भूगोल
बढ़ता तापमान और जल संकट
- 09 Jun 2020
- 15 min read
संदर्भ:
देश में गर्मी के मौसम में तापमान में वृद्धि के साथ कई राज्यों में पानी से जुड़ी समस्याएँ भी बढ़ने लगती हैं। सरकार द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण पानी की दैनिक खपत में दोगुनी वृद्धि देखने को मिली है। इसके कारण इस बात की आशंकाएँ बढ़ी हैं कि आने वाले दिनों में जिन राज्यों में आमतौर पर पानी की कमी नहीं रही है वहाँ भी पानी की समस्याएँ बढ़ सकती हैं साथ ही देश के कुछ अन्य राज्यों में पानी की समस्याएँ पहले से अधिक गंभीर हो सकती हैं।
प्रमुख बिंदु:
- भारत में उपलब्ध जल संसाधन विश्व का लगभग 4% है जबकि देश की जनसंख्या विश्व की कुल आबादी का लगभग 18% है।
- देश में उपलब्ध जल संसाधनों की गुणवत्ता में कमी और जनसंख्या में हुई तीव्र वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में भारी गिरावट आई है।
- सरकार के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में लोगों की दैनिक ज़रूरतों के लिये होने वाला भूमिगत जल का दोहन सामान्य औसत से 2.5 गुना अधिक है।
- एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2030 तक जल की मांग में 26% की वृद्धि देखी जा सकती है जबकि जल की उपलब्धता में 29% की कमी देखी जा सकती है।
- ऐसी स्थिति में उपलब्ध जल और मांग में 55% का अंतर देखा जा सकता है जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
- वर्ष 2019 में वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट के ‘एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस’ (Aqueduct Water Risk Atlas) में भारत को ‘अत्यधिक उच्च’ जल संकट वाले देशों की सूची में 13वें स्थान पर रखा गया था।
- COVID-19 के कारण देश में लागू लॉकडाउन के बीच जहाँ देश में पानी की खपत में वृद्धि हुई है वहीं इस महामारी के कारण जल संरक्षण की योजनाओं का कार्यान्वयन भी बाधित हुआ है।
जल संकट के प्रमुख कारण:
- वर्षा का असमान वितरण :
देश में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिये आवश्यक जल में वर्षा से प्राप्त होने वाले जल की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। परंतु देश के सभी हिस्सों में वर्ष की मात्रा और अवधि में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। साथ ही लगभग सभी भागों में वर्षा कुछ ही महीनों तक सीमित रहती है, जिसे हम मानसून के रूप में जानते हैं। ऐसे में वर्षभर जल की आवश्यकता के सापेक्ष वर्षा का सीमित और अनियमित होना एक बड़ी समस्या है। - जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
जलवायु परिवहन के कारण वर्षा की मात्र पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है परंतु इसके कारण समय और भौगोलिक दृष्टि से वर्षा का वितरण प्रभावित हुआ है। उदाहरण के लिये- जलवायु परिवर्तन के कारण पहले यदि किसी क्षेत्र में एक माह में 400 मिमी. वर्ष होती थी वहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण एक ही दिन में 400 मिमी. वर्षा हो जाती है और अगले 10 दिनों तक कोई वर्षा नहीं होती। इससे होने वाली तात्कालिक क्षति के अतिरिक्त जल संरक्षण की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है। - प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन:
- 1960 के दशक में हरित क्रांति के तहत सिंचाई तकनीकों को नवीनीकृत करने पर विशेष ध्यान दिया गया और ग्रामीण क्षेत्रों तक सस्ती दरों पर विद्युत की पहुँच सुनिश्चित की गई, परंतु इससे कृषि उपज हेतु भूमिगत जल के अनियंत्रित को बढ़ावा मिला।
- वर्तमान में दैनिक जीवन में जल की कुल मांग का 80-85% कृषि क्षेत्र में प्रयोग होता है। कृषि क्षेत्र में जल के प्रयोग के प्रति यह व्यवहार भविष्य में एक बड़े संकट का कारण बन सकता है।
