सक्षम भारत : 2018 में भारत की सैन्य चुनौतियाँ | 09 Jan 2018
संदर्भ तथा पृष्ठभूमि
नए साल में दक्षिण एशिया में अमेरिका ने अपनी रणनीति में बेहद अहम् बदलाव करते हुए चीन को दी जाने वाली सैन्य सहायता पर रोक लगा दी और उससे आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा। भारत के लिये चीन और पाकिस्तान दोनों ही देशों के साथ लगी सीमाएँ परेशानी का कारण हैं। चीन के साथ सीमाओं पर हिंसक संघर्ष भले ही न होता हो, लेकिन चीन कोई-न-कोई मुद्दा उठाकर तनाव बराबर बनाए रखता है। पाकिस्तान की सीमाओं पर हिंसक झड़पें रोजमर्रा जैसी घटनाएं हो गई हैं और दोनों ही ओर से जान-माल का नुकसान तो होता है। और इनके आड़ में पाकिस्तान आतंकवादियों की भारत में घुसपैठ कराने का मौक़ा भी ताड़ता रहता है। फिलहाल इस क्षेत्र में जैसी स्थितियां बनी हुई हैं उनसे तो यही लगता है कि भारत की सुरक्षा दुश्वारियां 2018 में भी कम नहीं होने वाली।
क्या कहा अमेरिकी राष्ट्रपति ने?
"अमेरिका ने मूर्खतापूर्वक पिछले 15 वर्षों में पाकिस्तान को 33 बिलियन डॉलर की मदद दी। उसने हमें झूठ, धोखे और हमारे नेताओं को मूर्ख बनाने के अलावा कुछ नहीं दिया। उसने आतंकवादियों को सुरक्षित ठिकाना दिया, जिन्हें हम अफगानिस्तान में तलाश रहे हैं, बस अब और नहीं!"
- इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 25.5 करोड़ डॉलर की सैन्य मदद पर रोक लगा दी। कुल मिलाकर अमेम्रिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 1 अरब 15 करोड़ डॉलर की सैन्य और सुरक्षा सहायता राशि रोक दी है, लेकिन यह रोक स्थायी नहीं है और मामला-दर-मामला देख कर इसे जारी किया जाएगा।
- वित्त वर्ष 2016 के लिये पाकिस्तान को यह सहायता Coalition Support Fund के तहत दी जानी थी, लेकिन हक्कानी नेटवर्क और तालिबान को जारी पाकिस्तानी सहायता के मद्देनज़र इस पर रोक लगाईं गई है।
यह बताने का तात्पर्य मात्र इतना है कि इससे भारत की सुरक्षा संबंधी वे चिंताएँ स्पष्ट हो जाती हैं, जिनका सामना वह दशकों से कर रहा है और अपनी सुरक्षा के लिये संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा हथियारों की खरीद पर खर्च कर रहा है।
फिर भी ज़रूरी है अमेरिका के लिये पाकिस्तान
पाकिस्तान की इस क्षेत्र में भौगोलिक स्थिति उसे अमेरिका के लिये अपरिहार्य बना देती है। अमेरिका के लिये पाकिस्तान के अहमियत का पता इसी बात से चल जाता है कि उसने पिछले 15 वर्षों में पाकिस्तान को 33 बिलियन डॉलर की मदद दी है। बेशक अमेरिका ने पाकिस्तान की सैन्य सहायता स्थगित कर दी है, लेकिन फिर भी अफगानिस्तान के मुद्दे पर उसका काम बिना पाकिस्तान के चल पाना संभव नहीं है। पाकिस्तान में स्थिरता का पक्षधर है अमेरिका और उसे अपना विश्वस्त सहयोगी भी मानता रहा है, जबकि पाकिस्तान में लोग यह मानते हैं कि अमेरिका अपने संबंधों को पड़ोसी अफगानिस्तान के दृष्टिकोण से देखता है और ऐसा करते हुए पाकिस्तान के हितों की अनदेखी होती है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों का इस क्षेत्र में पर्याप्त महत्त्व रहा है।
विश्व में भारत सबसे बड़ा हथियार आयातक
