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संसद टीवी संवाद


भारतीय अर्थव्यवस्था

श्रमिक आयोग: अधिकार और सरकार

  • 06 Jun 2020
  • 16 min read

संदर्भ:    

COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु लागू देशव्यापी लॉकडाउन से औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने के कारण भारत के कई बड़े शहरों से भारी संख्या में श्रमिकों का पलायन देखा गया है। इस समस्या को देखते हुए हाल ही में उत्तर प्रदेश की सरकार ने मज़दूरों के लिये एक ‘श्रमिक कल्याण आयोग’ की स्थापना करने का निर्णय लिया है। इसके तहत राज्य सरकार द्वारा देश के अन्य भागों में काम की तलाश में जा रहे श्रमिकों का पंजीकरण किया जाएगा, साथ ही जो भी राज्य या कंपनियाँ श्रमिकों की नियुक्ति करेंगी उन्हें भी अपना पंजीकरण करना पड़ सकता है। इस आयोग का उद्देश्य श्रमिकों के काम और निवास की सही जानकारी एकत्र करना है, जिससे किसी भी परेशानी या आपदा की स्थिति में सही समय पर उन्हें सहायता पहुँचाई जा सके।  

प्रमुख बिंदु:  

  • इस आयोग के माध्यम से राज्य के अधिक-से-अधिक श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर रोज़गार उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा। 
  • यह आयोग अन्य राज्यों से लौट रहे श्रमिकों के कौशल की पहचान करेगा और उन्हें प्रशिक्षण भी प्रदान करने का प्रबंध करेगा।
  • साथ ही इसके माध्यम से श्रमिकों को स्वास्थ्य बीमा, मातृत्त्व संबंधी योजनाओं से जुड़े लाभ, पुन: रोज़गार प्राप्त करने में सहायता, बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान और सामाजिक सुरक्षा जैसी अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। 
  • राज्य सरकार के अनुसार, इस योजना का उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और उनके शोषण को रोकने के साथ उन्हें सामाजिक-आर्थिक-कानूनी सहायता सुनिश्चित करने के लिये एक आधिकारिक ढाँचा प्रदान करना है।     
  • राज्य सरकार की योजना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में स्थित MSME श्रेणी की 90 लाख छोटी औद्योगिक इकाइयों में इन श्रमिकों को रोज़गार उपलब्ध कराया जाएगा।  
  • इस योजना के तहत वर्तमान में राज्य के लगभग 15 लाख श्रमिकों के कौशल का मूल्यांकन किया जा चुका है।      
  • सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इस प्रावधान के लागू होने के बाद ऐसे राज्य या इकाईयाँ जो उत्तर प्रदेश के प्रवासी श्रमिकों को बुलाने के इच्छुक होंगे, उन्हें श्रमिकों के सामाजिक-कानूनी-मौद्रिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रबंध करना होगा।   

वर्तमान समस्याएँ:

  • वर्तमान में देश के कई राज्यों में समय के साथ विकास के अभाव और स्थानीय स्तर पर रोज़गार की अनुपलब्धता, श्रमिकों को तकनीकी प्रशिक्षण का अभाव तथा बढती जनसंख्या के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा है।    
  • वर्ष 2017 के राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (National Accounts Statistics) और वर्ष 2017-18 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की 70% से अधिक आबादी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। 
  • जबकि देश के सकल घरेलू उत्पादन में इस आबादी की भूमिका मात्र 48% है, ऐसे में संसाधनों और विकास के अवसरों की अनुपलब्धता का प्रभाव प्रति व्यक्ति आय में गिरावट और बढ़ी हुई बेरोज़गारी के रूप में दिखाई देता है।   

 बेरोज़गारी:    

