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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्या पिछले चार सालों में मोदी सरकार ने कोई उपलब्धि हासिल की है?

  • 01 Jun 2018
  • 21 min read

संदर्भ

वर्ष 2014 में सत्ता में आई मोदी सरकार ने हाल ही में अपने चार साल पूरे किये हैं। ऐसे में सरकार के कार्यों और उपलब्धियों के विषय में चर्चा होना स्वभाविक सी बात है। इस संदर्भ में बहुत से तर्क प्रस्तुत किये जा रहे हैं। बहुत से आँकड़ों और रिपोर्टों के माध्यम से यह साबित करने का प्रयास किया जा रहा है कि पिछले चार सालों में एनडीए सरकार ने देश को क्या-क्या दिया है? लेकिन इसी क्रम में बहुत सी ऐसी रिपोर्ट और लेख भी प्रकाशित हो रहे हैं जिनमें मोदी सरकार के चार साल के प्रदर्शन के संबंध में आलोचनात्मक रवैया अपनाया गया है। परीक्षा की दृष्टि से विचार करें तो हम पाएंगे कि किसी भी सरकार अथवा नीति के संबंध में विद्यार्थी को एक निष्पक्ष रवैया अपनाना चाहिये। ऐसे में कठिनाई यह है कि इतने विचारों में से किसे अपनाया जाए और किसे नहीं? इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए इस वाद-प्रतिवाद-संवाद खंड में हमने एक निष्पक्ष प्रस्तुति करने का प्रयास किया है ताकि पिछले चार सालों में सरकार के प्रदर्शन के संबंध में एक बेहतर समझ विकसित की जा सके।

वाद

  • सत्ता के चार सालों में मोदी सरकार ने आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक मोर्चे में किये गए अपने वादों को निरंतर पूरा करने का प्रयास किया है। अब से चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अरब से अधिक भारतीयों के जीवन को बदलने का संकल्प लेते हुए पद ग्रहण किया था। 
  • 48 महीनों में मोदी सरकार ने वो उपलब्धियाँ हासिल कीं जिन्हें पूर्व की सरकार 48 वर्षों में भी नहीं कर सकी। चाहे आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक या कोई अन्य मोर्चा हो, इस सरकार ने लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने का हरसंभव प्रयास किया है।
  • राजनीतिक परिणामों के संबंध में विचार किये बिना प्रधानमंत्री द्वारा बहुत से ऐसे निर्णायक और साहसिक फैसले लिये गए हैं, जिनके परिणाम देश को आने वाले समय में दिखाई देंगे। विमुद्रीकरण (Demonetisation) और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) इस बात के उदाहरण हैं।
  • विमुद्रीकरण के परिणामस्वरूप बहुत बड़ी मात्रा में वैध धन का अर्थव्यवस्था में प्रवाह हुआ है। जीएसटी के तहत एक करोड़ से अधिक करदाताओं ने पंजीकरण किया है। वित्त वर्ष 2017-18 में दायर आयकर रिटर्न की संख्या बढ़कर 6.84 करोड़ हो गई, जो वित्त वर्ष 2013-14 से 80.5% अधिक है।
  • इसके अलावा 31.52 करोड़ ‘जन धन’ खाते खोले गए हैं। ये सभी आँकड़े आम जन का सरकार में उच्च विश्वास को दर्शाता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च कर का अनुपालन सुनिश्चित हो पाया है। 
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रेरित होकर देश के प्रत्येक नागरिक ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत अपने आस-पास के क्षेत्र को साफ रखने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की है। इतना ही नहीं लगभग 7.25 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए हैं। 
  • 3.6 लाख से अधिक गाँवों और 17 से अधिक राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है।

