भारतीय दवा उद्योग | 26 Mar 2020
संदर्भ
स्वास्थ्य, दुनिया के सामाजिक और आर्थिक विकास में सर्वोपरि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। यही कारण है कि दवा उद्योग को आर्थिक विकास की प्रक्रिया में एक प्रमुख उद्योग के रूप में देखा जाता है। भारतीय दवा उद्योग वैश्विक फार्मा सेक्टर में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है और हाल के वर्षों में इसमें उल्लेखनीय विकास भी हुआ है। लेकिन Covid-19 के बढते प्रभाव से भारतीय दवा उद्योग के प्रभावित होने की आशंका ज़ाहिर की जा रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अगले पाँच वर्षों के लिये 3,000 करोड़ की वित्तीय सहायता के साथ बल्क ड्रग पार्क्स को बढ़ावा देने के लिये एक योजना को मंज़ूरी दी है। इसके साथ ही दवा बनाने की प्रक्रिया में उपयोगी मध्यवर्ती घटकों एवं सक्रिय दवा घटकों (Active Pharmaceutical Ingredient - API) के निर्माण हेतु उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (Production linked Incentive Scheme) के लिये 6,940 करोड़ रुपए की मंज़ूरी भी दी है।
भारतीय दवा उद्योग मात्रा के आधार पर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार है और मूल्य के आधार पर यह विश्व का 14वाँ सबसे बड़ा बाज़ार है।
भारतीय दवा उद्योग की वर्तमान स्थिति:
- विश्व में अलग-अलग बीमारियों के 50% टीकों की माँग भारत से पूरी होती है।
- अमेरिका में सामान्य दवाओं की माँग का 40% और ब्रिटेन की कुल दवाओं की 25% आपूर्ति भारत में निर्मित दवाओं से ही होती है।
- इसके अलावा विश्व भर में एड्स जैसी खतरनाक बीमारी के लिये प्रयोग की जाने वाली एंटी-रेट्रोवायरल दवाओं की 80% आपूर्ति भारतीय दवा कंपनियाँ ही करती हैं।
- इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (India Brand Equity Foundation) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में भारतीय फार्मा उद्योग का कुल मूल्य लगभग 33 अरब अमेरिकी डॉलर था।
- वर्ष 2017 में ही भारतीय दवा उद्योग का घरेलू कारोबार 18.87 अरब अमेरिकी डॉलर का था, वर्ष 2018 में भारतीय दवा उद्योग के घरेलू कारोबार में 9.4% की वृद्धि दर्ज़ की गई।
- वर्ष 2015 से 2020 के बीच भारतीय दवा उद्योग में 22.4% की वृद्धि हुई है, एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में भारतीय दवा उद्योग का कारोबार 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है और अगले 5 वर्षों में यह कारोबार 120-150 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा।
- एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 तक भारतीय दवा उद्योग वृद्धि के मामले में विश्व के शीर्ष तीन दवा बाज़ारों में और आकार के मामले में विश्व का छठा सबसे बड़ा बाजार होगा।
बल्क ड्रग्स पार्क योजना
- केंद्र सरकार राज्यों के साथ साझेदारी में 3 मेगा बल्क ड्रग पार्क करेगी तथा इस योजना हेतु अगले 5 वर्षों के लिये 3,000 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। ज्ञातव्य है कि केंद्र सरकार राज्यों को प्रति बल्क ड्रग पार्क हेतु 1,000 करोड़ रुपए का अनुदान देगी।
- बल्क ड्रग पार्क में सॉल्वेंट रिकवरी प्लांट, डिस्टिलेशन प्लांट, पावर और स्टीम यूनिट्स, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट आदि जैसी सामान्य सुविधाएँ उपलब्ध होंगी।
- बल्क ड्रग्स पार्क योजना से देश में थोक दवाओं की विनिर्माण लागत कम होने और इन दवाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है।
भारतीय दवा निर्यात:
- वर्ष 2017-18 के दौरान भारत से विश्व के अन्य देशों में 17.27 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य की दवाओं का निर्यात किया गया।
- वर्ष 2018-19 में यह निर्यात लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि के साथ 19.14 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- वर्ष 2020 तक भारतीय दवा निर्यात 22 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- वर्ष 2017 में यू.एस. फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेटर (US Food and Drug Administration- USFDA) द्वारा भारत की 304 नई दवाओं को मंज़ूरी दी।
- हाल के वर्षों में भारतीय फार्मा क्षेत्र की कई कंपनियों ने 1.47 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य की छोटी-बड़ी 46 कंपनियों का विलय और अधिग्रहण (जैसे- सिप्ला-इंवाजेन, ल्युपिन-बायोकॉम आदि) किया है, इससे अमेरिका के साथ विश्व के अन्य देशों में भारतीय दवाओं के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
