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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-रूस रक्षा संबंध

  • 30 Jun 2020
  • 16 min read

संदर्भ

वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की तुलना में रूस के साथ भारत के संबंध करीबी और बेहद मज़बूत रहे हैं। भारत और रूस ऐतिहासिक रूप से रक्षा, व्यापार, ऊर्जा, अंतरिक्ष आदि क्षेत्रों में एक दूसरे से जुड़े रहे हैं। हाल ही में रूसी रक्षा मंत्रालय के निमंत्रण पर भारतीय रक्षा मंत्री द्वितीय विश्व युद्ध की 75वीं विजय दिवस परेड में शामिल होने के लिये मास्को (रूस) पहुँचे थे। भारतीय रक्षा मंत्री ने अपनी तीन दिवसीय रूस यात्रा के दौरान भारत और रूस के संबंधों को ‘विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्‍त सामरिक साझेदारी’ बताया तथा दोनों देशों के बीच वर्तमान द्विपक्षीय रक्षा अनुबंधों को जारी रखते हुए शीघ्र ही कई अन्य क्षेत्रों में भी द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक मज़बूत करने की प्रतिबद्धता को दोहराया।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय रक्षा मंत्री ने सभी भारतीय प्रस्तावों पर रूस की सकारात्मक प्रतिक्रिया एवं अन्य चर्चाओं से संतुष्टि ज़ाहिर करते हुए तय समय पर S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की आपूर्ति के संकेत दिए हैं।
    • वर्तमान में निर्धारित योजना के अनुसार, वर्ष 2021 के मध्य से रूस द्वारा भारत को S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की आपूर्ति प्रारंभ की जानी है।
  • रक्षा क्षेत्र में रूस भारत को आवश्यक हथियारों एवं गोला-बारूद का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता रहा है। हालाँकि लंबे समय से भारतीय सशस्त्र बलों की यह शिकायत रही है कि रूस से महत्त्वपूर्ण पुर्जों एवं उपकरणों की आपूर्ति में बहुत अधिक समय लगता है, जो वहाँ से आयात किये गए महत्त्वपूर्ण रक्षा उपकरणों की मरम्मत और उनके रख-रखाव की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।

भारतीय रक्षा मंत्री की तीन दिवसीय रूस यात्रा का महत्त्व:

  • COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से यह किसी भारतीय आधिकारिक प्रतिनिधि मंडल की पहली विदेश यात्रा थी।
  • भारतीय रक्षा मंत्री रूस में नाज़ीवाद पर विजय की 75वीं वर्षगाँठ के अवसर पर आयोजित की गई विजय दिवस परेड में शामिल होने के लिये गए थे साथ ही, इस परेड में भारतीय सशस्त्र बलों का एक ‘त्रि-सेवा दल’ (Tri-Service Contingent) ने भी हिस्सा लिया।
    • रूस में प्रतिवर्ष 9 मई के दिन इस परेड का आयोजन किया जाता है परंतु इस वर्ष COVID-19 की महामारी के कारण इसे देरी (24 जून, 2020) को आयोजित किया गया था
    • रूस के साथ अपने मतभेदों के कारण कई महत्त्वपूर्ण पश्चिमी देशों के नेताओं ने इस परेड में हिस्सा नहीं लिया।
    • ऐसी परिस्थितियों में भी भारतीय रक्षा मंत्री द्वारा अपनी रूस यात्रा को जारी रखना भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती और रूस के समर्थन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • भारत-रूस संबंधों में रक्षा क्षेत्र का सहयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय रहा है, हाल के वर्षों में रूस से व्यापार और रक्षा सहयोग के मामले में कई पश्चिमी देशों के दबाव (जैसे-अमेरिका द्वारा CAATSA का प्रयोग) के बावज़ूद रक्षा क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाए जाने की प्रतिबद्धता भारत-रूस संबंधों के भविष्य के लिये एक सकारात्मक संकेत है।

भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती के प्रमुख कारक:

  • भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती आधार बड़े पैमाने पर दोनों देशों के हितों में समानता, परस्पर विश्वास का लंबा इतिहास और अधिकांश मामलों में टकराव या तनाव का अभाव है।
  • रूस के लिये भारत को रक्षा तकनीकी के निर्यात कुछ अन्य देशों (जैसे- चीन आदि) की तुलना में विश्वसनीय और चुनौतियों (बौद्धिक संपदा की चोरी और सुरक्षा से जुड़ी अन्यसमस्याओं) से मुक्त रहा है।

भारत के लिये रूसी सहयोग का महत्त्व:

  • भारतीय नौसेना की शक्ति और इसकी तकनीकी क्षमता को बढ़ाने में रूस का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
    • ध्यातव्य है कि वर्तमान में भारत को रूस द्वारा परमाणु-पनडुब्बी ‘INS चक्र (SSN)’ प्रदान की गई है, साथ ही निकट भविष्य में रूस द्वारा भारत को एक अन्य परमाणु-पनडुब्बी के दिए जाने की संभावना है।
  • देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में भारत को प्रारंभ से ही रूस का सहयोग मिलता रहा है और वर्तमान में भी भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को रूस में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
  • भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना में भी रूस का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
  • रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष आदि जैसे महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक क्षेत्रों में रूस की क्षमता तथा अनुभव भारत के लिये बहुत ही मददगार रहा है।
    • ब्रह्मोस मिसाइल, M-46 बंदूक का उन्नयन आदि रक्षा क्षेत्र में भारत-रूस के मज़बूत संबंधों के प्रमुख उदाहरण हैं।

भारत-रूस-अमेरिका:

  • पिछले कुछ वर्षों में अपने सामरिक हितों को देखते हुए भारत द्वारा रक्षा क्षेत्र से संबंधित अपने आयात को रूस तक सीमित न रख कर इसे अन्य देशों (जैसे-अमेरिका, फ्राँस आदि) के साथ विकेंद्रीकृत करने का प्रयास किया गया है।
  • साथ ही हाल के वर्षों में चीन के साथ सीमा पर तनाव में वृद्धि के कारण भारत और अमेरिका की नज़दीकी बढ़ने से भारत-रूस संबंधों में दूरी बनने की आशंकाएँ बढ़ने लगी थी।
  • परंतु यदि विश्व मानचित्र को देखा जाए तो रूस यूरोप से लेकर एशिया के महत्त्वपूर्ण भू-भाग तक फैला है और चीन के साथ भी सीमा साझा करता है।
  • ऐसे में यदि भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों के सभी बिंदुओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए तो भी यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि रूस एक ऐसा नज़दीकी देश है जिसके साथ भारत का कोई भी बड़ा मतभेद नहीं रहा है।
  • अतः एक रणनीतिक दृष्टिकोण से जहाँ भारत के लिये अमेरिका और अन्य देशों से संबंधों को मज़बूत करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है परंतु इसका अर्थ रूस से दूरी बनाना नहीं होना चाहिये।
  • हाल ही में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute-SIPRI) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारत के कुल रक्षा आयात में रूस की भागीदारी लगभग 56% है।

भारत-रूस-चीन:

  • चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों का इतिहास बहुत ही पुराना है परंतु वर्ष 2014 से रूस के विरुद्ध अमेरिकी दबाव के बढ़ने से रूस, चीन के साथ सहयोग बढ़ाने हेतु विवशहुआ है।
  • चीन-रूस संबंधों में आई मज़बूती का एक और कारण खनिज तेल की कीमतों की अस्थिरता तथा चीनी खपत पर रूस की बढ़ती निर्भरता को भी माना जाता है।
  • हालाँकि कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर दोनों देशों में भारी मतभेद भी देखे गए हैं। जैसे- चीन क्रीमिया को रूस का हिस्सा नहीं मानता है और रूस दक्षिण चीन सागर में चीनी अधिकार के दावे पर तटस्थ रूख अपनाता रहा है।
  • भारत और रूस दोनों ही देश एक दूसरे की रणनीतिक स्वायत्तता तथा स्वतंत्र विदेशी नीति के समर्थक रहे हैं।
  • वर्तमान में रूस द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में चीनी हस्तक्षेप को एक सुरक्षित स्तर तक सीमित रखा गया है।
  • रूस में चीन द्वारा दिए गए ऋण का प्रभाव भी कम ही रहा है। गौरतलब है कि रूस का सार्वजनिक ऋण बहुत ही कम है, ऐसे में किसी अन्य देश के द्वारा ऋण के माध्यम से रूसी नीति को प्रभावित करना बहुत ही कठिन होगा।
  • 5G के मामले में भी रूस में ‘हुआवेई' (Huawei) के साथ स्वीडिश कंपनी एरिक्सन (Ericsson) की उपस्थिति भी बनी हुई है।

चुनौतियाँ:

  • मूल्य: भारतीय रक्षा क्षेत्र की आवश्यकता को पूरा करने के लिये रूस का सहयोग बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और लंबे समय से भारतीय रक्षा क्षेत्र में आवश्यक हथियार, तकनीकी आदि के एक बड़े भाग का आयात रूस से किया जाता है। परंतु रूस से प्राप्त होने वाले हथियारों और अन्य आवश्यक उपकरणों की लागत का अधिक होना एक चिंता का विषय रहा है
  • महत्त्वपूर्ण पुर्जों और उपकरणों की आपूर्ति में होने वाली देरी की समस्या रक्षा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, जो रूस के साथ व्यापारिक और रणनीतिक संबंधों की प्रगति में एक बड़ी बाधा है।

समाधान:

  • हाल के वर्षों में रूस की सरकार द्वारा महत्त्वपूर्ण उपकरणों की आपूर्ति में होने वाली देरी की समस्या को दूर करने के लिये विशेष ध्यान दिया गया है।
  • साथ ही रूस की रक्षा और अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से संबंधित निजी कंपनियों ने उपकरणों के रख-रखाव के लिये विश्व के विभिन्न भागों में अपनी सेवाओ तथा आपूर्ति क्षमता की पहुँच बढ़ाने के लिये अन्य देशों में सर्विस सेंटर्स की स्थापना के माध्यम से वर्तमान में समस्याओं को कम करने का प्रयास किया है।
  • रूस से आयात होने वाले हथियारों और कल-पुर्जों का मूल्य अधिक होने के कई कारक (उत्पादन लागत, महँगाई और बाज़ार का प्रभाव आदि) है, परंतु रक्षा सौदों के दौरान नौकरशाही और बिचौलियों (Middlemen) के हस्तक्षेप में कमी लाकर लागत और आपूर्ति में देरी जैसी समस्याओं को किया जा सकेगा।

आगे की राह:

  • हाल ही में रूस सरकार द्वारा किसी उत्पाद या उपकरण की बिक्री के बाद भारतीय उपभोक्ताओं को अतिरिक्त पुर्जों के लिये ‘मूल उपकरण निर्माता’ (Original Equipment Manufacturer- OEM) से सीधे संपर्क करने की अनुमति दी गई है, जो कि दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
  • भारत-रूस द्विपक्षीय सहयोग की प्रक्रिया के अगले चरण के तहत रूसी उत्पादकों को भारत में निवेश करने और संयुक्त उपक्रमों की स्थापना जैसे प्रयासों को बढ़ाने के हेतु प्रेरित किया जाना चाहिये, जिससे भविष्य में भारतीय रक्षा क्षेत्र की ज़रूरतों को स्थानीय उत्पादकों से पूरा करते हुए लागत, परिवहन, सीमा-शुल्क जैसी समस्याओं को कम किया जा सके।
  • रूस से महत्त्वपूर्ण उपकरणों की आपूर्ति में होने वाली देरी का एक अन्य कारण यह है कि रूस में कई महत्वपूर्ण उपकरणों का उत्पादन सिर्फ भारत के लिये होता है या कई उपकरणों की मांग रूस से अधिक भारत में है, ऐसे में देश में रूसी कंपनियों के सहयोग से स्थानीय उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के साथ रूस के लिये अन्य देशों में भी इन उपकरणों के निर्यात को आसान बनाया जा सकेगा।
    • गौरतलब है कि अमेठी (उत्तर प्रदेश) स्थित आयुध फैक्ट्री में रूस के सहयोग से AK-203 की उत्पादन पर समझौता किया जा चुका है।
  • रूस और भारत की सेनाओं क्षमताओं और ज़रूरतों की समझ को बेहतर बनाने के लिये दोनों देशों की सेनाओं के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यासों को बढ़ाना चाहिये।
  • साथ ही दोनों देशों में रक्षा क्षेत्र के उत्पादकों, सेवाप्रदाताओं तथा अन्य हितधारकों के बीच संवाद सामंजस्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

भारत की स्वतंत्रता के बाद से रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, औद्योगिक तकनीकी और कई अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में देश की स्थानीय क्षमता के विकास में रूस का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वैश्विक राजनीति और कई महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका के समक्ष रूस एक सकारात्मक संतुलन स्थापित करने में सहायता करता है। साथ ही यह ‘रूस-भारत-चीन समूह’ (Russia-India-China- RIC) के माध्यम से भारत और चीन के बीच एक सेतु का भी कार्य करता है। भारत और रूस के संबंध शुरुआत से ही बहुत ही मज़बूत रहे हैं, परंतु किसी भी अन्य साझेदारी की तरह समय के साथ इसमें कुछ सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई है। वर्तमान में भारत और रूस के साझा हितों को देखते हुए रक्षा क्षेत्र में भारत-रूस सहयोग को ‘मेक इन इंडिया’ (Make In India) पहल से जोड़कर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊर्जा दी जा सकती है।

अभ्यास प्रश्न: भारत-रूस रक्षा संबंधों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए इसकी वर्तमान चुनौतियों और समाधान के विकल्पों पर चर्चा कीजिये।

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