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देश-देशांतर: EVM या BALLOT...?

  • 22 Mar 2018
  • 28 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
हाल ही में नई दिल्ली में हुए कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में बैलट के माध्यम से चुनाव करवाने का प्रस्ताव पारित किया गया। हालिया वर्षों में देश में हुए चुनावों-उपचुनावों में ईवीएम अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM-Electronic Voting Machine) की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। EVM के इस्तेमाल को लेकर देश में एक बहस बराबर छिड़ी रहती है और अधिकांशतः सत्ता से बाहर रहने वाले दलों द्वारा इसका विरोध किया जाता है। कुछ क्षेत्रीय दल भी बैलट के माध्यम से चुनाव करवाने का समर्थन करते रहे हैं।

तमाम दलों को EVM के खिलाफ एकजुट होता देख केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने भी संकेत दिए कि अगर सभी दलों में सहमति बनती है तो भविष्य में EVM के बजाय  बैलट पेपर से चुनाव कराए जाने पर विचार किया जा सकता है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि बैलट पेपर के स्थान पर EVM को सभी दलों की सहमति के बाद ही लाया गया था। 

क्यों ज़रूरत पड़ी?
स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव किसी भी देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसमें निष्पक्ष, सटीक तथा पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया में ऐसे परिणाम शामिल हैं जिनकी पुष्टि स्वतंत्र रूप से की जा सकती है। परंपरागत मतदान प्रणाली (बैलट) इन लक्ष्यों में से अधिकांश को पूरा करती है, लेकिन फर्जी मतदान तथा मतदान केंद्रों पर कब्जा जैसा दोषपूर्ण व्यवहार निर्वाची लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरे हैं। निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिये निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार के प्रयास निरंतर करता रहा है। इसी कड़ी में जब लगभग सभी दलों में सहमति बनी और बात EVM पर आकर रुकी तो सार्वजनिक क्षेत्र के दो प्रतिष्ठानों--भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलौर तथा इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से निर्वाचन आयोग ने EVM की खोज तथा डिज़ाइनिंग की।

भारत में EVM का क्रमिक विकास 

  • EVM का पहली बार इस्तेमाल मई 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 मतदान केन्द्रों पर हुआ। 
  • 1983 के बाद इन मशीनों का इस्तेमाल इसलिये नहीं किया गया कि चुनाव में वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को वैधानिक रूप दिये जाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय का आदेश जारी हुआ था। 
  • दिसम्बर 1988 में संसद ने इस कानून में संशोधन किया तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 में नई धारा-61ए जोड़ी गई जो आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है। यह संशोधित प्रावधान 15 मार्च, 1989 से प्रभावी हुआ।
  • केंद्र सरकार द्वारा फरवरी 1990 में अनेक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई गई। भारत सरकार ने EVM के इस्तेमाल संबंधी विषय विचार के लिये चुनाव सुधार समिति को भेजा।
  • 24 मार्च, 1992 को विधि तथा न्याय मंत्रालय ने भारत के निर्वाचक कानून में आवश्यक संशोधन की अधिसूचना जारी की।
  • निर्वाचन आयोग चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को वास्तविक इस्तेमाल के लिये स्वीकार करने से पहले उनके मूल्यांकन के लिये समय-समय पर तकनीकी विशेषज्ञ समितियों का गठन करता है। 
  • नवम्बर 1998 के बाद से आम चुनाव/उप-चुनावों में प्रत्येक संसदीय तथा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में EVM का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत 2004 के आम चुनाव में देश के सभी मतदान केंद्रों पर 10.75 लाख EVM के इस्तेमाल के साथ ई-लोकतंत्र में परिवर्तित हो गया। तब से सभी चुनावों में EVM का इस्तेमाल किया जा रहा है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

