।
- दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के बाद दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया दो अलग देश बने। इस विभाजन के बाद से दोनों देशों ने अपनी अलग-अलग राह चुनी।
- एकीकृत कोरिया पर 1910 से जापान का तब तक शासन रहा जब तक कि 1945 के दूसरे विश्व युद्ध में जापानियों ने हथियार नहीं डाल दिये।
- इसके बाद सोवियत संघ की सेना ने कोरिया के उत्तरी भाग को अपने कब्ज़े में ले लिया और दक्षिणी हिस्से पर अमेरिका काबिज़ हो गया।
- इसके बाद उत्तर और दक्षिण कोरिया में साम्यवाद और 'लोकतंत्र' को लेकर संघर्ष शुरू हुआ।
- जापानी शासन से मुक्ति के बाद 1947 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के ज़रिये कोरिया को एक राष्ट्र बनाने की पहल की।
- संयुक्त राष्ट्र के आयोग की निगरानी में चुनाव कराने का फ़ैसला लिया गया और मई 1948 में कोरिया प्रायद्वीप के दक्षिणी हिस्से में चुनाव हुआ।
- इस चुनाव के बाद 15 अगस्त को रिपब्लिक ऑफ कोरिया (दक्षिण कोरिया) बनाने की घोषणा की गई।
- इस बीच, सोवियत संघ के नियंत्रण वाले उत्तरी हिस्से में सुप्रीम पीपल्स असेंबली का चुनाव हुआ, जिसके बाद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक पीपल्स ऑफ कोरिया (उत्तर कोरिया) बनाने की सितंबर 1948 में घोषणा की गई।
- अलग देश बन जाने के बाद दोनों के बीच सैन्य और राजनीतिक विरोधाभास बना रहा, जो पूंजीवाद बनाम साम्यवाद के रूप में सामने आया।
मॉस्को कॉन्फ्रेंस में बनी थी सहमति (टीम दृष्टि इनपुट) |
कोरियाई युद्ध
- हालात यहाँ तक बिगड़ गए कि दोनों देशों के बीच जून 1950 में संघर्ष शुरू हो गया। 25 जून को उत्तर कोरिया के प्रमुख किम इल सुंग ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया।
- इस युद्ध में उत्तर कोरिया को जीत मिली, लेकिन अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पारित करवा लिया, जिसके बाद अमेरिका के झंडे तले सहयोगी 15 देशों की सेना दक्षिण कोरिया की मदद के लिये पहुँच गई, जिसने युद्ध का पाँसा ही पलट दिया।
- अमेरिका के प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप के कारण उत्तर कोरिया को पीछे हटना पड़ा और वह जीती हुई बाजी हार गया। उत्तर कोरिया का साथ रूसी और चीनी सेना ने दिया। 1953 में यह युद्ध खत्म हुआ और दो स्वतंत्र राष्ट्र बन गए।
- अमेरिका ने इस युद्ध को लिमिटेड वॉर कहा था, क्योंकि उसने इसे कोरियाई प्रायद्वीप के आगे नहीं फैलने दिया था, लेकिन दक्षिण कोरिया में अमेरिका के 28,500 सैनिक कोरियाई युद्ध के बाद तैनात रहते हैं।
- दूसरी ओर, उत्तर कोरिया का सबसे खास सहयोगी चीन है और दोनों देशों के बीच 1961 में एक संधि हुई थी, जिसमें कहा गया है कि यदि चीन और उत्तर कोरिया में से किसी भी देश पर अगर कोई अन्य देश हमला करता है तो दोनों देश तुरंत एक-दूसरे का सहयोग करेंगे।
कोरियाई युद्ध में भारत की भूमिका