महिलाओं के लिये योजनाएँ

  • सरकार ने देश में महिलाओं के सशक्तीकरण और विकास के लिये बहुत-सी योजनाओं और कार्यक्रमों को शुरू किया है, बहुत-सी पूर्व की योजनाओं को संशोधित करते हुए उन्हें वर्तमान संदर्भ में तैयार किया गया है।
  • उज्ज्वला योजना के तहत 3.8 करोड़ महिलाओं को एलपीजी कनेक्शन प्रदान किये जा चुके हैं। इसका लक्ष्य देश की आठ करोड़ महिलाओं की स्वच्छ ऊर्जा और धुएँ से मुक्त रसोई तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
  • सरकार का मुख्य उद्देश्य देश की सभी महिलाओं को स्वस्थ एवं सशक्त वातावरण प्रदान करते हुए देश की आधारशीला को सुदृढ़ बनाना है।
  • इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार गर्भवती/स्तनपान कराने वाली माताओं को ₹ 6,000 का नकद प्रोत्साहन भी प्रदान कर रही है। इस योजना के तहत हर साल 50 लाख से अधिक महिलाएँ लाभान्वित हो रही हैं।
  • बढ़ते लिंग अनुपात को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने लोगों से 'बेटी बचाओ, बेटी पढाओ' अभियान के तहत लड़की को बचाने के लिये लोगों से अपील की। इस अभियान के परिणाम हमारे सामने हैं। देश के 104 ज़िलों में जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार के रुझान देखने को मिले हैं।
  • इसके साथ-साथ प्रधानमंत्री सुकन्या समृद्धि योजना जैसी योजनाओं ने यह स्पष्ट किया है कि सरकार लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। 
  • इसके अतिरिक्त बच्चियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रयास किये गए है। वन स्टॉप सेंटर योजना (इसे निर्भय फंड के साथ लाया गया है) तथा हाल ही में 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार करने वालों के लिये मौत की सज़ा जैसा कठोर निर्णय भी इसी सरकार की देन है।
  • केवल 48 महीनों में मोदी सरकार उन क्षेत्रों तक पहुँचने में सफल रही है, जिन्हें विकास के क्रम में शायद ही पहले कभी शामिल किया गया था और पूर्वोत्तर भारत उनमें से एक है। 
  • पूर्वोत्तर भारत में कनेक्टिविटी एक बड़ा मुद्दा था। अब यह क्षेत्र न केवल सामान्य रेल नेटवर्क बल्कि व्यापक गेज के रूप में परिवर्तित हो रहा है। रेल कनेक्टिविटी बढ़ने से यह क्षेत्र शेष भारत के साथ पूरी तरह से एकीकृत हो पा रहा है।
  • आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पूर्वोत्तर के कुछ राज्य तो ऐसे हैं जो पहली बार भारत के रेलवे मानचित्र पर उभरे हैं उदाहरण के तौर पर मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम।
  • न केवल पूर्वोत्तर भारत में बल्कि सरकार का लक्ष्य देश के सभी पिछड़े क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे में सुधार करना है।
  • अब से चार साल पहले जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी, तब 12 किमी./दिन की रफ्तार से सड़कों का निर्माण किया जा रहा था, अब यह गति 27 किमी./दिन है।
  • इसके अतिरिक्त दिसंबर 2016 से अब तक उड़ान योजना के तहत 25 हवाई अड्डों को जोड़ा जा चुका हैं। इसी प्रकार वर्ष 2014 से अब तक 106 अतिरिक्त अंतर्देशीय जलमार्गों को भी संबद्ध किया गया है।
  • इन सबके साथ-साथ सरकार हाशिये पर मौजूद लोगों के प्रति काफी संवेदनशील रही है। इससे पहले 6.5% की सब्सिडी दर पर ₹ 6 लाख तक के आवास ऋण दिये जाते थे, लेकिन अब 9 और 12 लाख रुपए तक के आवास ऋण क्रमश: 4% और 3% के ब्याज सबवेंशन से उपलब्ध कराए गए हैं।

