कैश-लेस या लेस-कैश अर्थव्यवस्था | 09 Jul 2019

संदर्भ

नकदी रहित यानी कैश-लेस लेनदेन को बढ़ावा देने के लिये केंद्र सरकार ने बजट में यह ऐलान किया है कि 50 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना कारोबार करने वाले कारोबारी कम लागत वाले डिजिटल तरीके के भुगतान की पेशकश कर सकते हैं और इसके लिये उन पर या उनके ग्राहकों पर कोई शुल्क या मर्चेंट डिस्काउंट नहीं लगाया जाएगा। नकद व्यावसायिक भुगतान करने की परिपाटी को हतोत्साहित करने के लिये एक वर्ष में एक बैंक खाते से एक करोड़ रुपए से अधिक की नकद निकासी के मामले में स्रोत पर दो प्रतिशत TDS लगाने का प्रस्ताव वित्त मंत्री ने बजट में किया है। लोगों द्वारा भुगतान के डिजिटल तरीकों को अपनाने की वज़ह से इन पर आने वाले खर्च को भारतीय रिज़र्व बैंक तथा अन्य बैंक उस बचत से वहन करेंगे जो उनको कम नकदी संभालने के कारण होगी।

बढ़ रहा है कैश-लेस लेनदेन का चलन

मोबाइल फोन आधारित भुगतान का इस्तेमाल करने से डिजिटल लेनदेन की संख्या भी बढ़ी है। जून 2019 में एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface-UPI) लेनदेन 754 मिलियन रुपए तक पहुँच गया है। तुरंत भुगतान सेवा (Immediate Payment Service-IMPS) और भारतीय राष्‍ट्रीय भुगतान निगम (National Payment Corporation India-NPCI) से होने वाला लेनदेन क्रमशः 171 मिलियन और 26 मिलियन रहा।

कैश-लेस अर्थव्यवस्था क्या है?

नकदी-रहित लेनदेन में करेंसी का न्यूनतम इस्तेमाल होता है। इससे व्‍यवसाय स्‍वचालित हो जाते हैं जिसके परिणमास्‍वरूप पारदर्शिता आती है। गलत तरीके से लेनदेन बंद हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप कालेधन का प्रभाव कम होता है। आर्थिक व्यवस्था का वह स्वरूप जिसमें धन का अधिकांश लेनदेन चेक, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिग, मोबाइल पेमेंट तथा अन्य डिजिटल माध्यमों से किया जाता है, कैश-लेस अर्थव्यवस्था कहलाती है। इस व्यवस्था में नकदी (कागज़ी नोट या सिक्के) का चलन कम हो जाता है।

वर्तमान में देश का लगभग 95 प्रतिशत लेनदेन नकद-आधारित है जिससे एक बहुत बड़ी अनौपचारिक अर्थव्‍यवस्‍था का निर्माण होता है और इसकी वज़ह से सरकार को विभिन्‍न टैक्‍स लगाने और वसूलने में कठिनाई होती है। डिजिटल भुगतान को प्रोत्‍साहित करने के लिये भारत सरकार समय-समय पर विभिन्न उपायों की घोषणा करती रहती है।

डिजिटल भुगतान के लिये बजट में किये गए कई प्रावधान

  • जिन कारोबारियों का वार्षिक टर्नओवर 50 करोड़ रुपए या उससे अधिक है वे अगर डिजिटल पेमेंट के ज़रिये अपने ग्राहकों से भुगतान लेते हैं तो उनको पेमेंट पर कोई चार्ज या मर्चेंट डिस्काउंट रेट नहीं देना होगा। यह चार्ज कारोबारियों के साथ-साथ ग्राहकों पर भी नहीं लगेगा।
  • मर्चेंट डिस्काउंट रेट डिजिटल लेनदेन की सुविधा के लिये लगाया गया शुल्क है और इसे आमतौर पर विभिन्न पार्टियों में वितरित किया जाता है।
  • 1 करोड़ रुपए से अधिक की नकद निकासी पर 2 प्रतिशत TDS देना होगा।
  • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और अन्य बैंक उन लागतों पर निगरानी रखेंगे जिनके लिये कम नकदी का इस्तेमाल किया गया है ताकि लोग डिजिटल लेनदेन का अधिकतम इस्तेमाल कर सकें।
  • इन प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिये आयकर अधिनियम और भुगतान तथा निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 में आवश्यक संशोधन किये जा रहे हैं।
  • BHIM UPI, UPI-QR Code, Aadhaar Pay, डेबिट कार्ड, NEFT और RTGS जैसे कई तरह के लो-कॉस्ट डिजिटल पेमेंट मोड्स उपलब्ध हैं जिनका इस्तेमाल कैश-लेस अर्थव्यवस्था के लिये किया जा सकता है।

