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भारत-विश्व

इनसाइट: ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन के लिये ज़रूरी है भारत

  • 27 Apr 2018
  • 19 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों के 25वें शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिये हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 से 20 अप्रैल तक ब्रिटेन की यात्रा पर गए थे। इस सम्मेलन से इतर भारत के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने के साए तले हुई इस बैठक का महत्त्व कहीं अधिक था क्योंकि ब्रेक्सिट के बाद की वैश्विक राजनीति में ब्रिटेन को एक नई पहचान की ज़रूरत है।  

यदि सबकुछ ठीक रहता है तो आधिकारिक रूप से निर्धारित दो साल की बातचीत के बाद मार्च 2019 तक ब्रेक्सिट की प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिये। उल्लेखनीय है कि ब्रेक्सिट के बाद भारत के साथ नई आर्थिक साझेदारी विकसित करने के उद्देश्य से ब्रिटेन सरकार द्वारा पुख्ता नींव रखने के साथ ही भारत के साथ उसके संबंध 2017 में तब और मज़बूत हुए, जब इसे ब्रिटेन-भारत सांस्कृतिक वर्ष के रूप में मनाया गया।

विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति

  • भारत और ब्रिटेन ने आपसी सहयोग और समन्वय बढ़ाने के लिये तकनीकी, व्यापार और निवेश के मुद्दों सहित नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किये। 
  • दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय अपराधों पर रोक लगाने के उद्देश्य से सूचनाओं के आदान-प्रदान और सहयोग के लिये भी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये।
  • अपराधियों के रिकार्ड के आदान-प्रदान के साथ ही संगठित अपराधों को खत्म करने के लिये भी दोनों देशों में सहमति बनी।
  • दोनों देशों के बीच साइबर संबंधों के साथ ही स्वतंत्र, मुक्त, शांतिपूर्ण और सुरक्षित साइबर स्पेस के संबंध में समझौते के अलावा, साइबर सुरक्षा प्रबंधन पर भी सहमति बनी। 
  • दोनों देशों की सेनाओं के बीच निकट संबंधों और महत्त्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्रों में रक्षा क्षमता भागीदारी जैसे कई समझौतों पर भी विचार किया गया।
  • ब्रिटेन-भारत संयुक्त व्यापार समीक्षा के दौरान बाधाओं को दूर करने और दोनों देशों में कारोबार को सुगम बनाने तथा भविष्य के लिये मज़बूत द्विपक्षीय व्यापारिक संबंध बनाने जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई गई। 
  • दोनों देशों ने प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नई भागीदारी पर भी विचार-विमर्श किया। इस भागीदारी से दोनों देशों में हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलने और निवेश बढ़ने की उम्मीद है।
  • भारत और ब्रिटेन आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई, कट्टरवाद और ऑनलाइन कट्टरवाद जैसे विभिन्न मुद्दों पर समान विचार रखते हैं। 

भारत यह मानता है कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने से द्विपक्षीय व्यापार को और बढ़ाने के बेहतर अवसर मिले हैं। ब्रिटेन ने भारत को यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया की प्रगति की जानकारी देते हुए बताया कि इस बारे में मार्च में जो अवधि तय हुई है उसमें भारतीय कंपनियों और निवेशकों को आश्वस्त किया गया है कि उनके लिये बाज़ार में प्रवेश की मौजूदा शर्तें 2020 तक जारी रहेंगी।