EVM की प्रमुख विशेषताएँ

  • इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि यह छेड़छाड़ मुक्त तथा संचालन में सरल है और मज़े की बात यह है कि इसकी इसी विशेषता पर सवाल खड़े किये जाते रहे हैं।
  • नियंत्रण इकाई के कामों को नियंत्रित करने वाले प्रोग्राम को 'एक बार प्रोग्राम बनाने योग्य आधार पर' माइक्रो चिप में नष्ट कर दिया जाता है। नष्ट होने के बाद इसे पढ़ा नहीं जा सकता, इसकी कॉपी नहीं हो सकती या कोई बदलाव नहीं हो सकता।
  • EVM मशीनें अवैध मतों की संभावना कम करती हैं, गणना प्रक्रिया तेज बनाती हैं तथा मुद्रण लागत घटाती हैं। 
  • EVM मशीन का इस्तेमाल बिना बिजली के भी किया जा सकता है क्योंकि मशीन बैटरी से चलती है। 
  • यदि उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक नहीं होती तो EVM के इस्तेमाल से चुनाव कराए जा सकते हैं। 
  • एक EVM मशीन अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है। 

EVM सुरक्षा का मुद्दा (छेड़छाड़ संभव नहीं)

  • EVM को लेकर कुछ सवाल समय-असमय चर्चा में बने रहते हैं। इनके जवाब में निर्वाचन आयोग बार-बार कहता रहा है कि EVM और उनसे संबंधित प्रणालियाँ सुदृढ़, सुरक्षित और छेड़खानी मुक्त हैं। 
  • टैम्परिंग या छेड़खानी का अर्थ है, कंट्रोल यूनिट की मौजूदा माइक्रो चिप्स पर लिखित साफ्टवेयर प्रोग्राम में बदलाव करना या सीयू में नई माइक्रो चिप्स इंसर्ट करके दुर्भावनापूर्ण साफ्टवेयर प्रोग्राम शुरू करना और  बैलट यूनिट में प्रेस की जाने वाली ऐसी ‘कीज़’ बनाना, जो कंट्रोल यूनिट में दर्ज परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखती हो।
  • EVM कम्प्यूटर नियंत्रित नहीं हैं, बल्कि स्वतंत्र मशीनें हैं और इंटरनेट और/या किसी अन्य नेटवर्क के साथ कभी भी कनेक्ट नहीं होती। अतः किसी रिमोट डिवाइस के ज़रिये इन्हें हैक करने की कोई गुंजाइश नहीं है।
  • EVM में वायरलेस या किसी बाहरी हार्डवेयर पोर्ट के लिये किसी अन्य गैर-EVM एक्सेसरी के साथ कनेक्शन के ज़रिये कोई फ्रीक्वेंसी रिसीवर या डेटा के लिये डीकोडर नहीं है। अतः हार्डवेयर पोर्ट या वायरलेस या वाईफाई या ब्लूटूथ डिवाइस के ज़रिये किसी प्रकार की टैम्परिंग संभव नहीं है ।
  • सॉफ्टवेयर की सुरक्षा के बारे में विनिर्माता के स्तर पर कड़ा सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किया जाता है। ये मशीनें 2006 से अलग-अलग वर्षों में विनिर्मित की जा रही हैं। विनिर्माण के बाद EVM को राज्य और किसी राज्य के भीतर एक से दूसरे जिले में भेजा जाता है। विनिर्माता इस स्थिति में नहीं हो सकते कि वे कई वर्ष पहले यह जान सकें कि कौन-सा उम्मीदवार किस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा और  बैलट यूनिट में उम्मीदवारों का क्रम क्या होगा। 
