भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय रेल 2030: जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य
- 18 Jul 2020
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संदर्भ:
भारतीय रेलवे द्वारा वर्ष 2030 तक रेलवे के संचालन में शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा गया है। सतत् विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की प्रतिबद्धता की दिशा में कदम बढ़ाते हुए हाल ही में रेलवे द्वारा ‘नवदूत’ नामक बैटरी चालित रेल इंजन का सफल परीक्षण किया गया है। रेलवे द्वारा अपनी ईंधन की आवश्यकता को पूरा करने के लिये सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के साधनों का प्रयोग, जन-परिवहन को एक हरित माध्यम बनाने की ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत के कुल कार्बन उत्सर्जन में लगभग 13% परिवहन क्षेत्र से आता है और इसमें रेलवे की हिस्सेदारी लगभग 60 लाख टन (वार्षिक) है।
- गौरतलब है की पिछले कुछ वर्षों में परिवहन क्षेत्र के कार्बन उत्सर्जन में लगातार वृद्धि देखने को मिली है।
- इस योजना की परिकल्पना के दौरान शून्य कार्बन उत्सर्जन की प्राप्ति के लिये सौर ऊर्जा अनुकूल राज्यों को ही न देखते हुए पूरे देश के Average Solar Insolation को आधार माना गया है।
- भारत के विभिन्न भागों में उत्पादित सौर ऊर्जा को रेलवे की ट्रैक्सन लाइनों के माध्यम से कहीं भी पहुँचाया जा सकता है।
- भारतीय रेल द्वारा शिमला, वैष्णव देवी जैसे देश के कई बड़े रेलवे स्टेशनों को पूर्णरूप से हरित ऊर्जा पर संचालित कर अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है।
सौर ऊर्जा से रेल संचालन:
- गौरतलब है कि वर्ष 2019 में नई दिल्ली में रेलवे द्वारा एक प्रयोगशाला मॉडल पर आधारित परीक्षण किया गया था।
- इसके तहत सोलर पैनल से उत्पादित विद्युत को सीधे रेलवे की 25 किलोवाट ट्रैक्सन लाइन में संप्रेषित करने में सफलता प्राप्त की गई।
- सौर ऊर्जा से रेल संचालन की एक बड़ी चुनौती ‘सिंगल फेज़ इनवर्टर’ की अनुपलब्धता थी।
- इस चुनौती को दूर करने के लिये भारतीय रेलवे और ‘भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड’ (Bharat Heavy Electricals Ltd- BHEL) ने मिलकर उच्च क्षमता वाले 1 मेगावाट के ‘सिंगल फेज़ इनवर्टर’ के विकास में सफलता प्राप्त की है।
सौर ऊर्जा से रेल संचालन की दिशा में संभावनाएँ तथा लाभ:
- रेलवे लाइन के किनारे सोलर पैनल लगाकर प्राप्त ऊर्जा को सीधे रेलवे ट्रेक्सन लाइन में संप्रेषित किया जा सकता है।
- इस संदर्भ में रेलवे द्वारा सभी आवश्यक परीक्षण पूरे कर लिये गए हैं और भविष्य में इसे आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।
- साथ ही सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘डेडिकेटेड फ्रीट कॉरिडोर’ (Dedicated Freight Corridor- DFC) को वर्ष 2022 तक पूर्ण रूप से चालू करना बहुत ही आवश्यक होगा।
- DFC के माध्यम से माल ढुलाई में समय की बचत के साथ-साथ अगले 30 वर्षों में 450 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन को भी कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
अन्य सुधार:
- हाल के वर्षों में रेल संचालन में कई महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए हैं, उदाहरण के लिये रेलवे द्वारा ट्रेन में एसी, लाइट आदि उपकरणों के 'इंड संचालन के लिये डीजल जेनरेटर आधारित ‘ऑन जेनरेशन’ (End on Generation) प्रणाली को हटाकर इंजन में जाने वाली विद्युत् [‘हेड ऑन जेनरेशन’ (Head on Generation)] को प्रयोग करने के लिये आवश्यक तकनीकी बदलाव किए गए हैं।
