सामाजिक न्याय
इनसाइट: राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना: अवसंरचना तथा अन्य चुनौतियाँ
- 07 Mar 2018
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संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
इस वर्ष के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बहुचर्चित राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (National Health Protection Scheme-NHPS) के लिये शुरुआत में 2000 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं। वैसे इस योजना पर प्रतिवर्ष 10 से 12 हज़ार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है और इसके तहत लगभग 10 करोड़ परिवारों के 50 करोड़ सदस्यों को 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा कवर देने का लक्ष्य है। अनुमानतः इसके तहत देश की जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा कवर होगा तथा बाद में इस योजना का लाभ सभी को देने पर भी विचार किया जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना के लिये 'आधार योजना' की तरह एक बड़े स्तर के आईटी अवसंरचना की ज़रूरत होगी और इसे विस्तार भी देना होगा। इस योजना के लिये कम समय में आईटी अवसंरचना तैयार करने का काम सरकार ने नंदन नीलेकणी और उनकी टीम को इसलिये सौंपा है, क्योंकि अवसंरचना, संकल्पना, डिज़ाइन के साथ इसे संचालित करने के लिये ग्लोबल टैलेंट को अपने साथ जोड़ने में उन्हें दक्षता हासिल है। उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े सरकारी डेटाबेस 'आधार' तथा 'गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स नेटवर्क (GSTN)' को सफलतापूर्वक लागू करवाया है।
प्रमुख विशेषताएं
- विश्व की सबसे बड़ी चिकित्सा बीमा योजना में इलाज पर अपनी तरफ से खर्च करने के बाद भुगतान के लिये दावा करने की ज़रूरत नहीं होगी।
- अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में सरकार की ओर से पांच लाख रुपए तक की चिकित्सा बीमा सुरक्षा दी जाएगी।
- यह विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है और कैशलेस सुविधा है।
- अस्पताल में भर्ती होने पर मरीज़ को इलाज के लिये कोई भी भुगतान नकद नहीं करना होगा।
- इलाज पर होने वाले पाँच लाख रुपए तक का खर्च सरकार उठाएगी।
- इस योजना के लाभार्थी देश में कहीं भी पैनल में शामिल किसी भी निजी या सरकारी अस्पताल में इलाज करा सकेंगे।
- इसके लिये आवश्यक धन केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर जुटाएंगी और कुल राशि को 60:40 के अनुपात में क्रमशः वहन करेंगी।
- जानकारों के अनुसार इस वर्ष के बजट में स्वास्थ्य व शिक्षा में जो एक प्रतिशत सेस (उपकर) बढ़ाया गया है, उसी से इस योजना के लिये आवश्यक लगभग 11000 करोड़ की राशि प्राप्त हो जाएगी।
कौन होंगे लाभार्थी
2011 की सामाजिक, आर्थिक, जातिगत जनगणना के अनुसार जो आबादी वंचित वर्ग के तहत रखी गई थी, उसे इस योजना में शामिल किया गया है। यह योजना शुरू होते ही इसके लिये पात्र परिवार स्वत: इसके दायरे में आ जाएंगे। इसमें परिवार के आकार को सुनिश्चित नहीं किया गया है यानी परिवार में चाहे जितने भी सदस्य होंगे, उन सबको कवरेज का लाभ मिलेगा, लेकिन यह प्रति परिवार पाँच लाख रुपए तक ही सीमित रहेगा।
(टीम दृष्टि इनपुट)
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ
माना जाता है कि देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली बेहद कमज़ोर है और लोगों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती। स्वास्थ्य के अधिकांश वैश्विक मानकों पर भारत की स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती, इसीलिये नीति आयोग इस महत्त्वाकांक्षी योजना को भविष्य में आधार संख्या से जोड़ने की दिशा में काम कर रहा है, ताकि लक्षित समूह तक इन सुविधाओं को कारगर तरीके से पहुंचाया जा सके।
