भारतीय अर्थव्यवस्था
निजी क्षेत्र की नौकरियाँ : स्थानीय लोगों को प्राथमिकता
- 03 Sep 2019
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संदर्भ
आंध्र प्रदेश सरकार ने हाल ही में निजी क्षेत्र की नौकरियों में आंध्र प्रदेश के स्थानीय युवाओं के लिये 75% कोटा लागू करने के लिये विधानसभा में एक विधेयक पारित किया। इसके साथ आंध्र प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसने निजी क्षेत्र में इस तरह का प्रावधान किया है। उद्योग/कारखाना अधिनियम, 2019 में स्थानीय उम्मीदवारों को रोज़गार में प्राथमिकता देने हेतु 22 जुलाई, 2019 को आंध्र प्रदेश विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया गया।
विधेयक में कहा गया है कि यदि कोई औद्योगिक इकाई पर्याप्त संख्या में कुशल स्थानीय श्रमिकों को खोजने में विफल रहती है, तो उसे दूसरे स्थानीय युवकों को नियुक्त करना होगा और इसके पश्चात् राज्य सरकार के साथ मिलकर उन्हें प्रशिक्षित करना होगा। नए कानून के अनुसार, कंपनी को कार्य और अनुपालन संबंधी तिमाही रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में भी इसी तरह की मांग सामने आई हैं तथा मध्य प्रदेश सरकार ने स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 70% आरक्षण की घोषणा की है।
'लोकल फर्स्ट' पॉलिसी (Local First Policy) क्या है?
- इससे तात्पर्य है कि किसी राज्य में मौजूद नौकरियों में उन्हीं लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी जो उस राज्य के निवासी हैं। उदाहरण के तौर पर, माना कि ऐसे किसी राज्य में जहाँ लोकल फर्स्ट पाॅलिसी लागू होती है, वहाँ निजी कंपनी ‘A’ में दो पदों के लिये रिक्तियाँ निकलती हैं। समान योग्यताओं वाले तीन व्यक्तियों X, Y, Z ने नौकरी हेतु आवेदन किया है, जिसमें से X एवं Z उसी राज्य के हैं किंतु Y किसी अन्य राज्य का। ऐसी स्थिति में उन दो पदों के लिये स्थानीयता के आधार पर X एवं Z के आवेदन को प्राथमिकता दी जाएगी।
- हाल के दिनों में बेरोज़गारी या रोज़गार सृजन एक प्रमुख मुद्दा है और यह नीति लोकलुभावन है।
- यह नीति कुछ स्थानीय लोगों के डर का भी नतीजा है जो मानते हैं कि उनकी नौकरियाँ उनसे छीन ली जा रही हैं और अन्य राज्य के लोगों को दे दी जाती हैं।
- आंध्र प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र में एक कानून है कि अगर किसी भी उद्योग को राज्य सरकार से प्रोत्साहन मिलता है, तो एक विशेष स्तर पर 70% कर्मचारी (मूल रूप से उस उद्योग के अकुशल श्रमिक) स्थानीय होने चाहिये।
- ऐसी नीति के समर्थन में राज्य तर्क देते हैं कि यह राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करे। साथ ही चूँकि राज्य प्रोत्साहन प्रदान कर रहा है, उद्योगों को इसके निर्देशों का पालन करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिये।
- हालाँकि अक्सर ऐसा देखा गया है कि ऐसे कानून, कानून की किताबों में ही रहते हैं, लागू नहीं होते हैं।
'लोकल फर्स्ट' पॉलिसी के निहितार्थ
स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण: आरक्षण एक सकारात्मक अवधारणा है, जिसके तहत आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक रूप से पिछड़े व कमज़ोर लोगों को मुख्य धारा में शामिल करने हेतु प्रावधान किया जाता है। हज़ारों वर्षों के भेदभाव के आधार पर SC, ST, OBC के लिये इस तरह की कार्रवाई आवश्यक है, लेकिन यह स्थानीय लोगों के रोज़गार के आश्वासन को भी पूरा करने का एक तरीका बनना चाहिये।
संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन: संविधान में समानता बहुत गहराई से निहित है, लेकिन अनुच्छेद 16 में विशेष रूप से कहा गया है कि कोई भी नागरिक राज्य के अधीन किसी भी रोज़गार या कार्यालय में केवल धर्म, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर अयोग्य नहीं होगा या उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