- इस बदलाव से न सिर्फ धन की बचत (लगभग 30 रुपये प्रति यूनिट की बचत) होती है, बल्कि ऐसे सुधारों के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन को कम करते हुए पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी सहायता प्राप्त होगी।
चुनौतियाँ:
- देश के विभिन्न राज्यों में प्राकृतिक और कई अन्य कारणों से सौर ऊर्जा की संभावनाओं में अंतर है जिससे वर्ष 2030 तक रेलवे की कुल जरूरत की विद्युत् ऊर्जा को सौर ऊर्जा से प्राप्त करना एक कठिन लक्ष्य होगा।
- गौरतलब है कि सौर ऊर्जा संयंत्रों से 24 घंटों में औसतन लगभग 6 घंटे 25 मिनट ही विद्युत ऊर्जा प्राप्त हो पाती है।
- तकनीकी चुनौतियाँ: वर्तमान में सोलर पैनल से प्राप्त होने वाली विद्युत ऊर्जा को सुरक्षित भंडारित करने की तकनीक बहुत ही खर्चीली है, ऐसे में रेलवे के लक्ष्य के अनुरूप बड़े पैमाने पर सौर उर्जा को संरक्षित करना एक बड़ी चुनौती होगी।
- पूर्व में कई राज्यों द्वारा अपने विद्युत् ग्रिड पर रेलवे को सौर ऊर्जा उपकरणों को जोड़ने की अनुमति नहीं दी गई थी।
समाधान:
- रेलवे संचालन के लिये नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का प्रयोग रेलवे के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
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वर्तमान में रेलवे संचालन के लिये प्राप्त होने वाली ऊर्जा कई संसाधनों से आती है, ऐसे में वर्ष 2030 सौर ऊर्जा के माध्यम से ही रेलवे की कुल ऊर्जा ज़रुरत को पूरा करना संभव नहीं होगा।
रेलवे की की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की सहायता से इस समस्या को दूर करते हुए निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकेगी।
- रेलवे द्वारा इस चुनौती को दूर करने के लिये वर्ष 2021-22 तक 200 मेगावाट के पवन ऊर्जा संयंत्र की स्थापना करने का लक्ष्य रखा गया है।
- साथ ही शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये राज्यों के जल विद्युत संयंत्रों की भी सहायता ली जाएगी।
- केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के सहयोग के माध्यम से को सौर ऊर्जा को प्राथमिकता देने और ऊर्जा के भण्डारण में रेलवे का सहयोग करने के लिये आवश्यक नीतिगत करने होंगे।
- DFC के पूर्ण क्षमता के साथ चालू होने के बाद रेलवे के संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा, जिससे रेलवे के राजस्व में भी बढ़ोतरी होगी।
- बैंकिंग ऑफ एनर्जी: सौर ऊर्जा की आवधिक सीमा की चुनौती को दूर करने के लिये दिन में सौर ऊर्जा उत्पादन के समय प्राप्त विद्युत ऊर्जा को मुख्य ग्रिड में संप्रेषित कर जीवाश्म ईंधन से चलने वाले विद्युत उत्पादन संयंत्रों को कम क्षमता पर चलाया जा सकता है।
- रात के समय या अन्य कारणों से सौर ऊर्जा की आपूर्ति बाधित होने के समय जीवाश्म ईंधन से चलने वाले विद्युत उत्पादन संयंत्रों से आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति की जा सकती है।
- इस प्रणाली से ऊर्जा ज़रूरतों के बढ़ने के बाद भी अतिरिक्त उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सकेगा।
- भविष्य में तकनीकी विकास और उपकरणों की लगत में कमी के साथ सोलर पैनल से प्राप्त विद्युत ऊर्जा को संरक्षित करने के लिये एक निश्चित दूरी (उदाहरण के लिये वर्तमान रेलवे कंट्रोल पोस्ट) के बाद ऊर्जा भण्डारण संयंत्र स्थापित किए जा सकते हैं। जिससे रेलवे को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिये विद्युत ग्रिड पर नहीं निर्भर रहना पड़ेगा।
आत्मनिर्भर भारत:
- भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ (Make In India) पहल के तहत पश्चिम बंगाल स्थित ‘चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स’ (Chittaranjan Locomotive Works- CLW) द्वारा लगभग 10 करोड़ की लागत से 9000 हॉर्सपॉवर के स्वदेशी रेल इंजन का निर्माण किया गया है।
- गौरतलब है कि विदेशी निर्माताओं द्वारा 9000 हॉर्सपॉवर के रेल इंजन की लागत लगभग 45 करोड़ रुपए बताई गई थी।
- इसी प्रकार फ्रांसीसी कंपनी मेसर्स अल्स्टॉम के सहयोग से बिहार स्थित ‘मधेपुरा इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड’ (Madhepura Electric Locomotive Pvt. Ltd.-MELPL) 12,000 हॉर्स पावर के इलेक्ट्रिक रेल इंजन का निर्माण किया जा रहा है।
- रेलवे में सौर ऊर्जा उपकरणों के प्रयोग को बढ़ावा देने के दौरान भी स्वेदशी निर्माताओं को प्राथमिकता देने और विदेशी उपकरणों के आयात की सीमा निर्धारित करने की बात कही गई है।
आगे की राह:
- वर्ष 2030 तक रेलवे के कार्बन उत्सर्जन को शून्य बनाना एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है, परंतु यदि समायोजित रणनीति के आधार पर चरणबद्ध प्रक्रिया से योजनाओं के क्रियान्वयन के माध्यम से इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
- सरकार को रेलवे को आधुनिक बनाने के लिये रेल संचालन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी सुधार, शोध और नवोन्मेष को बढ़ावा देना होगा।
- साथ ही सरकार द्वारा रेलवे से जुड़ी परियोजनाओं से जुड़ने के लिये अधिक-से-अधिक कंपनियों को प्रेरित करने हेतु कर में छूट और अन्य आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
- वर्ष 2030 तक रेलवे को शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये राज्यों के संसाधन का उपयोग करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा आवश्यक नीतिगत बदलाव के साथ-साथ राज्य सरकारों से विचार-विमर्श कर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिये।
- भविष्य में सड़क परिवहन के संचालन में भी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल विद्युत् संयंत्रों) को अधिक-से-अधिक प्रयोग में लाकर पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ अन्य देशों पर ईंधन की निर्भरता को कम की जा सकेगी।
निष्कर्ष:
विश्व भर में परिवहन क्षेत्र में खर्च की जाने वाली कुल ऊर्जा का मात्र 2% रेलवे (वैश्विक) को जाता है, परंतु यह विश्व के लगभग 8% यात्रियों और लगभग 7% माल ढुलाई में अपना योगदान देता है। स्वतंत्रता के बाद से ही देश के औद्योगिक और सांस्कृतिक विकास यात्रा में रेलवे का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। हाल के वर्षों में रेलवे के आधुनिकीकरण की दिशा कई महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए हैं। वर्तमान में बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए रेलवे संचालन में सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाना एक महत्त्वपूर्ण पहल है। वर्ष 2030 तक रेलवे को कार्बन उत्सर्जन मुक्त बनाने के लक्ष्य के माध्यम से रेलवे अन्य क्षेत्रों विशेषकर सड़क परिवहन को भी प्रेरित करने का कार्य करेगा। हालाँकि सरकार को इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये राज्य सरकारों के सहयोग से सभी उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करते हुए चरणबद्ध तरीके से योजनाओं का कार्यान्वयन करना होगा।
अभ्यास प्रश्न: भारतीय रेलवे की वर्तमान आर्थिक और तकनीकी चुनौतियों के बीच वर्ष 2030 तक रेलवे को कार्बन उत्सर्जन मुक्त बनाने के सरकार की योजना की समीक्षा कीजिये।