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2017-18 के दौरान देश के ग्रामीण क्षेत्रों की मात्र 36% आबादी सक्रिय रूप से रोज़गार से जुड़ी थी, जबकि बाकी 64% आबादी (अधिकांश 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे या बुजुर्ग) सक्रिय श्रमिकों की आय पर ही निर्भर रही।
  • इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में कामगारों के लिये नियमित वेतन और सामाजिक सुरक्षा की सुविधाओं का न होना उन्हें विषम आर्थिक परिस्थितियों में अधिक सुभेद्य बनाता है।
  • परंपरागत रूप से ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर रहा है, परंतु समय के साथ जनसंख्या के बढ़ने, कृषि जोत के कम होने से कृषि पर निर्भर आबादी की आय में भारी गिरावट देखने को मिली है। 
  • सीमित कृषि भूमि पर अधिक लोगों की निर्भरता के कारण प्रच्छन्न बेरोजगारी जैसी चुनौतियों में वृद्धि होती है, साथ ही कृषि के अलावा रोज़गार के अन्य विकल्पों का सीमित होना मौसमी बेरोज़गारी (Seasonal Unemployment) जैसी समस्याओं को जन्म देता है।         
  • प्रवासी समस्या:
    • जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के नए अवसरों के न उपलब्ध होने के कारण ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा महानगरों या अन्य राज्यों को पलायन करने को विवश हुआ है। 
    • राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation- NSSO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सक्रिय कुल कामगारों में प्रवासियों की भागीदारी 28.3% है।  
    • वर्ष 2017 में ‘केंद्रीय आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय’ द्वारा स्थापित प्रवासन पर काम करने वाले समूह द्वारा NSSO की एक रिपोर्ट के आधार पर बताया कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और मुंबई (महाराष्ट्र) की कुल आबादी में से 40% से अधिक आबादी प्रवासी लोगों की है। साथ ही इसमें से लगभग आधा हिस्सा उत्तर प्रदेश और बिहार से आए श्रमिकों का है।               
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अंतर्राजीय प्रवासियों की संख्या लगभग 454 मिलियन बताई गई थी, हालाँकि वर्तमान में (पिछले आंकड़ों की तुलना में) इस संख्या में भारी वृद्धि होने का अनुमान है।  
  • भारतीय असंगठित क्षेत्र की समस्याएं:
    • लगभग 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर के भारतीय खुदरा बाज़ार में असंगठित क्षेत्र और सूक्ष्म उद्यमों की भागीदारी लगभग 90% से अधिक है।
    • असंगठित क्षेत्र में मेहनताने में कमी, कानूनी सुरक्षा का अभाव और अस्थायी रोज़गार के कारण श्रमिकों के हितों की क्षति होती है साथ ही असंगठित क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों के बारे में प्रमाणिक आँकड़ों के अभाव में सरकार के लिये किसी विषम परिस्थिति में इस आबादी को मदद पहुँचाना एक बड़ी चुनौती बन जाती है।

प्रवासी आयोग के लाभ:  

  • इस पहल के माध्यम से राज्य के श्रमिकों के संदर्भ प्रमाणिक आँकड़ों को एकत्र कर, किसी विषम परिस्थिति में उन्हें लक्षित सहयोग उपलब्ध कराने में सहायता प्राप्त होगी।
  • आयोग के द्वारा श्रमिकों की कार्य कुशलता के आधार पर उनके लिये राज्य में स्थित औद्योगिक इकाइयों में रोज़गार उपलब्ध कराया जा सकेगा।
  • आयोग के माध्यम से दूसरे राज्यों में भी श्रमिकों के लिये न्यूनतम आय, बीमा और सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी अन्य सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकेगी।
  • श्रमिकों की आय, कौशल और बेरोज़गारी से जुड़े प्रमाणिक आँकड़ों के माध्यम से भविष्य में श्रमिकों से जुड़े कानूनों और नीतियों के निर्माण में सहायता प्राप्त होगी।        

चुनौतियाँ:

  • श्रम से संबधित कानून को भारतीय संविधान में समवर्ती सूची में रखा गया है अर्थात इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही नए कानून बना सकती हैं। 
  • परंतु भारतीय संविधान सभी नागरिकों को स्वेच्छा से देश के किसी भी भाग में रहकर कार्य करने का अधिकार प्रदान करता है, ऐसे में किसी अन्य राज्य में कार्य करने से पहले सरकार या आयोग की अनुमति लेने की बाध्यता का प्रावधान संवैधानिक रूप से तर्कसंगत नहीं होगा।
  • वर्तमान COVID-19 के कारण देश की अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के बीच इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों के लिये रोज़गार उपलब्ध कराना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।
  • श्रम कानूनों का निरस्त्रीकरण:
    • हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगभग सभी श्रम कानून को अगले तीन वर्षों के लिये निष्क्रिय कर दिया गया है, ऐसे में नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों के शोषण का खतरा बढ़ जाता है। 
    • विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार द्वारा आयोग की स्थापना के माध्यम से श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई है परंतु श्रम कानूनों को निरस्त करने के साथ श्रमिकों के हितों की रक्षा की बात कहना, दोनों विरोधाभासी वक्तव्य प्रतीत होते हैं।    

समाधान:

  • त्रि-पक्षीय मंच:  
    • श्रमिक संगठनों की मांग के अनुसार, सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन के 144वें सम्मेलन के मूल्यों के तहत एक त्रिपक्षीय आयोग की स्थापना की जानी चाहिये।
    • आयोग के त्रि-पक्षीय होने से आशय यह है कि इस आयोग में सरकार, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों की बराबर भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिये।
    • आयोग में त्रिपक्षीय प्रतिनिधित्व के द्वारा पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से श्रमिकों से जुड़ी समस्याओं पर विचार कर उसके समाधान के प्रयास किये जाएँ। 
  • राष्ट्रीय श्रमिक रजिस्टर की मांग:
    • श्रमिक समूहों द्वारा लंबे समय से देश में दूसरे राज्यों के जाकर कार्य  करने वाले मज़दूरों के बारे में विश्वसनीय जानकारी एकत्र करने हेतु एक राष्ट्रीय रजिस्टर बनाए जाने की मांग की जाती रही है।
    • एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में लगभग 8 करोड़ मज़दूर राशन कार्ड जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। राष्ट्रीय श्रमिक रजिस्टर के माध्यम से प्रवासी श्रमिकों की जानकारी एकत्र कर उनकी सहायता की जा सकेगी।
  • दूसरे राज्यों में रह रहे श्रमिकों को सहायता उपलब्ध कराने हेतु ‘ओडिशा मॉडल’ से सीख लेते हुए सरकार के विभिन्न विभागों और अन्य राज्यों के बीच एक मज़बूत संपर्क तंत्र की स्थापना करने की आवश्यकता है।    

आगे की राह:  

  • COVID-19 महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं ने प्रशासनिक असफलता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की भारी कमी को उजागर किया है।
  • प्रवासी श्रमिक प्रेषित धन के माध्यम से प्रदेश की अर्थ व्यवस्था में योगदान देने के साथ कौशल और श्रम के माध्यम से राज्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, ऐसे में राज्यों को श्रमिकों के हितों की रक्षा करने के लिये विशेष प्रयास किये जाने चाहिये।
  • प्रवासी श्रमिकों की सहायता हेतु नए प्रयासों के साथ मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी वर्तमान योजनाओं को मज़बूत बनाने प्रयास करना चाहिये।
    • जैसे- ‘एक राष्ट्र एक राशनकार्ड’ के माध्यम से देश के सभी भागों में कम लागत पर उच्च पोषकतत्व युक्त आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • अधिक-से-अधिक कामगारों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और कर्मचारी राज्य बीमा जैसी योजनाओं से जोड़ना।
    • कामगारों की प्रगति के लिये राज्यों का स्थानीय निवासी होने की बाध्यताओं या भेदभाव के बगैर हुए नियमित रूप कौशल विकास की योजनाओं का संचालन किया जाना चाहिये।
    • असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों या स्वरोज़गार से जुड़े लोगों आत्मनिर्भर बनाने के लिये आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिये। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में घोषित ‘पीएम स्वनिधि' योजना इस दिशा में एक सकारात्मक पहल है। 

प्रश्न:  श्रमिक कल्याण आयोग’ से आप क्या समझते हैं? वर्तमान में देश में प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं के मुख्य कारणों का उल्लेख करते हुए इसके संभावित समाधान के प्रयासों की चर्चा कीजिये।

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