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द बिग पिक्चर/देश-देशांतर/: दावोस में दिखाया भारत ने दम

  • 27 Jan 2018
  • 18 min read

संदर्भ व पृष्ठभूमि 

दावोस में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum-WEF) की पाँच दिवसीय 48वीं वार्षिक शिखर बैठक के उद्घाटन सत्र में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की नई आर्थिक तस्वीर पेश की। इस वर्ष फोरम का विषय था--Creating a Share future in a Fractured World यानी विभाजित दुनिया के लिये साझा भविष्य का निर्माण। इसे लेकर भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि नए-नए बदलावों से नई-नई शक्तियों से आर्थिक क्षमता और राजनीतिक शक्ति का संतुलन बदल रहा है। इससे विश्व के स्वरूप में दूरगामी परिवर्तनों की छवि दिखाई दे रही है। विश्व के सामने शांति-स्थिरता और सुरक्षा को लेकर नई और गंभीर चुनौतियाँ हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा...
दो दशकों में बहुत बदल गई है दुनिया

  • दो दशक पूर्व 1997 में जब पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा यहाँ आए थे, तब भारत की जीडीपी 400 बिलियन डॉलर से कुछ अधिक थी और अब दो दशक बाद यह छह गुना हो चुकी है।
  • उस वर्ष इस फोरम का विषय था बिल्डिंग द नेटवर्क सोसायटी और आज 21 साल बाद यह विषय सदियों पुराना लगता है। 
  • आज हम केवल नेटवर्क सोसायटी में ही नहीं, बल्कि बिग डेटा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस वाली सोसासटी में हैं। 
  • तब यूरो मुद्रा नहीं थी, न ही ब्रेग्जिट था। तब बहुत कम लोगों ने ओसामा बिन लादेन का नाम सुना था और हैरी पॉटर को भी लोग नहीं जानते थे। 
  • तब यदि आप साइबर दुनिया में अमेजॉन शब्द सर्च करते तो आपको नदियों और जंगलों के बारे में जानकारी मिलती। 
  • पिछली शताब्दी में ट्वीट चिड़िया करती थीं, मनुष्य नहीं। 
  • प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने Reform, Perform और Transform का रास्ता चुना है। 
  • भारत अपनी आर्थिक नीतियों में भारी बदलाव कर रहा है और अब Investing in India, Travelling to India और Manufacturing in India अर्थात् भारत में निवेश करना, यात्रा करना, उत्पादों का निर्माण कर उनका निर्यात करना हर दृष्टि से फायदे का सौदा है।
  • प्रधानमंत्री ने Predictable, Stable, Transparent और Progressive भारत को विश्व के सामने पेश किया।
  • प्रधानमंत्री ने भारत के समग्र विकास के पीछे 3-D (Demography, Dyanamism, Democracy) के समन्वय का भी उल्लेख किया। 
  • मंच की बैठक में इस बार डब्ल्यूटीओ, आईएमएफ और विश्व बैंक सहित प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों के 38 प्रमुखों ने भी इसमें हिस्सा लिया तथा विभिन्न देशों की लगभग 2,000 कंपनियों के सीईओ भी इसमें शामिल हुए।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस सम्मेलन में भाग लेने वाला चौथा सबसे बड़ा प्रतिनिधिमंडल भारत का था।
  • अमेरिका से 780, ब्रिटेन से 266, स्विटजरलैंड से 233 और चीन से 118 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने इसमें हिस्सा लिया। 
  • वार्षिक बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व
    वित्त मंत्री अरुण जेटली, वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु, रेल और कोयला मंत्री पीयूष गोयल, पेट्रोलियम एवं गैस, कौशल विकास तथा उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के प्रभारी तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन, परमाणु ऊर्जा तथा अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह तथा विदेश राज्यमंत्री एम.जे. अकबर ने वार्षिक बैठक 2018 में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 
  • इन सभी ने अगली पीढ़ी की औद्योगिक रणनीति और संरचना गति, चौथी औद्योगिक क्रांति, विनिर्माण में रोज़गार के भविष्य पर आयोजित होने वाले 25 सत्रों में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व किया तथा 2022 तक भारत को नए भारत में बदलने के प्रधानमंत्री के विज़न को साझा किया। इस वार्षिक बैठक में भारत में कारोबार के विशाल अवसरों तथा पिछले 2-3 वर्षों में भारत में लागू किये गए सुधारों की जानकारी दी इनके अलावा भारत में लागू अब तक का किया गया सबसे बड़ा कर सुधार जीएसटी, दिवाला एवं दिवालियापन संहिता तथा अन्य सुधारों को भी दिखाया गया।

विश्व के सामने सबसे बड़ी 3 चुनौतियाँ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावोस में विश्व आर्थिक फोरम की बैठक को संबोधित करते हुए दुनिया के सामने मौजूद 3 बड़ी चुनौतियों का ज़िक्र किया:

  1. जलवायु परिवर्तन
  2. आतंकवाद
  3. संरक्षणवाद 

वैश्विक एकीकरण के लिये दिये 4 सुझाव 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाँचों में बंटी हुई दुनिया के एकीकरण के लिये 4 सुझाव भी दिये:

  1. बड़ी वैश्विक शक्तियों के बीच सहयोग संबंध बनाना 
  2. नियमाधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पालन करना 
  3. प्रमुख वैश्विक राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संस्थानों में सुधार करना 
  4. वैश्विक आर्थिक प्रगति को और बढ़ाने के उपाय करना 

विश्व आर्थिक मंच
विश्व आर्थिक मंच सार्वजनिक-निजी सहयोग हेतु एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व के प्रमुख व्यावसायिक, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों तथा अन्य प्रमुख क्षेत्रों के अग्रणी लोगों के लिये एक मंच के रूप में काम करना है। 

  • यह स्विट्ज़रलैंड में स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था है और इसका मुख्यालय जिनेवा में है।
  • इस फोरम की स्थापना 1971 में यूरोपियन प्रबंधन के नाम से जिनेवा विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर क्लॉस एम. श्वाब ने की थी।
  • इस संस्था की सदस्यता अनेक स्तरों पर होती है और ये स्तर संस्था के काम में उनकी सहभागिता पर निर्भर करते हैं।
  • इसके माध्यम से विश्व के समक्ष मौजूद महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है।
  • इस मंच का सबसे चर्चित और महत्त्वपूर्ण आयोजन यही शीतकालीन बैठक होती है, जिसे अन्य नेताओं के अलावा भारत के प्रधानमंत्री ने भी संबोधित किया था।

दावोस: यह बैठक दावोस नाम के शहर में आयोजित की जाती है, जो लैंड वासर नदी के तट पर स्थित स्विट्ज़रलैंड का एक खूबसूरत शहर है। यह शहर दोनों ओर स्विस आल्प्स पर्वत की प्लेसूर और अल्बूला श्रृंखला से घिरा हुआ है और यहाँ हर साल ऐसी बैठक होती है, जो दावोस बैठक के नाम से प्रसिद्ध है। दावोस की जनसंख्या  केवल 11 हज़ार है और यह यूरोप में सबसे ऊँचाई पर बसे शहरों में से एक है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

इन मुद्दों को विस्तार से रखा भारत के प्रधानमंत्री ने

  • आतंकवाद से खतरनाक है अच्छे-बुरे आतंकवाद में अंतर
  • मानव सभ्यता के लिये सबसे बड़ा खतरा है जलवायु परिवर्तन  
  • नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं का पालन हो 
  • साझा भविष्य के लिये विश्व की बड़ी ताकतों के बीच सहयोग आवश्यक
  • भारतीय युवा जॉब लेने वाले से जॉब देने वाला बन रहे 
  • विविधता को एकता में बदलने के लिये लोकतांत्रिक परिवेश की भूमिका 
  • संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में भारत का योगदान
  • साइबर सुरक्षा और परमाणु तकनीक दुनिया के लिये महत्त्वपूर्ण
  • वैश्विक चुनौतियों का साझा सामना करने की ज़रूरत
  • वैश्वीकरण के बीच आत्मकेंद्रित होना ठीक नहीं
  • लालच की पूर्ति के लिये संसाधनों का उपभोग ठीक नहीं 
  • डेटा ही दुनिया का भविष्य, जो इस पर काबू रखेगा वही आगे जाएगा

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावोस में विश्व के शीर्ष उद्योगपतियों और कारोबारियों से भी मुलाकात की तथा विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख विदेशी कंपनियों के चर्चा की। 

संरक्षणवाद के खिलाफ भारत-चीन एक
दावोस में जब भारत के प्रधानमंत्री ने संरक्षणवाद के खिलाफ बोला तो चीन ने उसका समर्थन करते हुए कहा कि दोनों देश ऐसे प्रयासों के खिलाफ साथ मिलकर काम कर सकते हैं, क्योंकि दोनों वैश्वीकरण को बढ़ावा देने और विश्व अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिये समान हित में हिस्सा लेते हैं। इसके साथ ही चीन ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को मज़बूत करने के लिये भारत के साथ सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया। दावोस में भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि कई देश आत्मकेंद्रित हो गए हैं, जिसकी वजह से वैश्वीकरण कमज़ोर हो रहा है। तब चीन ने कहा कि वैश्वीकरण आज की ज़रूरत है और यह विकासशील देशों सहित अन्य देशों के हितों के लिये ज़रूरी भी है। 

चीन ने कहा कि इसी मंच पर पिछले वर्ष चीनी राष्ट्रपति ने भी संरक्षणवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई थी और वह यह मनाता है कि वैश्वीकरण को बढ़ावा देने में चीन और भारत में कई साझा हित हैं। चीन वैश्वीकरण की प्रकिया को और मज़बूत करने के लिये भारत और अन्य देशों के साथ सहयोग करने का इच्छुक है। 

