द बिग पिक्चर : डिजिटली पावरफुल भारत (India's Digital Power) | 24 Feb 2018

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में (19 फरवरी) हैदराबाद में आयोजित हुए विश्व सूचना प्रौद्योगिकी सम्मेलन को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए एक बार फिर भारत के डिजिटल सशक्तीकरण पर जोर देते हुए कहा कि कंप्यूटर और इंटरनेट पर आधारित डिजिटल क्रांति ने अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज तीनों को प्रभावित किया है।

भारत सरकार ने वर्ष 2015 में भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया कार्यक्रम शुरू किया था। यह  एक विस्तृत एवं समग्र कार्यक्रम है, जिसे सभी राज्य सरकारों ने लागू किया है और इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी विभाग इसका संयोजन करता है।

क्या  है उद्देश्य डिजिटल इंडिया का?

डिजिटल इंडिया के केंद्र में तीन मुख्य क्षेत्र हैं:

(i) प्रत्येक नागरिक के लिये सुविधा के रूप में बुनियादी ढाँचा
(ii) गवर्नेंस व मांग आधारित सेवाएँ 
(iii) नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण 

डिजिटल इंडिया का लक्ष्य विकास क्षेत्रों के निम्नलिखित स्तंभों के ज़रिये इस बहुप्रतीक्षित आवश्यकता को उपलब्ध कराना है:

  1. ब्रॉडबैंड हाइवेज
  2. मोबाइल कनेक्टिविटी तक सर्वव्यापी पहुँच  
  3. पब्लिक इंटरनेट संपर्क कार्यक्रम
  4. ई-गवर्नेंस--तकनीक के जरिये सरकारी सुधार  
  5. ई-क्रांति--सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक आपूर्ति 
  6. सबके लिये सूचना
  7. इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन-सकल शून्य आयात का लक्ष्य
  8. रोज़गार के लिये सूचना प्रौद्योगिकी 
  9. अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम 

डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों का मौलिक आधार देश का संचार उद्योग है जो केवल लोगों से जुड़ा ही नहीं है, बल्कि नौकरियों का भी सृजन करता है। यह ज्ञान के लिये एक उपकरण तो बन ही गया है, साथ ही राजकोष में योगदान देकर आर्थिक विकास और वित्तीय समावेशन का विस्तार करता है। 

डिजिटल इंडिया के विजन क्षेत्र 

प्रत्येक नागरिक के लिये सुविधा के रूप में बुनियादी ढाँचा:

  • मुख्य सुविधा के रूप में हाई स्पीड इंटरनेट सभी ग्राम पंचायतों में उपलब्ध कराया जाएगा
  • अनोखी, आजीवन, ऑनलाइन और प्रमाणन योग्य डिजिटल पहचान
  • मोबाइल फोन तथा बैंक एकाउंट व्यक्तिगत स्तर पर डिजिटल और वित्तीय रूप में भागीदारी में समर्थ बनाएंगे
  • स्थानीय स्तर पर सामान्य सेवा केंद्र तक आसान पहुँच
  • पब्लिक क्लाउड में साझा करने योग्य निजी स्थान
  • देश में सुरक्षित साइबर स्पेस

गवर्नेंस और मांग आधारित सेवाएँ:

  • सभी लोगों को आसान एवं सिंगल विंडो एक्सेस उपलब्ध कराने के लिये विभागों या अधिकार क्षेत्रों तक निर्बाध समेकन
  • ऑनलाइन और मोबाइल प्लेटफार्म से रियल टाइम में सरकारी सेवाएं उपलब्ध कराना 
  • सुगम पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सभी नागरिक हकदारियों को क्लाउड पर उपलब्ध कराना
  • व्यवसाय करने की सुगमता प्रदान कराने के लिये सरकारी सेवाएँ डिजिटल तरीके से रूपांतरित करना 
  • एक सीमा से अधिक वित्तीय लेन-देन को इलेक्ट्रॉनिक और नकदी रहित बनाना 
  • निर्णय सहायता प्रणालियों एवं विकास के लिये जीआईएस का लाभ उठाना

नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण:

  • सार्वभौमिक डिजिटल साक्षरता
  • सभी डिजिटल संसाधन सबको सुगम-सुलभ कराना
  • सभी सरकारी कागज़ात/प्रमाणपत्र क्लाउड पर उपलब्ध कराए जाएंगे
  • भारतीय भाषाओं में डिजिटल संसाधन/सेवाओं की उपलब्धता
  • भागीदारी पूर्ण प्रशासन के लिये सहयोगात्मक डिजिटल प्लेटफॉर्म 
  • क्लाउड के ज़रिये व्यक्ति विशेषों के लिये सभी हकदारियों की संपर्क स्थलीयता  