मर्चेंट डिस्काउंट रेट की समस्या

कई बार किसी महँगी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ को खरीदने के बाद डेबिट या क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने पर दुकानदार कुछ एक्स्ट्रा चार्ज लगाने की बात कहता है। तब मन में कुछ सवाल उठ खड़े होते हैं, जैसे- दुकानदार यह एक्स्ट्रा चार्ज क्यों मांगता है? यह पैसा कहाँ जाता है? दुकानदार को नकद देने पर एक्स्ट्रा चार्ज क्यों नहीं लगता है?

यह एक्स्ट्रा चार्ज ही मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) कहलाता है। MDR वह शुल्क है, जो दुकानदार डेबिट या क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने पर आपसे लेता है। यह डेबिट या क्रेडिट कार्ड से पेमेंट की सुविधा पर लगने वाली फीस है। MDR से हासिल रकम दुकानदार को नहीं मिलती, बल्कि यह तीन हिस्सों में बँट जाती है- सबसे बड़ा हिस्सा क्रेडिट या डेबिट कार्ड जारी करने वाले बैंक को मिलता है; इसके बाद कुछ हिस्सा उस बैंक को मिलता है, जिसकी पॉइंट ऑफ सेल्स (PoS) मशीन दुकानदार के यहाँ लगी होती है और कुछ हिस्सा वीज़ा, मास्टर कार्ड तथा अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी पेमेंट कंपनियों को मिलता है।

कैश-लेस अर्थव्यवस्था हेतु सरकारी प्रयास

केंद्र ने रणनीतिक रूप में कैश-लेस अर्थव्यवस्था के लिये डिजिटल भुगतान और लेनदेन को बढ़ावा देने हेतु समय-समय पर कई पहल की हैं। इस दिशा में सरकार ने वि‍त्‍तीय समावेशनों के लिये जन-धन खातों को खोलना, आधार को कानूनी मान्यता देना, प्रत्‍यक्ष लाभ हस्‍तांतरण का क्रियान्‍वयन, रुपे कार्ड जारी करना और अघोषित धन के लिये स्वैच्छिक प्रकटीकरण योजना के रूप में कई पहलें की हैं। इनके अलावा 500 और 1000 रुपए की नोटबंदी इस दिशा में एक बड़ा कदम था। नोटबंदी के चलते पूरे देश में डिजिटल भुगतानों में काफी तेज़ी आई थी।