  • प्रत्येक EVM का एक सीरियल नम्बर होता है और निर्वाचन आयोग EVM-ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने डेटाबेस से यह पता लगा सकता है कि कौन सी मशीन कहाँ पर है। अतः विनिर्माण के स्तर पर हेराफेरी की कोई गुंजाइश नहीं है।
  • कंट्रोल यूनिट का इस्तेमाल करके सक्षम किये गए प्रत्येक  बैलट के लिये केवल एक वैध 'की-प्रेस' (प्रथम की-प्रेस) होता है। एक बार वैध 'की-प्रेस' होने (वोटिंग प्रक्रिया पूरी होने) पर कंट्रोल यूनिट सीयू और बैलट यूनिट के बीच कोई गतिविधि तब तक नहीं होती, जब तक कि कंट्रोल यूनिट द्वारा अन्य  बैलट सक्षम बनाने वाली 'की-प्रेस' की व्यवस्था नहीं कर दी जाती। 
  • परानी EVM मशीनों को हटाने के लिये निर्वाचन आयोग ने एक मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) निर्धारित की है। EVM और उसके चिप को नष्ट करने की प्रक्रिया को विनिर्माताओं की फैक्टरी के भीतर राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी या उसके प्रतिनिधि की मौजूदगी में अंजाम दिया जाता है।
  • EVM मशीन को 100 प्रतिशत टैम्परिंग मुक्‍त बनाने के लिये कई अन्‍य कदमों के अलावा वन टाइम प्रोग्रामेबल (OTP) माइक्रो-कंट्रोलर्स, की-कोड्स की डायनामिक कोडिंग, प्रत्‍येक 'की-प्रेस' की तिथि एवं समय की स्‍टाम्पिंग, उन्‍नत इन्क्रिप्शन प्रौद्योगिकी एवं EVM लॉजिस्टिक्‍स के संचालन के लिये EVM ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर जैसी सर्वाधिक परिष्‍कृत प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाता है। 
  • नए मॉडल के EVM में टैम्परर डिटेक्‍शन एवं सेल्‍फ डाइगनोस्टिक्‍स जैसी अतिरिक्‍त विशेषताएँ भी हैं। 
  • सॉफ्टवेयर प्रोग्राम कोड दोनों निर्माता कंपनियों द्वारा आं‍तरिक तरीके से तैयार किया जाता है और उन्‍हें आउटसोर्स नहीं किया जाता। 
  • सॉफ्टवेयर प्रोग्राम कोड दोनों निर्माता कंपनियों द्वारा आं‍तरिक तरीके से तैयार किया जाता है और उन्‍हें आउटसोर्स नहीं किया जाता। सॉफ्टवेयर ओटीपी पर आधारित होता है, इसलिये प्रोग्राम को न तो बदला जा सकता है, न ही इसे रिराइट किया जा सकता है। इस प्रकार यह EVM को टैम्परिंग मुक्‍त बना देता है। अगर कोई ऐसा प्रयास करता भी है तो मशीन निष्क्रिय हो जाती है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