भारत विश्व का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है, और यह भी उतना ही सत्य है कि हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर हुए बिना कोई भी देश वैश्विक महाशक्ति होने का दावा नहीं कर सकता। अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि कोई भी महाशक्ति हथियारों की अपनी तकनीक किसी भी देश से साझा नहीं करती। वैसे रक्षा अर्थशास्त्र का एक बुनियादी नियम यह है कि किसी हथियार या रक्षा उत्पाद को बनाना उसे खरीदने से ज्यादा महंगा पड़ता है। इसलिये हथियार को विकसित करना तभी ठीक रहता है, जब वह अंतरराष्ट्रीय बाजार में आने से पहले आपकी सेना के पास आ जाए। देश की नई रक्षा नीति में सेना, डीआरडीओ, सार्वजनिक उपक्रमों/सार्वजनिक रक्षा उपक्रमों और निजी कंपनियों के बीच सहयोग के ज़रिये अनुसंधान एवं विकास में प्रयास करने की पहल की है। लेकिन इतने मात्र से काम नहीं चलने वाला, ऐसे में भारत के लिये यह बेहद ज़रूरी है कि इस मामले में आत्मनिर्भरता पाने के लिये डिज़ाइन तैयार करने की क्षमता के साथ-साथ उत्पादन करने की क्षमता को भी हासिल किया जाए। 2018 में मेक इन इंडिया के तहत रक्षा उत्पादन को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
भारत की समरनीति
हाल के वर्षों में भारत ने अपनी समरनीति या सैन्य कूटनीति में अहम् बदलाव किये हैं, जिनका असर पाकिस्तान और चीन से लगती देश की सीमाओं पर देखने को मिल रहा है।
चीन: चीन के साथ सीमा विवाद में भारतीय सैन्य कूटनीति की अग्नि-परीक्षा होती है, क्योंकि अपनी 'वॉरफेयर्स स्ट्रैटिजी' के तहत चीन अपने सरकारी मीडिया के जरिए और मनोवैज्ञानिक तरीके से वार करता है। पिछले वर्ष हुए डोकलाम विवाद में चीन की इस रणनीति का भारत पर कोई असर नहीं हुआ। भारत ने शांत रहते हुए अपनी सैन्य तैयारियों को पुख्ता किया। इस बीच भारत और चीन के अधिकारियों के बीच पेइचिंग और नई दिल्ली में डोकलाम को लेकर बातचीत शुरू हो गई। इसके बाद हाल ही में नए साल की शुरुआत में अरुणाचल प्रदेश में चीनी घुसपैठ का मुद्दा भी इसी प्रकार सुलझाया गया। दोनों देश इस बात को लेकर भी बेहद सर्तक रहते हैं कि उनके सैनिक एक-दूसरे के खिलाफ हथियार तानकर न खड़े हों। यही वजह है कि भारत-चीन सीमा पर तनाव चरम पर होने के बावजूद दशकों से एक भी गोली नहीं चली। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि 2018 में भी चीन का रुख ऐसा ही बना रहेगा, क्योंकि भारत का बढ़ता वैश्विक रुतबा उसे फूटी आँख नहीं सुहाता।
पाकिस्तान: पाकिस्तान को लेकर भी हमारी समरनीति में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिले, जब पाकिस्तान की ओर से होने वाली हर हरकत का माकूल जवाब दिया गया। पिछले वर्ष हुई सर्जिकल स्ट्राइक भारत की रणनीति में हुए बदलाव का एक नमूना था, जो, उसके बाद भी जारी रहा। पहले हुई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीमापार से होने वाली आतंकी घुसपैठ की घटनाओं में कमी आई। हाल ही में हुई एक अन्य सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान को यह स्पष्ट संकेत मिल गया कि अपने हितों के रक्षा के लिये भारत नियंत्रण रेखा के पार कार्रवाई करने में हिचकेगा नहीं। भारत द्वारा 'वार के बदले वार और मार के बदले मार' वाली रणनीति अपनाने के बाद पाकिस्तानी सेना का यह भ्रम टूट गया कि भारत कुछ करने वाला नहीं है। पाकिस्तान को अब पता है कि सीमापार से किसी भी तरह की गलत हरकत होने पर भारत उसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिये तैयार है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत की आवश्यकता
राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत’ एक ऐसा दस्तावेज़ है जो सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये रणनीतिक एवं कार्यान्वयन संबंधी मामलों में मार्गदर्शन देता है। इस सिद्धांत में ऐसी अनेक परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जिनमें रणनीतियों एवं युक्तियों का संचालन राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत के अनुसार किया जाना है।
क्यों है आवश्यक?
