विशेष : चेहरा ही पहचान है | 03 Sep 2018
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
आधार की जब से शुरुआत हुई है तब से ही इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। शुरुआत में तो यह पीडीएस डिस्ट्रिब्यूशन और दूसरे केंद्रीय सहायताओं तक सीमित था लेकिन जैसे-जैसे इसे बैंक अकाउंट, मोबाइल सिम और दूसरी ज़रूरतों के लिये लागू किया गया चुनौतियाँ बढ़ती गईं। हाल ही में इसमें निजता और डेटा सुरक्षा के सवाल ने भी बड़ी बहस को जन्म दिया है| यही वज़ह है कि UIDAI को ऐसे कदम उठाने पड़े जिससे आधार की सुरक्षा पूरी तरह से सुनिश्चित हो पाए। इसी कड़ी में ताज़ा कदम है चेहरा पहचान (face recognition) का| UIDAI ने ऐलान किया है कि 15 सिंतबर से नए सिम कार्ड लेने पर फिंगरप्रिंट या दूसरी बायोमेट्रिक्स पहचान के साथ ही चेहरे की पहचान भी ज़रूरी होगी। UIDAI ने दरअसल, चेहरा मिलान की यह प्रक्रिया 1 जुलाई से शुरू करने की योजना बनाई थी लेकिन इसके लिये ज़रूरी तैयारी नहीं हो पाने के कारण बाद में इसे बढ़ाकर 1 अगस्त किया गया लेकिन अब प्राधिकरण ने इसे 15 सितंबर से लागू करने की घोषणा की है|
यह फैसला क्या है और उपभोक्ताओं को इससे कैसे मदद मिलेगी?
- आधार अपनी शुरुआत से ही कई तरह की आशंकाओं से घिरा हुआ है| इन आशंकाओं को दूर करने के लिये आए दिन UIDAI नए-नए कदम उठाती रही है और इसी कड़ी में चेहरा पहचान (Face Recognition) की शुरुआत की गई है|
- अगर आप नया सिम कार्ड लेने की सोच रहे हैं तो डीलर के पास आपको अपने बाकी डॉक्यूमेंट के साथ अपने चेहरे की भी पहचान करानी होगी| भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने इस नए कदम की घोषणा की है|
- प्राधिकरण के मुताबिक, यह कदम आधार की सुरक्षा के लिये एक और कड़ी है| अब फिंगरप्रिंट और आईरिस स्कैन (iris scan) के अलावा चेहरे का मिलान एक अहम ज़रूरी प्रक्रिया होगी|
- इस नए फीचर के बाद चेहरे की पहचान के लिये फोटो का सत्यापन चेहरे के मिलान के बाद तय हो पाएगा| यह सुविधा शुरुआत में दूसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों के साथ 15 सितंबर से लागू हो जाएगी|
- यानी अगर आप नया सिम कार्ड लेने जाते हैं तो आपकी फोटो के साथ आपके चेहरे का भी मिलान किया जाएगा|
- प्राधिकरण का मानना है कि फिंगरप्रिंट में तमाम खामियों के मद्देनज़र इस सुविधा को लाया गया है| चेहरा पहचान के माध्यम से फिंगरप्रिंट की क्लोनिंग रूप में भी मदद मिलेगी|
- UIDAI के मुताबिक 15 सितंबर से टेलिकॉम कंपनियों को महीने में कम-से-कम 10 फीसदी सत्यापनों में चेहरे का मिलान करना ज़रूरी होगा|
- कंपनियों की ओर से अगर इसमें कोई कोताही पाई गई तो उन्हें ज़ुर्माना भी देना पड़ सकता है| यह ज़ुर्माना प्रति सत्यापन 20 पैसे तक हो सकता है|
- नई व्यवस्था के तहत चेहरे की फोटो का eKYC फोटो से मिलान का निर्देश उन्हीं मामलों में लागू होगा जिनमें सिम जारी करने के लिये आधार का इस्तेमाल किया जा रहा है| यानी सिम अगर आधार के ज़रिये जारी नहीं किया जा रहा है तो चेहरे की पहचान ज़रूरी नहीं होगी|
- इस सुविधा का सबसे बड़ा लाभ उन लोगों को होगा जिनका उम्र और दूसरे कारणों से फिंगरप्रिंट का मिलान नहीं हो पाता है| इसका लाभ दिव्यांगजनों को भी होगा जो फिंगरप्रिंट या दूसरी जानकारियाँ दर्ज नहीं करा पाते|
यह प्रक्रिया कैसे काम करेगी?