अर्थव्यवस्था और डिजिटल इंडिया

  • भारत को एक ट्रिलियन डॉलर वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और डाटा संरक्षण नीति में बदलाव सहित कई अन्य नीतियाँ शुरू की जा रही हैं। 
  • विमुद्रीकरण के बाद से ही सरकार द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी क्रम में देश में डिजिटल इंडिया, ई-गवर्नेंस जैसे मिशनों को तेज़ी से लागू किया जा रहा है। 
  • इस लक्ष्य को 2025 तक हासिल करने के लिये कार्ययोजना बनाई गई है। 
  • अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्तमान में आईटी/आईटीईएस क्षेत्र (350 अरब डॉलर) और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र (300 अरब डॉलर) से अधिकतम योगदान के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था 2025 तक 1 ट्रिलियन डालर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बन सकती है। 

(टीम दृष्टि इनपुट)

आवश्यक अवसंरचना का अभाव 

एसोचेम और डेलाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार नीतियों में अस्पष्टता व ढाँचागत कठिनाइयों के चलते महत्त्वाकांक्षी डिजिटल इंडिया परियोजना के सफल कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के मामले में अनेक चुनौतियाँ हैं। इसके अलावा बार-बार नेटवर्क कनेक्टिविटी टूट जाना या फिर सर्वर का ठप हो जाना भी कठिनाई पैदा करता है।

वाई-फाई हॉटस्पॉट की कमी: डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के सामने सबसे बड़ी चुनौती ढांचागत विकास में हो रही देरी है। एक अनुमान के अनुसार भारत को बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिये 80 लाख से अधिक वाई-फाई हॉटस्पॉट की ज़रूरत होगी, जबकि इस समय इनकी उपलब्धता बहुत कम है।

डिजिटल गैप: डिजिटल इंडिया के लिये सुदूर गाँवों में भी पर्याप्त कनेक्टिविटी उपलब्ध कराकर डिजिटल गैप को खत्म करने की ज़रूरत है। देश में अब भी 50 हज़ार से अधिक गाँव ऐसे हैं, जहां मोबाइल  कनेक्टिविटी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। गाँव एवं शहरों के बीच के डिजिटल गैप को दूर करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल सेवाओं के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने हेतु पहल करने की आवश्यकता है।

नीतिगत बाधाएँ: टैक्सेशन व अन्य नियामकीय दिशा-निर्देशों से जुड़े कुछ मुद्दे भी डिजिटल इंडिया की राह में बाधा बन जाते हैं। कुछ सामान्य नीतिगत बाधाओं में से एक एफडीआई नीतियों में स्पष्टता का अभाव भी है जिसने ई-कॉमर्स सेक्टर के विकास को प्रभावित किया है। नीतिगत ढाँचे में अस्पष्टता के कारण ही उबर और ओला जैसी परिवहन सेवा कंपनियों का बार-बार स्थानीय सरकारों से विवाद होता है।

 स्लो इंटरनेट 
  • एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, विशाल उपभोक्ता आधार होने के बावजूद भारत में इंटरनेट की स्पीड अन्य देशों की तुलना में काफी कम है, फिलहाल यह औसतन 4 Mbps है। 
  • भारत में इस समय 86.3 प्रतिशत 4G इंटरनेट की कवरेज है जो इसे इस मामले में टॉप देशों में शामिल करता है, लेकिन स्पीड के मामले में भारत 88 देशों में काफी पिछड़ा है। 
  • 2017 में भारत में 4G इंटरनेट की औसत स्पीड 6.07 Mbps रही और वह अपने पड़ोसी देशों से भी पीछे रहा। जहां पाकिस्तान में 4G की औसत स्पीड 13.56 Mbps रही, वहीं श्रीलंका में यह 13.95 Mbps रही। 
  • पूरी दुनिया में 4G इंटरनेट की औसत स्पीड (16.9 Mbps) भारत से कहीं अधिक है। 
  • दुनिया का कोई भी देश अभी तक 50 Mbps की औसत 4G स्पीड तक नहीं पहुँच सका है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

 साइबर सुरक्षा का मुद्दा: भारत का मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी कानून साइबर अपराधों को रोकने के लिहाज़ से बहुत प्रभावी नहीं है। एटीएम कार्ड की क्लोनिंग के अलावा, बैंक अकाउंट का हैक हो जाना, आपका डेटा और गोपनीय जानकारी हैकर्स तक पहुँच जाने की शिकायतें समय-समय पर सामने आती रहती हैं। ऐसे में जब तक साइबर अपराधों को लेकर कानून में कठोर प्रावधान नहीं होंगे, तब तक  डिजिटल इंडिया को वह रफ्तार नहीं मिल पाएगी, जो अपेक्षित है।