ब्रिटेन-भारत प्रौद्योगिकी भागीदारी

  • ब्रिटेन-भारत प्रौद्योगिकी भागीदारी दोनों देशों के बीच सहयोग का एक बड़ा आधार है। इसके तहत दोनों देश ज्ञान और अनुसंधान में सहयोग तथा अपने विश्वस्तरीय नवाचार समूहों के बीच साझेदारी बनाने का काम करेंगे। 
  • वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये दोनों पक्ष अपने युवाओं के कौशल और क्षमताओं को विकसित करते हुए भविष्य की प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाएंगे; आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की क्षमता को साकार करेंगे; डिजिटल अर्थव्यवस्था; स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों; साइबर सुरक्षा और स्वच्छ विकास, स्मार्ट शहरीकरण तथा भविष्य की गतिशीलता को बढ़ावा देंगे।
  • प्रौद्यौगिकी साझेदारी के तहत ब्रिटेन में ब्रिटेन-भारत टेक हब स्थापित करने की पहल की गई है। यह टेक हब उच्च तकनीकी कंपनियों को एक साथ लाने के लिये निवेश और निर्यात के अवसर तैयार करेगा और भविष्य की गतिशीलता, उन्नत विनिर्माण तथा भारत के आकांक्षी ज़िलों के कार्यक्रमों के तहत हेल्थकेयर के क्षेत्र में बेहतरीन तकनीक और अग्रिम नीति सहयोग को साझा करने के लिये एक नया मंच प्रदान करेगा। 
  • नवाचार तथा अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने के लिये ब्रिटेन और भारत के बीच क्षेत्रीय और राज्य स्तर पर भागीदारी की जाएगी। दोनों देशों के सहयोग से भारत-ब्रिटेन तकनीकी सीईओ गठबंधन बनाया जाएगा। 
  • वैश्विक चुनौती से निपटने के लिये दोनों पक्ष विज्ञान अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत और ब्रिटेन की बेहतरीन प्रतिभाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। ब्रिटेन अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान और नवाचार के मामले में भारत का दूसरा सबसे बड़ा साझेदार है। वर्ष 2008 से शुरू हुए ब्रिटेन-भारत न्यूटन-भाभा कार्यक्रम के तहत 2021 तक संयुक्त अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में 400 मिलियन पाउंड से ज्यादा राशि के पुरस्कार प्रदान किये जाने हैं।

व्यापार, निवेश और वित्त

  • भारत और ब्रिटेन परस्पर व्यापार के लिये नई व्यवस्था विकसित करने हेतु साझा पूरक क्षमताओं के माध्यम से व्यापारिक साझेदारी को एक नया रूप दे रहे हैं। 
  • ब्रिटेन-भारत संयुक्त व्यापार समीक्षा बैठक के सुझावों के आधार पर व्यापार की बाधाओं को कम करने के लिये क्षेत्रवार रोडमैप तैयार करने के साथ परस्पर व्यापार को सुगम बनाने और यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग हो जाने के बाद द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिये मिलकर काम करने पर सहमति बनी है। 
  • यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकल जाने के बाद की अवधि में भारत यह सुनिश्चित करेगा कि ब्रिटेन-भारत समझौते को लागू करने के प्रयास आगे भी जारी रहें। 
  • दोनों देश नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था पर विश्वास करते हैं तथा सतत टिकाऊ विकास और प्रगति के लिये मुक्त, निष्पक्ष और खुले व्यापार के महत्त्व को स्वीकारते हैं। 
  • भारत ने ब्रिटेन में भारतीय निवेश के लिये एक पारस्परिक फास्ट ट्रैक तंत्र स्थापित कर भारतीय व्यवसायों को अतिरिक्त समर्थन प्रदान किया है। 
  • इसके अलावा दोनों देशों के बीच प्रस्तावित नए नियामक सहयोग समझौते सहित दोनों देशों के बीच फिनटेक वार्ता शुरू करने पर सहमति बनी है। 
  • वित्तीय सेवाओं के सहयोग को तकनीकी मदद से बढ़ाया जाएगा, ताकि दिवालियापन, पेंशन और बीमा क्षेत्र के बाज़ारों को विकसित किया जा सकें।

(टीम दृष्टि इनपुट)

क्यों ज़रूरी है ब्रिटेन के लिये भारत?

