वित्तीय क्षेत्र- रेगुलेटर की भूमिका | 17 Mar 2020
संदर्भ
हाल के वर्षों में देश में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कई महत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों की असफलता के मामले सामने आए हैं। इतनी बड़ी संख्या में वित्तीय संस्थानों की असफलता से निवेशकों और आम जनता में वित्तीय क्षेत्र के भविष्य को लेकर अनिश्चितता तथा भय की स्थिति बन गई है। ऐसी स्थिति में वित्तीय क्षेत्र के नियामकों की भूमिका और उनकी कार्यशैली को लेकर कई प्रश्न खड़े हुए हैं जैसे कि क्या नियामकों के पास वित्तीय अनियमितता की जाँच करने के लिये उपयुक्त संसाधन और शक्तियाँ हैं या नहीं? अथवा यदि नियामकों के पास अनियमितताओं पर कार्रवाई करने की शक्तियाँ हैं तो सही समय पर उनका उपयोग क्यों नहीं किया गया?
मुख्य बिंदु:
- पिछले कुछ वर्षों में देश में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कई बैंकिंग तथा गैर-बैंकिंग कंपनियों में गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets-NPAs) के मामलों में वृद्धि देखने को मिली है।
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इनमें वर्ष 2018 में सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय कंपनी IL&FS की असफलता, PMC बैंक की अनियमितताएँ और वर्तमान यस बैंक संकट जैसे मामले शामिल हैं।
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‘इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज़ (Infrastructure Leasing & Financial Services-IL&FS)’ में वित्तीय गड़बड़ियों के चलते मार्च 2018 तक कंपनी की इक्विटी (Equity) और ऋण का अनुपात बढ़कर 18.7% तक पहुँच गया तथा इस दौरान कंपनी पर लगभग 91,000 करोड़ रुपए का कर्ज था।
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सितंबर 2019 में ‘पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (Punjab and Maharashtra Co-operative Bank-PMC)’ में 4000 करोड़ रुपए की वित्तीय गड़बड़ी का मामला सामने आया।
- यस बैंक के मामले में भी ऋण वितरण में भारी लापरवाही पाई गई जिससे बड़ी संख्या में दिये गए ऋण की वसूली नहीं की जा सकी।
यस बैंक:
- यस बैंक (Yes Bank) की स्थापना वर्ष 2004 में की गई और वर्ष 2005 में इसे शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध किया गया।
- यस बैंक की स्थापना के समय इसका व्यापार व्यावसायिक संस्थानों को ऋण उपलब्ध कराने तक सीमित था।
- वर्तमान में यह बैंक देश के 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों में 1000 से अधिक बैंक शाखाओं के माध्यम से आम जनता के लिये सामान्य बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराने के साथ ही निवेश, मर्चेंट बैंकिंग और सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम क्षेत्र आदि के लिये वित्तीय सेवाएँ प्रदान करता है।
- मार्च 2019 में वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर यस बैंक द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, बैंक की पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio) 16.5% और सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Gross NPAs) मात्र 3.22% ही थीं।
- जबकि सितंबर 2019 के आँकड़ों के अनुसार, बैंक की कुल पूंजी में सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का प्रतिशत बढ़कर लगभग 7% से अधिक बताया गया।
- इससे पहले वर्ष 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक की जाँच में यस बैंक के आतंरिक संचालन में नियमों के उल्लंघन के साथ कई तरह की अनियमितताएँ पाई गई थीं।
भारतीय बैंकिंग क्षेत्र का इतिहास:
- देश की स्वतंत्रता के पश्चात् वर्ष 1949 में भारतीय रिज़र्व बैंक के राष्ट्रीयकरण और वर्ष 1955 में भारतीय स्टेट बैंक की स्थापना को भारतीय बैंकिग क्षेत्र की नीव के रूप में देखा जा सकता है।
- भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks-PSBs) का उद्भव वर्ष 1969 के बैंक राष्ट्रीयकरण के बाद हुआ।
- वर्ष 1991 के आर्थिक उदारीकरण और निजीकरण के तहत निजी क्षेत्र की संस्थाओं को बैंक लाइसेंस जारी किये गए।
- वर्ष 2005 के आते-आते निजी क्षेत्र के बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये एक मज़बूत प्रतिद्वंद्वी की तरह उभरे।
वर्तमान बैंकिंग संकट के कारण:
विशेषज्ञों के अनुसार, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का बढ़ना, वित्तीय संस्थानों की अनियमितताएँ और वित्तीय क्षेत्र के नियामकों की अनदेखी आदि वर्तमान बैंकिंग संकट के प्रमुख कारण हैं।
NPA:
- वर्ष 2002 के पहले बैंकों द्वारा सिर्फ दो तरह के ऋण दिए गए, जिनमें कार्यशील पूंजी (Working Capital) पर दिये गए ऋण (उत्पादक संस्थानों, कृषि आदि) की हिस्सेदारी 76% और खुदरा दर पर दिए गए ऋण (आवास, वस्तुओं आदि) की हिस्सेदारी 24% थी।
- परंतु इसके बाद के वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेज़ी और कुछ स्थानीय कारणों से वित्तीय संस्थानों की स्थिति मज़बूत हुई तथा निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों द्वारा बड़ी मात्रा में आसान शर्तों पर लंबी अवधि के ऋण उपलब्ध कराए गए।
- इस दौरान स्थायी पूंजी (सड़क, बिल्डिंग,भूमि आदि) में लंबी अवधि का ऋण बढ़कर 38% हो गया जबकि कार्यशील पूंजी पर दिया गया ऋण घटकर 42% और खुदरा ऋण मात्र 20% रह गया।
- औद्योगिक और अन्य कई क्षेत्रों की परियोजनाओं के लिये पर्यावरण संबंधी नियमों में सख्ती के कारण कुछ परियोजनाएँ स्थगित कर दी गईं या देरी के कारण उनकी लागत बढ़ गई जिसे बैंकों द्वारा दिये गए ऋण वापस नहीं आ सके।
- कई परियोजनाओं को उनकी वास्तविक क्षमता से अधिक ऋण प्रदान किया गया, ऐसी बैंकिंग गड़बड़ियों के कारण बड़ी मात्रा में ऋण NPA में बदल गए।
- हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था की सतत् गिरावट ने बैंकिंग क्षेत्र के इस संकट को और बढ़ा दिया है।
नियामक की भूमिका :
- हाल के वर्षों में PMC बैंक, यस बैंक की असफलता के बाद बैंक नियामक RBI की भूमिका पर प्रश्न उठाने लगे हैं।
- विशेषकर यस बैंक के मामले में जहाँ RBI को पिछले कुछ वर्षों से बैंक में आतंरिक गड़बड़ियों के प्रमाण मिले थे, ऐसे में बैंक पर पहले कार्रवाई की जा सकती थी।
- मार्च 2019 में यस बैंक के ऑडिटर्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उनकी जाँच में प्राप्त आँकड़ों और बैंक द्वारा RBI को दिये आँकड़ों में कोई अंतर नहीं पाया गया। ऐसे में यह स्पष्ट है कि या तो ऑडिटर्स की जाँच में चूक हुई या सही आँकड़ों को छुपाया गया।
- देश के कई बैंकों में हालिया वित्तीय गड़बड़ी के मामलों के बाद बैंकों की आतंरिक कार्रवाई की जाँच के संदर्भ में RBI की कार्यशैली में भारी कमी का पता चलता है। अन्य देशों में बड़े बैंकों की वित्तीय गतिविधियों के साथ बैंक की आतंरिक कार्यप्रणाली की जाँच के लिये एक अलग समिति का गठन किया जाता है, यह समिति पूरे वर्ष बैंक की वित्तीय गतिविधियों की समीक्षा करती है।
विनियमन हेतु समायोजित योजना का अभाव (Regulatory Gap):
- देश में केंद्र और राज्यों के स्तर पर वित्तीय क्षेत्र की बैंकिंग तथा गैर-बैंकिंग कंपनियों का विनियम अलग-अलग संस्थाओं द्वारा किया जाता है। अलग-अलग संस्थाओं की कार्यशैली और उनके बीच समन्वय के अभाव में वित्तीय संस्थाओं के विनियमन में अनेक कमियाँ सामने आई हैं।
- बैंकों का विनियमन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा किया जाता है। देश में गैर-बैंकिंग कंपनियों का विनियमन पहले RBI द्वारा किया गया, हालाँकि RBI ने इसे एक अतिरिक्त जिम्मेदारी के रूप में लिया।
वर्तमान में गैर-बैंकिंग कंपनियों के विनियमन हेतु कुछ प्रमुख संस्थान निम्नलिखित हैं:
- वेंचर कैपिटल फंड, मर्चेंट बैंक, स्टॉक ब्रोकिंग फर्म- रजिस्ट्रेशन और विनियमन सेबी द्वारा।