  • 3 लाख रुपए से अधिक का लेने-देन नगद में नहीं किया जाएगा। कालाधन समाप्‍त करने के लिये गठित विशेष जाँच दल ने इससे अधिक नकद लेनदेन पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था।
  • वर्तमान में रुपे कार्डों, ई-वॉलेट, UPI, USSD और PoS से लेनदेन किया जाता है, लेकिन इसमें तेज़ी लाने के लिये और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • सरकार ने विभिन्‍न छूटों के ज़रिये कैश-लेस भुगतान को बढ़ावा देने के प्रयास किये हैं। पेट्रोल या डीज़ल की खरीद पर डिजिटल भुगतान करने पर उपभोक्ताओं को 0.75 बिक्री मूल्य के प्रतिशत की दर से छूट दी जाती है।
  • ग्रामीण इलाकों में डिजिटल भुगतान के ढाँचे को विस्‍तारित करने के लिये केंद्र नाबार्ड के ज़रिये 10 हज़ार से कम आबादी वाले एक लाख गाँवों में प्रत्‍येक में दो PoS लगाकर बैंकों को वित्तीय सहायता दे रहा है। ये मशीनें डिजिटल साधनों के ज़रिए कृषि संबंधी लेनदेन की सुविधा देने के लिये प्राथमिक सहकारी समितियों, दुग्ध समितियों और कृषि इनपुट डीलरों के यहाँ लगाई जा रही हैं तथा इससे 75 करोड़ आबादी को कवर करने का लक्ष्य है।
  • डिजिटल माध्‍यमों से भुगतान करने पर रेलवे अपने उपनगरीय रेल नेटवर्क के ज़रिये मासिक या सीज़नल टिकट के लिये ग्राहकों को 0.5% तक की छूट प्रदान करती है।
  • सरकार ने क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, चार्ज कार्ड या अन्‍य किसी पेमेंट कार्ड के ज़रिए भुगतान करने पर सेवा कर में छूट दी है, जो कि एक लेनदेन में 2,000 रुपए तक के भुगतान तक सीमित है।
  • सरकार ने डिजिटल भुगतान के इको-सिस्‍टम में विस्‍तार और कैश-लेस लेनदेन की दिशा में आगे बढ़ाने के लिये 10 लाख नए PoS टर्मिनल जोड़ने की योजना बनाई है।
  • सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये भीम एप, आधार समर्थित भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देने, ऑनलाइन पेमेंट वाले उपकरणों पर सीमा एवं उत्पाद शुल्क में कटौती, तीन लाख रुपए से अधिक की नकदी के लेनदेन पर रोक और कैशलेस कारोबार करने वालों के लिये कई तरह की रियायतें दी हैं।
  • पेट्रोल पम्‍पों, उर्वरक डिपो, नगरपालिकाओं, ब्‍लॉक कार्यालयों, सड़क परिवहन कार्यालयों, विश्‍वविद्यालयों, महाविद्यालयों, अस्‍पतालों और अन्‍य संस्‍थानों में डिजिटल भुगतान की सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिये कदम उठाए जा रहे हैं।
  • डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के साथ ही इसके लिये अवसंरचना और शिकायत निवारण तंत्रों को सुदृढ़ करने हेतु डाकघरों, उचित मूल्‍य की दुकानों और बैंकिंग पत्र व्यवहार के माध्‍यम से ग्रामीण तथा अर्द्धशहरी क्षेत्रों पर विशेष ध्‍यान दिया जा रहा है।

कर प्रशासन (Tax Reforms) सुधार आयोग

वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने करदाताओं के बीच विश्वसनीयता बढ़ाने और आयकर प्रक्रिया को सरल बनाने के लिये कर प्रशासन सुधार आयोग का गठन किया था, जिसमें निजी और सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों को शामिल किया गया। सरकार ने यह कदम कर प्रक्रिया को सरल बनाने के लिये उठाया था। इसके तहत कर नीति और कानून पर नहीं, बल्कि कर प्रशासन के नियमों, विशेषताओं और ढाँचागत सुधार पर ज़ोर दिया गया। तत्कालीन वित्त मंत्री के सलाहकार पार्थसारथी शोम इस आयोग के अध्यक्ष थे।

कम नकदी वाली अर्थव्‍यवस्‍था (Less-Cash Economy)

भारत डिजिटल भुगतान लेस-कैश अर्थव्‍यवस्‍था के लिये एक परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। यह देखते हुए कि हमारी जनसंख्‍या का कुछ प्रतिशत हिस्‍सा ही कर का भुगतान करता है, इसलिये यदि बैंकिंग और कर प्रणाली अधिक-से-अधिक डिजिटल भुगतान के माध्‍यम से भुगतान प्राप्त करती हैं तो इससे देश की अर्थव्‍यवस्‍था में बेहतरी आएगी। इसके अलावा सार्वजनिक जीवन और शासन में भ्रष्‍टाचार का एक प्रमुख कारण नकदी में लेनदेन होना भी है। इसलिये एक लेस-कैश समाज की तरफ बढ़ते हुए इससे भ्रष्‍टाचार को दूर करने में मदद मिलेगी और नकदी के प्रयोग पर रोक लगेगी। इसके अलावा नकदी का मुद्रण और इसका वितरण भी बेहद खर्चीला है।