- कृषि भूमि और औद्योगिक इकाईयों के विस्तार के साथ आर्द्रभूमि (Wetland) की संख्या में कमी हुई है जिससे जल संरक्षण के प्राकृतिक तंत्र को काफी क्षति हुई है।
- प्रदूषण:
- COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु देशभर में लागू लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक प्रदूषण में भारी गिरावट हुई है और इसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश के सभी भागों में देखने को मिला है।
- औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषित जल से वनस्पतियाँ और अन्य सूक्ष्म प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं, जिससे नदियों के प्राकृतिक तंत्र को क्षति होती है।
- अतिक्रमण:
- वर्ष 2015-16 में शहरी विकास मंत्रालय द्वारा लोकसभा की जल संरक्षण पर स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत एक रिपोर्ट में देश के विभिन्न शहरी क्षेत्रों में जल संसाधनों के अतिक्रमण की जानकारी दी गई थी, इस रिपोर्ट के अनुसार देश के अधिकांश राज्यों में तालाबों और अन्य जल संसाधनों में अतिक्रमण के मामले देखे गए।
- लगभग सभी राज्यों में अतिक्रमण का कारण कृषि भूमि में विस्तार, बढ़ती जनसंख्या का दबाव और शहरीकरण ही थे।
जल संकट के दुष्परिणाम:
- भूमिगत जल के स्तर में गिरावट आने से नदियों का जल इस कमी को पूरा करने में कम होने लगता है जिससे नदी का प्रवाह भी प्रभावित होता है।
- जलभृत में एकत्र हुआ जल बहुत ही साफ होता है जिससे प्रयोग करने से पहले इसके शुद्धिकरण की लागत बहुत ही कम होती है, परंतु जलस्तर की गिरावट के साथ स्वच्छ जल की उपलब्धता और अशुद्द जल से फैलने वाली बीमारियों में वृद्धि हुई है।
- साथ ही जल स्तर में गिरावट और स्वच्छ जल की अनुपलब्धता से जीव-जंतुओं में भी को भी अपना वास स्थान छोड़ना पड़ता है और वे कभी-कभी रिहायशी इलाकों की तरफ भी आ जाते हैं।
जल संरक्षण योजनाओं का प्रभाव:
- हाल के वर्षों में देश के कई हिस्सों में जल संकट की बढती समस्या को देखते हुए सरकार द्वारा जल संरक्षण की योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- देश की स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार वर्ष 1987 में, दूसरी बार वर्ष 2002 और वर्ष 2012 में बनी राष्ट्रीय जल नीति (National Water Policy) के माध्यम से जल संरक्षण से जुड़ी चुनौतियों के समाधान का प्रयास किया गया।
- केंद्र सरकार और राज्यों के द्वारा चलाई गई विभिन्न योजनाओं के परिणाम स्वरूप जलाशयों की मरम्मत तथा जल संग्रह के अन्य प्रयासों से भू-जल की उपलब्धता में सुधार हुआ है।
- उदाहरण के लिये केंद्र सरकार द्वारा संचालित जल शक्ति अभियान
- ‘राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन योजना’ (National Aquifer Mapping and Management Programme- NAQUIM)।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana-PMKSY)
- वर्ष 2008 में सिक्किम राज्य में शुरू की गई ‘धारा विकास’ योजना के तहत वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर जल संरक्षण में सफलता।
- राजस्थान सरकार द्वारा पहले से ही चलाई जा रही ‘जल स्वावलंबन अभियान’ योजना।
- आंध्र प्रदेश में ‘नीरू चेत्तु’ (Neeru Chettu)।
- तेलंगाना में ‘मिशन काकतिया’ (Mission Kakatiya)।
- बिहार में हाल ही में शुरू की गई ‘जल, जीवन, हरियाली’ जैसी योजनाएं।
- सरकार द्वारा चलाई गई विभिन्न योजनाओं के परिणाम स्वरूप पिछले वर्ष की तुलना में वर्तमान में जल की उपलब्धता के संदर्भ में स्थितियाँ बेहतर हुई हैं।
चुनौतियाँ:
- सरकार द्वारा वर्षा जल संरक्षण के कई सफल प्रयास किये गए हैं परंतु भूमिगत जल का अनियंत्रित दोहन सतत् रूप से जारी है, ऐसे में अधिक वर्षा की स्थिति में इस समस्या से निपटा जा सकता है परंतु कम वर्ष या अन्य विषम परिस्थितियों में यह एक बड़ा संकट खड़ा कर सकती है।
- देश में खाद्यान्न की कमी को दूर करें और किसानों की आया को बढ़ाने हेतु हमेशा से कृषि उपज में वृद्धि पर बल दिया जाता रहा है परंतु यदि में कृषि में नवीन वैज्ञानिक तरीकों को नहीं अपनाया जाता तो इससे जल संकट की समस्या और भी बढ़ेगी।
- वर्तमान में देश में प्रयोग होने वाले कुल जल का लगभग 10%औद्योगिक इकाईयों के द्वारा किया जाता है, इसके साथ ही इन इकाईयों से होने वाला प्रदूषण स्वच्छ जल की उपलब्धता की एक बड़ी चुनौती है।
समाधान:
- वर्तमान में कृषि क्षेत्र जल का दोहन सबसे अधिक है ऐसे में यदि कृषि में 20-30% जल की बचत कर ली जाए तो यह जल संकट की वर्तमान चुनौती से निपटने में एक बड़ी सफलता होगी।
- कृषि क्षेत्र में जल संरक्षण हेतु ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाई तथा एग्रोफोरेस्ट्री (Agroforestry) जैसे प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- प्राकृतिक जल संसाधनों के अतिक्रमण को रोक कर तथा ग्रीन कवर में वृद्धि अर्थात वनीकरण को बढ़ावा देकर भू-जल जल स्तर में सुधार किया जा सकता है।
- लॉकडाउन के दौरान घरों में प्रयोग होने वाले जल में वृद्धि देखने को मिली है, ऐसे में घरों में जल के किफायती इस्तेमाल और घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण/पुनर्प्रयोग को बढ़ावा देकर जल के दुरुपयोग को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।
- घरों और हाऊसिंग सोसायटियों के स्तर पर वर्षा के जल को संरक्षित (Rainwater Harvesting) कर जल संरक्षण को बढ़ावा देना।
- औद्योगिक जल प्रदूषण हेतु कड़े कानूनों को लागू करने के साथ प्रदूषण नियंत्रण हेतु उद्योगों को ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने पर प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
- जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से जल संरक्षण के प्रति सामाजिक सहयोग को बढ़ाना।
निष्कर्ष: पृथ्वी पर मनुष्य के अस्तित्व को बनाए रखने के लिये जल संसाधनों की रक्षा करना बहुत ही आवश्यक है। प्राकृतिक संस्थानों का संरक्षण ऐतिहासिक रूप से भारतीय जीवन शैली का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है परंतु पिछले के कुछ दशकों में देश में औद्योगिकीकरण, जनसंख्या के बढ़ते दबाव और शहरों के अनियोजित विकास से बड़ी मात्रा में जल संसाधनों का क्षरण हुआ है। लॉकडाउन के कारण जहाँ घरेलू उपयोग के लिये जल की मांग बढ़ी हुई वहीं जल संरक्षण की कई योजनाओं में भी रुकावट आई है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय शहरों की आबादी में तीव्र वृद्धि देखने को मिली है ऐसे में भविष्य में शहरों में जल की मांग काफी बढ़ सकती है, अतः वर्तमान चुनौतियों से सीख लेते हुए हमें जल के सदुपयोग और संरक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही सरकार की योजनाओं के अतिरिक्त औद्योगिक क्षेत्र, समाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य हितधारकों को सामूहिक रूप से इस अभियान में अपना योगदान देना होगा जिससे भविष्य में आने वाली जल संकट की चुनौती को कम किया जा सके।
अभ्यास प्रश्न: हाल के वर्षों में देश के कई हिस्सों में स्वच्छ जल की अनुपलब्धता के मामलों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। देश में जल संकट के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालते हुए जल संरक्षण के संभावित उपायों/विकल्पों का उल्लेख कीजिये।