- चेहरे से मिलान की प्रक्रिया दरअसल, बायोमेट्रिक एप्लीकेशन के ज़रिये होती है| आजकल मोबाइल फोन से लेकर लैपटॉप समेत कई जगहों पर इसका इस्तेमाल हो रहा है|
- यह इमेज यानी तस्वीर को एप्लीकेशन के कई तकनीकी पहलुओं जैसे-ग्राफ़िक फॉर्म में चेहरे की बिंदु, विशेष पहचान चिन्ह और दूसरी विशेषताओं के आधार पर डेटाबेस में स्टोर कर लेता है|
- डेटाबेस में सुरक्षित इस तस्वीर का बाद में डिजिटल तस्वीर या लाइव तस्वीर से मिलान किया जाता है|
- चेहरे की पहचान के ज़रिये मिलान करने के लिये काफी उन्नत किस्म की लर्निंग अल्गोरिथम पहले से ही इस्तेमाल की जा रही हैं|
- आधार के इस्तेमाल की इस विधि में सबसे पहले व्यक्ति की तस्वीर अधिकृत मशीन या डिवाइस के ज़रिये कैप्चर की जाएगी| यह तस्वीर फिंगरप्रिंट और आईरिस स्कैन के साथ ही UIDAI को भेजी जाएगी|
- UIDAI के पास आधार बनवाते वक्त ली गई व्यक्ति के फोटो डेटाबेस में पहले से ही मौजूद होती है इसलिये तुरंत लाइव तस्वीर का मिलान डेटाबेस में मौजूद तस्वीर से किया जाएगा|
- इसके बाद UIDAI पहचान संबंधी अभिप्रमाणन (authentication) प्रस्तुत करेगा और इस तरह सही व्यक्ति की शिनाख्त हो जाएगी|
हर बार कराना होगा चेहरे का मिलान
- इसके तहत जब-जब उपभोक्ता को किसी सेवा के लिये आधार के सत्यापन की ज़रुरत होगी हर बार चेहरे का मिलान कराना होगा|
- UIDAI के मुताबिक, इस पूरी प्रक्रिया में सभी चीजों को ध्यान में रखकर बनाया गया है| यानी चेहरे में सामान्य बदलाव के सत्यापन पर कोई असर नहीं होगा|
- फ़िलहाल टेलिकॉम कंपनियों के लिये इस सुविधा की शुरुआत की जा रही है| लेकिन उनके लिये भी किसी डेडलाइन की घोषणा नहीं की गई है|
- सुविधा के शुरू होने के बाद प्राधिकरण इस पर विचार करेगा कि इस प्रक्रिया में क्या-क्या दिक्कतें और खामियाँ आ रही हैं ताकि बाद में उसमें सुधार कर इसे बैंकिंग जैसे दूसरे क्षेत्रों में लागू किया जा सके|
पूरी तरह से सुरक्षित होगी प्रक्रिया
- शुरुआत में तमाम चुनौतियों और खामियों को देखते हुए इसे लगातार सुरक्षित बनाया जा रहा है| इस सुविधा को जारी करने के साथ ही UIDAI ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि आधार को इस्तेमाल करना पूरी तरह से सुरक्षित है|
- हालाँकि प्राधिकरण ने इस बीच कई एडवाइज़री भी जारी की हैं जिसमें अपना आधार नंबर सार्वजनिक नहीं करने की हिदायत भी दी गई है|
- प्राधिकरण के मुताबिक, सुरक्षित बायोमेट्रिक और ओटीपी जैसी सुविधाओं के बाद आधार के दुरुपयोग की आशंका न के बराबर है|
- UIDAI ने हालाँकि इसमें बैंकों और दूसरी संस्थाओं की ज़िम्मेदारी तय करने से जुड़ी बातें भी शामिल की हैं|
क्यों पड़ी चेहरा पहचान की ज़रूरत?