उपभोक्‍ताओं को भी लेस-कैश के कई लाभ हैं। एक रुपए से लेकर किसी भी राशि के लिये अब बिना नकदी के डिजिटल भुगतान किया जा सकता है। डिजिटल लेनदेन कभी भी किया जा सकता है। इसके अलावा सरकार ने देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये कई उपायों की घोषणा की है जिससे यह एक ही प्रकार की सर्विस के लिये नकद लेनदेन के मुकाबले ज्‍यादा सस्‍ता होगा।

केवल पश्चिमी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में ही डिजिटल अर्थव्‍यवस्‍थाओं का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात नहीं है, बल्कि केन्‍या और नाइजी‍रिया जैसे अफ्रीकी देशों में भी डिजिटल भुगतान का प्रयोग बढ़ी मात्रा में किया जाता है, जबकि वहाँ के लोग अधिक शिक्षित नहीं हैं। केन्‍या में राष्‍ट्रीय भुगतान प्रणाली के तहत 67 प्रतिशत लेनदेन M-Pesa के तहत किया जाता है। केन्‍या की महिलाओं द्वारा बड़ी मात्रा में मोबाइल बैंकिंग का उपयोग किये जाने से उन्‍हें वित्तीय सेवाओं को आगे बढ़ाने, लागत की कीमत कम करने और बचत में वृद्धि करने की प्रेरणा मिली है।

भारत में भी इनके अनुभवों का उपयोग करना चाहिये, क्‍योंकि बड़ी संख्‍या में युवा आबादी मोबाइल सेवा का प्रयोग कर रही है। यदि इसमें यह जोड़ दिया जाए कि ऑनलाइन लेनदेन से दो प्रतिशत की बचत होगी तो अधिकांश लोग बचत की वज़ह से ऑनलाइन लेनदेन करने में रुचि लेंगे।

भारत जैसा देश जहाँ 65 प्रतिशत जनसंख्‍या 35 वर्ष की आयु से कम की है, जिसकी सूचना प्रौद्योगिकी की ताकत सुविख्‍यात है और जहाँ गरीब और अनपढ़ लोग भी अपना वोट EVM के माध्‍यम से डालते हैं तो वहाँ पर डिजिटल अर्थव्‍यवस्‍था में प्रवेश करना निश्चित रूप से संभव है, बशर्ते देश के नागरिक ऐसा करने का संकल्‍प लें।

लेकिन इसके लिये इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करने की ज़रूरत है, क्योंकि इंटनेट की सुविधा के बिना कैश-लेस या लेस-कैश इकोनॉमी की कल्पना नहीं की जा सकती। देश में अभी लगभग 958.2 मिलियन लोगों के पास डेबिट कार्ड और 44.2 मिलियन लोगों के पास क्रेडिट कार्ड है जिनका पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता। इनके इस्तेमाल को लेकर लोगों के मन में अविश्वास और डर है, इसलिये इसे लेकर लोगों को समझाने और प्रशिक्षित करने की ज़रूरत है।

सुरक्षा चिंताएँ और समाधान

सरकार ने डिजिटल भुगतान में सुरक्षा संबंधी मुद्दों की देख-रेख के लिये एक समिति का गठन किया है। भारत में कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्‍पांस टीम (CERT-In) नाम की एक अलग डिजिटल पेमेंट्स डिवीजन का गठन किया गया है। सभी NPCI प्रणालियों के सुरक्षा ऑडिट में आवश्‍यक सुधार शुरू कर दिये गए हैं। डिजिटल माध्‍यम से किये गए सभी भुगतान उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के तहत आते हैं। किसी भी विवाद की स्थिति में उपभोक्‍ता फोरम से संपर्क किया जा सकता है। डिजिटल माध्‍यम से होने वाले सभी भुगतानों का ब्योरा रखा जाता है, ऐसे में बैंकों के लिये विवादित लेनदेन की जाँच करना बहुत आसान हो गया है। बैंकिंग लोकपाल (Ombudsman) की संस्‍था से कोई भी नागरिक संपर्क कर सकता है, जो बैंकों को एक निश्चित अवधि के तहत विवादों को निपटाने का आदेश देता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के कैश-लेस या लेस-कैश अर्थव्यवस्था की राह में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख करते हुए इसकी संभावनाओं पर प्रकाश डालिये।