- देश में कुल ऐसे मामलों के 72 प्रतिशत निजी अस्पतालों में उपचार करवाते हैं, जिनमें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता नहीं होती।
- अस्पताल में भर्ती होने लायक कुल मामलों में से 58 प्रतिशत का उपचार निजी अस्पतालों में होता है।
- देश में शिशु जन्म के 24 प्रतिशत मामले निजी अस्पतालों से संबंधित होते हैं।
- देश प्रतिवर्ष लाखों बच्चे 5 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले काल के गाल में समा जाते हैं, यह सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की अपर्याप्तता एक बड़ा प्रमाण है।
- कैंसर, ह्रदय रोग, मधुमेह जैसे गैर-संचारी रोगों से होने वाली मौतों का आँकड़ा चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है।
- कुछेक राज्यों को छोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों सहित स्वास्थ्यकर्मियों की बेहद कमी है और इस वज़ह से स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर भी दयनीय है।
- देश में मरीज़ों के परिवारों को सबसे अधिक पैसा दवाओं पर खर्च करना पड़ता है, यह विश्व में सर्वाधिक है।
- अस्पतालों में भर्ती होने वाले 27 प्रतिशत मरीजों को या तो पैसा उधार लेना पड़ता है या इलाज के लिये संपत्ति बेचनी पड़ती है।
- ब्रिटिश हेल्थकेयर जर्नल के अनुसार शेष विश्व की तुलना में भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में होने वाला भ्रष्टाचार लगभग दोगुना है।
- वैश्विक रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च का 10 से 25 प्रतिशत भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।
- भारत में चिकित्सक और मरीज़ों का अनुपात 1:2000 है, जबकि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार यह अनुपात 1:1000 होना चाहिये।
- देश में चिकित्सक और मरीज़ों का अनुपात अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने के लिये वर्ष 2020 तक 4 लाख और चिकित्सकों की आवश्यकता होगी।
- एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 64 लाख कुशल स्वास्थ्यकर्मियों की और आवश्यकता है, तभी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुँचाया जा सकेगा।
आवश्यक अवसंरचना की कमी
- हाल ही में कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (Confederation of Indian Industries-CII) ने स्वास्थ्य सेवाओं के बाज़ार की संभावनाओं पर केंद्रित एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसके अनुसार देश में मौजूद स्वास्थ्य-सेवा के ढाँचे का 70% हिस्सा केवल 20 शहरों तक सीमित है। यही कारण है कि आज भी लगभग 30% भारतीय प्राथमिक चिकित्सा सुविधा से वंचित हैं। ऐसे में एक बड़ी ज़रूरत तो स्वास्थ्य-सेवाओं के समतापूर्ण विस्तार की है ताकि लोगों को साधारण बीमारियों के उपचार तक के लिये शहरों में न जाना पड़े।
- एक अन्य बड़ी आवश्यकता है स्वास्थ्य सुविधाओं की वर्तमान अवसंरचना को पुख्ता बनाने की। देश में जनसंख्या की आवश्यकता के अनुसार डॉक्टरों, नर्सों और अस्पतालों में बेड की संख्या बहुत कम है। सीआईआई रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में प्रति 1000 आबादी पर 0.7 डॉक्टर, 1.3 नर्स और अस्पताल के बेड्स की संख्या 1.1 है।
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अनुसार महिला स्वास्थ्यकर्मियों के 13% और पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों के 37% पद रिक्त हैं। केवल 13% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 11% स्वास्थ्य उपकेंद्र ही इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड्स (IPHS) के अनुकूल हैं।