डेटा की सुरक्षा का मुद्दा: यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या इंटरनेट पर हमारी जानकारी और पहचान सुरक्षित है? देश के मौजूदा कानून के मुताबिक सभी सर्विस प्रोवाइडरों को अपने इंटरनेट और मोबाइल ग्राहकों की जानकारी सुरक्षा एजेंसियों को देनी होती है। इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (आईएसपी) स्वयं को केवल  इंटरनेट ग्राहक तक पहुँचाने का हाईवे मानते हैं। उनका कहना है कि इंटरनेट यूज़र के मेल या सोशल नेटवर्किंग साइट पर दी जानकारी केवल विदेशी कंपनियों के सर्वर में होती है और भारत में उसे डिक्रिप्ट नहीं किया जा सकता। एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन को बढ़ावा देकर भेजने वाले (Sender) और पाने वाले (Receiver) के बीच में डेटा को सुरक्षित बनाया जा सकता है।

इंटरनेट इन इंडिया 2017 रिपोर्ट 

  • हाल ही में इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की 'इंटरनेट इन इंडिया 2017' रिपोर्ट  के अनुसार भारत में अधिकांश इंटरनेट यूज़र्स शहरी इलाकों के हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी यह संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 
  • दिसंबर 2016 के मुकाबले शहरी इलाकों में यूज़र्स की संख्या में जहाँ 9.66 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं ग्रामीण इलाकों में इसी दौरान 14.11 प्रतिशत यूज़र्स बढ़े हैं। लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या काफी कम है।
  • इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में इंटरनेट की दुनिया अभी भी पुरुष प्रधान है। भारत में केवल लगभग 14 करोड़ महिलाएँ ही इंटरनेट इस्तेमाल कर रही हैं, जो देश में कुल इंटरनेट यूज़र्स की संख्या का लगभग 30 प्रतिशत ही है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दिसंबर 2017 में इंटरनेट यूज़र्स की संख्या लगभग 48 करोड़ थी और इसमें दिसंबर 2016 की तुलना में 11.34 प्रतिशत वृद्धि हुई है। 
  • यह भी अनुमान लगाया गया है कि जून 2018 तक इंटरनेट यूज़र्स की संख्या 50 करोड़ को पार कर सकती है।
  • अभी भारत 1.2 अरब से अधिक ग्राहक आधार और लगभग 450 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाज़ार है। 
  • आज भारत के 34 प्रतिशत लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 7 वर्ष पहले यह आँकड़ा केवल 10 प्रतिशत था।
  • इनमें से लगभग 35 प्रतिशत स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं और 2020 तक यह संख्या बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है।

(टीम दृष्टि इनपुट) 

डिजिटल नवाचार का केंद्र बन रहा भारत

डिजिटल इंडिया देश में डिजिटल तरीके से सेवाएं उपलब्ध कराने के लिये आवश्यक डिजिटल आधारभूत ढाँचा खड़ा करते हुए डिजिटल सशक्तीकरण का माध्यम बन रहा है। एक ऐसे विश्व में जहां अब भौगोलिक दूरियाँ बेहतर भविष्य के निर्माण में कोई बाधा नहीं रह गई हैं, भारत हर क्षेत्र में डिजिटल नवाचार का सशक्त केंद्र बन चुका है। ऑप्टिकल फाइबर से जुड़े एक लाख से अधिक गाँव, 121 करोड़ मोबाइल फोन, 120 करोड़ आधार और 50 करोड़ इंटरनेट सेवा का उपयोग करने वाले लोगों के साथ भारत अब दुनिया में प्रौद्योगिकी के साथ सहजता से जुड़ी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है।

डिजिटल साक्षरता की ज़रूरत

व्यक्ति और समुदायों द्वारा सामान्य जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में सार्थक कार्यों के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की क्षमता को डिजिटल साक्षरता  कहा जाता है।

राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता अभियान: यह योजना देशभर में 52.5 लाख लोगों को प्रशिक्षण देने के लिये चलाई जा रही है, जिसके तहत देशभर में सभी राज्यों/केंद्रशासित क्षेत्रों में अधिकृत राशन डीलरों सहित आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को सामान्य सूचना प्रौद्योगिकी (IT)' का ज्ञान और प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे ये लोग सरकार की ई-सेवाओं से भली-भाँति जुड़कर स्वयं तो उनका लाभ उठाते ही हैं, साथ ही इन्हें अन्य लोगों तक बेहतर तरीके से पहुँचाने का काम भी करते हैं।