बायो मेडिसिन और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र मे:
- हाल के वर्षों में भारत ने बायो-मेडिसिन और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
- वर्ष 2025 तक भारतीय बायोटेक्नोलॉजी उद्योग के 30% वृद्धि के साथ 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
- इसमें बायो मेडिसिन, बायो सर्विस, जैव कृषि (Bio Farming), जैव उद्योग (Bio Industry), बायो इनफार्मेशन आदि शामिल है।
- भारतीय बायो फार्मा क्षेत्र से लगभग 12,600 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होता है।
- इनमें अलग-अलग बीमारियों के टीके उनका उपचार और निदान शामिल है।
भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग:
- भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग प्रतिवर्ष लगभग 15.2% दर से वृद्धि कर रहा है।
- वर्ष 2018 में भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग का कारोबार 5.2 अरब अमेरिका डॉलर था।
- भारत के 96.7 अरब अमेरिका डॉलर के भारतीय स्वास्थ्य उद्योग क्षेत्र में चिकित्सा उपकरण उद्योग का योगदान 4-5% है।
- वर्ष 2020 के अंत तक भारतीय चिकित्सा उपकरण कारोबार के 8.16 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
जेनेरिक दवा (Generic Drug): वे दवाएँ, जिनके निर्माण या वितरण के लिये किसी पेटेंट की आवश्यकता नहीं होती, जेनेरिक दवाएँ कहलाती हैं। जेनेरिक दवाओं की रासायनिक संरचना ब्रांडेड दवाओं के सामान ही होती है परंतु उन्हें उनकी बिक्री रासायनिक नाम से ही की जाती है। जैसे- क्रोसिन या पैनाडॉल ब्रांडेड दवाएँ हैं जबकि इसकी जेनेरिक दवा का नाम पैरासीटामाॅल है।
जेनेरिक और ब्रांडेड दवा में अंतर:
जब कोई कंपनी वर्षों के शोध और परीक्षण के बाद किसी दवा का निर्माण करती है तो वह उस दवा का पेटेंट (Patent) करा लेती है, आमतौर पर किसी दवा हेतु पेटेंट 10-15 वर्षों के लिये दिया जाता है। पेटेंट एक तरह का लाइसेंस होता है जो पेटेंट धारक कंपनी को ही संबंधित दवा के निर्माण व वितरण का अधिकार प्रदान करता है। पेटेंट की समयसीमा तक केवल पेटेंट धारक कंपनी ही उस दवा का निर्माण कर सकती है। पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद कोई भी कंपनी उस दवा का निर्माण कर सकती है, परंतु हर कंपनी की दवा का नाम और मूल्य अलग-अलग होता है, ऐसी दवाओं को ब्रांडेड जेनेरिक दवा के नाम से जाना जाता है।
जेनेरिक दवा निर्माण में भारत की स्थिति:
भारत जेनेरिक दवाओं के निर्माण के मामले में भी अन्य देशों से काफी आगे है। भारतीय बाज़ार में मिलने वाली मात्र 9% दवाएँ ही पेटेंट हैं और लगभग 70% दवाएँ ब्रांडेड जेनेरिक हैं। भारत विश्व को सबसे अधिक जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने वाला देश है।
- वर्तमान में वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं की कुल खपत का 20% भारत से निर्यात किया जाता है।
- भारत में बनी जेनेरिक दवाओं की माँग अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और ब्रिटेन समेत विश्व के अनेक विकासशील देशों में भी है।
- अमेरिकी बाज़ार में भारतीय जेनेरिक दवाओं की हिस्सेदारी 90% है जबकि तीन दशक पहले यह मात्र 33% थी।
वैश्विक बाज़ार में भारतीय जेनेरिक दवाओं की मान्यता:
- वित्तीय वर्ष 2017-18 में USFDA ने विश्वभर के विभिन्न देशों से 323 दवा नमूनों की जाँच की थी, जिनमें से 100 से ज्यादा भारत के थे।
- USFDI की रिपोर्ट के अनुसार, सभी नमूने यू. एस. फार्माकोपिया (U.S. Pharmacopeia) के मानकों पर सही पाए गये।
- मैन्युफैक्चरिंग प्लांट से जुड़े हुए मानकों को सही पाते हुए अमेरिकी नियामक ने भारत की ज़्यादातर दवा फैक्टरियों को क्लीयरेंस दे दिया है।
- पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर भारतीय दवा निर्माताओं की विश्वसनीयता में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिये पिछले 10 वर्षों में USFDI द्वारा भारतीय दवाइयों के निरीक्षण के मामलों में 400% कमी आई है।
स्वास्थ्य पर्यटन के क्षेत्र में:
- स्वास्थ्य पर्यटन के मामले में भारत एशिया में सबसे तेज़ी से वृद्धि करने वाला देश है।
- भारत सरकार भी देश में चिकित्सा क्षेत्र में बुनियादी ढाचों को मज़बूत करने के लगातार प्रयास कर रही है।
- भारत ने वर्ष 2014 में अपनी वीज़ा नीति को उदार बनाया था, जिसका लाभ मेडिकल क्षेत्र को भी मिला है।