सरकारी खर्च बढ़ाने की आवश्यकता
तीसरी बड़ी ज़रूरत है स्वास्थ्य के मद में सरकारी खर्च बढ़ाने की। सीआईआई रिपोर्ट के अनुसार भारत पर बीमारियों का बोझ ज्यादा है, लेकिन लोगों के लिये उपचार का खर्च उठा पाना बहुत मुश्किल है।
- भारत प्रतिवर्ष बीमारियों के कारण विश्व पर पड़ने वाले बोझ का 21% हिस्सा वहन करता है और 30% भारतीय उपचार पर होने वाले खर्च के कारण गरीबी-रेखा से नीचे चले जाते हैं। इसकी एक बड़ी वजह है सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के मद में होने वाले खर्च को बढ़ाने में सरकार की असमर्थता।
- इस मद में होने वाला सरकारी खर्च अभी जीडीपी का 1.15 प्रतिशत है, जिसे बढ़ाकर 2.5% करने की योजना है।
- ब्राजील, थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश इस मामले में भारत से आगे हैं जो अपने सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिये जीडीपी का 3 से 5% प्रतिशत खर्च करते हैं।
- अधिकांश विकसित देशों में कर-वित्तपोषित एकल भुगतान व्यवस्था मौजूद है, जहाँ सरकार नागरिकों की स्वास्थ्य देखभाल लागतों का भुगतान करती है। इन देशों में काफी बेहतर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाएँ मौजूद हैं।
(टीम दृष्टि इनपुट)
आयुष्मान भारत के तहत 1.5 लाख स्वास्थ्य व आरोग्य केंद्र बनेंगे
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की नींव के रूप में स्वास्थ्य और आरोग्य केंद्रों की परिकल्पना की गई है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना के अलावा आयुष्मान भारत के तहत 1.5 लाख प्राथमिक केंद्र तैयार कर व्यापक स्वास्थ्य संरक्षण देने की भी योजना है।
- विभिन्न स्तरों पर चिकित्सा क्षेत्र में काम करने वालों को प्रशिक्षण देकर इन केंद्रों में हृदय, मधुमेह और अन्य रोगों के प्रारंभिक चरण में ही जाँच का जिम्मा दिया जाएगा।
- ये 1.5 लाख केंद्र स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को लोगों के घरों के नज़दीक ले जाने का काम करेंगे।
- ये स्वास्थ्य केंद्र गैर-संचारी रोगों और मातृत्व तथा बाल स्वास्थ्य सेवाओं सहित व्यापक स्वास्थ्य देख-रेख सुविधा उपलब्ध कराएंगे।
- इन केंद्रों में इलाज के साथ-साथ जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों, जैसे-हाई ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज़ और मानसिक तनाव पर नियंत्रण के लिये विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
- इन केंद्रों पर आवश्यक दवाइयाँ और नैदानिक सेवाएँ भी मुफ्त उपलब्ध रहेंगी तथा सरकार प्राथमिक स्तर से लेकर तृतीयक स्तर तक दवाओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगी।
- किस केंद्र पर किस दवा की कमी है, इसका केंद्र और ज़िला स्तर पर पता लगाने के लिये सॉफ्टवेयर तैयार कर लिया गया है।
स्वास्थ्य सुधारों की आवश्यकता
- पिछले कुछ समय से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा देश की स्वास्थ्य देखभाल संबंधी व्यवस्थाओं में सुधार करने के प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य देखभाल में वैसे परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं जिन परिणामों की अपेक्षा की जा रही है।
- भारत में स्वास्थ्य देखभाल सुधारों के संबंध में सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले धन को लेकर है। विश्व के कई अन्य देशों द्वारा किये गए ऐसे सुधारों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि अमेरिका के स्तर पर पहुँचने के लिये भारत को अपनी जीडीपी का लगभग 18% स्वास्थ्य पर खर्च करना होगा।