- वरिष्ठ नागरिकों, मज़दूरी करने वाले लोगों तथा बर्न संबंधी मामलों में अक्सर देखा गया है कि ऐसे लोगों के फिंगरप्रिंट स्पष्ट नहीं होते जिसके कारण इनका सत्यापन के लिये इस्तेमाल नहीं हो पाता था| वे अपना अँगूठा लगाते थे क्योंकि उनका अँगूठा घिसे होने के कारण सत्यापन नहीं हो पाता था इस कारण उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता था|
- ऐसे लोगों के आधार सत्यापन में यह तकनीक मदद करेगी| चेहरा पहचान तकनीक इसलिये भी अमल में लानी पड़ी क्योंकि पहचान के लिये आधार की सुरक्षा को लेकर हाल ही में कई सवाल उठाए गए|
- कुछ महीनों पहले एक समाचार पत्र में रिपोर्ट छापी गई थी कि 500 रुपए में लोगों का आधार डाटा हासिल किया जा सकता है|
- इससे पहले कुछ लोग निजता का हवाला देकर आधार पर उँगलियाँ उठाते रहे हैं| ऐसे में UIDAI के सामने आधार की विश्वसनीयता कायम रहने की एक बड़ी चुनौती थी|
न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट
- डिजिटल दुनिया में व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षित करने के लिये फ्रेमवर्क की सिफारिश किये जाने हेतु जुलाई 2017 में न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय समिति की स्थापना की गई थी।
- डेटा सुरक्षा पर न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति की व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल 2018 के मसौदे की बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट हाल ही में सरकार को सौंप दी गई। यह रिपोर्ट भारत में डेटा सुरक्षा कानून को मज़बूती प्रदान करने और व्यक्तियों को निजता संबंधी अधिकार देने पर ज़ोर देती है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि एक सामूहिक संस्कृति निर्मित करना आवश्यक है जो एक स्वतंत्र और निष्पक्ष डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती हो, व्यक्तियों की सूचनात्मक गोपनीयता का सम्मान करती हो और सशक्तीकरण, प्रगति तथा नवाचार सुनिश्चित करती हो।
- न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण की रिपोर्ट में कहा गया है कि गोपनीयता ज्वलंत समस्या बन गई है और इसलिये किसी भी कीमत पर डेटा की सुरक्षा के लिये हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिये।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य व्यक्तिगत डेटा को भारत क्षेत्र के बाहर स्थानांतरित किया जा सकता है। इसलिये डेटा की कम-से-कम एक प्रति को भारत में संग्रहीत करने की आवश्यकता होगी।
- मसौदा विधेयक से भारत को उम्मीद है कि दुनिया के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिये यह एक आदर्श मॉडल बन सकेगा जो राज्य सहित भारत के व्यक्तिगत डेटा की प्रोसेसिंग पर लागू होगा।
- भारत में डेटा प्रोसेसर मौजूद नहीं होने की स्थिति में मसौदा विधेयक भारत में कारोबार करने वाले अन्य लोगों या प्रोफाइलिंग जैसी अन्य गतिविधियों पर लागू होगा जो भारत में डेटा प्रदाता की गोपनीयता को नुकसान पहुँचा सकता है।
- समिति ने माना कि हालाँकि पर्याप्त सुरक्षा उपायों को अपनाने के बावजूद कोई भी डेटाबेस 100 फीसदी सुरक्षित नहीं है| समिति ने डेटा सुरक्षा अथॉरिटी के गठन का भी सुझाव दिया|
- न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह रिपोर्ट डेटा संरक्षण की दिशा में पहला कदम है और जिस प्रकार प्रौद्योगिकी में परिवर्तन हो रहा है उसे दृष्टिगत रखते हुए कानून को सुदृढ़ करना आवश्यक है। रिपोर्ट और ड्राफ्ट बिल "नए जूते खरीदने” की तरह हैं। हो सकता है यह शुरुआत में मुश्किल हो लेकिन बाद में आरामदायक होगा।
(टीम दृष्टि इनपुट)
आधार की सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ
- आधार को लेकर शुरुआत से ही इस पर बहस होती रही है कि निजता के मसले पर तो न्यायालय ने साफ कर दिया है लेकिन सुरक्षा को लेकर चिंताएँ बरकरार हैं| खासकर बीते कुछ सालों में मीडिया में आई कुछ रिपोर्टों ने लोगों की चिंताएँ बढ़ा दी हैं|