प्रतिवाद
वर्तमान सरकार के चार सालों के प्रदर्शन के प्रतिरोध में भी बहुत-से तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं। ऐसे ही कुछ तर्कों के संबंध में हमने यहाँ संक्षेप में वर्णन करने का प्रयास किया है जो कि इस प्रकार हैं -

  • 2014 के चुनाव कोई आम चुनाव नहीं थे। इन चुनावों में भ्रष्टाचार, अपराध, रोज़गार, अर्थव्यवस्था, ईंधन की कीमतें, किसान आदि सभी को मुद्दा बनाकर पेश किया गया था। इन सबमें सबसे संवेदनशील मुद्दा रहा धर्म का। इसके अलावा सांप्रदायिकता वर्तमान सरकार की राजनीतिक गतिविधियों का एक अंतर्निहित हिस्सा बन गई है। 

मूल्यांकन के मापदंड क्या हैं?

  • समग्र भारत का मूल्यांकन केवल गाँवों के विद्युतीकरण या शौचालयों के निर्माण अथवा गैस कनेक्शन के आवंटन के आधार पर नहीं किया जा सकता है।
  • समस्त विश्व से यदि कोई बात भारत को अलग बनाती है तो वह यह कि किस तरह से हम अपने संविधान का अनुपालन करते हैं और जो लोग ऐसा नहीं करते हैं, किस प्रकार से हमारा संसदीय लोकतंत्र उनके संबंध में संभावित विकल्प प्रदान करता है, किस प्रकार से हमारी न्यायपालिका कानून को संविधान के व्यापक दायरे से निडर बनाती है और किस प्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ न केवल एक व्यापार के रूप में बल्कि राष्ट्र के विवेक के रूप में कार्य करता है।
  • ये वे वास्तविक मापदंड हैं जो यह तय करते हैं कि किस प्रकार से कोई सरकार एक राष्ट्र और उसके लोगों के साथ पेश आ रही है। और यही वह वज़ह है जहाँ वर्तमान सरकार विफल रही है।
  • चुनाव आयोग, राज्यपाल का कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, अदालतें और पत्रकार सभी एक प्रणाली का अभिन्न हिस्सा होते हैं जो सरकार का मूल्यांकन करने के साथ-साथ उसे स्थायित्व प्रदान करते हैं तथा सरकार को जवाबदेह बनाते हैं।
  • लेकिन वर्तमान सरकार पर यह आरोप लगाया जाता है कि इसके कार्यकाल के दौरान इन सभी संस्थानों को स्वंत्रता के साथ कार्य नहीं करने दिया गया है।

वास्तविक मुद्दे नदारद हैं

  • इस सरकार पर यह आरोप लगाया गया है कि इसके समय में संसद की कार्यप्रणाली में भी फेरबदल किया गया है। संसद को दरकिनार करते हुए बहुत कम विधेयकों को स्थायी समितियों के पास भेजा गया है।
  • इतना ही नहीं कानून की संसदीय जाँच प्रक्रिया में भी समझौता किया गया है। इस सरकार के नीति निर्माण के संबंध में गहराई से विचार करने पर ज्ञात होता है कि यह कोई परिवर्तनकारी सरकार के रूप में सफल नहीं हुई है, जो कि इसके खोखले वादों को स्पष्ट करता है।
  • इसका कोई जवाब नहीं है कि चार वर्षों में बहुमत के बावजूद सरकार ने अभी तक महिला आरक्षण विधेयक के विषय में कोई कार्यवाही नहीं की है।
  • महिलाओं के सशक्तीकरण के संबंध में सरकार तीन तलाक विधेयक का बखान करती है, जो एक ऐसे कृत्य का अपराधीकरण करता है जिसे सर्वोच्च कार्यवाही द्वारा अमान्य ठहराया गया है।
  • इस सूची में हाल ही में एक नई उपलब्धि को शामिल किया जा रहा है वह है किसी बच्चे के बलात्कार के लिये मृत्युदंड का प्रावधान, जबकि न्यायमूर्ति वर्मा समिति की कई अन्य महत्त्वपूर्ण सिफारिशों के संबंध में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई हैं।
  • वर्तमान सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में महिलाओं की अधिकतम संख्या होने का दावा किया है, लेकिन ऐसा देश जहाँ पहले ही एक महिला प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर चुकी है, क्या यह वास्तव में एक मील का पत्थर वाली बात है?
  • यह सरकार केवल दिखावे पर यकीन करती है, ताकि जनता के सामने इसकी साफ एवं सुंदर छवि ही प्रस्तुत हो। अभी भी सरकार के विभिन्न वादों के पूरा होने की उम्मीद है, जिनमें काले धन को वापस लाने और शिक्षा नीति में बदलाव करने जैसे पक्ष शामिल हैं।

पेचीदा पक्ष

  • अब से चार साल पहले नरेंद्र मोदी एक अभूतपूर्व जनादेश के साथ सत्ता में आए। उनकी जीत उनकी व्यक्तिगत विश्वसनीयता और करिश्माई व्यक्तित्व के आधार पर हुई थी।
  • एक साधारण बहुमत हासिल करने के तुरंत बाद तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल से घटकर $ 35 हो गई, जिसे अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत मिली।
  • इसके बाद, उनकी पार्टी एक दर्जन से अधिक राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब हो गई। स्पष्ट रूप से इस विशाल पृष्ठभूमि के संबंध में बहुत अधिक उम्मीदें भी लगाई गई थीं।

क्या पाया और क्या खोया?

  • इस सबके बावजूद मोदी सरकार का प्रदर्शन मिश्रित रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस सरकार के समयकाल में कुछ महत्त्वपूर्ण और गहरे संरचनात्मक सुधार हुए हैं जैसे दिवालियापन विधेयक और जीएसटी आदि।
  • इसके साथ-साथ योजना आयोग को बंद करने एक सरकार के फैसले की भी सराहना की जानी चाहिये क्योंकि पिछले कुछ समय से यह राज्यों को धन वितरित करने में एक अतिरिक्त संवैधानिक प्राधिकरण बनकर रह गई है।
  • इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा एक नई मौद्रिक नीति ढाँचा लागू किया गया को केवल मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण पर केंद्रित है और विभिन्न सब्सिडी एवं कल्याण कार्यक्रमों की सुव्यवस्थित स्थिति के साथ-साथ प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना का विस्तारीकरण भी किया गया।
  • सरकार की लगभग 300 से अधिक योजनाओं को अब डीबीटी के माध्यम से संचालित किया जा रहा है जिनके परिणामस्वरूप गरीबों के लिये तकरीबन 315 मिलियन नए बैंक खातों का सृजन किया गया, जो वित्तीय समावेशन की राह में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
  • ये कुछ संरचनात्मक विशेषताएँ हैं जो अंततः अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाएंगी। इन सबके बीच क्या-क्या नहीं हो पाया यदि उसके विषय में बात करें तो हम पाएंगे कि तेल की कीमतों में आई वृहद् गिरावट के बावजूद पूंजी निर्माण अनुपात, रोज़गार के निर्माण या बैंकिंग क्षेत्र में कोई विशेष सुधार देखने को नहीं मिला है।
  • इसमें कोई दोराय नहीं है कि दो से ढाई साल में भारतीय अर्थव्यवस्था 10 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित संचयी रूप से लाभान्वित हुई है। इससे आने वाले समय में अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा सहारा भी मिलेगा।
  • लेकिन वहीं, दूसरे संदर्भ में बात करें तो हम पाएंगे कि विमुद्रीकरण और जीडीपी के अनुप्रयोग ने फार्म एवं अनौपचारिक क्षेत्रों में नौकरियों को बहुत क्षति पहुँचाई है।
  • साथ ही अभी तक विनिवेश के मोर्चे पर भी सरकार का बहुत अच्छा प्रदर्शन देखने को नहीं मिला है, खासतौर पर कई सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के संदर्भ में, जिनमें एयर इंडिया और बैंकिंग क्षेत्र शामिल हैं।
  • इसके अतिरिक्त खुदरा क्षेत्र में अभी तक एफडीआई को अनुमति नहीं दी गई है और अब जबकि ई-कॉमर्स क्षेत्र में एफडीआई की उपस्थिति में इजाफा हो चुका है, ऐसे में खुदरा क्षेत्र की अनदेखी का पक्ष उचित नहीं है।
  • इसके अलावा भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को आसान बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिये था, लेकिन अभी तक औद्योगिक गतिविधि के विस्तार में यह एक बड़ी बाधा बनी हुई है।