EVM के साथ VVPAT
EVM से छेड़छाड़ के निरंतर लगने वाले आरोपों के चलते निर्वाचन आयोग ने फैसला किया है कि भविष्य में होने वाले लोकसभा एवं राज्य विधानसभा के सभी चुनावों में VVPAT अर्थात् मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (Voter Verified Paper Audit Trail-VVPAT) का इस्‍तेमाल किया जाएगा। 

क्या है VVPAT?
VVPAT मशीनें EVM के माध्यम से डाले जाने वाले प्रत्येक मत का प्रिंटआउट देती हैं, जो एक बॉक्स में एकत्र होते रहते हैं। इनका उपयोग चुनावों से संबंधित किसी भी विवाद का निराकरण करने के लिये किया जा सकता है। EVM की तरह इसे भी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा डिज़ाइन किया गया है। VVPAT का सर्वप्रथम प्रयोग 2013 में नगालैंड के निर्वाचन में किया गया था।

  • VVPAT एक प्रकार की मशीन है, जिसे EVM के साथ जोड़ा जाता है।
  • यह मशीन वोट डाले जाने की पुष्टि करती है और इससे मतदान की पुष्टि की जा सकती है। 
  • VVPAT के साथ प्रिंटर की तरह का एक उपकरण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से जुड़ा होता है। 
  • इसमें मतदाता द्वारा उम्मीदवार के नाम का बटन दबाते ही, उस उम्मीदवार के नाम और राजनीतिक दल के चिह्न की पर्ची अगले 10 सेकेंड में मशीन से बाहर निकल जाती है।
  • पर्ची एक बार दिखने के बाद EVM से जुड़े सुरक्षित बॉक्स में चली जाती है। EVM में लगी स्क्रीन पर यह पर्ची 7 सेकेंड तक दिखती है।
  • VVPAT की मदद से प्रत्येक मत से संबंधित जानकारियों को प्रिंट करके मशीन में स्टोर कर लिया जाता है और विवाद की स्थिति में इस जानकारी की मदद से इन विवादों का निपटारा किया जा सकता है।

नोटा-उपरोक्त में कोई नहीं (None Of The Above-NOTA) 
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाता को निर्वाचन क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों के प्रति असंतोष व्यक्त करने तथा नकारात्मक मत देने का अधिकार दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को लागू करने के लिए निर्वाचन आयोग ने EVM में NOTA का बटन जोड़ा। इस बटन को दबाकर मतदाता यह व्यक्त कर सकता है कि वह किसी भी उम्मीदवार के लिए मत देना नहीं चाहता। यह व्यवस्था मतदाताओं को गोपनीय रूप से अपनी इच्छा व्यक्त करने योग्य बनाती है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

भारत में लोकतंत्र की अवधारणा तथा निर्वाचक कानून
संविधान में लोकतंत्र की अवधारणा निर्वाचन के ज़रिये संसद तथा राज्य विधानपालिकाओं में जनप्रतिनिधित्व को मानती है। लोकतंत्र के बने रहने के लिए विधि का शासन आवश्यक है और यह भी आवश्यक है कि देश के उचित शासन के लिए सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध व्यक्ति को जनप्रतिनिधि चुना जाना चाहिये। सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध व्यक्ति को जनप्रतिनिधि चुनने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होने चाहिये तथा चुनाव ऐसे वातावरण में कराए जाने चाहिये जिसमें मतदाता अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार अपने मताधिकार का प्रयोग करें। 

इस तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र का आधार है। भारत ने संसदीय प्रणाली की सरकार की ब्रिटिश वेस्टमिन्सटर प्रणाली अपनाई है। देश में निर्वाचित राष्ट्रपति, निर्वाचित उपराष्ट्रपति, निर्वाचित संसद तथा प्रत्येक राज्य के लिए निर्वाचित राज्य विधानमण्डल है। निर्वाचित नगरपालिकाएँ, पंचायतें तथा अन्य स्थानीय निकाय हैं। इन पदों तथा निकायों के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए तीन पूर्व आवश्यकताएँ हैं--1. इन चुनावों को सम्पन्न कराने के लिए एक प्राधिकार जो राजनीतिक तथा कार्यपालक हस्तक्षेप से मुक्त हो, 2. ऐसे कानून जो चुनाव संचालन को शासित करें और जिनके अनुसार इन चुनावों को कराने के लिए जिम्मेदार प्राधिकार हो, 3. एक ऐसी व्यवस्था हो जो इन चुनावों से संबंधित सभी संदेहों तथा विवादों का समाधान करे। 

निर्वाचन आयोग 
संविधान ने एक स्वतंत्र भारत निर्वाचन आयोग का गठन किया है। आयोग में भारत के  राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति तथा संसद और राज्य विधानपालिकाओं के चुनाव के लिए मतदाता सूचियों की तैयारी तथा चुनाव की देखरेख, निर्देशन तथा नियंत्रण की शक्ति निहित है(अनुच्छेद-324)। 