प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान: भारत सरकार प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान चला रही है, जिसका मुख्य उद्देश्य 2019 तक समस्त राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 6 करोड़ व्यक्तियों को डिजिटल साक्षर बनाना तथा प्रत्येक उपयुक्त परिवारों के एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर कर 40 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को इस योजना से जोड़ना है। इस अभियान के तहत एक करोड़ लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

भारतनेट

भारतनेट परियोजना में 2018 के अंत तक देश में विकसित गीगाबाइट पेसिव ऑप्टिकल नेटवर्क के ज़रिये 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को 100 Mbps की स्पीड पर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। यह विश्व की सबसे बड़ी डिजिटल कनेक्टिविटी परियोजना है और अनेक आयामों में विशिष्ट है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वसनीय और गुणवत्तायुक्त ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगी। इस परियोजना को क्रियान्वित किया जा रहा है और इसके पहले चरण में भूमिगत ऑप्टिकल फाइबर में शेष 1.5 लाख ग्राम पंचायतों से भूमिगत फाइबर, बिजली के तारों के ऊपर फाइबर, रेडियो और सेटेलाइट मीडिया का इस्तेमाल करते हुए कनेक्टिविटी प्रदान की जाएगी। दूसरे चरण का कार्य मार्च 2019 तक पूरा होने की संभावना है।

डिजिटल ग्राम योजना

गाँवों के लिये यह नई योजना है और इसके पहले चरण में एक साल में 5 हजार गाँवों को डिजिटल बनाने का लक्ष्य रखा गया है। डिजिटल ग्राम के लिये निम्नलिखित मानक तय किये गए हैं, जिसके आधार पर किसी गाँव को डिजिटल घोषित किया जा सकता है।

टेली-मेडिसिन सर्विस: इसके तहत गाँव का निकटतम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उस गाँव से डिजिटल रूप से जुड़ा रहेगा। इसके माध्यम से मरीज़ और उनके परिजनों को डिजिटल तरीके से स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी तथा साथ ही ऑनलाइन सलाह भी मिलेगी।

टेली-एजुकेशन सर्विस: गाँव के सभी स्कूलों को स्कूल के अलावा ऑनलाइन एजुकेशन की सुविधा भी दी जाएगी, साथ ही बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएँ भी लगेंगी।

वाई-फाई हॉटस्पॉट सर्विस: मोबाइल वाई-फाई हॉटस्पॉट रहना जरूरी होगा। हर दिन कम से कम 5 घंटे मुफ्त वाई-फाई सुविधा मिलेगी। 

एलईडी लाइट: डिजिटल ग्राम में हाई मास्ट एलईडी लाइट ऐसी जगहों पर लगेगी, जहाँ से पूरी रात गांवों में रोशनी हो सके।

कौशल विकास: हर गाँव में कौशल विकास की स्थायी टीम काम करेगी, जो गाँव वालों को डिजिटल कामों में मदद करेगी।

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है तथा इससे यह सुनिश्चित हो रहा है कि सरकारी सेवाएँ नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध हों। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का लक्ष्य भारत को डिजिटल रूप से एक अधिकार संपन्न समाज बनाने एवं नए भारत के एक विकास इंजन के रूप में सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में रूपांतरित करना है। इससे सरकारी व प्रशासनिक सेवाओं को आम लोगों तक पहुँचाने के साथ ही सार्वजनिक जवाबदेही को भी सुनिश्चित किया जा रहा है। भारत को सॉफ्टवेयर की महाशक्ति माना जाता है, नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक सरकारी सेवाओं की उपलब्धता अभी भी अपेक्षाकृत रूप से बहुत कम है। देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण एवं ई-गवर्नेंस में कारगर प्रगति सुनिश्चित करने पर और अधिक ज़ोर दिये जाने की आवश्यकता है। डिजिटल इंडिया विज़न इस पहल को और अधिक गति  देने तथा इसकी प्रगति के लिये सघन प्रोत्साहन उपलब्ध कराकर समावेशी विकास को बढ़ावा देता है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स सेवाएँ, उत्पाद, उपकरण, विनिर्माण एवं रोज़गार के अवसर शामिल हैं।

21वीं सदी में भारत को अपने नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करना चाहिये, जिससे सरकार और उसकी सेवाएँ नागरिकों के दरवाजे तक पहुँचें तथा दीर्घकालिक सकारात्मक प्रभाव की दिशा में योगदान दें।