- 4 अक्तूबर, 2017 को UIDAI ने उन मीडिया रिपोर्टों का खंडन किया जिसमें 600 भारतीय संस्थाओं का डाटा चोरी होने का दावा किया गया था| इसमें आधार, बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज तथा आरबीआई तक शामिल थे|
- UIDAI ने इन ख़बरों को निराधार बताते हुए कहा कि इस तरह की कोई सेंधमारी नहीं हुई है| संस्था ने कहा कि हैकर्स ने कथित तौर पर इससे जुड़ी जो भी जानकारी सार्वजनिक की है वह पहले ही सार्वजनिक रूप से मौजूद है और इससे आधार की संवेदनशील जानकारियों के लीक होने का कोई खतरा नहीं है|
- इसी तरह 20 नवंबर, 2017 की एक प्रेस रिलीज़ में UIDAI ने केंद्र और राज्य सरकार के 200 से ज़्यादा वेबसाइट के कुछ आधार लाभार्थियों के नाम और पते जैसी जानकारियाँ सार्वजनिक करने पर सफाई दी|
- संस्था ने एक RTI के जवाब में कहा कि उसने इस उल्लंघन का संज्ञान लिया है और इन वेबसाइट्स से जानकारियाँ हटवा दी हैं|
- इससे पहले मीडिया में कई बार इस तरह की ख़बरें आई जिससे लोगों की चिंताएँ बढीं| सरकार और UIDAI की सफाई तथा भरोसे के बावजूद कई जानकार इस मुद्दे को संवेदनशील मानते हैं और सरकार की ओर से अतिरिक्त कदम उठाए जाने की बात कहते हैं|
आधार को सुरक्षित बनाने के लिये लगातार उठे कदम
- हालाँकि कई जानकार यह भी मानते हैं कि नाम और पता जैसी जानकारियाँ सार्वजनिक होने पर लोगों को घबराने की ज़रूरत नहीं है|
- UIDAI ने कई बार भरोसा दिलाया है कि आधार सुरक्षा प्रणाली श्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है और आधार डेटा पूरी तरह सुरक्षित है| इस संबंध में संस्था ने हाल ही में कुछ अतिरिक्त कदम उठाए हैं|
- हाल ही में UIDAI ने आधार बायोमेट्रिक लॉकिंग सिस्टम की सुविधा जारी की जिसके ज़रिये लोग खुद अपने आधार विवरण को लॉक और अनलॉक कर सकते हैं ताकि इसके दुरुपयोग को रोका जा सके|
- संस्थान के मुताबिक बायोमेट्रिक लॉकिंग सिस्टम पूरी तरह से सुरक्षित है| इसके अलावा संस्था ने 8 डिजिट के OTP की सुविधा भी दी है जिसकी मियाद केवल 30 सेकंड के लिये होती है और यूज़र खुद अपने मोबाइल पर इसे जेनेरेट कर सकता है|
- हाल ही में एक बड़ा कदम उठाते हुए UIDAI ने आधार डेटा की सुरक्षा के मद्देनजर सत्यापन के लिये एक 16 अंकों वाली वर्चुअल आईडी जारी करने का फैसला किया है|
- आधार धारक को यह वर्चुअल आईडी आधार नंबर की जगह इस्तेमाल करनी होगी| यह आईडी ज़रूरत के समय कंप्यूटर से जेनेरेट होगी|
- वर्चुअल आईडी की वज़ह से अपनी पहचान साबित करते समय आधार नंबर को शेयर करने की ज़रूरत खत्म हो जाएगी| UIDAI का दावा है कि इस तरह आधार प्रमाणन पहले से ज़्यादा सुरक्षित हो जाएगा|
आधार का सफर कैसे शुरू हुआ?
- भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी UIDAI एक संविधिक प्राधिकरण है| इसे भारत सरकार की ओर से वित्तीय एवं अन्य सब्सिडी लाभ और सेवाओं के लिये लक्षित वितरण अधिनियम, 2016 के तहत लाया गया जिसे आधार अधिनियम 2016 के नाम से जाना जाता है|
- इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत इसकी स्थापना 12 जुलाई, 2016 को हुई| लेकिन इसका सफर दरअसल काफी पुराना है|
- सरकार देश में कल्याण कार्यक्रमों पर हर साल अरबों रुपए खर्च करती है लेकिन इसका लाभ सही व्यक्ति तक पहुँचे इसलिये आधार योजना की शुरुआत की गई| साथ ही सरकारी योजनाओं के लाभ और जनता के बीच की खाई को पाटने के लिये आधार नंबर की कल्पना की गई|
- आधार के पीछे सुरक्षा और भ्रष्टाचार का मुद्दा भी जुड़ा हुआ है| सरकार अपने नागरिकों की पुख्ता पहचान सुनिश्चित करना चाहती है और इसके लिये भारत के सभी निवासियों को आधार नाम से एक विशिष्ट पहचान संख्या UID देने की शुरुआत हुई|
- डुप्लीकेट और फर्जी पहचान समाप्त करना इसके बुनियादी मकसद में से एक है| सरकारी कल्याण योजनाओं और सेवाओं के प्रभावी वितरण, पारदर्शिता और सुशासन को बढ़ावा देने में भी आधार को बुनियादी या प्राथमिक पहचानपत्र के रूप में इस्तेमाल करना बेहतर विकल्प था|
- UPA की पहली सरकार में विशिष्ट पहचान परियोजना पर सबसे पहले तत्कालीन योजना आयोग में विचार हुआ| पहली बार मार्च 2006 में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने गरीबी रेखा से नीचे बसे परिवारों के लिये विशिष्ट पहचान परियोजना की मंज़ूरी दी|
- UIDAI को लेकर जानी मानी आई टी कंपनी विप्रो ने पायलट प्रोजेक्ट तैयार किया| इसी दौरान सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और बहुद्देशीय राष्ट्रीय पहचान कार्ड बनाने पर भी काम कर रही थी|
- सरकार ने दिसंबर 2006 में अधिकार प्राप्त मंत्रियों का एक समूह बनाया जिसे राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और विशिष्ट पहचान संख्या परियोजना का काम पूरा करने की ज़िम्मेदारी दी गई|
- 28 जनवरी, 2008 को अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह ने NIR और UIDAI के प्लान की रणनीति पर चर्चा की और आख़िरकार योजना आयोग के अधीन UIDAI स्थापित करने के प्रस्ताव को मंज़ूर किया गया|
- इसके बाद 4 नवंबर, 2008 को मंत्रियों के समूह ने सचिवों की सिफारिशों के आधार पर UIDAI के गठन को अंतिम मंज़ूरी दी| इसके लिये 28 जनवरी, 2006 को योजना आयोग के संरक्षण में 15 अधिकारियों की कोर टीम के साथ एक अलग कार्यालय को अधिसूचित किया गया|
- 2 जुलाई, 2009 को केंद्रीय मंत्रिपरिषद की अनुसंशा के बाद भारत सरकार ने नंदन एम निलेकड़ी की कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ UIDAI के अध्यक्ष के रूप में पाँच साल के लिये नियुक्ति की| इसके बाद UIDAI की भूमिका लगातार बढ़ती गई|
- UIDAI ने कई स्तरों पर आँकड़े इकट्ठे किये| लोगों के हाथों की उँगलियों के निशान और आँख की पुतली जैसी बायोमेट्रिक पहचान संबंधी जानकारी इकठ्ठा की गई|
- इसके लिये देश भर में बड़ा अभियान चलाया गया| UIDAI ने 30 सितंबर, 2010 को महाराष्ट्र के निवासी नंदोर को पहला आधार नंबर जारी किया|
- 2013 के दौरान UIDAI ने हर महीने करीब ढाई करोड़ की औसत से 29 करोड़ 10 लाख आधार कार्ड जारी किये|
- 2014 से इस कार्य में और तेज़ी आई| देश में फ़िलहाल 122 करोड़ से ज़्यादा लोगों को आधार कार्ड जारी किये जा चुके हैं|
- आधार अधिनियम 2016 के तहत अब UIDAI को संविधिक संस्था का दर्जा मिल चुका है| 12 जुलाई, 2016 से अब यह संस्था वैधानिक हो चुकी है|
निष्कर्ष : पिछले काफी समय से आधार संख्या से जुड़े ब्योरे के असुरक्षित होने को लेकर सवाल उठते रहे हैं तथा आधार की अनिवार्यता और सुरक्षा के मसले पर दायर मुकदमों की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है। आधार नंबर जारी करने वाली एजेंसी यूआईडीएआई ने अपनी व्यवस्था में सुरक्षा की उपरोक्त कड़ियाँ और जोड़ दी हैं। पिछले काफी समय से आधार से जुड़ी असुरक्षा और इसके ज़रिये होने वाली गड़बड़ियों को लेकर उठने वाले सवालों से निपटने के लिये प्राधिकरण ने चेहरा पहचान की यह नवीन तकनीक अपनाई है। अब देखना यह होगा कि वर्चुअल आईडी के बाद चेहरा पहचान (face recognition) की नई व्यवस्था लागू होने के पश्चात् 'आधार' के सुरक्षित होने को लेकर लोगों की आशंकाएँ दूर होती हैं या नहीं। इसके अलावा निजता और सुरक्षा के साथ-साथ पहचान-पत्र के रूप में आधार नंबर की व्यवस्था से जुड़ी कई शंकाओं का संतोषजनक समाधान निकलना अभी बाकी है। देश में अब भी डेटा सुरक्षा कानून या निजता सुरक्षा के लिये कोई नियम नहीं हैं, इन चिंताओं पर गंभीरता से विचार किये जाने की ज़रूरत है। हालाँकि डेटा सुरक्षा पर न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति की व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल 2018 के मसौदे की बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट से आशा की किरण ज़रूर दिखाई देती है लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना अभी बाकी है कि डेटाबेस 100 प्रतिशत सुरक्षित है|