एक मिश्रित रिकॉर्ड

  • इस प्रकार चार वर्षों के अंत में ऐसा लगता है कि बड़े-बड़े क्षेत्रों पर तो मज़बूती से काम हुआ है लेकिन छोटे-छोटे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को अनदेखा कर दिया गया है। विभिन्न ऋण माफिया और उत्पाद शुल्क में कटौती के कारण राजकोषीय घाटे को भी अतिरिक्त दबाव की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
  • भले ही प्रधानमंत्री को जबरदस्त सार्वजनिक समर्थन प्राप्त हुआ हो लेकिन विमुद्रीकरण का निर्णय एक बहुत महँगा प्रयोग था।
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस फैसले से करदाता आधार में वृद्धि हुई और डिजिटल भुगतानों को भी काफी बल मिला है, लेकिन इसके कारण अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय आय और नौकरियों के नुकसान के मामले में भारी कीमत चुकानी पड़ी है।
  • निरंतर चले आ रहे कृषि संकट को गहन संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता थी, जबकि इसके विषय में कोई बड़े निर्णय नहीं लिये गए हैं। इसके अतिरिक्त बैंकिंग समस्याओं में भी दिनोंदिन इजाफा होता जा रहा है।
  • यही कारण है कि यह एक मिश्रित रिकॉर्ड है। इस सरकार के शासनकाल में अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई है और सूक्ष्म आधारों के संबंध में ज़मीनी कार्य किये जा रहे है।
  • लेकिन चुनावी जनादेश, तेल की निम्न कीमतें और बेहतर केंद्र-राज्य समन्वय को सक्षम करने के लिये राष्ट्रीय विस्तार की रणनीति से निवेश अनुपात, पूंजी निर्माण, निर्यात, औद्योगिक विकास और विनिवेश के क्षेत्र में कोई विशेष प्रदर्शन देखने को नहीं मिला है।

निष्कर्ष

यह कहना गलत नहीं है कि कुछ मोर्चों पर सरकार विफल साबित हुई है और कुछ मोर्चों पर बहुत अधिक सफल भी रही है। मोदी सरकार ने इन चार सालों में न केवल देश को वित्तीय समावेशन की राह में मज़बूती प्रदान की है बल्कि डिजिटल इंडिया के रूप में देश की आधुनिक प्रौद्योगिकी को आम जीवन में अपनाने पर भी बल दिया है। जहाँ एक ओर विदेशी निवेश और पूंजी प्रवाह में वृद्धि हुई है वहीं, दूसरी ओर रोज़गार के सृजन में आई कमी ने चिंता भी पैदा की है। वैश्विक स्तर पर भारत की छवि में आया बदलाव इस बात का ध्योतक है कि भारत न केवल एक तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हो रहा है बल्कि यह एक मज़बूत क्षेत्रीय नेतृत्व के संदर्भ में भी एक शक्तिशाली विकल्प बनकर उभरा है। हालाँकि सांप्रदायिकता और केंद्र-राज्य संबंधों के संदर्भ में सरकार को अभी बहुत काम करना होगा ताकि भावी पीढ़ी को एक बेहतर भारत दिया जा सके जिसका स्वप्न स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया है।

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