द बिग पिक्चर : भारत की चीन-पाक नीति | 08 Jan 2019
संदर्भ
वर्ष के अपने पहले टीवी साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के पड़ोसी देशों की तुलना में चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों को अधिक महत्त्व देने की बात कही है। चीन के साथ संबंधों के संदर्भ में मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच मतभेदों को दूर करने के लिये नए अवसर पैदा हुए हैं। सभी विषयों पर अपने पड़ोसियों से बातचीत करना भारत की नीति रही है और भारत बातचीत करने के लिये सदैव तैयार है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आतंकवाद बंद होना चाहिये क्योंकि बम, बंदूक की आवाज़ में बातचीत सुनाई नहीं देती। भारत सीमा-पार आतंकवाद पर लगातार दबाव बनाए हुए है। आज आतंकवादियों को मदद करने वाला पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है और आतंकी घटनाओं में भी कमी आई है।
भारत-पाक संबंध और बाधाएँ
- नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारत के पड़ोसी देशों को अपनी विदेश नीति में शीर्ष प्राथमिकता पर रखा है।
- गौरतलब है कि पाकिस्तान के साथ भारत का विभिन्न मुद्दों पर विवाद है, जैसे- कश्मीर, सियाचिन, सिंधु नदी जल विवाद, कच्छ का रण या सरक्रीक विवाद।
- वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री ने लाहौर की यात्रा की, किंतु पठानकोट हमला और सीमा-पार आतंकवाद के कारण संबंधों में गतिरोध उत्पन्न हुआ।
- इसी क्रम में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ और भारत ने पाकिस्तान में आयोजित ‘सार्क सम्मेलन’ का बहिष्कार किया।
- चीन ने पाकिस्तान में ‘ग्वादर पत्तन’ का निर्माण किया है। चीन के द्वारा ‘वन रोड वन बेल्ट’ परियोजना के अंतर्गत ‘चीन पाकिस्तान-आर्थिक’ गलियारा का निर्माण किया जा रहा है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर जा रहा है, जिसे भारत अपना क्षेत्र मानता है।
- इस क्षेत्र में चीनी अधिकारियों और सैनिकों को तैनात किया जा रहा है जो भारतीय सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा साबित हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त चीन-रूस संबंधों के कारण पाकिस्तान की रूस के साथ भी नजदीकियाँ बढ़ रही हैं। चीन-पाकिस्तान-रूस संबंधों के कारण भारतीय हित प्रभावित हो रहे हैं।
- मई 2014 में एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में मॉरीशस के साथ दक्षिण एशिया एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (SAARC) देशों के सात अन्य नेताओं को आमंत्रित किया। अगले दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी शिरकत की।
- प्रधानमंत्री मोदी की नज़र में पड़ोसी देशों की अहमियत स्पष्ट है। पिछले नेताओं के विपरीत वह घरेलू व्यापार में वृद्धि और विकास के लिये विदेशी निवेश, व्यापार और प्रौद्योगिकी हासिल करने के साधन के रूप में विदेश नीति का उपयोग करने के लिये उत्सुक हैं।
- लेकिन यह एक कठिन और जटिल कार्य होगा, विशेष रूप से भारत के दो शक्तिशाली परमाणु-शस्त्र संपन्न पड़ोसी देशों, पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंध राजनीतिक और सैन्य गतिरोधों के कारण तनावपूर्ण रहे हैं।
- वर्तमान में पाकिस्तान, भुगतान संतुलन जैसे संकट का सामना कर रहा है और पाकिस्तान पर ऋण का बोझ बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान के पुनर्निर्माण एवं आर्थिक विकास में भारत सहयोगी की भूमिका निभा सकता है।