निर्वाचक कानून

  • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा संसद और राज्य विधानपालिकाओं के चुनावों के लिए कानून बनाने का अधिकार संसद द्वारा दिया गया है (अनुच्छेद-71 तथा 327)। 
  • इसी प्रकार नगरपालिकाओं, पंचायतों तथा अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिए स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकार का गठन किया गया है।  इनके चुनाव कराने संबंधी कानून राज्य विधानपालिकाएं बनाती हैं (अनुच्छेद 243K तथा 243ZA)। 
  • राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के चुनावों से संबंधित सभी संदेहों, विवादों का निपटारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है (अनुच्छेद-71)।
  • संसद तथा राज्य विधानपालिकाओं के चुनाव से संबंधित सभी संदेहों तथा विवादों को निपटाने का अधिकार संबद्ध राज्य के उच्च न्यायालय को है। इनमें सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार भी है (अनुच्छेद-329)। 
  • नगरपालिकाओं आदि के चुनावों से संबंधित विवाद के मामलों का निर्धारण राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार निचली अदालतें करती हैं।  
  • राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव से संबधित कानून संसद द्वारा राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम, 1952 बनाए गए हैं। इस अधिनियम की प्रतिपूर्ति राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति निर्वाचन नियम, 1974 द्वारा की गई है और इसके आगे सभी पक्षों पर निर्देश निर्वाचन आयोग द्वारा दिए जाते हैं।  
  • संसद तथा राज्य विधानपालिकाओं के चुनाव करने संबंधी प्रावधान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में निहित हैं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 मुख्यतः निर्वाचन सूचियों की तैयारी तथा पुनरीक्षण से संबंधित है, जबकि चुनाव के वास्तविक संचालन से संबंधित सभी विषय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों से शासित होते हैं।

बैलट पेपर से मतदान की मांग कितना सही?
1962 से लेकर 2001 तक देश में बैलट पेपर के ज़रिये चुनाव हुए थे। इस दौर में राजनीति में बाहुबल और गुंडागर्दी (चुनावी हिंसा) की शुरुआत के साथ ही बूथ कब्जाने, बैलट बॉक्स में पहले ही बैलट पेपर से भर दिये जाने जैसी घटनाएँ भी सामने आई थीं। भारी संख्या में सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बाद भी  बैलट बॉक्स लूटे जाते थे। देश के कई राज्यों से इस प्रकार की घटनाएं बराबर सामने आती रहीं। 

जब बैलट से मतदान होता था तब बिहार तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह माना जाता था कि जो बाहुबल के धनी नहीं हैं उनके लिये चुनाव जीतना असंभव-सा है। कई बार ऐसा भी देखा जाता था कि बूथ कब्ज़ाने या छापने की वज़ह से कुछ सीटों पर कुल वोटरों की संख्या से ज्यादा मतदान हो जाता था। ऐसी घटनाओं में न केवल जान-माल का नुकसान होता था, बल्कि देश के लोकतंत्र का भी उपहास होता था। 

मतदान को आसान, कम समय में और धांधली मुक्त बनाने के लिये EVM का इस्तेमाल शुरू हुआ जो बेहद सफल रहा है। EVM का इस्तेमाल होने से नेता और अपराधियों की साँठगाँठ लगभग समाप्त हो गई और इसके साथ ही बूथ कैप्चरिंग के लिये अपराधियों को संरक्षण देने का भी अंत हो गया। चुनाव जीतने के लिये नेता, अपराधियों से साँठगाँठ रखते थे और यही अपराधी बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं को अंजाम देते थे, जिसके परिणामस्वरूप चुनाव के बाद भी अपराधियों पर नेताओं का वरदहस्त बना रहता था और इससे कानून व्यवस्था प्रभावित होती थी। 

