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इंटरव्यू


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मॉक इंटरव्यू समर फातिमा रिज़वी

  • 13 Sep 2018
  • 48 min read

उम्मीदवार का परिचय

नामः समर फातिमा रिज़वी
पिता का नामः असगर हुसैन रिज़वी
माता का नामः शमा रिज़वी
जन्म स्थानः लखनऊ
जन्म तिथिः 14 जुलाई, 1986

शैक्षणिक योग्यताः

  • हाई स्कूलः ला-मार्टीनियर गर्ल्स कॉलेज, लखनऊ (94.5%)

  • इण्टरमीडिएटः ला-मार्टीनियर गर्ल्स कॉलेज, लखनऊ (94.5%)

  • स्नातकः अवध गर्ल्स डिग्री कॉलेज (भूगोल, अंग्रेज़ी साहित्य, राजनीति विज्ञान) (74.5%)

  • परास्नातकः लखनऊ विश्वविद्यालय (भूगोल) (77.5%)

  • UGC NET-JRF उत्तीर्ण, शोधरत।

माध्यमः अंग्रेज़ी
प्रयासः दूसरा
वैकल्पिक विषयः भूगोल
हॉबीज़ः उर्दू साहित्य, सूफी संगीत, डिबेट।
सेवा संबंधी वरीयताएँ: IAS, IFS, IRS, IPS IC & ES, IRTS, IRAS 
राज्य संबंधी वरीयताएँ: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल।

विशेषः 

1. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भूगोल की असिस्टेंट प्रोफेसर।

2. डिबेट की कई प्रतियोगिताओं में विजेता।

(समर का इंटरव्यू दूसरी पाली में मैडम रजनी राजदान के बोर्ड में था, अपनी टेबल पर उनका पहला ही नम्बर था। उनका जो इंटरव्यू संपन्न हुआ उसका भावानुवाद प्रस्तुत है।)

समर फातिमा रिज़वी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मीं, पली-बढ़ी और फिलहाल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग में असिस्टेंट प्राफेसर हैं। समर के पिता असगर हुसैन रिज़वी लखनऊ  विवि के उर्दू विभाग में प्राफेसर हैं। उनके दादा एहतेशाम रिज़वी उर्दू के बड़े विद्वान एवं शायर थे और वे भी लखनऊ  विश्वविद्यालय से जुड़े थे। समर की माँ भी एक पढ़ी-लिखी महिला हैं जो महान उर्दू शायर अली सरदार जाफरी के खानदान से संबंधित रही हैं। फिलहाल वे ‘शमा चिकन हाउस’ नाम से लखनऊ  में अपना बुटीक चलाती हैं। उर्दू की इतनी समृद्ध पृष्ठभूमि के बावजूद समर ने भूगोल को अपना कॅरियर विकल्प और सिविल परीक्षा में वैकल्पिक विषय भी चुना है। इसकी मुख्य वज़ह उनकी प्रिय शिक्षिका उपमा चतुर्वेदी की प्रेरणा एवं उत्साहवर्द्धन रहा। हालाँकि समर को अपनी समृद्ध परंपरा से खासा लगाव है पर उसे उन्होंने लगाव तक ही सीमित रहने दिया तथा अपने कॅरियर को आगे बढ़ाने के लिये भूगोल विषय को चुना। सिविल सेवा परीक्षा में वे अपने पहले ही प्रयास में इंटरव्यू तक पहुँची थीं, और इस बार दूसरे प्रयास में उनका चयन IRS में हो गया। हालाँकि इंटरव्यू में बहुत अच्छे अंक लाने के बावजूद वे अपनी प्राथमिकता वाली सर्विस IAS नहीं पा सकीं, पर वे अभी भी उसे प्राप्त करने का दृढ़ इरादा रखती हैं। जब देश में मुस्लिम आबादी पढ़ाई-लिखाई और नौकरी दोनों ही जगह आनुपातिक रूप से काफी पिछड़ी हुई है, उसमें भी मुस्लिम महिलाएँ तो और भी वंचित हैं, ऐसे में समर फातिमा रिज़वी जैसी मुस्लिम महिलाओं का देश की सर्वोच्च सेवा में चयन एक उम्मीद एवं बदलाव की ताज़ा बयार के समान लगता है। प्रस्तुत है समर फातिमा के इंटरव्यू की शब्दशः दास्तान, जो आपको अवश्य ही प्रेरित करेगी।

साक्षात्कार

अध्यक्षः आपके नाम में लगे ‘समर’ का अर्थ क्या है?

स.फा.रिज़वीः मैम, ‘फल, लाभप्रद’ जैसे कुछ अर्थ हैं, इस शब्द के। वैसे अब्बा और अम्मी दोनों के नामों का स्वर होने की वज़ह से मेरा यह नाम रखा गया था।

अध्यक्षः आपके परिवार में उर्दू-फारसी के इतने विद्वान हैं और खुद आपकी हॉबी भी उर्दू साहित्य रही है। तब तो आपको उर्दू साहित्य का चुनाव करना चाहिये था।

स.फा.रिज़वीः मैम, मुझे उर्दू साहित्य को जानने, सुनने और पढ़ने का बचपन से मौका मिला है। इसे लेकर मेरे भीतर एक अंदरूनी लगाव भी है पर अवध गर्ल्स कॉलेज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान मेरी भूगोल की मैम उपमा चतुर्वेदी ने मुझे भूगोल विषय को लेकर बहुत उत्साहित किया, उनका ही प्रभाव था कि मैंने भूगोल को अपने कॅरियर विकल्प के रूप में चुना।

अध्यक्षः अच्छा! तो ग्रेजुएशन में आपके और कौन-कौन से विषय थे?

स.फा.रिज़वीः भूगोल के अलावा इंग्लिश लिटरेचर और पोलिटिकल साइंस।

अध्यक्षः  तो क्या इन विषयों में उतनी रुचि पैदा नहीं हुई?

स.फा.रिज़वीः मैम, मुझे बचपन से नदियों, पहाड़ों, देशों के बारे में पढ़ने-जानने का बड़ा शौक था। मैं उनके बारे में पूछ-पूछ कर सबको तंग कर देती थी। यही वज़ह रही कि जब मुझे इसे विषय के रूप में पढ़ने को मिला तो इसमें मेरी विशेष अभिरुचि जाग उठी।

अध्यक्षः अब तो आपके बचपन का सपना पूरा हो रहा है, आप एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी में अपना मनपसंद विषय पढ़ा भी रही हैं, और क्या चाहिये इससे ज़्यादा । अगर इस तरह कोई विषय मेरा ‘पैशन’ होता तो मैं तो पढ़ाने का ही विकल्प चुनती।

स.फा.रिज़वीः मैम, मेरे लिये भी यह बहुत मुश्किल फैसला था, हमारे अम्मी-अब्बू हम दोनों बहनों को कलेक्टर बनाना चाहते थे। पर बड़ी दीदी को डॉक्टर बनने में दिलचस्पी थी और वे बन भी गईं, ऐसे में सबकी आशा का केन्द्र मैं थी। मैं उन सबका दिल नहीं तोड़ सकती थी, साथ ही मुझे भी अपने घरवालों की राय से इत्तेफाक था कि भले ही मैंने व्यक्तिगत अभिरुचि के स्तर पर एक तरह से चरम पा लिया है पर क्या हमारा काम यहीं खत्म हो जाता है? क्या हमें देश की गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा पर काम करने का अवसर छोड़ देना चाहिये? निश्चय ही यह जज़्बाती फैसला था पर मुझे लगा कि हमारे अभिभावक सही हैं और इस बात ने मुझे ताकत दी। मैम मैं जानती हूँ कि इन समस्याओं का हल मेरे अकेले के वश की बात नहीं है पर अपने हिस्से का पूरा प्रयास तो मैं कर ही सकती हूँ।

अध्यक्षः समर, आप एक डिबेटर भी रही हैं, अगर आपको हिज़ाब के पक्ष या विपक्ष में बोलना हो तो दोनों मामलों में कौन-से तर्क होंगे?

स.फा.रिज़वीः मैम, अगर मुझे हिज़ाब के पक्ष में बोलना हो तो मैं इसे इस्लामिक आध्यात्मिक परंपरा और सामाजिक सुरक्षा के एक आयाम की तरह लूंगी। अगर इसके विरोध में जाना होगा तो महिलाओं के चयन की स्वतंत्रता, महिलाओं की गरिमा तथा आधुनिक लैंगिक समानता के मानदंडों जैसे तर्कों का सहारा लूंगी।

अध्यक्षः  व्यक्तिगत रूप से इस बारे में आपको क्या लगता है?

स.फा.रिज़वीः मैम, मेरे घर में कभी इसके लिये प्रेरित नहीं किया गया। हमारी अम्मी हिज़ाब पहनती रहीं, पर हम दोनों बहनों ने नहीं पहना। मुझे लगता है कि यह मुद्दा धार्मिक से ज़्यादा राजनैतिक है। मिस्र, तुर्की, ईरान जैसे इस्लामी मुल्कों में ऐसी सरकारें रहीं, जब औरतें बेहद मॉडर्न ड्रेस पहनती रहीं, पर 80-90 के दशक में सऊदी अरब तथा अन्य खाड़ी देशों से वहाबी विचारों का निर्यात शुरू हुआ और धीरे-धीरे हिज़ाब को इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा बताने की होड़ ही लग गई।

सदस्य-1: फ्राँस ने तो हिज़ाब पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्या यह उचित है?