- स्वास्थ्य वित्तपोषण की मौजूदा व्यवस्था (स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने में आने वाले कर संबंधी व्यवधानों के कारण) काफी हद तक आम लोगों की भुगतान क्षमता से बाहर है।
- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण आँकड़ों से पता चलता है कि सामान्यतः भारतीय परिवार (ग्रामीण और शहरी दोनों) स्वास्थ्य देखभाल हेतु केवल अपनी आय पर निर्भर करते हैं। इसीलिये स्वास्थ्य देखभाल के खर्चों को वहन करने के लिये आम भारतीय को बचत पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
- निजी स्वास्थ्य बीमा सुविधा अधिकांशतः शहरी मध्यम और उच्च आय वाले परिवारों तक ही सीमित है, जबकि सार्वजनिक बीमा कवरेज को देश की समस्त आबादी के मध्य एक-समान रूप से वितरित किया जाता है।
- आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2005 के बाद से स्वास्थ्य के मद पर सामान्य भारतीय परिवारों के क्षमता से अधिक खर्च करने की मात्रा में काफी वृद्धि हुई है।
- पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी सेवाओं (विशेष रूप से अस्पताल में भर्ती होने वाले रोगियों द्वारा) के उपयोग में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है, लेकिन इसका लाभ सभी को समान रूप से नहीं मिल पा रहा।
- देखा जाता है कि अत्यधिक गरीब परिवार वित्तीय साक्षरता और जागरूकता के अभाव में अपने स्वास्थ्य बीमा कवरेज का सही से उपयोग तक नहीं कर पाते हैं। इस ओर भी पर्याप्त ध्यान देकर उन्हें जागरूक करने की आवश्यकता है।
- एक आम धारणा यह है कि इलाज में जितने अच्छे एवं महँगे साधनों का उपयोग किया जाएगा, उतना ही बेहतर ढंग से प्रभावी उपचार भी संभव हो पाएगा। स्पष्ट रूप से इससे स्वास्थ्य सुविधाओं की लागत बढ़ जाती है।
मेडिकल बचत खाता
- देश में स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण के संबंध में नए विकल्पों के प्रयोगों पर भी विचार करना चाहिये। मेडिकल बचत खाता (Medical Savings Accounts-MSAs) ऐसा ही एक विकल्प है। सिंगापुर ने वर्ष 1984 में इसे अपनाया था, जो पूर्णतया सफल रहा। सिंगापुर की देखा-देखी चीन ने अपने शहरी क्षेत्रों के लिये MSA को अपनाया।
- MSA उच्च कटौती बीमा (High Deductible Insurance) के पूरक होते हैं (MSA द्वारा पहले ही चुकाई गई बड़ी राशि के बाद), साथ ही इनके अंतर्गत सरकार द्वारा उन लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में भुगतान किया जाता है, जो स्वयं का खर्च उठाने में सक्षम नहीं होते।
(टीम दृष्टि इनपुट)
- एक समस्या यह भी देखने में आ रही है कि स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को इस प्रकार से बनाया जा रहा है कि अधिक-से-अधिक लोग अपनी स्वास्थ्य समस्याओं हेतु अस्पताल में भर्ती होने के विकल्प पर विचार करें। इसका सबसे सटीक उदाहरण पिछले 15 सालों में प्रसव के दौरान सिज़ेरियन सेक्शन (Caesarean Section) में हुई भारी वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है।
- भारत सरकार द्वारा देश की स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में निवेश के साथ-साथ विकसित देशों में प्रचलित एवं सफल प्रणालियों के संबंध में भी विचार किये जाने की ज़रूरत है, ताकि देश के प्रत्येक नागरिक तक इन सुविधाओं की पहुँच को सुनिश्चित किया जा सके।
स्वास्थ्य सेवाओं का डिजिटलीकरण
- स्वच्छ भारत मोबाइल एप: यह स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएँ देता है, जिनमें स्वस्थ जीवनशैली, बीमारियों की जानकारी, लक्षण, उपचार के विकल्प, प्राथमिक उपचार और जनस्वास्थ्य चेतावनियाँ शामिल हैं। ई-रक्तकोष: यह एकीकृत ब्लड बैंक मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम है। वेब-आधारित यह तकनीकी प्लेटफॉर्म राज्य के सभी ब्लड बैंकों को एक साथ जोड़ता है। यहाँ रक्तदान और उससे जुड़ी सेवाओं की उपलब्धता, मान्यता, भंडारण एवं अन्य तरह के आँकड़ों की जानकारी मिलती है।
