रक्षा कूटनीति | 03 Sep 2022
प्रिलिम्स के लिये:मिलन अभ्यास, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, अर्जुन MK2, HADR ऑपरेशन मेन्स के लिये:रक्षा कूटनीति और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
रक्षा कूटनीति आज देशों द्वारा अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिये उपयोग किया जाने वाला एक तेज़ी से लोकप्रिय उपकरण बनता जा रहा है।
रक्षा कूटनीति क्या है?
- रक्षा कूटनीति को व्यापक रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा के निर्माण और रखरखाव के लिये सैन्य-से-सैन्य बातचीत, गतिविधियों और नीतियों के रूप में समझा जाता है ।
- इस कूटनीति में अधिक उन्नत नौसैनिक जुड़ाव, सैन्य अभ्यास और रक्षा निर्यात के लिये बढ़े हुए प्रयास शामिल हैं।
भारत की रक्षा कूटनीतिै
- सागर पहल:
- 2015 में मॉरीशस में एक भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) सिद्धांत का अनावरण, जिसने रणनीतिक हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की प्रतिबद्धता और उपस्थिति को मज़बूत करने हेतु सक्रिय उपस्थिति की परिकल्पना की। जहाँ वर्तमान में भारतीय नौसेना एक संभावित सुरक्षा प्रदाता और सुरक्षा प्रदाता की भूमिका निभा रही है।
- भारतीय नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी नौसेनाओं में से एक है और 120 से अधिक शिप्स के एक शक्तिशाली तथा घातक नौसैनिक शस्त्रागार की उपस्थिति है जिसमें स्टील्थ फ्रिगेट, विध्वंसक, पनडुब्बियांँ (पारंपरिक और परमाणु संचालित दोनों), तटीय शिप आदि शामिल हैं।
- नौसेना ने 2017 से विशेष रूप से एक मुक्त खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने के रूप में सैन्य कूटनीति को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
- इसने मिलन और मालाबार जैसे नौसैनिक अभ्यासों के माध्यम से प्रदर्शित किया है कि यह न केवल भारत के अपने क्षेत्रों और विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) की सुरक्षा के लिये प्रतिबद्ध है, बल्कि अपने सहयोगियों की सहायता करेगा और अपने प्रतिद्वंद्वियों विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन के खिलाफ आक्रामक भूमिका निभाने से परहेज नहीं करेगा।
- 2015 में मॉरीशस में एक भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) सिद्धांत का अनावरण, जिसने रणनीतिक हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की प्रतिबद्धता और उपस्थिति को मज़बूत करने हेतु सक्रिय उपस्थिति की परिकल्पना की। जहाँ वर्तमान में भारतीय नौसेना एक संभावित सुरक्षा प्रदाता और सुरक्षा प्रदाता की भूमिका निभा रही है।
- दक्षिण पूर्व एशिया के साथ जुड़ाव:
- भारत की रक्षा कूटनीति के लिये एक प्रमुख चालक इस क्षेत्र विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में चीन की लगातार आक्रामक रहा है।
- हाल के वर्षों में, भारत ने कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ सहयोग तेज़ किया है। वे भी चीन को संतुलित करने और अपनी समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये भारत के साथ अपने सुरक्षा संबंधों का प्रसार करने के इच्छुक हैं।
- मिलन अभ्यास में प्रतिभागियों का बढ़ता आकार और अभ्यासों की जटिलता भारत की पश्चिम से दक्षिण पूर्व एशिया तक बढ़ती रक्षा कूटनीति प्रभाव का प्रतीक है ।
- रक्षा निर्यात:
- वर्ष 2024 तक रक्षा निर्यात के लिये 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य के साथ , भारत ने दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका को हथियार बेचने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है, जहाँ पर अभी तक चीनी रक्षा कंपनियांँ हावी हैं।
- भारत की गहन सैन्य कूटनीति से लाभ मिल रहा है क्योंकि फिलीपींस 375 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे के लिये ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल बैटरी खरीदने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है ।
- इसी तरह, बहरीन ने भारत से नए उन्नत और अधिक घातक अर्जुन मार्क 2 टैंक खरीदने में रुचि दिखाई है ।
- वर्ष 2024 तक रक्षा निर्यात के लिये 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य के साथ , भारत ने दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका को हथियार बेचने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है, जहाँ पर अभी तक चीनी रक्षा कंपनियांँ हावी हैं।
- भारतीय दूतावासों में स्थित रक्षा संलग्नकों की भूमिका को सुदृढ़ बनाना:
- घरेलू रक्षा औद्योगिक आधार के विस्तार और निर्यात को बढ़ावा देने के उपायों के अलावा, सरकार ने विदेशों में भारतीय दूतावासों में स्थित रक्षा संलग्नकों की भूमिका को भी मज़बूत किया है।
- एक रक्षा अताशे (DA) सशस्त्र बलों का एक सदस्य है जो विदेश में अपने देश के रक्षा प्रतिष्ठान के प्रतिनिधि के रूप में एक दूतावास में कार्य करता है और इस क्षमता में राजनयिक स्थिति और प्रतिरक्षा प्राप्त करता है।
- सरकार ने उन्हें अपने संबंधित बाज़ारों में भारतीय रक्षा उपकरणों को बढ़ावा देने के लिये 50,000 अमेरिकी डॉलर तक का वार्षिक बजट आवंटित किया है।
- इसके अलावा, उनकी बिक्री को सुदृढ़ करने के लिये, सरकार ने मित्र देशों को निर्यात के लिये तेजस लड़ाकू विमान और एस्ट्रा मिसाइल सहित कई 'मेड-इन-इंडिया' उपकरण को मंज़ूरी दे दी है।
- घरेलू रक्षा औद्योगिक आधार के विस्तार और निर्यात को बढ़ावा देने के उपायों के अलावा, सरकार ने विदेशों में भारतीय दूतावासों में स्थित रक्षा संलग्नकों की भूमिका को भी मज़बूत किया है।
- पड़ोसियों की मदद:
- निर्यात से परे, भारत ने अपने निकटवर्ती पड़ोसियों को उपकरण दान और स्थानांतरित करके अपनी नौसैनिक क्षमता का निर्माण करने में भी मदद की है।
- इसमें मॉरीशस (वर्ष 2015), श्रीलंका (वर्ष 2018), मालदीव (वर्ष 2019), और सेशेल्स (वर्ष 2021), साथ ही सेशेल्स (वर्ष 2013 और 2018) के लिये दो डोर्नियर विमान शामिल हैं।
- हालांँकि ये प्रयास सीमित हैं, इन कदमों के साथ, भारत इस क्षेत्र के लिये 'शुद्ध सुरक्षा प्रदाता' के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत करना चाहिये
- मानवीय सहायता:
- 'शुद्ध सुरक्षा प्रदाता' होने का एक प्रमुख तत्व क्षेत्र में मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) ऑपरेशन शुरू करने की क्षमता है।
- लंबे समय से, भारत HADR ऑपरेशन के मोर्चे पर अग्रणी रहा है, जैसा कि 2004 के हिंद महासागर में सुनामी, 2015 के नेपाल भूकंप और 2020 में मेडागास्कर में बाढ़ के दौरान देखा गया था।
- इसके अलावा, इस क्षेत्र में चरम मौसम की घटनाओं से प्राकृतिक आपदाओं की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में, भारत अपने प्रतिक्रिया तंत्र को बढ़ाने के लिये भागीदार देशों के साथ समन्वय कर रहा है।
- क्वाड के भीतर HDAR ऑपरेशन एक महत्त्वपूर्ण फोकस क्षेत्र बना हुआ है , लेकिन भारत ने बिम्सटेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल) देशों के साथ पैनेक्स -21 अभ्यास जैसी पहल की है ताकि इस तरह के संचालन के लिये आकस्मिकताओं की पृष्ठभूमि में परिकल्पना की जा सके।
- भारत के पश्चिम में संबंध:
- लंबे समय से पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों के चश्मे से देखे जाने पर, भारत ने अब पश्चिम एशियाई राजतंत्रों के साथ एक अलग साझेदारी प्रारंभ की है।
- रक्षा कूटनीति ने इस संबंध का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा गठित किया है।
- जब इस क्षेत्र में अब्राहम समझौते के साथ युगांतरकारी बदलाव और चीन की बढ़ती प्रोफ़ाइल देखी जा रही है, तो भारत ने नौसैनिक जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित करके अपने सुरक्षा सहयोग को आगे बढ़ाया है।
- उदाहरण के लिये, अगस्त 2021 में, भारत ने संयुक्त अरब अमीरात (ज़ायेद तलवार अभ्यास), बहरीन (समुद्री भागीदारी अभ्यास), और सऊदी अरब (अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास) के साथ बैक-टू-बैक संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया।
- संयुक्त अरब अमीरात (ज़ायद तलवार अभ्यास), बहरीन (समुद्री भागीदारी अभ्यास) और सऊदी अरब (अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास) के साथ बैक-टू-बैक संयुक्त नौसेना अभ्यास आयोजित करने के कारण भारत लाभ में रहा है।
- विशेष रूप से, भारत-सऊदी अरब अभ्यास दोनों के बीच पहला संयुक्त अभ्यास था।
- लंबे समय से पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों के चश्मे से देखे जाने पर, भारत ने अब पश्चिम एशियाई राजतंत्रों के साथ एक अलग साझेदारी प्रारंभ की है।
आगे की राह
- भारत-प्रशांत में बढ़ती चीनी समुद्री दृढ़ता से निपटने के साथ-साथ अफगानिस्तान में सामने आ रही सुरक्षा स्थिति के प्रतिकूल क्षेत्रीय नतीजों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, भारत ने क्षेत्रीय कूटनीति को आकार देने के लिये अपने रक्षा बलों का तेज़ी से लाभ उठाया है।
- ये पहलें भारत को एक सतत सहकारी जुड़ाव बनाने और पूरे क्षेत्र में साझेदारी का एक वेब बनाने में मदद कर रही हैं । इन साझेदारियों को बनाए रखने के लिये भारत को अपनी नौसेना, अभियान और रसद क्षमताओं में अधिक निवेश करने की आवश्यकता होगी।
- दुनिया वर्तमान में विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण प्रवाह की स्थिति में है, जिसने पश्चिम और दुनिया का ध्यान यूरोप की सुरक्षा स्थिति की ओर मोड़ दिया है।
- जबकि युद्ध का परिणाम भारत के लिये रक्षा के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
- विशाल मोस्कवा के डूबने और कीव की ओर अपने मार्च में रूस को जो उलटफेर झेलना पड़ा, उसने दिखाया कि भारत को अपनी रक्षा बास्केट का तेज़ी से विस्तार करने की आवश्यकता है।
- नतीजतन, भारत लड़ाकू जेट और विमान वाहक जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों के लिये स्वदेशी तकनीक का तेज़ी से उपयोग कर रहा है।
- लेकिन रक्षा कूटनीति विदेश नीति तक ही सीमित नहीं है। इसलिये, एक स्वतंत्र स्तंभ का अनुसरण करने के बजाय, विदेश और रक्षा दोनों नीतियों में एकीकरण सुनिश्चित करना चाहिये जिससे राष्ट्रीय हितों को संरक्षित और संवर्द्धित किया जा सके।