उपभोक्‍ता संरक्षण विधेयक, 2019: विभिन्न आयाम | 16 Aug 2019

संदर्भ

हाल ही में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 (Consumer Protection Bill, 2019) संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया। यह उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 1986 का स्थान लेगा। यह विधेयक उपभोक्ता के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करता है एवं दोषपूर्ण सामान या सेवाओं में कमी के मामले में शिकायतों के निवारण के लिये एक तंत्र भी प्रदान करता है।

वर्ष 1986 से लेकर अब तक उपभोक्ता बाज़ारों में भारी बदलाव आया है। उपभोक्ता अब विभिन्न प्रकार के अनुचित नियम एवं शर्तों के कारण भ्रम की स्थिति में हैं। वर्तमान में बदलते उपभोक्ता बाज़ारों में मौज़ूदा अधिनियम की प्रासंगिकता कम हो रही है। अत: उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा के लिये एक नए एवं संशोधित अधिनियम की ज़रूरत है।

बिल की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • उपभोक्ता की परिभाषा

उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिये किसी वस्तु को हासिल करता है या कमर्शियल उद्देश्य के लिये किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के ज़रिये किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेन-देन शामिल है।

  • उपभोक्ताओं के अधिकार

बिल में उपभोक्ताओं के कई अधिकारों को स्पष्ट किया गया है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं : 

(i) ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना जो जीवन और संपत्ति के लिये जोखिमपूर्ण हैं।
(ii) वस्तुओं या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना।
(iii) प्रतिस्पर्द्धा मूल्य पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना।
(iv) अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवज़े की मांग करना।

  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण

केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिये केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) का गठन करेगी। यह अथॉरिटी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को विनियमित करेगी। महानिदेशक की अध्यक्षता में CCPA की एक अन्वेषण शाखा (इनवेस्टिगेशन विंग) होगी, जो ऐसे उल्लंघनों की जाँच या इनवेस्टिगेशन कर सकती है।

CCPA निम्नलिखित कार्य करेगी

(i) उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की जाँच, इनवेस्टिगेशन और उपयुक्त मंच पर कानूनी कार्यवाही शुरू करना।
(ii) जोखिमपूर्ण वस्तुओं को रीकॉल करने या सेवाओं को विदड्रॉ करने के आदेश जारी करना, चुकाई गई कीमत की भारपाई करना और अनुचित व्यापार को बंद कराना।
(iii) संबंधित ट्रेडर/मैन्युफैक्चरर/एन्डोर्सर/एडवरटाइज़र/पब्लिशर को झूठे या भ्रामक विज्ञापन को बंद करने या उसे सुधारने का आदेश जारी करना।
(iv) जुर्माना  लगाना।
(v) खतरनाक और असुरक्षित वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रति उपभोक्ताओं को सेफ्टी नोटिस जारी करना।

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  • भ्रामक विज्ञापनों के लिये जुर्माना 

CCPA झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिये मैन्युफैक्चरर या एन्डोर्सर पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकती है। दोबारा अपराध की स्थिति में यह जुर्माना 50 लाख रुपए तक बढ़ सकता है। मैन्युफैक्चरर को दो वर्ष तक की कैद की सजा भी हो सकती है जो हर बार अपराध करने पर पाँच वर्ष तक बढ़ सकती है।

CCPA भ्रामक विज्ञापनों के एन्डोर्सर को उस विशेष उत्पाद या सेवा को एक वर्ष तक एन्डोर्स करने से प्रतिबंधित भी कर सकती है। एक बार से ज्यादा बार अपराध करने पर प्रतिबंध की अवधि तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है। हालाँकि ऐसे कई अपवाद हैं जब एन्डोर्सर को ऐसी सज़ा का भागी नहीं माना जाएगा।

  • उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन

ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों (Consumer Disputes Redressal Commissions- CDRCs) का गठन किया जाएगा। एक उपभोक्ता निम्नलिखित के संबंध में आयोग में शिकायत दर्ज़ करा सकता है:

(i) अनुचित और प्रतिबंधित तरीके का व्यापार
(ii) दोषपूर्ण वस्तु या सेवाएँ
(iii) अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके से कीमत वसूलना
(iv) ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिये पेश करना जो जीवन और सुरक्षा के लिये जोखिमपूर्ण हो सकती हैं। 

अनुचित कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय CDRCs में फाइल की जा सकती है। ज़िला CDRC के आदेश के खिलाफ राज्य CDRC में सुनवाई की जाएगी। राज्य CDRC के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय CDRC में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा।

CDRCs का क्षेत्राधिकार

  • ज़िला CDRC उन शिकायतों के मामलों की सुनवाई करेगा जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक न हो। 
  • राज्य CDRC उन शिकायतों के मामले में सुनवाई करेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक हो, लेकिन 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो। 
  • 10 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत की वस्तुओं और सेवाओं के संबंधित शिकायतें राष्ट्रीय CDRC द्वारा सुनी जाएंगी।

उत्पाद की ज़िम्मेदारी (प्रोडक्ट लायबिलिटी)

  • उत्पाद की ज़िम्मेदारी का अर्थ है- उत्पाद के मैन्यूफैक्चरर, सर्विस प्रोवाइडर या विक्रेता की ज़िम्मेदारी। यह उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह किसी खराब वस्तु या सेवा के कारण होने वाले नुकसान या क्षति के लिये उपभोक्ता को मुआवज़ा दे। मुआवज़े का दावा करने के लिये उपभोक्ता को विधेयक में उल्लिखित खराबी या दोष से जुड़ी कम-से-कम एक शर्त को साबित करना होगा।

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विधेयक से उपभोक्ताओं को लाभ

  • वर्तमान में शिकायतों के निवारण के लिये उपभोक्‍ताओं के पास एक ही विकल्‍प है, जिसमें अधिक समय लगता है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के माध्यम से विधेयक में त्‍वरित न्‍याय की व्‍यवस्‍था की गई है। 
  • भ्रामक विज्ञापनों के कारण उपभोक्ता में भ्रम की स्थिति बनी रहती है तथा उत्पादों में मिलावट के कारण उनके स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भ्रामक विज्ञापन और मिलावट के लिये कठोर सज़ा का प्रावधान है जिससे ताकि इस तरह के मामलों में कमी आए।
  • दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं को रोकने के लिये निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं की ज़िम्मेदारी का प्रावधान होने में उपभोक्ताओं को छान-बीन करने में अधिक समय खर्च करने की ज़रुरत नहीं होगी।
  • उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी और प्रक्रिया का सरलीकरण।
  • वर्तमान उपभोक्ता बाज़ार के मुद्दों- ई कॉमर्स और सीधी बिक्री के लिये नियमों का प्रावधान है।

अभ्यास प्रश्न: वर्तमान युग में उपभोक्ताओं की समस्याएँ एवं उनके संभावित समाधान पर चर्चा करें।