राज्यसभा
देश-देशांतर : देश में स्कूली शिक्षा की चुनौतियाँ
- 20 Jan 2018
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संदर्भ व पृष्ठभूमि
भारत को वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और डॉक्टरों का देश माना जाता है और सारे विश्व में इनका डंका बजता है। लेकिन जब बात स्कूली शिक्षा की आती है तो स्थिति बहुत बेहतर नज़र नहीं आती। साक्षरता और शिक्षा के मामले में भारत की गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में होती है। हाल ही में एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट-असर (Annual Status of Education Report-ASER) 2017 से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।
शिक्षा प्राप्त कर चुके थे या कक्षा 8 की परीक्षा में शामिल होने वाले हैं। अर्थात् यह रिपोर्ट 14 से 18 वर्ष के उन किशोर/किशोरियों पर आधारित है, जिन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण कर ली है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
'असर' के12वें संस्करण की इस सर्वे रिपोर्ट में स्कूली शिक्षा की चुनौतियों को रेखांकित किया गया है। इस सर्वेक्षण में पढ़ने तथा गणित के सामान्य प्रश्न हल करने की बुनियादी क्षमता से इतर चार अन्य क्षेत्रों को शामिल किया गया, जिनमें गतिविधि, क्षमता, जागरूकता और आकांक्षा शामिल हैं।
- यह रिपोर्ट ग्रामीण भारत में शिक्षा की दयनीय स्थिति की ओर संकेत करती है, जहाँ हालात वास्तव में चिंताजनक हैं।
- यह स्थिति इसलिये भी चिनजनक है क्योंकि इस आयु वर्ग में देश की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या आती है, जिसे आने वाले कल के भारत की तस्वीर माना जाता है।
- देश में निरंतर बढ़ रही बेरोज़गारी के मद्देनज़र भी ये हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते, क्योंकि इस स्तर की जानकारी रखने वालों को कुशल कार्यबल में शामिल नहीं किया जा सकता।
- इस सर्वे में 14 से 18 वर्ष के 28,323 बच्चों को शामिल किया गया।
शिक्षकों को उनके कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकालना एक शिक्षक को नई रणनीति के हिसाब से स्वयं को तैयार करने में समय लगता है और वे बार-बार अपने पुराने अनुभवों और पुराने तरीकों की तरफ लौटना चाहते हैं, क्योंकि वह उनका कंफर्ट ज़ोन होता है। यहाँ वे सहज महसूस करते हैं और अपने कंफर्ट ज़ोन में बने रहना चाहते हैं। शिक्षकों को उनके कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकालने और नई चुनौतियों का नए नज़रिये और नए तरीके से स्थायी समाधान खोजने के प्रयास करने होंगे। (टीम दृष्टि इनपुट) |
- इस रिपोर्ट से पता चलता है कि इस आयु वर्ग के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश बच्चों को बुनियादी बातों की जानकारी नहीं है, जैसे:
- 14 प्रतिशत बच्चे देश के नक़्शे को नहीं पहचान पाते
- 36 प्रतिशत बच्चों को देश की राजधानी का नाम नहीं मालूम
- 21 प्रतिशत बच्चे नहीं जानते कि वे किस राज्य में रहते हैं
- 18 वर्ष आयु के 40 प्रतिशत बच्चे अंग्रेज़ी में लिखा सामान्य वाक्य पढने में असमर्थ हैं
- 25 प्रतिशत बच्चे अपनी मातृभाषा में लिखा साधारण वाक्य नहीं पढ़ पाते
- 57 प्रतिशत बच्चे 986/8=? जैसे सामान्य गणित के सवाल हल नहीं कर सकते
- घड़ी में समय दिखाकर पूछने पर 40 प्रतिशत बच्चे जवाब नहीं दे पाए
- 1 किग्रा.+ 500ग्रा.+2x200ग्रा.+2x50ग्रा=? पूछने पर 44 प्रतिशत बच्चे इसका जवाब नहीं दे पाए
- 24 प्रतिशत बच्चे दो हज़ार, पाँच सौ, पचास और बीस रुपए का कुल जोड़ बताने में असमर्थ रहे, अर्थात् वे पैसे नहीं गिन सकते
- 60 प्रतिशत बच्चे इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि यदि वे रात को 9:30 पर सोने गए और सुबह 6:30 पर उठे, तो वे कुल कितने घंटे सोए
- 62 प्रतिशत बच्चे यह बताने में नाकाम रहे कि 1500 रुपए की किसी वस्तु के लिये 10% छूट के बाद कितने पैसे देने होंगे
- केवल 28 प्रतिशत बच्चों ने इंटरनेट का इस्तेमाल किया था
- केवल 26 प्रतिशत छात्रों ने कंप्यूटर का इस्तेमाल किया था
- 75 प्रतिशत बच्चों के अपने बैंक खाते हैं और यह संख्या इसलिये अधिक है, क्योंकि सभी प्रकार की छात्रवृत्तियाँ सीधे बैंक खातों में आती हैं
- केवल 60 प्रतिशत बच्चे 12वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं
- 12वीं कक्षा के बाद न पढ़ने वालों में से अधिकांश ऐसे हैं, जिन पर पढ़ाई के साथ-साथ काम करने का भी दबाव है
- लगभग 42 प्रतिशत युवा ऐसे हैं, जो पढ़ाई के साथ काम भी करते हैं और इनमें 79 प्रतिशत कृषि कार्यों में संलग्न हैं
- देश में मौजूदा समय में 18 वर्ष आयु वर्ग के करीब 10 करोड़ युवा हैं और इनमें से स्कूल जाने वालों में से केवल 5 प्रतिशत युवा ही ऐसे हैं, जो किसी प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा ले रहे हैं
- सर्वे रिपोर्ट के अनुसार तीन-चौथाई युवा ऐसे हैं, जिन्हें पढ़ाई के साथ-साथ घर पर प्रतिदिन काम करना होता है और इनमें 71 प्रतिशत लड़के और 89 प्रतिशत लड़कियाँ हैं
- इसमें यह भी बताया गया है कि जैसे-जैसे लड़कियों की आयु बढ़ती है, उसी अनुपात में उनके स्कूल छोड़ने की संख्या भी बढती जाती है
- 14 वर्ष की आयु तक तो इसमें कोई विशेष अंतर नहीं है, लेकिन 18 वर्ष की आयु होने पर लड़के और लड़कियों का यह अनुपात क्रमशः 28 और 32 प्रतिशत हो जाता है
- इस सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि लड़के और लड़कियों की व्यावसायिक आकांक्षाओं में भी स्पष्ट अंतर है
- अधिकांश लड़कों की रुचि सेना, पुलिस में जाने के साथ इंजीनियर बनने की है, जबकि लड़कियाँ नर्स और शिक्षिका बनना चाहती हैं।
- इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान समय में देश में 18 वर्ष आयु वर्ग के करीब 10 करोड़ युवा हैं
- सरकार डिजिटल इंडिया के ज़रिये गाँवों को मुख्यधारा में शामिल करने का अभियान चला रही है, लेकिन सर्वे के आँकड़े इस ओर भी निराशाजनक संकेत ही करते हैं
इस रिपोर्ट में 24 राज्यों के 26 ग्रामीण ज़िलों का सर्वे किया गया, जिसमें उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश से वाराणसी और बिजनौर, मध्य प्रदेश से भोपाल और रीवा, छत्तीसगढ़ से धमतरी, बिहार से मुज़फ्फरपुर और हरियाणा से सोनीपत जैसे ज़िलों को शामिल किया गया।
इस रिपोर्ट से इतर विश्व बैंक की रिपोर्ट में शिक्षा में ज्ञान के संकट की चेतावनी देते हुए कहा गया है कि यह संकट नैतिक तथा आर्थिक है।
क्यों बनी ऐसी स्थिति?
(टीम दृष्टि इनपुट) |
लर्निंग आउटकम का निर्धारण
शिक्षा की गुणवत्ता के मुद्दे पर केंद्र सरकार सभी राज्यों के साथ सहयोग कर रही है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता में तेज़ी से वृद्धि हो। इसका उद्देश्य देशभर में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रसार करना है। इसके लिये देशभर में प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत ‘लर्निंग आउटकम’ के प्रावधानों को नियमों में रखकर बच्चों को लाभान्वित किया जा रहा है। इससे यह पता चलता है कि पहली, दूसरी और तीसरी कक्षा के बाद बच्चों को क्या-क्या पढ़ाया जाना चाहिये। इससे अभिभावकों को भी यह पता चल सकता है कि अमुक कक्षा में उनके बच्चे को क्या आना चाहिये। उच्च प्राथमिक स्तर पर सभी स्कूलों (निजी स्कूल भी शामिल) में NCERT की पुस्तकों से पढ़ाई करने का सुझाव भी इस दिशा में एक प्रशंसनीय पहल है।
विद्यार्थी, शिक्षा और पाठ्यक्रम
(टीम दृष्टि इनपुट) |
निष्कर्ष: भारत में शिक्षा का ज़िम्मा राज्यों पर है, इसलिये सभी राज्यों ने इसकी चुनौतियों को अपने ढंग से हल किया। इसके अलग-अलग परिणाम सामने आए। जो राज्य स्कूलों में शिक्षा का विकास करने में सफल रहे उन्होंने गरीब बच्चों की शिक्षा संबंधी चुनौतियों को प्राथमिकता दी। लेकिन प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर मध्य वर्ग का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चों को अंग्रेज़ी शिक्षा दिलाने के लिये निजी स्कूलों में भेजता है। हालाँकि मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का वादा संविधान में किया गया है। इसे दस साल में पूरा करने का लक्ष्य भी तय किया गया था। लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। इसके लिये सरकार के पास धन नहीं था। इसलिये राष्ट्रीय स्तर पर किसी ठोस योजना की शुरुआत नहीं हो सकी।
देश में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या केवल अंग्रेज़ी न पढ़ पाने या गणित के सवाल न हल कर पाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समस्या बहुआयामी है। यदि इस ओर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो यह देश के जनसांख्यिकीय लाभांश को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। इसीलिये वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने यह सर्वे रिपोर्ट जारी करते हुए इस पर चिंता जताई थी।
प्राथमिक तथा माध्यमिक स्कूली शिक्षा की हालत में सुधार के लिये देश को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, विशेषकर शिक्षा को सार्वभौमिक अधिकार बनाने वाली योजनाओं की सफलता को लेकर कई स्तरों पर संशय बने हुए हैं।