असर रिपोर्ट 2019 | 21 Jan 2020
संदर्भ:
हाल ही में शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट ‘प्रारंभिक वर्ष’ [Annual Status of Education Report (ASER) ‘Early Years], 2019 जारी की गई। ध्यातव्य है कि पहली ‘असर रिपोर्ट’ वर्ष 2005 में प्रकाशित की गई थी। इस रिपोर्ट में देश भर के विभिन्न राज्यों में प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों का नामांकन एवं उनकी सीखने की क्षमताओं का ज़िला स्तरीय आँकड़ा वार्षिक रूप से प्रकाशित किया जाता है। ‘असर रिपोर्ट 2019’ को 4-8 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों पर किये गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, किसी भी व्यक्ति के जीवन के शुरुआती 8 वर्ष बहुत ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। असल में यह समय बच्चे के शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास का महत्त्वपूर्ण चरण होता है। इस रिपोर्ट में बच्चों को सिखाने वाले शिक्षकों की विधाओं पर भी शोध किया गया और बताया गया कि कैसे खेल आधारित गतिविधियों के माध्यम से बच्चों में तार्किक, रचनात्मक और संज्ञानात्मक कौशल का विकास संभव है।
क्या है असर रिपोर्ट?
- यह रिपोर्ट ‘प्रथम’ नामक एक गैर-लाभकारी संस्था द्वारा प्रत्येक वर्ष जारी की जाती है।
- इस रिपोर्ट में देश के ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों का प्रारंभिक स्तर पर गणित, भाषा और संज्ञानात्मक कौशल से संबंधित आँकड़ा प्रस्तुत किया जाता है।
- इस सर्वेक्षण में विद्यालय की बजाय घर-घर जाकर बच्चों से बातचीत की जाती है एवं उनकी अन्य गतिविधियों के आधार पर जानकारी जुटाई जाती है।
असर रिपोर्ट 2019 के निष्कर्ष:
- इस वर्ष यह रिपोर्ट 14 जनवरी, 2020 को जारी की गई। इसमें देश भर के विभिन्न राज्यों के 4-8 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों पर किये गए सर्वेक्षणों पर आधारित आँकड़ों को जारी किया गया है, जबकि पूर्व में असर की रिपोर्ट 5-16 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों पर आधारित होती थी।
- असर-2019 रिपोर्ट के लिये देश के 24 राज्यों के 26 ज़िलों और 1,514 गाँवों में सर्वेक्षण किया गया।
- इस सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के दो-दो ज़िलों जबकि अन्य राज्यों में प्रत्येक से एक-एक ज़िले को शामिल किया गया था।
- इस सर्वेक्षण के दौरान 30,425 घरों के 36,930 बच्चों के पूर्व-प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन की स्थिति के बारे में जानकारी ली गई।
- इस सर्वेक्षण में ग्रामीण क्षेत्रों में 1-3 तक की कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों को शामिल किया गया था।
- असर-2019 रिपोर्ट के अनुसार, देश में 4-8 वर्ष की आयु वर्ग के 90% बच्चे किसी-न-किसी शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं।
- इसी आयु वर्ग के लगभग 8.7% बच्चे किसी भी शैक्षणिक संस्थान में नहीं जाते हैं।
- 4-5 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के शैक्षणिक संस्थानों में नामांकित होने की संख्या में पिछले वर्षों की अपेक्षा बढ़ोतरी देखी गई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, 4 वर्ष के 91.3% और 8 वर्ष के 99.5% बच्चे शिक्षण संस्थानों में नामांकित हैं।
लड़के और लड़कियों के नामांकन में अंतर:
सर्वेक्षण के दौरान 4-8 वर्ष आयु वर्ग के लड़के और लड़कियों के नामांकन पैटर्न में अंतर देखने को मिला।
- ज़्यादातर लड़के निजी शिक्षण संस्थानों, जबकि लड़कियाँ सरकारी शिक्षण संस्थानों में नामांकित हैं तथा सर्वे में उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस अंतर को भी बढ़ते हुए देखा गया है।
- 4-5 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में 56.8% लड़कियाँ और 50% लड़के सरकारी विद्यालयों में नामांकित हैं।
- साथ ही 43.2% लड़कियाँ और 49.6% लड़के निजी विद्यालयों में नामांकित हैं।
- आँकड़ों के अनुसार, 6-8 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में 61.1% लड़कियाँ और 52.1% लड़के सरकारी विद्यालयों में नामांकित हैं।
एक ही आयु वर्ग के बच्चों के नामांकन में अंतर:
- इस सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि एक ही आयु के बच्चे अलग-अलग प्रकार के संस्थानों में नमांकित हैं।
- 5 वर्ष के 70% बच्चे आँगनवाड़ी या प्री-स्कूल में जबकि 21.6% कक्षा 1 में नामांकित हैं।
- साथ ही 6 वर्ष के 32.8% बच्चे आँगनवाड़ी या प्री-स्कूल में नामांकित हैं, जबकि इसी आयु वर्ग के 46% बच्चे कक्षा 1 और 18.7% बच्चे कक्षा 2 या उससे आगे की कक्षाओं में नामांकित हैं।
- केरल के थ्रिस्सूर ज़िले में 5 वर्ष के 89.9 % बच्चे पूर्व- प्राथमिक कक्षा में जबकि शेष कक्षा 1 में नामांकित हैं।
- मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स ज़िले में 5 वर्ष के 65.8% बच्चे पूर्व प्राथमिक, 9.8% कक्षा 1 में तथा 16% कक्षा 2 में नामांकित हैं।
- मध्य प्रदेश के सतना ज़िले में 5 वर्ष के 47.7% बच्चे पूर्व प्राथमिक, 40.5% कक्षा 1 और 4.1% कक्षा 2 में नामांकित हैं।
- इस सर्वेक्षण में सरकारी संस्थानों में कक्षा 1 में पढ़ने वाले बच्चों की आयु निजी संस्थानों में कक्षा 1 में पढ़ने वाले बच्चों से कम पाई गई।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education), 2009 के अनुसार कक्षा 1 में बच्चे के प्रवेश की आयु 6 वर्ष है।
- सर्वेक्षण के आँकड़ों से पता चलता है कि बच्चों की पूर्व प्राथमिक शिक्षा के प्रति ग्रामीण क्षेत्रों में परिजनों में जागरूकता के व्यापक अभाव है।
- इस सर्वेक्षण में देखा गया कि ग्रामीण क्षेत्रों के कई विद्यालयों में कुछ बच्चे उच्च कक्षाओं में होने के बाद भी आसान सवालों के जवाब नहीं दे पाए।
- सर्वेक्षण में देखा गया कि लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में कक्षा 1 में पढ़ने वाले 41.1% बच्चे अक्षर भी नहीं पढ़ सकते, जबकि 32.9% बच्चे अक्षर तो पढ़ सकते हैं लेकिन शब्द नहीं पढ़ पाते।
- कक्षा 1 के 28.1% बच्चे 1-9 और कक्षा 3 के 46.2 % बच्चे 11-99 तक अंक पहचानने में सक्षम नहीं हैं।
- वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में कक्षा 1 में पढ़ने वाले 41.9% और कक्षा 3 के 16.8% बच्चे अक्षर ज्ञान से अनभिज्ञ हैं।
- वाराणसी के ही कक्षा 1 में पढ़ने वाले 31.2% बच्चे 1-9 तक के अंक नहीं पहचान सकते।
बच्चों के विकास में आँगनवाड़ी की भूमिका :
- रिपोर्ट के अनुसार, पढ़ाते समय खेल आधारित गतिविधियों पर ध्यान देने से बच्चों को नई चीज़ें सीखने में आसानी होती है और इसके साथ ही उनमें तार्किक तथा रचनात्मक सोच एवं समस्या समाधान जैसे कौशल का विकास होता है।
- ज़िलों में देखा गया कि 4 वर्ष की आयु के सभी बच्चों में से लगभग 50% और 5 वर्ष की आयु के लगभग 25% बच्चे आँगनवाड़ी केंद्रों पर नामांकित हैं।
- इस सर्वेक्षण के दौरान यह भी देखा गया कि आँगनवाड़ी केंद्रों पर नामांकित बच्चों में निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की तुलना में संज्ञानात्मक कौशल और बुनियादी क्षमताएँ कम विकसित हैं।
