नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

संसद टीवी संवाद


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नि-वैश्वीकरण और संरक्षणवाद

  • 07 May 2020
  • 15 min read

हाल ही में COVID-19 महामारी के कारण विभिन्न क्षेत्रों में मांग और आपूर्ति श्रृंखला के प्रभावित होने से विश्व भर में  वैश्विक मंदी जैसी स्थितियाँ बनने लगी हैं। पिछले कुछ सप्ताहों में कामगारों की आवाजाही पर रोक, औद्योगिक गतिविधियों के स्थगित होने और सीमाओं के बंद होने से वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस महामारी के बाद विश्व के विभिन्न देशों में आपूर्ति के लिये स्थानीय क्षमता में वृद्धि और प्रवासियों पर सख्ती जैसे प्रयासों के साथ आर्थिक संकीर्णता की विचारधारा में बढ़ावा मिल सकता है।

 

पृष्ठभूमि: 

वैश्विक मंदी:  

  • वर्ष 2007-08 की आर्थिक मंदी ने अर्थव्यवस्था के साथ ही वैश्विक व्यापार को गंभीर रूप से प्रभावित किया था। 
  • इस मंदी के बाद देशों की जीडीपी में सुधार के बावजूद भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वैश्विक जीडीपी के अनुपात में भारी गिरावट हुई और इस दौरान विश्व के विभिन्न देशों में संरक्षणवादी विचारधारा को बढ़ावा मिला। 

  • वर्ष 2008 की मंदी के बाद से वैश्विक स्तर पर यह संरक्षणवाद किसी न किसी रूप में जारी रहा है और COVID-19 की महामारी के बाद इसमें पुनः वृद्धि होने की आशंकाएँ हैं। 

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध:  

  • अमेरिका ने पिछले चार वर्षों में कई देशों के उत्पादों पर लगने वाले शुल्क में वृद्धि की और विशेष कर हाल ही में चीनी उत्पादों पर शुल्क बढ़ाए जाने से दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध की स्थिति बन गई।   
  • अमेरिका और चीन के बीच इस व्यापार युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया है साथ ही इसने आयातकों को विश्व के अन्य देशों में उपलब्ध संभावनाओं पर विचार करने को विवश किया है।  
  • COVID-19 महामारी के कारण लोगों का ध्यान पुनः आपूर्ति शृंखला के विकेंद्रीकरण की संभावनाओं और इसके लाभ की तरफ गया है।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर COVID-19 का प्रभाव:

  • पिछले कुछ वर्षों में चीन विश्व के लिये एक बड़ा उत्पादक बन कर उभरा है और इस दौरान कई देशों से चीन को भारी मात्रा में विदेशी निवेश भी प्राप्त हुआ है।
  • COVID-19 की महामारी से उत्पन्न हुई चुनौतियों के बाद विश्व के कई देशों ने अपने उद्योगों की चीन पर निर्भरता को कम करने तथा स्थानीय क्षमता के विकास पर विशेष ध्यान दिया है। 
  • जापान सरकार ने चीन में सक्रिय जापानी कंपनियों को चीन से बाहर निकालने के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता देने का निश्चय किया है। 
  • इसके अतिरिक्त अमेरिका की कई कंपनियों ने चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना शुरू किया है।  
  • भारतीय दवा उद्योग अपनी कुल आवश्यकता की लगभग 70% 'सक्रिय दवा सामग्री' (Active Pharmaceutical Ingredient-API) चीन से आयात करता है परंतु इस महामारी के बाद भारत सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र के सहयोग से देश में API निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिये विशेष प्रयास किये हैं। 

उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता:

  • आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत ने कई क्षेत्रों में अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि की है परंतु अन्य कई क्षेत्रों में भी जहाँ बेहतर संभावनाएँ हैं, भारतीय कंपनियाँ उत्पादन (Production) से हटकर व्यापार (Trade) में एक सेवा प्रदाता के रूप में अधिक सक्रिय रही हैं।
  • पूर्व में भारत में जिन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने का प्रयास किया गया है उनमें हम काफी सफल भी रहें हैं, उदाहरण के लिये स्टील उत्पादन, सूचना प्रौद्योगिकी और मोबाइल फोन या अन्य इलेक्ट्रिक उत्पादों की असेंबली आदि।
  • लगभग 133 की आबादी के साथ भारत के पास निर्यात के अलावा उत्पादों की खपत के लिये एक बड़ा स्थानीय बाज़ार भी उपलब्ध है।     
  • ऐसे में यह बहुत ही आवश्यक है कि ऐसे कुछ क्षेत्रों की पहचान की जाए जहाँ आसानी से अगले कुछ वर्षों देश में में स्थानीय आत्मनिर्भरता का विकास किया जा सकता है।

स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण:  

  • भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ कुछ हिस्सों में बड़ी प्रगति हुई है परंतु अन्य में आज भी हम किसी न किसी रूप में अन्य देशों पर निर्भर हैं।
  • उदाहरण के लिये भारत सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र वैश्विक बाज़ार में अपना स्थान बनाया है परंतु हार्ड वेयर के निर्माण में भारतीय कंपनियाँ उतनी सफल नहीं रही हैं। अन्य उदाहरणों में भारतीय दवा उद्योग, मोबाइल असेम्बली आदि हैं, जहाँ स्थानीय आपूर्ति शृंखला को मज़बूत किया जाना अति आवश्यक है।

तकनीकी हस्तक्षेप में वृद्धि :  

  • भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना के माध्यम से दो मुख्य लक्ष्यों (औद्योगिक विकास और रोज़गार) को प्राप्त करने का प्रयास किया गया।
  • वर्तमान में वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में सरकारों को अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा।  
  • वर्तमान में COVID-19 के कारण लागू लॉकडाउन के बाद अधिकांश कंपनियों में ‘ऑटोमेशन’ (Automation), घर से काम करने और अनुबंधित कामगारों को अधिक प्राथमिकता देंगी।  
  • ऐसे में आधुनिक तकनीकी प्रगति के अनुरूप कुशल श्रमिकों की मांग को पूरा करने और लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु कौशल विकास के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना होगा। 

उत्पादन श्रृंखला में भागीदारी:

  • औद्योगिक विकास के साथ-साथ ही उत्पादन के स्वरूप और कंपनियों/उद्योगों की कार्यशैली में बड़े बदलाव होंगे।
  • ऐसे में कृषि और अन्य क्षेत्रों को इन परिवर्तनों के अनुरूप तैयार कर औद्योगिक विकास के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान दिया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिये विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों की पैकेजिंग या उनसे बनने वाले अन्य उत्पादों के निर्माण हेतु स्थनीय स्तर पर छोटी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देकर औद्योगिक उत्पादन श्रृंखला में ग्रामीण क्षेत्रों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।

आर्थिक सहयोग: 

  • वैश्विक बाज़ार में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र के हस्तक्षेप में कमी का एक कारण यह भी है कि अन्य देशों की कंपनियों की तरह भारतीय कंपनियों को आगे बढ़ने के सामान अवसर नहीं प्राप्त हुये हैं।
  • ऐसे में समय-समय पर औद्योगिक क्षेत्र की ज़रूरतों को देखते हुए आसान ऋण और टैक्स में कटौती जैसे प्रयास कुछ मदद प्रदान कर सकते हैं। 
  • भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक नीतियों में समन्वय होना बहुत ही आवश्यक है।
  • हाल ही में सरकार द्वारा 1 अक्तूबर, 2019 के बाद विनिर्माण क्षेत्र की नयी कंपनियों के औद्योगिक कर में कमी करने के निर्णय से इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

विदेशी निवेश:       