- भारत को सीमापार आतंकवाद, उग्रवाद, असंतोष एवं सीमा विवाद जैसे अनेक संकटों का समय-समय पर सामना करना पड़ता है।
- कई बार विभिन्न सुरक्षा बलों में समन्वय की कमी भी देखने को मिलती है, जिसके लिये एकीकृत राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत की स्थापना की आवश्यकता महसूस की गई।
- तत्काल उचित कार्रवाई के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत में विशेष रणनीति का प्रावधान है, अतः सुरक्षा पर संकट के समय त्वरित निर्णय लेने में यह सहयोगी होगा।
- इसके माध्यम से केंद्रीय और संघीय दोनों स्तरों पर सुरक्षा प्रतिष्ठानों के मध्य समन्वय बनाने में मदद मिलेगी।
- ये सिद्धांत किसी आतंकी घटना को रोकने में हुई विफलता के लिये सुरक्षा प्रतिष्ठानों की जवाबदेहिता सुनिश्चित करेंगे।
- वर्तमान में भारत में केवल रक्षा संस्थानों के लिये ही बाह्य सुरक्षा सिद्धांत स्वीकार किये गए हैं।
- भारत की गुप्तचर एजेंसियों के कामकाज में अस्पष्टता है। उनके लिये किसी विश्वसनीय बाह्य लेखा-परीक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है तथा न ही उनके लिये एकीकृत कमांड और नियंत्रक ढांचा स्थापित किया गया है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत ऐसी रणनीतियों का एक सेट है जिसके अनुसरण से सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित हो सकता है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
क्वैड की अवधारणा
वैश्विक स्तर पर बढ़ते चीन के प्रभुत्व को कम करने के लिये विश्व के चार लोकतांत्रिक देशों अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच के साथ चतुष्पक्षीय (Quad) सहमति बनी है। इस सहयोग के प्रमुख उद्देश्यों हिंद-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त, समृद्ध और समावेशी बनाने के उपायों के अलावा आतंकवाद और उसके प्रसार जैसी साझा चुनौतियों के समाधान के साथ-साथ आपसी संपर्क बढ़ाने के उपाय करना शामिल है।
क्वैड अवधारणा का पहला प्रस्ताव 2008 में तब रखा गया था, जब 2007 में भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर ने बंगाल की खाड़ी में मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास किया था। बाद में ऑस्ट्रेलिया इससे अलग हो गया था, क्योंकि चीन ने इस बहुपक्षीय साझा अभ्यास पर कड़ी आपत्ति जताई थी। अब लगभग एक दशक बाद यह विचार फिर तब जीवित हुआ, जब कुछ समय पूर्व जापान के विदेश मंत्री ने चारों देशों के बीच ऐसी बैठक का प्रस्ताव रखा, जिसे अमेरिका ने तत्काल मंज़ूरी दे दी थी।
अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाए तो चार देशों के इस समन्वय के पीछे इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियाँ और प्रभाव है, जो न केवल प्रशांत महासागर बल्कि हिंद महासागर के क्षेत्र में भी लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। उसने कुछ वर्षों से दक्षिण चीन सागर के द्वीपों और सागरीय इलाके पर अपना प्रादेशिक अधिकार जताना शुरू कर दिया है। इसके पीछे उसका उद्देश्य दक्षिण चीन सागर से होकर भारत और अन्य देशों के व्यापारिक और सैनिक पोतों की आवाजाही पर नियंत्रण स्थापित करना है। इस आशंका से इस क्षेत्र के सभी देश चिंतित हैं और चीन की इस आक्रामकता को रोकने और इस क्षेत्र के देशों के हितों की रक्षा के लिये ही इन चार देशों ने एक साथ आने का फैसला किया है।
इस क्षेत्र में भारत के हित तो हैं ही, साथ ही इस क्षेत्र के अन्य देशों--जापान, वियतनाम, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस से भी हमारे रक्षा तथा व्यापारिक संबंध हैं। भारत यह मानता है कि अपनी रक्षा के लिये किसी भी मोर्चे में शामिल होना किसी भी दृष्टि से गलत नहीं है और इस समन्वय का उद्देश्य व्यापक है, यह किसी एक देश के खिलाफ नहीं है। भारत की लुक ईस्ट नीति इस क्षेत्र में हमारे कार्यों की आधारशिला है और इसी आधार पर भारत आगे बढ़ना चाहता है।
संयुक्त राष्ट्र शांति सहयोग में भारत की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना अभियानों में भारत सबसे बड़ा सैन्य सहयोगी है। संयुक्त राष्ट्र के सैन्य शांति अभियानों में भारत के हजारों सैनिक विश्व के विभिन्न अशांत देशों में योगदान कर रहे हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र शांति के मौलिक सिद्धातों का पालन करता है, जिनमें निष्पक्षता, संघर्ष के लिये पक्षों की सहमति और आत्मरक्षा व जनादेश की रक्षा के लिये बल का इस्तेमाल शामिल हैं। वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक दल में योगदान करने वाले सभी देशों में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश रहा, जिसने 11 शांति मिशनों और दो कार्यालयों में 6,891 भारतीय सैन्य कर्मी और 782 पुलिस कर्मी उपलब्ध कराए। भारत की तरफ से अब तक संयुक्त राष्ट्र के 69 शांति प्रयासों में से 44 में भारत के लगभग 1,80,000 सैनिक भाग ले चुके हैं।
(टीम दृष्टि इनपुट)
निष्कर्ष: अमेरिका, रूस तथा हमारे पड़ोसी देश चीन सहित विश्व की सभी बड़ी सेनाएँ अपनी क्षमता बढ़ाने के लिये समय-समय पर सुधार करती रहती हैं। हमारे देश में सुरक्षा के मुद्दे पर लंबे समय से सबसे बड़ी चुनौती रक्षा आधुनिकीकरण की रही है और 2018 में भी यह जारी रहेगी। रक्षा चुनौतियां दो स्तर पर होती हैं--संगठनात्मक और परिचालन स्तर पर| देश में विभिन्न सुरक्षा सेवाओं के संगठनात्मक ढांचे में पर्याप्त सुधार अपेक्षित हैं और पिछले वर्ष शेकटकर समिति की रिपोर्ट के आधार पर कुछ सुधारों को लागू भी किया गया| इन सुधारों को रक्षा क्षेत्र में अभी तक के सबसे बड़े सुधार बताया जा रहा है| हमारे देश की ज़मीनी सीमा 15 हज़ार किमी. से अधिक और समुद्री सीमा 7500 किमी. से अधिक है। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ सीमाओं पर तनाव बराबर बना रहता है, ऐसे में देश की रक्षा चुनौतियों का महत्त्व और बढ़ जाता है।