- इंडिया फाइट डेंगू: यह एप लोगों को डेंगू के खिलाफ अभियान और उसकी रोकथाम के तरीकों के बारे में बताता है।
- किलकारी: ये ऐसा एप है जो गर्भावस्था की दूसरी तिमाही से शिशु की एक वर्ष की आयु तक, शिशु जन्म एवं शिशु की देखभाल से संबंधित उपयुक्त समय पर निःशुल्क, साप्ताहिक 72 ऑडियो संदेश परिवार के मोबाइल फोन पर उपलब्ध कराता है। इसे कुछ राज्यों के उच्च प्राथमिकता वाले ज़िलों में शुरू किया गया है।मोबाइल एकेडमी: यह आशा (ASHA) कार्यकर्त्ताओं की जानकारी में वृद्धि करके उनके संवाद कौशल को निखारने के उद्देश्य से तैयार किया गया ऑडियो प्रशिक्षण पाठ्यक्रम है। यह आशा कार्यकर्त्ताओं को उनके मोबाइल फोन के जरिये किफायती और प्रभावी तरीके से प्रशिक्षित करता है। इससे वे बिना कहीं गए अपनी सुविधा के अनुसार सुनकर सीख सकती हैं। अभी इसे चुने हुए राज्यों में ही लागू किया गया है।
- एम-सेशन: यह उन लोगों के लिये है जो तंबाकू छोड़ना चाहते हैं। यह उन्हें मोबाइल फोन के ज़रिये संदेश भेजकर इस दिशा में मदद करता है। यह पारंपरिक तरीकों से कहीं अधिक किफायती है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल: इसके तहत भारत के नागरिकों को स्वास्थ्य से जुड़ी सभी तरह की सूचनाएँ एक ही प्लेटफॉर्म पर देने का प्रयास किया जाता है।
- ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सिस्टम: इसके तहत देशभर के विभिन्न अस्पतालों में आने वाले मरीज़ों को ‘आधार’ आधारित ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने तथा अपॉइंटमेंट देने की सुविधा मिलती है।
- हॉस्पिटल मैनेजमेंट इंफोर्मेशन सिस्टम: इसके ज़रिये अस्पताल के ओपीडी रजिस्ट्रेशन का डिजिटलीकरण किया गया है। यह पोर्टल मरीजों को उनके ‘आधार’ कार्ड में दर्ज मोबाइल नंबर के माध्यम से विभिन्न अस्पतालों के विभागों में चिकित्सकीय सलाह के लिये अपॉइंटमेंट देता है।
- एम-डाइबिटीज़: इसेमोबाइल नेटवर्क की ताकत और क्षमता का लाभ उठाने के उद्देश्य से शुरू किया गया। इसमें 011-22901701 नंबर पर मिस्ड कॉल करके डाइबिटीज़ से जुड़ी सूचनाएँ, इसके रोकथाम एवं प्रबंधन के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
निष्कर्ष: राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना को लागू करने का काम मुख्यतः राज्यों पर निर्भर होगा, क्योंकि स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में रखा गया है। वैसे 29 राज्यों ने इसे लेकर सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी है। अतीत के अनुभव को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि मात्र योजनाएँ बनाने से काम चलने वाला नहीं है। स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की लागत में हो रही दिनोंदिन वृद्धि जहाँ एक ओर आम भारतीय परिवार को अपनी क्षमता से अधिक खर्च करने को विवश करती है, वहीं इसके संबंध में पर्याप्त व्यवस्थाओं की गैर-मौजूदगी की ओर भी इशारा करती है। सर्वप्रथम आवश्यकता इस पर ध्यान देने की है कि जब तक बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच आम लोगों तक नहीं होगी, कोई भी योजना प्रभावी सिद्ध नहीं हो सकती। स्वास्थ्य देखभाल प्रशासन में भारत की खराब स्थिति सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में एकल भुगतानकर्त्ता के रूप में सरकार की यह पहल स्वागत योग्य तो है, क्योंकि यदि ऐसा हो पाता है तो यह संपूर्ण देश में एक परिवर्तनकारी मनोदशा को बढ़ावा देने का काम करेगा।