भारतीय राजनीति
न्यायपालिका एवं RTI
- 16 Nov 2019
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13 नवंबर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के (Chief Justice of India- CJI) कार्यालय को सार्वजनिक प्राधिकरण (Public Authority) बताते हुए इसे RTI के दायरे में ला दिया है। यह निर्णय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने दिया है। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, एन.वी. रमन्ना, डी. वाई. चंद्रचूड, दीपक गुप्ता एवं संजीव खन्ना शामिल थे। इस निर्णय के बाद अब ‘सूचना का अधिकार’ (Right to Information- RTI) के तहत आवेदन देकर CJI के कार्यालय से सूचना मांगी जा सकती है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि गोपनीयता, स्वायत्तता एवं पारदर्शिता में संतुलन जरूरी है।
दरअसल न्यायिक व्यवस्था के दो पक्ष होते हैं- एक न्यायपालिका दूसरा न्यायपालिका का प्रशासन। उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि न्यायपालिका RTI के दायरे में न तो पहले आती थी न अब। किंतु न्यायपालिका का न्यायिक प्रशासन सार्वजनिक प्राधिकरण होने के कारण RTI के अंतर्गत आता है।
ज्ञातव्य है कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण से तात्पर्य ऐसी संस्थाओं से है:
- जो संविधान या इसके अधीन बनाई गए किसी अन्य विधान द्वारा निर्मित हो;
- राज्य विधानमंडल द्वारा या इसके अधीन बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा निर्मित हो;
- केंद्र या राज्य सरकार द्वारा जारी किसी अधिसूचना या आदेश द्वारा निर्मित हो;
- पूर्णत: या अल्पत: सरकारी सहायता प्राप्त हो।
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के पश्चात् CJI कार्यालय द्वारा RTI आवेदन स्वीकार कर सूचना प्रदान की जाएगी। ज्ञातव्य है कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2(f) के अनुसार सूचना का अर्थ है- अभिलेख, दस्तावेज़, ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस-प्रकाशन, परिपत्र, आदेश, लॉग बुक, संविदा, रिपोर्ट, नमूने, आँकड़ा या यांत्रिक रूप में उपलब्ध कोई भी डेटा या सामग्री जिसकी जानकारी जन प्राधिकारी द्वारा विधिवत प्रदान की जा सकती है।
पृष्ठभूमि
- ज्ञातव्य है कि यह निर्णय आरटीआई कार्यकर्त्ता सुभाष अग्रवाल के वर्ष 2009 में सूचना के अनुरोध से संबंधित है। आरटीआई कार्यकर्त्ता ने पूछा था कि “क्या सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों ने 1997 में पारित एक प्रस्ताव के बाद CJI के समक्ष अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा की थी?”
- सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (Secretary General and the Central Public Information Officer- CPIO) ने यह कहते हुए कि CJI का कार्यालय RTI अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, सूचना देने से मना कर दिया था।
- यह मामला मुख्य सूचना आयुक्त के पास पहुँचा, जहाँ 6 जनवरी, 2009 को तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त की अध्यक्षता में एक पूर्ण पीठ ने सूचना देने का निर्देश दिया।
- मुख्य सूचना आयुक्त के इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की। जहाँ दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय RTI अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है।
- वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने पुन: दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसकी सुनवाई करते हुए संवैधानिक पीठ ने उपरोक्त निर्णय दिया है।
स्वतंत्र न्यायपालिका v/s पारदर्शिता
स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा को केशवानंद भारती मामले में “संविधान के आधारभूत ढाँचे” के अंतर्गत रखा गया था। अत: किसी भी रूप में इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे ध्यान में रखते हुए स्पष्ट किया कि पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता है, पारदर्शिता स्वतंत्र न्यायपालिका के कार्य में बाधक नहीं है बल्कि यह स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा को और सशक्त बनाती है। पारदर्शिता रहने से कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से न्यायिक स्वायत्तता को संकुचित करने का प्रयास नहीं कर सकता।
निजता का अधिकार v/s पारदर्शिता एवं सूचना का अधिकार
न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि RTI के अंतर्गत न्यायाधीशों की संपत्ति आदि की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है क्योंकि इससे न्यायाधीशों के निजता का अधिकार प्रभावित होगा।
न्यायालय ने कहा है कि प्रत्येक RTI के अंतर्गत ‘मोटिव’ या ‘उद्देश्य’ को ध्यान में रखना होगा। अगर कहीं जनहित में सूचनाओं की मांग हो, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा हेतु किसी मामले में गोपनीयता की आवश्यकता होगी तो गोपनीयता को वरीयता दी जाएगी।
कॉलेजियम व्यवस्था v/s सूचना का अधिकार
कॉलेजियम व्यवस्था के संबंध में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कॉलेजियम में सूचनाओं को दो रूपों में देखा जा सकता है - प्रथम ‘इनपुट’ एवं दूसरा ‘आउटपुट’। कॉलेजियम का ‘आउटपुट’ न्यायाधीशों के चयन से संबंधित अंतिम निर्णय है जो सार्वजनिक होती है किंतु ‘इनपुट’ के अंतर्गत न्यायाधीशों की विभिन्न सूचनाओं का डेटा होता है जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे न्यायाधीशों की निजता के अधिकार का हनन होगा।
इस पूरे मामले को एक वेन डायग्राम के ज़रिये ऐसे समझा जा सकता है: