भारत-चीन राजनयिक संबंध | 24 Dec 2019
वर्ष 2020 में भारत और चीन 70 आयोजनों (सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापार संवर्द्धन संबंधी कार्यक्रम) के साथ अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगाँठ मनाएंगे। 11-12 अक्तूबर, 2019 को मामल्लपुरम में आयोजित दूसरे भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के दौरान इन कार्यक्रमों को तय किया गया। वर्ष 1950 में समाजवादी देशों के समूह से बाहर भारत वह पहला देश था, जिसने चीन (People’s Republic of China) के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये।
संसदीय कार्यक्रमों की मेज़बानी के अतिरिक्त दोनों देश अपनी सभ्यता में समानता का पता लगाने के लिये विभिन्न गतिविधियों का कार्यान्वयन करेंगे। इसके साथ ही व्यावसायिक एवं व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के लिये चीन, भारत-चीन व्यापार एवं निवेश सहयोग मंच (India-China Trade and Investment Cooperation Forum) और भारत में द्वितीय भारत-चीन औषधि विनियमन मंच (India-China Drug Regulation Forum) का आयोजन करेगा।
भारत-चीन औषधि विनियमन (India-China Drug Regulation)
- भारत-चीन औषधि विनियमन की प्रथम संगोष्ठी का आयोजन 21 जून, 2019 को शंघाई, चीन में किया गया था।
- यह संगोष्ठी चीन में भारतीय दवाओं के निर्यात पर ध्यान देने के साथ ही दवा क्षेत्र (Pharmaceuticals Sector) में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित थी।
- चीन अपनी ‘स्वस्थ चीन 2030’ (Healthy China 2030) नीति के तहत अपने नागरिकों को सस्ते मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण दवाएँ उपलब्ध कराने के लिये प्रतिबद्ध है और भारत बेहद कम मूल्य पर उच्च गुणवत्तायुक्त जेनेरिक दवाएँ प्रदान करने वाले ‘वैश्विक दवाखाने’ (Pharmacy of the World) के रूप में उभरा है (2017-18 में लगभग 17.3 बिलियन डॉलर मूल्य की दवाओं का निर्यात)।
इस पृष्ठभूमि में चीन दवा क्षेत्र में भारत के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने की इच्छा रखता है।
वर्तमान चीन-भारत संबंध
- चीन एवं भारत सभ्यता के दो रूपों का प्रतिनिधित्व करने वाली दो उभरती हुई चिरस्थायी शक्तियाँ विश्व राजनीति में एक जटिल और गतिशील संबंध को प्रकट करती हैं।
- हाल के दिनों में भारत और चीन के संबंध और व्यापक हुए हैं एवं इसे दोनों देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक संबंधों की वृद्धि तथा बेहतर वाणिज्यिक व आर्थिक संबंधों में रूपांतरित किया जा सकता है।
- हाल ही में आधिकारिक स्तर पर दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलन ‘वुहान शिखर सम्मेलन’ (Wuhan Summit 2018) एवं ‘चेन्नई कनेक्ट’ (Chennai Connect 2019) संपन्न हुए हैं। इसके अलावा दोनों देशों के बीच अब नियमित रूप से द्विपक्षीय/बहुपक्षीय मंचों पर उच्चस्तरीय वार्ताएँ होने लगी हैं।
- नरम कूटनीति के अंतर्गत पर्यटन में वृद्धि (चीनी पर्यटकों को 5 वर्षों तक कई बार आने-जाने की अनुमति के साथ वीज़ा प्रदान करना), सशस्त्र बलों के नियमित दौरे एवं नौसैनिक गतिविधियाँ, 10 सूत्रीय समझौता , 2018, दूसरे अनौपचारिक बैठक में 70 कार्यक्रमों के आयोजन का निर्णय, इत्यादि दोनों देशों के संबंधों में उत्तरोत्तर प्रगति को सूचित करता है।
- यह दोनों देशों के बीच बढ़ती हुई संलग्नता पर प्रकाश डालता है। यद्यपि कुछ प्रमुख मुद्दों पर विवाद अभी भी कायम है।
10-सूत्रीय समझौता (10 Pillars Agreement)