  • विशेषज्ञों के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर देशों की नीतियों में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं, उदाहरण के लिये हाल ही में जर्मनी, इटली, फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों ने ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (FDI) पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं।
  • अधिकांश देशों द्वारा FDI नियमों में सख्ती का मुख्य लक्ष्य चीन की अवसरवादिता पर अंकुश लगाना था, 
  • भारत को अपने एवं अन्य देशों के अनुभवों से सीख लेते हुए FDI की अनुमति देते समय स्थानीय उद्योगों के हितों को भी ध्यान में रखना होगा।  

चुनौतियाँ: 

  • लागत और गुणवत्ता:  
    • वर्तमान में कई क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों को बहुत अधिक अनुभव नहीं है, ऐसे में लगत को कम-से-कम रखते हुए वैश्विक बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिये उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी।  
  • आर्थिक चुनौतियाँ: 
    • हाल ही में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में सक्रिय पूंजी और वित्तीय तरलता की चुनौती के मामलों में वृद्धि देखी गई थी, COVID-19 की महामारी से औद्योगिक गतिविधियों के रुकने और बाज़ार में मांग कम होने से औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं में वृद्धि हुई है।
    • ऐसे में सरकार को औद्योगिक अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये विभिन्न श्रेणियों में लक्षित योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिये।  
  • वैश्विक मानक:    
    • सरकार द्वारा स्थानीय उत्पादकों और व्यवसायियों को दी जाने वाली सहायता मुक्त व्यापार समझौतों और ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ’ (World Trade Organisation- WTO) के मानकों के अनुरूप ही जारी की जा सकती है। 
  • आधारिक संरचना: विशेषज्ञों के अनुसार, चीन से निकलने वाली अधिकांश कंपनियों के भारत में न आने का एक मुख्य कारण भारतीय औद्योगिक क्षेत्र (विशेष कर तकनीकी के संदर्भ में) में एक मज़बूत आधारिक ढांचे का अभाव है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय उत्पादक किसी-न-किसी रूप में आयात पर निर्भर रहें हैं। 

आगे की राह:   

  • स्थानीय आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ने के पहले चरण के तहत उन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिये जहाँ हम स्थानीय बाज़ार की ज़रूरतों के लिये आत्मनिर्भर बन सकते हैं और आगे चलकर इन क्षेत्रों में गुणवत्ता को बनाए रखते हुए वैश्विक बाज़ार में संभावनाओं की तलाश की जा सकती है। 
  • कृषि से लेकर सॉफ्टवेयर और तकनीकी के क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये नियमों में जटिलताओं को दूर करने के साथ नौकरशाही के हस्तक्षेप में कमी की जानी चाहिये।
  • वर्तमान परिवेश में बाज़ार और औद्योगिक क्षेत्र की बदलती ज़रूरतों के अनुरूप लोगों को उत्पादन श्रृंखला में शामिल करने और स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के लिये योजनाओं कृषि और ‘सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यमों’ (Micro, Small & Medium Enterprises- MSME) को सहयोग प्रदान किया जाना चाहिये।
  • शोध और कौशल विकास पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये, उदाहरण के लिये पिछले कुछ वर्षों में भारत ने रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है परंतु अभी भी कुछ तकनीकी उपकरणों (इंजन, उच्च कोटि के राडार आदि) के लिये अन्य देशों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है।
  • चीन पर निर्भरता को समाप्त करने और एक वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने के हेतु सामान विचारधारा वाले देशों (जैसे-यूरोपीय देश, जापान, अमेरिका आदि) के सहयोग से वैश्विक बाज़ार में एक सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। 

अभ्यास प्रश्न:  COVID-19 के कारण वैश्विक बाज़ार में आए बादलाओं ने भारतीय औद्योगिक क्षेत्र को भविष्य की दिशा निर्धारित करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान किया है। वर्तमान परिस्थितियों में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र के विकास की प्रमुख चुनौतियों और इसके समाधान पर चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow