द बिग पिक्चर: चीन का अड़ियल रवैया; भारत को नई चीन नीति की ज़रूरत? | 07 Jul 2017
संदर्भ
इस बहुचर्चित मुद्दे पर इधर हाल में जितनी चर्चाएँ हुईं तथा लेखादि लिखे गए, उतने किसी और विषय पर संभवतः नहीं| एक महीने से अधिक समय से सिक्किम-तिब्बत-भूटान सीमा के डोका-ला क्षेत्र में भारत-चीन के सैनिक आमने-सामने डटे हैं| दोनों ओर से गरमागरम बयान जारी किये जा रहे हैं, विशेषकर चीन की ओर से दी जा रही धमकियां| युद्ध तो नहीं, पर युद्ध जैसा माहौल है—स्थिति तनावपूर्ण किंतु नियंत्रण में है| यह भी स्पष्ट है कि युद्ध कोई नहीं चाहता, ऐसे में भारत के सामने प्रश्न यह है की वह चीन की धौंस-पट्टी का जवाब कैसे दे? चीन कभी युद्ध की बात करता है तो कभी पंचशील की| सीमा पर दोनों ओर सैनिक जमे हैं और वाक्पटुता का दौर जारी है |
इस परिचर्चा में केवल एक ही बिंदु पर प्रकाश डाला गया है कि क्या चीन की हठधर्मिता को देखते हुए भारत को अपनी चीन नीति पर पुनर्विचार कर उसमें कुछ बदलाव करने चाहिये?
प्रमुख बिंदु
- दोनों देश 1962 की दुश्मनी को पीछे छोड़कर काफी आगे निकल आए हैं तथा द्विपक्षीय एवं वैश्विक स्थितियों ने हालात बिल्कुल बदल दिये हैं|
- विगत कुछ वर्षों से चीन के राष्ट्रपति ज़ी जिनपिंग विश्वभर में चीन की नई छवि गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं, और वह नहीं चाहता कि दुनिया उसे उत्तर कोरिया के बड़े भाई के तौर पर जाने|
- चीन के राष्ट्रपति इधर कुछ वर्षों से विश्व में आर्थिक एकीकरण और आर्थिक सुधारों के सबसे बड़े पैरोकार बनकर उभरे हैं और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर संरक्षणवाद की तीव्र आलोचना की है|
- चीन आज एक बड़ी सैन्य शक्ति है, लेकिन उसके आर्थिक हित भारत से इस प्रकार जुड़े हैं कि वह युद्ध नहीं चाहता|
- चीन की ओर से प्रत्येक संभावित स्तर पर भारत को चेतावनी देने वाले बयान जारी हुए हैं, जबकि भारत ने अभी तक संयम बनाकर रखा है|
- भारत-चीन सीमा पर पूर्व में देपसार तथा चुमार में हुए तनाव की तुलना में इस बार दोनों देशों के बीच तनाव भी अधिक है और सैन्य तैनाती भी| दोनों देशों के 3-3 हजार सैनिक सीमा पर हैं|
- भारत-चीन के बीच सीमा पर इस प्रकार की झड़पें होना असामान्य नहीं हैं, लेकिन इस डोका-ला क्षेत्र में पहली बार दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आए हैं|
- भारत के लिये डोका-ला का यह क्षेत्र बेहद महत्त्वपूर्ण है, यदि यहाँ चीन की सेना जम गई तो भारत के पूर्वोत्तर तक उसकी पहुँच बेहद आसान हो जाएगी|
- इस मामले को कूटनीतिक प्रयासों से तुरंत सुलझाने की आवश्यकता है अन्यथा सीमा पर होने वाले छोटे-छोटे अन्य विवादों को तूल पकड़ते देर नहीं लगेगी|
- अब तक भारत-चीन इस प्रकार के विवादों को कूटनीतिक प्रयासों से हल करते आए हैं, यह पहली बार है जब मामला इतना पेचीदा हो गया है|
- अपनी सुरक्षा के मद्देनज़र भारत को हर हाल में यह सुनिश्चित करना होगा कि 16 जून से पहले की स्थिति बहाल की जाए, जब न तो चीन की तरफ से सड़क निर्माण हो रहा था और न ही भारतीय सैनिक वहाँ थे|
- चीन के सैनिक तो वहाँ से हटने को तैयार नहीं हैं और इसे लेकर वहाँ का सरकारी मीडिया (ग्लोबल टाइम्स) अपने कड़े तेवर दिखा चुका है| ऐसे में भारत को इस मामले को सुलझाने के लिये बैक डोर डिप्लोमेसी से काम लेना होगा और ऐसा वह कर भी रहा है|
- दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के बीच ‘केमिस्ट्री’ काफी अच्छी है; ऐसे में उच्च स्तर पर प्रयास करके भी इस विवाद का हल निकाला जा सकता है|
भारत की चीन को चुनौती?