महिलाओं की सहभागिता ज़रूरी
दावोस में वार्षिक सम्मेलन की शुरुआत से पहले प्रकाशित एक संयुक्त दस्तावेज़ में आईएमएफ की अध्यक्ष क्रिस्टिन लेगार्ड और नॉर्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सॉल्बर्ग ने 2018 को महिलाओं की सफलता का वर्ष बनाने का आह्वान किया। इन दोनों ने इस वर्ष दावोस में वार्षिक महिला सम्मेलन की अध्यक्षता की। 
इस संयुक्त दस्तावेज़ में कहा गया है कि यदि भारत की श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए तो जीडीपी में 27 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। पुरुषों के बराबर महिलाओं की  सहभागिता किसी भी देश के लिये चुनौती हो सकती है। यह एक ऐसा लक्ष्य है जिससे हर देश को लाभ होगा।

इस संयुक्त दस्तावेज़ में कहा गया कि महिलाओं को पिछड़ा रखने के कुछ कारक हर जगह मौजूद हैं। लगभग 90 प्रतिशत देशों में लैंगिक आधार पर रुकावट डालने वाले एक या अधिक कानून हैं। कुछ देशों में महिलाओं के पास सीमित संपत्ति अधिकार हैं, जबकि कुछ देशों में पुरुषों के पास अपनी पत्नी को काम से रोकने का अधिकार है। कानूनी रुकावटों से इतर काम और परिवार में तालमेल बिठाना, शिक्षा, वित्तीय संसाधन और सामाजिक दबाव भी बाधक हैं। इसीलिये महिलाओं को परिवार का पालन करने के साथ ही कार्यस्थल पर सक्रिय रखने में मदद करना महत्त्वपूर्ण है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

सब कुछ उतना उजला भी नहीं है
विश्व आर्थिक मंच में प्रधानमंत्री बेशक यह दर्शाने में सफल रहे कि भारत में अब विदेशी कारोबार के अनुकूल परिस्थितियाँ हैं। अपनी बात कहने के लिये इस मंच का उन्होंने भरपूर लाभ उठाया और रेड टेप के बजाय रेड कॉरपेट की बात कही। हाल के दिनों में लागू जीएसटी और अन्य प्रयासों को उन्होंने विदेशी व्यापार को सुगम बनाने में सहायक बताया। नि:संदेह आज भारत दुनिया में एक बड़ा बाज़ार है और तमाम वैश्विक संस्थाएँ भारत की विकास दर को दुनिया में सबसे तेज़ रहने की बात कह रही हैं। ऐसे में विदेशी निवेशकों का आकर्षण होना स्वाभाविक है। लेकिन देश के पूर्वोत्तर राज्यों में जब भारतीय भी वहाँ कारोबार करने से डरते हैं तो कौन विदेशी निवेशक अशांत इलाकों में धन लगाना चाहेगा? अब तक देखने में यह आया है कि अधिकांशतः निवेश जुटाने लिये की गई तमाम घोषणाएँ एवं वादे भारत के कठोर कारोबारी माहौल में आकर केवल वादे ही रह जाते हैं। इसके अलावा यह भी किसी से छिपा नहीं है कि विमुद्रीकरण व जीएसटी की विसंगतियों से देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं और उनका पूर्ण समाधान होना अभी शेष है। डावोस सम्मेलन की शुरुआत से पहले अंतरराष्ट्रीय समूह ऑक्सफेम की रिपोर्ट बताती है कि भारत समावेशी विकास के मामले में अपने कई पड़ोसियों से पीछे है। विकास का यह मानक हमारी जीवन-शैली, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्थिति को दर्शाता है। 

निष्कर्ष: नरेंद्र मोदी बीते दो दशक में दावोस में विश्व आर्थिक मंच को संबोधित करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी दावोस में गत वर्ष ऐसा ही संबोधन दिया था। भारत को दावोस में दिये अपने संदेश में कही गई बातों पर अमल करना होगा। भारत के प्रधानमंत्री के संबोधन भाषण बाहरी तौर पर यह संकेत निकला कि भारत वैश्वीकरण के पक्ष में है और आंतरिक संकेत यह है कि सरकार की प्राथमिकताओं में अभी भी सुधार और विकास वृद्धि शामिल हैं। अब इन संकेतों को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। 

नि:संदेह आज भारत दुनिया में बड़ा बाज़ार है और तमाम वैश्विक संस्थाएँ भारत की विकास दर दुनिया में सबसे तेज़ रहने का अनुमान जता रही हैं। हाल के दिनों में कारोबार की सुगमता वाले देशों की रैंकिंग में भी भारत ऊपर चढ़ा है। भारत आज दुनिया में ढाई खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था है जो तेज़ी से बढ़ भी रही है। यह ठीक है कि वैश्विक स्तर पर भारत का रूतबा बढ़ा है, लेकिन इसके साथ बेहतर आर्थिक प्रदर्शन की आकांक्षाओं का दबाव भी बढ़ा है। ऐसे में राजकोषीय समझ और  व्यापारिक प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, तभी भारत को विश्व स्तर पर अग्रणी भूमिका निभाने के और अधिक अवसर मिलेंगे।

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