- हाल ही में पाकिस्तानी प्रशासन ने ‘करतारपुर कॉरिडोर’ बनाने का ऐलान किया है जिसका भारत ने समर्थन किया। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ ही नागरिकों के मध्य संपर्क अर्थात् ‘पीपुल टू पीपुल कांटेक्ट’ होगा तथा संबंधों में मधुरता तथा विश्वास बढ़ने की उम्मीद है।
भारत-चीन संबंध और बाधाएँ
- प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का एहसास है कि तेज़ी से आर्थिक विकास के अपने घरेलू एजेंडे को स्थिर और अनुकूल पड़ोसियों को साथ लिये बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।
- दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती पैठ को लेकर भी भारत सतर्क है। हालाँकि इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति भारत द्वारा पूरी तरह से टालने योग्य या अवांछनीय नहीं है, लेकिन भारत की कुछ रणनीतिक चिंताएँ ज़रूर हैं।
- चीन ने ‘वन बेल्ट वन रोड’ जैसी परियोजनाओं के माध्यम से दक्षिण एशियाई देशों में अपनी सॉफ्ट पॉवर को बढ़ाया है।
- भारत के चारों ओर रणनीतिक स्थानों तथा हिंद महासागर के महत्त्वपूर्ण संचार मार्गों पर चीन लगातार बुनियादी ढाँचे, विशेष रूप से बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है और दक्षिण एशिया में भारत को घेरने का प्रयास कर रहा है जिसे अक्सर घेरने की रणनीति या 'मोतियों की माला' कहा जाता है।
- चीन ने पाकिस्तान के सदाबहार मित्र के रूप में उभरने के अलावा, भारत के अधिकांश पड़ोसियों पर गहरी पकड़ बनाई है। चीन ने हाल ही में जिबूती में सैनिक अड्डे का निर्माण किया है।
- भारत के द्वारा चीन के साथ ‘डीलिंकिंग’ की नीति को अपनाया गया है, जिसके तहत आर्थिक संबंधों और सीमा विवाद को अलग-अलग देखने का प्रयास किया गया है।
- वर्तमान में भारत-चीन द्वीपक्षीय व्यापार लगभग 76 बिलियन डॉलर का हो गया है। भारत का सबसे बड़ा द्वीपक्षीय भागीदार चीन है।
- हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने के लिये भारत ने सामरिक और प्रैग्मैटिक नीति के तहत ‘मालाबार सैन्य अभ्यास’ में जापान को सम्मिलित किया, तो वहीँ क्वैड (अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, भारत) में शामिल हुआ।
- दोनों देशों के मध्य अनेक क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाएँ हैं। हाल की वार्ताओं में दोनों देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि भारत-चीन संबंधों को नया आयाम दिया जाए।
पाकिस्तान : एक कठिन चुनौती
- आज़ादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध कश्मीर को लेकर और एक बांग्लादेश को लेकर लड़े गए। 1998 में जब दोनों देशों ने परमाणु हथियार हासिल कर लिये तब से यह कम तीव्रता वाले सैन्य टकराव में बदल गया।
- विवादित कश्मीर क्षेत्र को विभाजित करने वाली नियंत्रण रेखा (LOC) पर पाकिस्तान द्वारा हिंसा और गोलीबारी के कारण द्विपक्षीय शांति वार्ता को अंजाम तक ले जाना मोदी सरकार के लिये बहुत मुश्किल है।
- पाकिस्तान के आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा (LeT) या जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने 2008 में जिस तरह से मुंबई हमले को अंजाम दिया था वैसे हमले पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह ही कर सकते हैं।
- भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठानों का मानना है कि इस तरह के किसी भी हमले की योजना पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठान द्वारा विशेष रूप से अपने शक्तिशाली खुफिया संगठन, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) द्वारा बनाई जाती है।