  • ब्रेक्सिट के फैसले के बाद भारत-ब्रिटेन संबंधों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ना तय है। भारत ब्रिटेन का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है। इसीलिये ग्लोबल ब्रिटेन की बात कहते हुए प्रधानमंत्री बनने के बाद टेरीज़ा मे ने अपने पहले विदेश दौरे के लिये भारत को चुना था। 
  • ब्रिटेन की कुल जीडीपी में प्रवासी भारतीयों का लगभग 6% योगदान है। 
  • इन सबके बावजूद भारत-ब्रिटेन का व्यापार काफी कम है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिये भारत को बारीकी से ब्रेक्सिट की प्रक्रिया पर नज़र रखनी होगी। 
  • ब्रिटेन यूरोपीय संघ के कस्टम यूनियन में बना रहता है तो भारत को ब्रिटेन के बजाय यूरोपीय संघ से डील करनी पड़ेगी।
  • ब्रिटेन कारों पर आयात कर कम करने के साथ ही वित्तीय सेवाओं और कानूनी फर्मों के भारत में प्रवेश की मांग करता रहा है, लेकिन भारत को अपने हितों पर भी ध्यान देना होगा।
  • यूरोपीय संघ से बाहर होने के बाद ब्रिटेन का इससे व्यापार कम हो जाएगा और इसकी क्षतिपूर्ति हेतु ब्रिटेन भारत से व्यापार बढ़ाने को उत्सुक है। 
  • भारत को ब्रिटेन के साथ अप्रवासन संबंधी मुद्दों को हल करने की ज़रूरत है, क्योंकि ब्रिटेन भारत को इस मामले में कोई रियायत देने के पक्ष में नहीं है, लेकिन भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि यह रवैया दोनों देशों के हित में नहीं है।
  • भारत और यूरोपीय संघ के बीच सबसे बड़ा गतिरोध कृषि क्षेत्र की सब्सिडी को लेकर है, परंतु भारत-ब्रिटेन के बीच ऐसी कोई बाधा कृषि सब्सिडी को लेकर नहीं है।

इन क्षेत्रों में ब्रिटेन कर सकता है भारत के साथ सहयोग

  • भारत में विकास के लिये विदेशी निवेश की आवश्यकता है और ब्रिटेन पूंजी निवेश जुटाने और उसे क्रियान्वित करने की दक्षता रखता है।
  • भारत सड़कों, मेट्रो, रेलमार्गों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों के रूप में आधारभूत संरचना का विकास कर रहा है और ब्रिटेन को आधारभूत संरचना निर्माण के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है।
  • भारत को नए शहर बसाने तथा अपने मौजूदा शहरों के विस्तार की ज़रूरत है और ब्रिटेन को शहरी नियोजन एवं स्थापत्य निर्माण में महारत हासिल है।
  • भारत मूल्य श्रृंखला के ऊपरी सिरे पर एक वृहत्तर विनिर्माण क्षेत्र का निर्माण करना चाहता है तथा ब्रिटेन विशेज्ञतापूर्ण उच्च प्रोद्यौगिकी युक्त ऐसे आवश्यक विनिर्माण में दक्ष है।
  • भारत को कोयला, तेल और गैस जैसे परंपरागत तथा पवन एवं सौर जैसे नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन की आवश्यकता है और ब्रिटेन इन सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखता है।
  • भारत को ज़रूरत है अगले दस वर्षों में श्रम बाज़ार में शामिल होने वाले 50 करोड़ युवाओं को शिक्षित-प्रशिक्षित करने की और ब्रिटेन शिक्षा एवं कौशल-विकास का हुनर रखता है।
  • भारत को अपने 1.2 अरब लोगों के लिये बेहतरीन स्वास्थ्य सेवा की ज़रूरत है और स्वास्थ्य सेवा एवं औषधि के क्षेत्र में ब्रिटेन के पास व्यापक दक्षता है।
  • अब, जबकि भारतीय कंपनियों ने वैश्विक स्वरूप हासिल कर लिया है तो उन्हें ब्रिटेन द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली बैंकिंग, बीमा, अकाउंटेंसी, कानून आदि जैसी सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है।
  • भारत वैश्विक बाज़ार में अपनी पहुँच चाहता है। ब्रिटेन एक व्यापक आधार स्थल है जहाँ से दुनिया के सबसे बड़े एकल बाज़ार--यूरोपीय संघ तक पहुँचा जा सकता है ।

ब्रिटेन पिछले दस वर्षों में भारत में जी-20 का सबसे बड़ा निवेशक देश रहा है, जबकि भारत ब्रिटेन में निवेश परियोजनाएं लगाने के मामले में चौथा सबसे बड़ा देश रहा है। भारत के लिये ब्रिटेन एक महत्त्वपूर्ण आयातक देश है, हालाँकि यह भारत को बड़ी मात्रा में निर्यात भी करता रहा है, लेकिन हाल के समय में इसमें कमी आई है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारत की कंपनियों की अहम भूमिका है, 800 से ज़्यादा ऐसी कंपनियों ने ब्रिटेन में 1 लाख से ज़्यादा लोगों को रोज़गार दिया है।