- इंश्योरेंस कंपनी- रजिस्ट्रेशन और विनियमन भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण द्वारा।
- हाउसिंग फाइनेंस कंपनी- नेशनल हाउसिंग बैंक द्वारा विनियमित।
- निधि कंपनी- कंपनी एक्ट 1956 के तहत उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा विनियमित।
- चिट फंड कंपनी- चिट फंड एक्ट 1982 के तहत राज्यों द्वारा विनियमित।
इसी तरह देश भर में कोऑपरेटिव बैंकों के विनियमन की अलग-अलग प्रणालियाँ अपनाई गई हैं। कुछ कोऑपरेटिव बैंकों का विनियम राज्य सरकारों के सहयोग से रजिस्ट्रार सहकारी समिति द्वारा किया जाता है, वहीं कुछ बड़े बैंकों के मामले में RBI प्रत्यक्ष रूप से विनियमन की प्रक्रिया पूरी करती है।
- इस व्यवस्था से विनियमन में होने वाली चूक बैंकिंग नियामक की एक बड़ी दुर्बलता है जिसे दूर करने की आवश्यकता है।
विनियमन क्षमता (Regulatory Capacity):
- RBI एक नियामक के अतिरिक्त एक निर्गम संस्थान, विदेशी विनिमय का संग्रहकर्त्ता, मौद्रिक नीति के निर्धारण के साथ कई अन्य कार्य करता है।
- RBI पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि कार्य का दबाव अधिक होने के कारण RBI मौद्रिक नीति पर अधिक ध्यान देता है जबकि बैंकों के विनियमन पर उतना ध्यान नहीं दे पाता।
- हालिया बजट में सरकार ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को RBI द्वारा विनियमित करने का विचार रखा था, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के विनियमन की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी से RBI पर बोझ और बढ़ जाएगा।
नियामक की चुनौतियाँ:
- बैंक जैसे वित्तीय संस्थान एक बड़ी आबादी से जुड़े होने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में कई स्तरों पर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ऐसे में बैंकों पर की गई कठोर कार्रवाई नागरिकों के साथ देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
- बैंकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई से बैंक रन (Bank Run) जैसी स्थिति को बढ़ावा मिलेगा जो बैंक के संकट को और बढ़ा सकता है। उदाहरण के लिये RBI द्वारा वर्ष 2018 में यस बैंक पर की गई कर्रवाई के बाद बैंक के कई बड़े ग्राहकों (व्यावसायिक व औद्योगिक संस्थान) ने बैंक से स्वयं को अलग कर लिया।
बैंक रन (Bank Run): बैंकिंग क्षेत्र में बैंक रन उस स्थिति को कहा जाता है, जब किसी बैंक के बहुत से ग्राहक एक साथ अपनी जमा धनराशि का पूरा या एक बड़ा हिस्सा बैंक से निकाल लेते हैं।
- देश में आर्थिक उदारीकरण के बाद निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये बैंकिंग क्षेत्र की कंपनियों और RBI के बीच परस्पर विश्वास से एक संतुलन स्थापित किया गया है, जिसके तहत RBI किसी अनियमितता के अतिरिक्त सामान्य स्थितियों में बैंकों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है।
आगे की राह:
- वर्तमान में देश में अलग-अलग वित्तीय संस्थानों के विनियमन के लिए एक स्पष्ट नीति और विनियम संस्थानों के बीच परस्पर समन्वय के अभाव में वित्तीय संस्थानों का विनियमन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थानों के विनियमन के लिए एक स्पष्ट नीति और कार्ययोजना का निर्धारण करना बहुत ही आवश्यक है।
- किसी अनियमितता की स्थिति में कठोर कार्रवाई के बजाय बैंकों की आतंरिक गतिविधियों में अनियमितता को रोकने के लिए RBI द्वारा बैंकों के हर निर्णय की नियमित रूप से समीक्षा की जानी चाहिये।
- RBI एक नियामक के अतिरिक्त एक निर्गम संस्थान, विदेशी विनिमय का संग्रहकर्त्ता, मौद्रिक नीति के निर्धारण के साथ कई अन्य कार्य करता है, ऐसे में RBI के बोझ को कम करने के लिए सरकार को जल्द कोई समाधान तलाशना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारतीय बैंकिग क्षेत्र के वर्तमान वित्तीय संकट तथा इसके कारणों की समीक्षा कीजिये।