माना जाता है कि कोरियाई युद्ध दरअसल शीतयुद्ध की ही परिणति थी। इसके समाप्त होने के बाद दोनों के बीच सबसे बड़ा मुद्दा युद्धबंदियों की अदला-बदली का था और युद्धविराम की बात इसी मुद्दे पर अटकी थी। अमेरिका के कब्जे में विरोधी पक्ष के लगभग पौने दो लाख सैनिक बंदी थे, जिनकी चीन रिहाई चाहता था। लेकिन अमेरिका का तर्क था कि सभी युद्धबंदी चीन या उत्तर कोरिया जाना नहीं चाहते, इसलिये वह इन्हें कम्युनिस्ट सरकार को नहीं सौंप सकता। लेकिन मार्च 1953 में रूस के शासक स्टालिन के मृत्यु के बाद 27 जुलाई को युद्धविराम समझौता अस्तित्व में आया।
अमेरिका ने इस परिस्थिति में मध्यस्थता के लिये भारत को आमंत्रित किया और संयुक्त राष्ट्र ने युद्धबंदियों की अदला-बदली के लिये भारत की अध्यक्षता में एक आयोग (न्यूट्रल नेशंस सुपरवाइजरी कमीशन) का गठन किया था जिसमें पाँच और देश शामिल थे। पश्चिमी देशों की ओर से स्वीडन और स्विट्ज़रलैंड थे तो चीन ने पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया को इसमें शामिल करवाया था।
भारत ने युद्धबंदियों की अदला-बदली के लिये 6000 सैनिकों की इंडियन कस्टोडियल फोर्स भी कोरिया में तैनात कर दी थी, जिसे सैनिकों से बातचीत करके तय करना था कि उनमें से कौन अपने देश वापस जाना चाहता है और कौन किसी तीसरे देश में शरण चाहता है। आयोग ने पहले चरण में सैकड़ों बीमार और घायल सैनिकों की अदला-बदली की व्यवस्था की थी। यह काम 1954 तक चला, लेकिन इसके बाद चीन के बढ़ते विरोध के बाद भारत ने इस आयोग का अध्यक्ष पद छोड़ दिया और शेष युद्धबंदियों को संयुक्त राष्ट्र की देख-रेख में सौंप दिया। इसी के साथ भारतीय सेना की मेडिकल कोर और कस्टोडियल फोर्स की भी वापसी हो गई।
आसान नहीं है एकीकरण
(टीम दृष्टि इनपुट) |
परमाणु आकांक्षाओं के कारण प्रतिबंध
- 2017 की अंतिम तिमाही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया द्वारा किये गए छठे एवं सबसे शक्तिशाली परमाणु परीक्षण के मद्देनज़र उस पर नए प्रतिबंध लगा दिया थे, जिनमें उत्तर कोरिया से होने वाले वस्त्र निर्यात तथा उसे होने वाले कच्चे तेल के आयात को प्रतिबंधित किया गया था।
- विदित हो कि 2006 से अब तक उत्तर कोरिया के बैलिस्टिक मिसाइल एवं परमाणु कार्यक्रमों के चलते सुरक्षा परिषद द्वारा उस पर नौ बार प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं।
यहाँ यह उल्लेख करना भी समीचीन होगा कि उत्तर कोरिया को अधिकांश कच्चे तेल की आपूर्ति इसके मुख्य आर्थिक सहयोगी राष्ट्र चीन द्वारा की जाती है। इसके अतिरिक्त, टेक्सटाइल उत्तर कोरिया से निर्यात होने वाली सबसे बड़ी मद है, जिसके निर्यात को प्रतिबंधित किया गया है।
किम जोंग उन का चीन दौरा
हाल ही में उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन चार दिन की चीन यात्रा पर थे, जहाँ उच्चस्तरीय वार्ता के बाद उन्होंने परमाणु प्रसार को रोकने का संकल्प लिया। इसके बदले में चीन ने उत्तर कोरिया के साथ संबंध मज़बूत करने का वादा किया। 2011 में सत्ता में आने के बाद किम जोंग उन का यह पहला विदेश दौरा था। इसे अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच होने वाली वार्ता की तैयारी के रूप में तो देखा ही जा रहा है, साथ ही हाल में दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच हुई ऐतिहासिक पहल को भी इसका ही परिणाम माना जा रहा है। चीन और दक्षिण कोरिया के साथ उत्तर कोरिया के संभलते संबंध अमेरिका के साथ प्रस्तावित वार्ता को सकारात्मक दिशा देने का भी काम कर सकते हैं।