- कुछ विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि इस विवाद के पीछे चीन की OBOR परियोजना है, जिसमें सुरक्षात्मक कारणों का हवाला देकर भारत शामिल होने से इनकार कर चुका है| विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति होने का चीन का अहम् इससे आहत हुआ है|
- चीन ने यह कदम क्षेत्रीय संप्रभुता को बढ़ाने के लिये तो नहीं ही उठाया है, दरअसल वह एशिया में अपनी आर्थिक शक्ति को भारत से मिलने वाली चुनौती को स्वीकार नहीं कर पा रहा है|
- भारत CPEC में शामिल होने के चीन के निमंत्रण को भी पहले ही ठुकरा चुका है| ऐसे में उसे लगता है कि भारत ही इस क्षेत्र में उसकी सर्वोच्चता को चुनौती देता है, इसलिये वह इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देता रहता है|
- दक्षिण चीन सागर में सेनकाकू द्वीप के मुद्दे पर भी भारत चीन का समर्थन न करके फिलिपींस और वियतनाम जैसे देशों के साथ खड़ा नज़र आता है| चीन को यह स्वीकार नहीं कि एशिया में उसके रुतबे को चुनौती देने वाला कोई हो|
- इन बदली हुई परिस्थितियों में भारत के लिये यह ज़रूरी हो गया है कि वह अन्य एशियाई देशों के साथ कूटनीतिक और सामरिक सहयोग बढ़ाकर चीन की चुनौतियों का मुकाबला करे|
- ऐसा करने में भारत को अधिक कठिनाई नहीं होगी क्योंकि चीन का अपने सभी पड़ोसियों (14 देश) से किसी-न-किसी मुद्दे पर या अकारण ही विवाद चलता रहता है|
- भारत का यह प्रयास होना चाहिए कि एशियाई देशों को इस बात के लिये राज़ी करे कि वे चीन के साथ भी मधुर संबंध बनाकर रखें ताकि दोनों देशों के हितों पर किसी प्रकार की आँच न आए और चीन भारत को अपना विरोधी न समझे|
- भारत हिन्द महासागर और अरब सागर के क्षेत्र में कई देशों के साथ संयुक्त नौसैन्य अभ्यास करता है और चीन यह कभी नहीं चाहता कि भारत तथा अन्य वैश्विक शक्तियों की कोई ऐसी धुरी बने जो उसकी विरोधी हो|
- निरंतर प्रगाढ़ हो रहे भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर भी चीन की चिंता रही है कि यह उसके खिलाफ एक सोची-समझी चाल है और वह इसकी आलोचना भी करता रहा है|
- चीन चूँकि प्रत्येक संभावित अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का विरोध करता रहा है, इसलिये भी वह इस क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को अपने लिये चुनौती मान रहा है|
- चीन की कई चेतावनियों के बावजूद भारत द्वारा दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश जाने से न रोकने को चीन अपने लिये एक बड़ी चुनौती मानता है; इसलिये भी वह भारत का हर संभावित विरोध कर रहा है|
भारत के लिये क्यों ज़रूरी है नई चीन नीति?