दोनों देशों के आपसी संबंधों को मज़बूत बनाए रखने में ब्रिटेन में रहने वाले करीब 15 लाख प्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका है। ये प्रवासी भारतीय न केवल ब्रिटेन और भारत के बीच एक पुल का काम कर रहे हैं, बल्कि इन्होंने भारत की संस्कृति से ब्रिटेन को संपन्न भी किया है। प्रवासी भारतीय ब्रिटेन में हर क्षेत्र में मौजूद हैं, चाहे व्यापार, राजनीति, खेल का क्षेत्र हो या कोई और, इन्होंने सबमें एक मुकाम हासिल किया है। यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं कि ब्रिटेन ने आपसी संबंधों को बेहतर करने लिये ज़्यादातर प्रवासी भारतीयों को ही माध्यम बनाया है। 

क्या है ब्रेक्सिट (Brexit)?

  • यूरोपीय संघ में रहने या न रहने के सवाल पर ब्रिटेन में 23 जून 2016 को जनमत संग्रह कराया गया था, जिसमें लगभग 52% मतदाताओं ने यूरोपीय संघ से बाहर होने के पक्ष में मतदान किया था। 
  • इसे ब्रेक्सिट कहा गया अर्थात् ब्रिटेन+एग्जिट को मिलाकर ब्रेक्सिट शब्द की उत्पत्ति हुई।
  • जनमत संग्रह में केवल एक प्रश्न पूछा गया था--क्या यूनाइटेड किंगडम को यूरोपीय संघ का सदस्य बना रहना चाहिये या इसे छोड़ देना चाहिये?
  • ब्रेक्सिट तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन का चुनावी वादा था, इसीलिये यह जनमत संग्रह हुआ। हालांकि, वह खुद ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधर थे।
  • यहाँ यह बता देना समीचीन होगा कि 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के कार्यकाल में ब्रिटेन यूरोपीय संघ में शामिल हुआ था, लेकिन ब्रिटेन ने साझा मुद्रा यूरो नहीं अपनाई... शेंगेन (Schengen) के पासपोर्ट-मुक्त क्षेत्र से बाहर रहा...अपनी मुक्त बाज़ार नीति जारी रखी।
  • ब्रिटेन वासियों ने 1975 में हुए एक जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्ष में मतदान किया था, उस समय इसका नाम यूरोपीय इकनोमिक कम्युनिटी था। ब्रिटेन 1 जनवरी, 1973 को इसका सदस्य बना था। इस समूह की शुरुआत 1957 में छह यूरोपीय देशों के बीच हुई रोम संधि से हुई थी। यूरोपीय संघ का वर्तमान स्वरूप 1993 में सामने आया था।

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में साझा मूल्यों, समान कानूनों और संस्थानों के आधार पर, अपनी रणनीतिक भागीदारी को मज़बूत करने की ब्रिटेन और भारत की स्वाभाविक महत्त्वाकांक्षा है। दोनों देश वैश्विक दृष्टिकोण और एक नियम-आधारित ऐसी अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के प्रति वचनबद्धता का हिस्सा हैं जो उन एकतरफा उठाए गए कदमों का ज़ोरदार विरोध करती हैं जो बल के माध्यम से इस प्रणाली को कमज़ोर करना चाहते हैं। दोनों देश अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी बनाने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जिसका विस्तार समूचे विश्व में हो। दोनों देश अपने व्यावसायिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक संबंधों को उन अनेकानेक गतिविधियों का पूरा लाभ उठाने के लिये प्रोत्साहित करते हैं जो भारत और ब्रिटेन को पारिवारिक स्तर से लेकर वित्तीय व्यवस्था तथा व्यवसाय से लेकर बॉलीवुड तक और खेल से लेकर विज्ञान तक परस्पर जोड़ते हैं। संपन्न लोकतंत्र के रूप में भारत और ब्रिटेन उन सभी के साथ मिलकर काम करने की इच्छा साझा करते हैं जो नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करते हैं और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, वैश्विक शांति और स्थिरता के पक्षधर हैं।

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