दक्षिण कोरिया की सनशाइन नीति दक्षिण कोरिया में 1960 के बाद से दो दशकों तक सेना की तानाशाही शासन व्यवस्था बनी रही। 1998 में दक्षिण कोरिया के उदारवादी राष्ट्रपति किम दाई जुंग ने अपनी सनशाइन नीति के तहत उत्तर कोरिया के साथ अपने संबंधों में सुधार का प्रयास किया, लेकिन 2008 में ली म्यूंग बाक के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद इस नीति में बदलाव किया गया और उत्तर कोरिया के साथ संबंधों में फिर से कटुता आ गई। उल्लेखनीय है कि किम दाई जुंग की सनशाइन नीति उत्तर कोरिया के साथ शांति से रहने और बातचीत जारी रखने का समर्थन करती थी। शीतकालीन ओलंपिक में साथ आए दोनों देश
दक्षिण कोरिया से सुलह की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए उत्तर कोरिया 5 मई से अपने देश का मानक समय दक्षिण कोरिया के साथ फिर से मिलाने पर सहमत हो गया है । विदित हो कि उत्तर कोरिया का मानक समय दक्षिण कोरिया से आधा घंटा आगे है, क्योंकि उत्तर कोरिया ने अगस्त 2015 में अपने मानक समय को यह कहते हुए 30 मिनट पीछे कर दिया था कि ऐसा कोरियाई प्रायद्वीप पर 1910-1945 के दौरान जापान के शासन के निशानों को हटाने के लिए किया गया है। इससे पहले दोनों कोरियाई देशों में समान मानक समय था। (टीम दृष्टि इनपुट) |
निष्कर्ष: 20वीं सदी का कोरिया विभाजन आज भी दुनिया के लिये बड़े विवाद के रूप में कायम है। 27 अप्रैल को हुई इस बड़ी शांति पहल के के तहत उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के शासक पनमुंजम में हुई मुलाकात के बाद स्थायी शांति के लिये राज़ी हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर और दक्षिण कोरिया का एकीकरण यदि होता है तो उत्तर कोरिया की अकालग्रस्त जनता को राहत तो मिलेगी, लेकिन दक्षिण कोरिया की विकास दर एक दशक के लिये पीछे जा सकती है। हालाँकि 2009 में प्रकाशित एक शोध में यह संभावना जताई गई थी कि एकीकृत कोरिया में अगले 30 वर्षों में फ्राँस, जर्मनी और जापान को भी पीछे छोड़ देने की क्षमता है। लेकिन कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि दोनों देशों का जर्मनी की तर्ज पर एकीकरण हुआ तो इससे दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था डगमगा सकती है। इसलिये किसी तरह की बड़ी आर्थिक हलचल से बचने के लिये कोरियाई प्रायद्वीप के एकीकरण के लिये सबसे अच्छा विकल्प चीन-हांगकांग मॉडल को अपनाना हो सकता है। इस मॉडल के तहत दो भिन्न तरह की व्यवस्थाएँ एक ही देश के भीतर कार्यशील रहती हैं। ऐसे में यह ज़रूरी है कि दोनों देशों में दोस्ती और हिस्सेदारी बनी रहे; यही यथार्थवादी सोच है। भविष्य में यह दोस्ती बनी रहती है तो दोनों देश एक होने के बारे में भी सोच सकते हैं, लेकिन उसके अच्छे-बुरे परिणाम नज़र में रखने होंगे।