- दिसंबर 2018 में भारत और चीन के बीच लोगों में सांस्कृतिक संबंध एवं आपसी संपर्क को बढ़ाने हेतु दोनों देशों ने सहयोग के 10 स्तंभों को चिह्नित किया।
- ये 10 स्तंभ हैं - सांस्कृतिक आदान-प्रदान, फिल्मों और टेलीविज़न में सहयोग, संग्रहालय प्रबंधन, खेल, दोनों देशों में युवा-दल की यात्राएँ, पर्यटन, राज्य और शहर स्तरीय आदान-प्रदान, पारंपरिक चिकित्सा, योग एवं शिक्षा (जैसे-भारत में चीनी भाषा का शिक्षण)।
अंतर्निहित मुद्दे
- कुछ बुनियादी मुद्दों पर दोनों देशों के बीच एक बड़ी खाई भी मौजूद है:
- सीमा/क्षेत्रीय विवाद (जैसे- पोंगोंग त्सो झील का विवाद 2019, डोकलाम गतिरोध 2017, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर विवाद)।
- धारा 370 के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने को लेकर चीनी सक्रियता व प्रतिक्रिया ।
- सीमा पार आतंकवाद।
- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) में भारत का प्रवेश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता आदि पर चीन का प्रतिकूल रुख।
- भारत को लेकर आशंका: चीन स्वयं को वर्ष 2050 तक विश्व की सर्वश्रेष्ठ शासकीय शक्ति के रूप में प्रकट करना चाहता है और इसलिये वह क्षेत्र (दक्षिण एशिया) में एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में भारत के बढ़ते प्रभुत्व को लेकर सहज नहीं है।
- चीन भारत से सर्वोत्तम सहयोग की आकांक्षा की नीति की अपेक्षा रखता है और जिसमें वह भारत से अधिक-से-अधिक सहयोग की उम्मीद करता है जैसा कि 1950 के दशक के आसपास हिंदी-चीनी भाई-भाई के दौर से लेकर स्थिर सीमा की मांग या चीनी बेल्ट एंड रोड योजना (Belt and Road Initiative) में शामिल होने की मांग आदि के रूप में देखा जा सकता है। जबकि चीन जवाब में भारत के प्रति ऐसी ही प्रतिबद्धता नहीं दर्शाता है।
- पाकिस्तान को लेकर चीन का रुख: चीन ने भारत को दक्षिण एशिया क्षेत्र तक सीमित रखने और एक वैश्विक प्रतियोगी के रूप में उसके उदय को बाधित करने के लिये दशकों से पाकिस्तान के इस्तेमाल की रणनीति अपना रखी है। सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन, पाकिस्तान संरक्षित आतंकवादियों को वैश्विक स्तर नामित करने के विषय पर चीन का बहाना तथा विरोध आदि उदाहरणों से इसकी पुष्टि की जा सकती है।
वैश्विक मंचों पर चुनौतियों का सामना
वैश्विक परिदृश्य में भारत और चीन विभिन्न वैश्विक मंचों पर सहयोगी के रूप में सक्रिय हैं एवं विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर परस्पर सहमति या असहमति प्रदर्शित करते रहे हैं।
सहमति के क्षेत्र
- जलवायु परिवर्तन: हाल ही में आयोजित BASIC (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) की मंत्रिस्तरीय बैठक में इन देशों के मंत्रियों ने समान लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व (Common But Differenciated Responsibilities) की अवधारणा का समर्थन किया है, जो जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने की प्रत्येक देश की भिन्न क्षमताओं और भिन्न उत्तरदायित्वों को चिन्हित करती है।
- आर्थिक: चीन और अमेरिका के बीच जारी व्यापार युद्ध तथाबढ़ते संरक्षणवाद की पृष्ठभूमि में हाल ही में संपन्न हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (ब्रासीलिया घोषणा पत्र) में बहुपक्षवाद (Multilateralism) का समर्थन करने और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका की सराहना करने का आह्वान किया गया।
- बहुपक्षीय मंच: दोनों देश संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और इसकी गैर-हस्तक्षेप की नीति में विश्वास करते हैं, शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) और पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन (East Asian Summit) में योगदान कर रहे हैं, साथ ही विश्व व्यापार संगठन (WTO) में G-7 देशों के विरुद्ध संघर्षरत हैं।
असहमति के क्षेत्र
- हाल में संपन्न हुए तीसरे क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) सम्मेलन में चीन ने चालाकी से भारतीय बाज़ार में पहुँच बनाने का असफल प्रयत्न किया।
- चीन ने भारतीय महासागर में भारत (QUAD का सदस्य) की भूमिका पर भी असंतोष ज़ाहिर किया है।
अन्य घरेलू चुनौतियाँ
- वर्तमान अमेरिकी-चीनी व्यापार युद्ध से चीन की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है।
- इसके साथ ही हॉन्गकॉन्ग में विरोध-प्रदर्शन और शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों पर कार्रवाई जैसे घरेलू मुद्दे चीन को प्रभावित कर रहे हैं।
- बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा क्षेत्र में बढ़ते उग्रवाद के कारण चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China Pakistan Economic Corridor- CPEC) को खतरे की आशंका के चलते भी चीन चिंतित है।
आगे की राह
- सामरिक: सीमाओं को परिभाषित करने के साथ ही उनके सीमांकन और परिसीमन किये जाने की आवश्यकता है ताकि आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों के भय को दूर किया जा सके और संबंधों को मज़बूत किया जा सके।
- आर्थिक मोर्चे पर: पिछले दस वर्षों के द्विपक्षीय व्यापार में चीन ने भारत के मुकाबले $750 बिलियन की बढ़त बना ली है, जिसे कम करना बहुत आवश्यक है। व्यापार घाटे को कम करने में सेवा क्षेत्र एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
- चीन को अपने बाज़ार में फार्मास्यूटिकल्स और सॉफ्टवेयर पैकेज़ जैसी भारतीय सेवाओं की अनुमति देकर एक न्यायपूर्ण अवसर का निर्माण करना होगा। इसके अतिरिक्त, RCEP में दोनों देशों के बीच समान वितरण और आपसी मतभेदों को दूर करने की आवश्यकता है।
- दोनों देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करने एवं आपसी संबंध को आगे बढ़ाने के लिये अपनी सॉफ्ट पॉवर (Soft Power) का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं।
- पर्यटन: भारत आने वाले चीनी पर्यटकों की तुलना में चीन जाने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या अधिक है। अत: सांस्कृतिक संपर्क को बढ़ाया जाना चाहिये ताकि सहयोग के क्षेत्रों का निर्माण किया जा सके और उन व्यवसायों को बढ़ाया जा सके जिनके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय स्तर पर विवादों का समाधान हो सकता है।
- शिक्षा के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिये और विशेष रूप से बौद्ध तीर्थ स्थलों (Buddhist Circuit) एवं आध्यात्म से जुड़ी यात्राओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
भारत और चीन के बीच की समस्याओं को अल्पावधि में हल किया जाना कठिन है, लेकिन मौजूदा रणनीतिक अंतर को न्यूनतम करने, मतभेदों को कम करने और यथास्थिति बनाए रखने जैसे उपायों से समय के साथ आपसी संबंधों को और बेहतर बनाया जा सकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये सरकार से लेकर आम लोगों तक और शिक्षा संस्थानों से लेकर व्यवसाय तक प्रत्येक स्तर पर चीन के साथ संलग्नता में वृद्धि हेतु लक्ष्य तय करना होगा।
अभ्यास प्रश्न: भारत और चीन के मध्य संबंधों में प्रगाढ़ता तो आ रही है किंतु अब भी दोनों देशों में अच्छी मित्रता नहीं है। कथन की समीक्षा कीजिये।