- मोदी ने पाकिस्तान के प्रति भारत के रुख को सख्त कर दिया है। उन्होंने भारत में पाकिस्तानी उच्चायुक्त और कश्मीरी अलगाववादी हुर्रियत संगठन के बीच अगस्त 2014 में निर्धारित विदेश सचिव स्तर की वार्ता को रद्द कर दिया।
- इसके साथ ही भारत ने भी जान-बूझकर नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर फायरिंग तेज़ कर दी है। हालाँकि इससे भारत को अधिक लाभ नहीं मिला है।
- पाकिस्तान के साथ क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने तथा आपसी विश्वास हासिल करने के लिये भारत को कुछ हट कर सोचने की ज़रूरत है।
- पाकिस्तान की नागरिक सरकार को मज़बूत करने के साथ-साथ भारतीय प्रधानमंत्री को पाकिस्तान की सेना के साथ जुड़ने की ज़रूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके है कि भारत के प्रति उसकी मंशा क्या है।
- पाकिस्तान की आर्मी भारत के साथ शत्रुता की नीति को नहीं त्यागना चाहती है और कायरतापूर्ण हमले रोकने की इच्छुक नहीं दिखाई देती लेकिन जब तक ऐसी दुर्भावनाओं को रोका नहीं जाता, सार्थक वार्ता हो पाना संभव नहीं है।
- सरकार ने अब तक के कार्यकाल में संबंधों को पटरी पर लाने के लिये उचित प्रयास किये हैं। प्रधानमंत्री लाहौर तक गए लेकिन पाकिस्तान की जो नकारात्मक नीति है वह पारंपरिक है और चली आ रही है।
- 2016 में पठानकोट और उसके बाद उड़ी में आतंकी हमलों का कारण पाकिस्तान ही है।
- ऐसे में प्रधानमंत्री का यह कहना कि बम और बंदूक की आवाज़ में बातचीत की प्रक्रिया नहीं हो सकती, उचित ही है। आतंकवाद और वार्ता दोनों एक साथ नहीं हो सकती।
आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर दबाव बनाने का असर
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के मुद्दे को प्रमुखता से रखना भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकता में रहा है। इन मंचों में पाकिस्तान पर दबाव बनाने की बात की गई है जिसका असर विगत वर्षों में देखने को मिला है।
- अगर द्वीपक्षीय स्तर पर देखें तो आतंकवाद के मुद्दे पर सभी देश भारत के साथ आना चाहते हैं यानी भारत के साथ खड़े हैं।
- पाकिस्तान के जो खास मित्र देश हुआ करते थे उनको भी भारत समझाने में सफल हुआ है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद का साथ नहीं छोड़ेगा तब तक पाकिस्तान और भारत के बीच संबंध सुधर नहीं सकते।
- इससे कहीं-न-कहीं ‘टर्म्स ऑफ़ इंगेजमेंट’ में बदलाव आया है और पाकिस्तान अपने आपको अलग-थलग महसूस करने लगा है।
- पिछले ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों को लेकर उद्घोषणा की गई थी।
- पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की मोदी सरकार की नीति उतनी सफल नहीं हो पा रही है क्योंकि इस्लामाबाद ने बीजिंग, मास्को और तेहरान को शामिल करने के लिये अपने राजनयिक प्रयास बढ़ा दिये हैं।
‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neibourhood First Policy)
- तेज़ी से बदलते परिदृश्य के साथ बाहरी मामलों से निपटने के लिये नीतियाँ भी बदलती रहती हैं। अतः भारत भी समय-समय पर अपनी विदेश नीति में ऐसे बदलाव करता रहता है ताकि समयानुसार स्थितियों का सर्वाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।
- भारत ने वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण की आवश्यकता को संबोधित करने के लिये ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neighbourhood First Policy) को वर्ष 2005 में प्रारंभ किया।
- ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ का अर्थ अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने से है अर्थात ‘पड़ोस पहले’ (Neighbourhood First)।
- इस नीति के तहत सीमा क्षेत्रों के विकास, क्षेत्र की बेहतर कनेक्टिविटी एवं सांस्कृतिक विकास तथा लोगों के आपसी संपर्क को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- उल्लेखनीय है कि यह सॉफ्ट पॉवर पॉलिसी का ही एक माध्यम है।
- इस नीति के तहत शामिल महत्त्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं-
♦ इस नीति के माध्यम से भारत अपने पड़ोसी देशों तथा हिंद महासागर के द्वीपीय देशों को राजनीतिक एवं कूटनीतिक प्राथमिकता प्रदान करने का इच्छुक है।
♦ इसका उद्देश्य पड़ोसी देशों को संसाधनों, सामग्रियों तथा प्रशिक्षण के रूप में सहायता प्रदान कर समर्थन देना है।
♦ भारत की इस नीति का उद्देश्य भारत के नेतृत्व में क्षेत्रवाद के ऐसे मॉडल को प्रोत्साहित करना है जो पड़ोसी देशों के भी अनुकूल हो।
♦ वस्तुओं, लोगों, ऊर्जा, पूंजी तथा सूचना के मुक्त प्रवाह में सुधार हेतु व्यापक कनेक्टिविटी और एकीकरण।
♦ साथ ही सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से पड़ोसी देशों के साथ संपर्क स्थापित करना।
टीम दृष्टि इनपुट
पाकिस्तान की नई सरकार बदलाव लाने में कितनी सक्षम?
- आतंकवाद को लेकर भारत की चिंताओं पर कुछ ठोस ज़मीनी क़दम उठाए बिना पाकिस्तान भारत के साथ रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा सकता है।
- आतंकवाद पर पाकिस्तान की नीयत की असली परीक्षा यह होगी कि वह घोषणाओं की बजाय कुछ कदम उठाए।
- अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है जिससे यह संकेत मिलता हो कि पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ चल रहे जिहाद को बंद करने के लिये झूठे वादों से आगे बढ़कर कुछ करना चाहता है।
- सवाल यह है कि क्या इमरान ख़ान भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कोई बदलाव ला सकेंगे? या क्या वह कोई बदलाव लाने के प्रति गंभीर भी हैं? इन दोनों ही सवालों का जवाब नकारात्मक ही है।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत के बारे में कोई फ़ैसला लेने की शक्ति उनके पास नहीं है। असल खिलाड़ी तो पाकिस्तान की सेना है। इमरान ख़ान जैसे किसी व्यक्ति के पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बन जाने भर से भारत के ख़िलाफ़ भरी हुई नफ़रत समाप्त नहीं हो जाएगी।
- विशेषज्ञों का मानना है कि इमरान खान की सरकार पूर्ववर्ती सरकारों से कमज़ोर है। इसलिये इमरान खान से बहुत अधिक उम्मीद रखना ठीक नहीं होगा।
- पाकिस्तान की सेना का रवैया वैसा ही है जैसा कि पहले था, वह धार्मिक चरमपंथी सरकार की सोच को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है तथा पाकिस्तान की भारत के प्रति शत्रुता पहले की ही तरह लगातार बढ़ रही है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी अपने पड़ोसी देशों के साथ मज़बूत संबंध स्थापित करने के पक्षधर हैं और पड़ोसी देशों के साथ मधुर संबंध भारत की विदेश नीति का केंद्रीय तत्त्व रहा है। पाकिस्तान के सामने अब बड़ी चुनौती वहाँ फैले आतंकवाद से निपटने की है। चीन को भी सबक लेना चाहिये कि अगर वह किसी भी रूप में आतंकवाद का समर्थन करता है तो यह उसके लिये भी अच्छा नहीं होगा। चीन यह भी भली-भांति जानता है कि भारत पिछले तीन दशक से आतंकवाद का जो दंश झेल रहा है, उसके पीछे पाकिस्तान का ही हाथ है और दूसरी ओर वह भारत से दोस्ती की भी बात कहता है। हालाँकि सभी प्रयासों के बाद भी हाल-फ़िलहाल शांति स्थापित होने की संभावना नहीं है।