- वर्ष 2015 में विदेशी उपचार हेतु भारत तीसरा सबसे पसंदीदा स्थान बन गया।
- वर्तमान में विश्व के स्वास्थ्य पर्यटन बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 18% है।
- भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों को उपचार के लिये मेडिकल वीज़ा जारी किया जाता है और पिछले कुछ वर्षों में इसकी मात्र में लगातार वृद्धि हुई है। पिछले कुछ वर्षों में जारी किये गए मेडिकल वीज़ा के कुछ आँकड़े निम्नलिखित हैं:
- वर्ष 2013 में 59,129 मेडिकल वीज़ा
- वर्ष 2014 में 75,671 मेडिकल वीज़ा
- वर्ष 2015 में 1,34,344 मेडिकल वीज़ा
- वर्ष 2016 में 2,01,099 मेडिकल वीज़ा
- वर्ष 2017 में 4,95,056 मेडिकल वीज़ा
मेडिकल वीज़ा में वृद्धि के कारण:
- भारत में विकसित देशों की तुलना में इलाज का खर्च बहुत ही कम है।
- विश्व स्तरीय चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएँ।
- उच्च प्रशिक्षित डॉक्टर और पेशेवर स्वास्थ्य कर्मचारी के कारण विदेशी नागरिकों का भारतीय स्वास्थ्य सुविधाओं में विश्वास बढ़ा है।
- आधुनिक चिकित्सा तकनीक और उपकरणों की उपलब्धता।
- आयुर्वेद और योग जैसी वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों की उपलब्धता।
- भारतीय चिकित्सकों ने ह्रदय की सर्जरी, घुटनें या किडनी का ट्रांसप्लांट और काॅस्मैटिक सर्जरी आदि मामलों में अपनी विश्वसनीयता सिद्ध की है।
- वर्ष 2020 तक भारतीय स्वास्थ्य पर्यटन क्षेत्र के 200% वृद्धि के साथ 9 अरब रुपए तक होने की उम्मीद है।
भारतीय दवा उद्योग के विकास हेतु सरकार के प्रयास:
- सरकार ने भारतीय दवा उद्योग के विकास के लिये वर्ष 2025 तक अपनी कुल जीडीपी का 2.5% इस क्षेत्र पर खर्च करने का लक्ष्य रखा है।
- भारतीय दवा उद्योग के विकास के लिये सरकार की नीति में अनुसंधान और विकास (Research & Development) पर काफी ज़ोर दिया गया है।
- ग्रीन फील्ड फार्मा परियोजना के लिये ऑटोमैटिक रूट के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) को मंज़ूरी दी गई है।
- साथ ही ब्राउन फील्ड फार्मा परियोजना के लिये ऑटोमैटिक रूट के तहत 74% FDI की मंज़ूरी दी गई है, 74% से अधिक की FDI के लिये सरकारी अनुमोदन मार्ग के तहत अनुमति दी गई है।
- साथ ही स्वस्थ्य क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों के बीच विचार-विमर्श के लिये समय-समय पर सरकार व निजी क्षेत्र के सहयोग से इंडिया फार्मा एंड इंडिया मेडिकल डिवाइस सम्मेलन जैसे प्रयासों को भी बढ़ावा दिया गया है।
चुनौतियाँ:
- भारतीय दवा कंपनियाँ ज़्यादातर जेनेरिक दवाइयों का ही निर्माण करती हैं, इस क्षेत्र में नई दवाइयों के शोध की मात्र उत्पादन की तुलना में बहुत ही कम है।
- भारतीय दवा कंपनियाँ दवा निर्माण हेतु कच्चे माल या सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredient-API) के लिये अन्य देशों से होने वाले आयात पर निर्भर है।
- भारत में निर्मित चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता कई बार वैश्विक मानकों पर खरी नहीं उतरती।
- जेनेरिक दवाएँ बहुत ही सस्ती होती हैं, जिससे इसके उत्पादन में मुनाफा भी बहुत कम है।
- दवा उद्योग में क्षमता के अनुरूप आवश्यक निवेश की कमी इस क्षेत्र के विकास लिये एक बड़ी चुनौती है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में बढ़त के लिये स्वास्थ्य और दवा क्षेत्र में विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में भी वैश्विक मानकों के अनुरूप परिवर्तन की आवश्यकता है।
- उत्पादकों, सरकार और नियामकों के बीच परस्पर सामंजस्य की कमी इस क्षेत्र के विकास में एक बड़ी बढ़ा है। उदाहरण के लिये वर्तमान में भारतीय दवा उद्योग को ‘रसायन और उर्वरक मंत्रालय’ तथा ‘स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय’ के सहयोग से विनियमित किया जाता है।
निष्कर्ष: देश के नागरिकों के लिये बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच के साथ ही विश्व के अन्य देशों में भी कम लागत में दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित करने में भारतीय दवा निर्माताओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। सरकार के हालिया प्रयासों से इस क्षेत्र के सकारात्मक विकास को सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी और साथ ही COVID-19 से उपजी आर्थिक चुनौतियों के बीच सरकार की घोषणा से दवा उत्पादकों के मनोबल में भी वृद्धि होगी।