1962 के युद्ध के बाद तीन दशक तक भारत-चीन संबंध लगभग संतुलित रहे और जब 1993 में सीमा पर शांति से जुड़ा 'बॉर्डर पीस एंड ट्रैंकुएलिटी एग्रीमेंट' हुआ तो संबंधों में और स्थिरता आ गई| इस समझौते ने यथास्थिति को बनाए रखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर कम से कम 16 जगहों पर सीमांकन पर मतभेद होने के बावजूद शांति बनी रही| ऐसा इसलिये संभव हुआ क्योंकि दोनों देशों को इस बात में फायदा दिखा| लेकिन इधर कुछ समय से इस बात के लगातार संकेत मिल रहे हैं कि भारत और चीन के बीच शक्ति संतुलन बदल गया है| दोनों सीधे टकराव के रास्ते पर तो नहीं है, लेकिन कई मुद्दों पर आपस अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का संतुलन भी बदल रहा है|
मुद्दा केवल पारस्परिक हित के टकराव का नहीं है| चीन को अब अपनी क्षमता को छिपाने और लो-प्रोफाइल रहने में कोई फायदा दिखाई नहीं दे रहा है| वह दुनिया का नेतृत्व अपने हाथ में लेना चाहता है, अपनी ताकत दिखाने वाली आक्रामक विदेश नीति अपनाकर विश्व में अपना दखल बढ़ाना चाहता है| वह अपने पड़ोसी देशों के साथ वह रणनीतिक और सामुद्रिक संबंधों का नए सिरे से आकलन कर रहा है| हाल के वर्षों में चीन ने एशिया और यूरेशिया इलाके में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिये भारी निवेश किया है, वह बंदरगाहों का एक ज़बरदस्त नेटवर्क खड़ा कर रहा है| हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के तटों पर बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर रहा है| यह उसकी वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं का शुरुआती आधार है और इसके चलते निश्चित तौर पर वह एक अन्य क्षेत्रीय शक्ति भारत और फिलहाल अकेली महाशक्ति अमेरिका के साथ उसका तनाव बढ़ा है|
भारत और चीन के संबंधों में सबसे बड़ी समस्या है, भारत-चीन सीमा विवाद और चीन का विश्वसनीय न होना और भारतीय जनमानस का चीन के प्रति नकारात्मक सोच रखना| दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच वार्ता के कई दौर हो चुके हैं और सीमा विवाद का मुद्दा जस-का-तस बना हुआ है| चीन अपनी सेना का आधुनिकीकरण कर रहा है और पड़ोसी देशों में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है| ऐसी स्थिति में भारत को भी अपनी सेना का आधुनिकीकरण करना होगा तथा पड़ोसी देशों से संबंधों को और अधिक मज़बूती प्रदान करनी होगी|
इसके अलावा चीन लगातार भारत के विरोधी पड़ोसी देश पाकिस्तान को समर्थन देता रहता है| वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत को कमज़ोर करने का कोई मौका नहीं छोड़ता| भारत के लिये चीन का संदेश स्पष्ट है कि वह ज़्यादा बड़ी राजनीतिक और सैन्य ताकत है और भारत को अपने रणनीतिक हितों की रूपरेखा बनाते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहिए| चीन के उग्र रवैये पर भारत अभी तक लगभग मौन ही रहा है, लेकिन यह भी तय है कि यदि ऐसी स्थिति बनी रही तो उसे इसके परिणाम निश्चित ही भारत के लिये अच्छे नहीं होंगे| इस तरह दबाव बनाना लगातार चीनी नीति का हिस्सा रहा है| लेकिन इसका यह भी अर्थ नहीं कि भारत को चीन के साथ लड़ाई छेड़ देनी चाहिये, चीन एक रणनीति के तहत उकसावे का प्रयोग करता है| सिक्किम-तिब्बत-भूटान सीमा पर चल रहे डोका-ला सीमा विवाद को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जब चीन के रणनीति और सैन्य हितों की बात आती है तो वह नियमों की परवाह नहीं करता| ऐसे में भारत के नज़रिये से देखें, तो समय आ गया है जब द्विपक्षीय संबंध पारस्परिक सहमति योग्य हितों पर आधारित होने चाहिए|
(टीम दृष्टि इनपुट)