पहला आम चुनाव 

  • 1952 में हुए पहले आम चुनाव में मतदाताओं को उस समय चलने वाले एक रुपए के नोट के आकार वाली पर्ची दी गई थी। 
  • इस पर्ची पर न तो उम्मीदवार का नाम दर्ज होता था, न चुनाव चिह्न। पर्ची पर बैलट पेपर नम्बर तथा राष्ट्रीय चिह्न दर्ज रहता था।
  • मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार की मतपेटी में अपनी पर्ची डाल देता था। 
  • इस मतपेटी के अंदर भी उम्मीदवार का चुनाव चिह्न रखा जाता था ताकि मतों की गिनती में कोई गड़बड़ी न होने पाए। 
  • इन मतपेटियों को सीलबंद कर अलग-अलग मतगणना की जाती थी।
  • अनुसूचित जाति/जनजाति के उम्मीदवारों के चयन के लिये कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को डबल सीट के रूप में चिह्नित किया गया था। 
  • इन क्षेत्रों मे प्रत्येक मतदाता को दो वोट देने होते थे और आरक्षित सीटों के प्रत्याशियों के चुनाव चिह्न पर गोला बनाया जाता था। 
  • सभी राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव भी लोकसभा के साथ हुआ था, इसलिये कुल 4500 सीटों के लिये 18 हज़ार से अधिक उम्मीदवार थे।
  • 17.6 करोड़ मतदाताओं का पंजीकरण हुआ था और प्रति मतदाता खर्च 60 पैसे आया था। 
  • 3.8 लाख पेपर रिम्स का उपयोग  बैलट पेपर बनाने के लिये किया गया था।
  • 3.90 लाख स्याही के पैक का उपयोग मतदाताओं की उंगलियों पर निशान लगाने को किया गया था।
  • मतदान के लिये 7.20 लाख  बैलट बॉक्स के निर्माण हेतु 8200 टन स्टील लगा था।

(टीम दृष्टि इनपुट)

विदेशों में क्या है स्थिति? 
कम-से-कम 24 देश ऐसे हैं जहाँ किसी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग या इस तरह की अन्य प्रणाली को अपनाया गया है। इनमें एस्टोनिया जैसे छोटे देशों से लेकर सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका तक शामिल है। लेकिन भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहाँ शत-प्रतिशत मतदान EVM के माध्यम से होता है। जर्मनी जैसे कुछ देशों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली अपनाई थी और बाद में मतपत्र प्रणाली पर लौट गए। किसी-न-किसी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली अपनाने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राज़ील, कनाडा, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, इटली, कज़ाखस्तान, लिथुआनिया, नीदरलैंड, नॉर्वे, फिलिपींस, रोमानिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्विट्ज़रलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और वेनेज़ुएला शामिल हैं। अमेरिका 241 साल पुराना लोकतंत्र है, लेकिन वहाँ अब भी कोई एक समान मतदान प्रणाली नहीं है। कई राज्य मतपत्रों का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ वोटिंग मशीनों से चुनाव कराते हैं।

निष्कर्ष:  बैलट से चुनाव कराने के समर्थक कहते हैं कि इसमें आपत्ति क्यों है? दुनिया के सभी विकसित देशों में  बैलट पेपर से चुनाव होते हैं, तो क्या वे पिछड़े और तकनीकी रूप से अक्षम हैं? लेकिन बात तकनीक की नहीं है, समय के पहिये को दो दशक पहले की तरफ घुमाने से कोई लाभ होने वाला नहीं है। आज के 18-20 वर्ष के अधिकांश युवा मतदाताओं ने तो बैलट पेपर देखा ही नहीं है। इसलिये जो लोग इसके समर्थक हैं और जो इसके विरोधी हैं, उन्हें यह समझना होगा कि 'सिस्टम खराब है' या 'सिस्टम में खराबी है' दो निहायत अलग बातें हैं। यदि कोई खामी है भी तो सुधारात्मक 'सुझावों' की ओर जाना चाहिये, न कि वापस पुराने ढर्रे पर लौटना चाहिये। भारतीय EVM एक स्‍वतंत्र प्रणाली है, जो किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़ी है। इसलिये व्‍यक्तिगत रूप से किसी के लिये भी 1.4 मिलियन मशीनों के साथ छेड़छाड़ करना असंभव है। मतदान के दौरान देश में पहले होने वाली चुनावी हिंसा एवं फर्जी मतदान, बूथ कैप्‍चरिंग आदि जैसी अन्‍य चुनाव संबंधी गलत प्रचलनों को देखते हुए EVM भारत के लिये सर्वाधिक अनुकूल है।

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