- विशेषज्ञों के अनुसार, आँगनवाड़ी कई तरीकों से छोटे बच्चों को स्कूली शिक्षा प्रारंभ करने से पहले मानसिक रूप से तैयार करने में मदद करती है, अतः इस बात को ध्यान में रखते हुए आँगनवाड़ी केंद्रों को और अधिक सशक्त बनाए जाने की ज़रूरत है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019: शिक्षा क्षेत्र के विकास के उद्देश्य से सरकार ने जून 2017 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप को तैयार करने के लिये एक समिति का गठन किया था। डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में गठित समिति ने शिक्षा क्षेत्र में सुधारों के लिये अनेक प्रस्ताव दिये जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- नई शिक्षा नीति में पाँच आधारभूत संरचनाओं- अभिगम, न्यायसंगत, गुणवत्ता, वहन करने योग्य और जवाबदेही की बात कही गयी है।
- समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने की भी सिफारिश की है।
- पूर्व माध्यमिक से 12वीं तक मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा (वर्तमान शिक्षा नीति में यह केवल कक्षा-8 तक ही है)।
- समिति ने 3-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को इस योजना में शामिल करने के लिये शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 को विस्तृत करने का सुझाव दिया है।
- नई शिक्षा नीति में बच्चों के ज्ञान और सामाजिक भावनात्मक विकास को उम्र के आधार पर चार चरणों में बाँटा गया है-
1. मूलभूत चरण 3-8 वर्ष
2. प्राथमिक चरण 8-11 वर्ष
3. मध्य चरण 11-14 वर्ष
4. उच्च चरण 14-18 वर्ष - समिति ने मातृभाषा के महत्त्व को समझते हुए पूर्व-प्राथमिक से लेकर कम-से-कम 5वीं तक मातृभाषा में पढ़ाई का सुझाव दिया है।
- इसके साथ ही समिति ने प्री-स्कूल और पहली कक्षा में बच्चों को तीन अन्य भारतीय भाषाओं से परिचित कराने का सुझाव दिया है।
- समिति के अनुसार, तीसरी कक्षा के बाद बच्चों को दो अन्य भारतीय भाषाओं को लिखना सिखाया जाना चाहिये।
- समिति ने एक सक्रिय शिक्षा शास्त्र को बढ़ावा देने की बात कही है, जो मूल क्षमताओं और जीवन कौशल विकास पर केंद्रित हो तथा जिसमें 21वीं सदी का कौशल विकास भी शामिल हो।
- समिति के सुझाव में शिक्षा पाठ्यक्रम सामग्री के भार को कम करने पर ज़ोर दिया गया है।
- समिति ने स्तरहीन शिक्षक-शिक्षण संस्थानों को बंद करने के साथ कई नए सुधार प्रस्तावित किये हैं जिसमें चार वर्ष के बीएड कार्यक्रम को शुरू करने की सलाह भी शामिल है।
निष्कर्ष: असर-2019 रिपोर्ट के आँकड़ों के माध्यम से देश के ग्रामीण क्षेत्रों की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में व्याप्त गंभीर समस्याओं का पता चलता है। रिपोर्ट में स्कूली शिक्षा में सुधारों के साथ प्री-स्कूल (आँगनवाड़ी, प्ले-स्कूल आदि) के सकारात्मक प्रभाव और औपचारिक स्कूली शिक्षा तथा प्री-स्कूल परिवेश के बीच समन्वय के महत्व को भी बताया गया है। नई शिक्षा नीति-2019 के सुझाव कुछ हद तक पाठ्यक्रम से संबंधित समस्याओं का हल प्रदान करने में सफल दिखाई देते हैं परंतु इस नीति के लागू होने के बाद भी यदि ग्रामीण भारत के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करानी है तो शिक्षकों के प्रशिक्षण के साथ ही आँगनवाड़ी जैसे संस्थानों के महत्त्व को देखते हुए उनके पुनर्विन्यासन पर भी ध्यान देना होगा।
अभ्यास प्रश्न: नई शिक्षा नीति से शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार की संभावना है। कथन की समीक्षा कीजिये।