विविधता में एकता : इस नीति से क्षेत्र में स्थानीय बनाम गैर-स्थानीय लोगों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे देश के एकीकरण को खतरा पैदा हो सकता है। इस तरह का कानून ‘वन नेशन वन टैक्स’ (One Nation One Tax), ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ (One Nation One Ration Card) आदि की भावना के खिलाफ है।
निवेश पर प्रभाव: ऐसी नीतियाँ क्षेत्र में पूंजी निवेश को हतोत्साहित कर सकता है।
अल्पकालिक कदम: नीति के अल्पकालिक लाभ समाप्त हो जाने के बाद, राज्य सरकार को स्थानीय लोगों के लिये अधिक रोज़गार उत्पन्न करने हेतु अन्य तरीके खोजने की आवश्यकता हो सकती है। इस प्रकार की पहल से कुछ समय के लिये तो राज्य के मतदाता प्रसन्न होंगे लेकिन अगर राज्य में रोज़गार सृजन अपर्याप्त रहा तो उनका असंतोष फिर उभरेगा।
स्थानीयकृत संरक्षणवाद: इस नीति के माध्यम से भारत एक ऐसे चरण में वापस जा रहा है, जब देश पर 500 राजकुमारों का शासन था और उनमें से हर एक अपनी जागीर की देखभाल करता था।
व्यवसाय की स्वतंत्रता: इस प्रकार की नीतियाँ अंततः व्यावसायिक स्वतंत्रता को प्रभावित करती हैं जबकि व्यवसाय क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिये अधिक संवेदनशील नीतियों सहित अच्छी तरह से परिभाषित मापदंड विकसित करने चाहिये।
आर्थिक नुकसान: श्रम प्रधानअर्थव्यवस्था के रूप में भारत को श्रम की पूर्ति बड़े पैमाने पर होने के कारण अन्य देशों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से लाभ प्राप्त होता है। देश के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में घनी आबादी वाले श्रमिक, काम के लिये अन्य स्थानों पर पलायन करते हैं जिनकी मजदूरी भी कम होती हैं। केवल स्थानीय लोगों को रोज़गार प्रदान करने की स्थिति में मज़दूरी ज़्यादा होगी जिसके कारण आर्थिक नुकसान हो सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: ऐसी नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिलक्षित हो सकती है, जहाँ हर देश नौकरी में अपने नागरिकों को प्राथमिकता देना शुरू करता है। भारत ने अमेरिका जैसे देशों द्वारा इस तरह के कदमों का विरोध किया है।
प्रतिस्पर्द्धा की भावना के खिलाफ: इस तरह की नीति एक स्थानीय व्यक्ति के रूप में प्रतिस्पर्द्धा की भावना के खिलाफ है। ऐसे लोग, जो पूरी तरह से कुशल नहीं हैं को गैर-स्थानीय लोगों, जो पूरी तरह से कुशल है, के ऊपर प्राथमिकता मिल सकती है।
आगे की राह
- आंध्र प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित कानून का ठीक से कार्यान्वयन किये जाने की आवश्यकता है। राज्यपाल की सहमति देने से पहले विधेयक का गहन अध्ययन आवश्यक है।
- मतदाताओं की आकांक्षाओं को पूरा करना एक राजनेता की एक महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। ऐसी नीतियों को संविधान की सीमा में रहकर लागू करना चाहिये।
- सरकार उन कंपनियों को कुछ प्रोत्साहन दे सकती है जो स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिये एक निश्चित राशि का निवेश कर रही हैं। इस तरह के प्रोत्साहन बेहतर कौशल विकास, कम बिजली शुल्क, बेहतर बुनियादी सुविधाओं, आदि के लिये पूंजी के रूप में हो सकते हैं।
- स्थानीय युवाओं को रोज़गार प्रदान करने के लिये राज्य सरकार निम्नलिखित उदाहरणों से सीख सकती है:
- महाराष्ट्र में किये गए एक प्रयोग में बहुत से दलित उद्यमियों को ऐसी इकाइयाँ स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित किया गया, जो दूसरों को रोज़गार प्रदान करती थीं।
- मध्य प्रदेश में भी, सरकार ने कमज़ोर वर्ग के लोगों को उद्योग लगाने के लिये प्रोत्साहित किया ताकि भविष्य में वे दूसरों को रोज़गार देने की स्थिति में रहे।
अभ्यास प्रश्न: निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण प्रदान करना कितना प्रासंगिक है? चर्चा कीजिये।