स.फा.रिज़वीः हाँ, अपनी धर्मनिरपेक्ष नीति की वज़ह  से फ्राँस ने ऐसा किया है, पर यह अच्छा कदम नहीं है। वे इससे कट्टरवादियों को उकसावा ही देंगे। फ्राँसीसी सरकार की इस पहल के पीछे चाहे कोई दुराशय न हो लेकिन उनका यह कदम हिज़ाब पर नहीं, इस्लाम पर प्रहार माना जाएगा।

सदस्य-1: प्रतिबंध लगाते समय फ्राँस ने अपने राष्ट्रीय मूल्यों का तर्क दिया था। किसी राष्ट्र के राष्ट्रीय मूल्य यदि किसी धर्म के मूल्य से टकराते हों, तो क्या किया जाना चाहिये?

स.फा.रिज़वीः सर, फ्राँस के राष्ट्रपति के तर्क मैंने उस समय पढ़े थे। सांस्कृतिक विविधता और चयन की स्वतंत्रता भी फ्राँसीसी मूल्यों में शामिल हैं। फ्राँस के इस प्रतिबंध के पीछे आप्रवासियों को लेकर फ्राँसीसी समाज के उदार एवं अनुदार तबकों के बीच चल रही राजनीति का असर था।

सदस्य-1:  अच्छा, आपने उर्दू साहित्य को अपनी हॉबी बताया है। किस तरह का साहित्य पसंद करती हैं आप?

स.फा.रिज़वीः उर्दू में उर्दू पोएट्री एवं उर्दू कथा साहित्य दोनों को पसंद करती हूँ। शायरों में मैं फिराक, अहमद फराज़, अली सरदार जाफरी, मजाज़, जिगर मुरादाबादी, फैज़ अहमद फैज़, गालिब आदि को तथा उर्दू कथाकारों में मंटो, कृश्न चंदर, मुश्ताक अहमद युसुफी, इस्मत चुगताई, कुर्रतुल ऐन हैदर, मोहम्मद हुसैन आज़ाद, शम्सुर्ररहमान फारूकी मेरे प्रिय रहे हैं।

सदस्य-2: हाल में कोई ऐसी किताब जो आपको बहुत अपील की हो?

स.फा.रिज़वीः शम्सुर्ररहमान फारूकी की "कई चाँद थे सरे आसमाँ" मुझे बहुत पसंद आई।

सदस्य-2: किस बारे में है यह पुस्तक?

स.फा.रिज़वीः ऐसे तो यह वज़ीर खानम नामक एक महिला के जीवन के बारे में है, पर यह उन्नीसवीं सदी के भारत के बारे में एक जीवंत दस्तावेज़ है। भाषा की दृष्टि से भी यह विशेष पठनीय पुस्तक है।

सदस्य-3: अंग्रेज़ी साहित्य तो ग्रेजुएशन में आपका एक विषय रहा है, उसमें भी कुछ पढ़ती हैं? अंग्रेज़ी में ऐसी कोई पुस्तक पढ़ी जो फारूकी की पुस्तक जैसी हो?

स.फा.रिज़वीः मैं अंग्रेज़ी में भी पढ़ती रही हूँ, अम्बर्टो इको की ‘द नेम ऑफ रोज़’ कुछ-कुछ ऐसी ही थी जिसमें ऐतिहासिक कथानक था।

सदस्य-4: हेरोडोटस को इतिहास का जनक कहते हैं, इसका भूगोल में भी कुछ योगदान था?

स.फा.रिज़वीः सर, हेरोडोटस को यूनानी प्रादेशिक भूगोल का जनक भी माना जा सकता है। उसने तत्कालीन ज्ञात यूनानी जगत को तीन भागों- यूरोप, एशिया एवं लीबिया में बाँटा जिसमें लीबिया अफ्रीकी भाग था। उसने एक मानचित्र भी तैयार किया था।

सदस्य-3: अच्छा, मैकिन्डर का भूगोल में क्या स्थान रहा है? उसकी कोई पुस्तक पढ़ी आपने?

स.फा.रिज़वीः ब्रिटिश भूगोलवेत्ता मैकिंडर एक प्रसिद्ध विचारक थे, जिन्होंने ‘हृदय स्थल सिद्धांत’ दिया। उन्होंने ‘डेमोक्रेटिक आइडियल्स एण्ड रिएलिटी’ और ‘नेशंस ऑफ दि मॉडर्न वर्ल्ड’ जैसे प्रसिद्ध ग्रंथ लिखे हैं, पर मैंने इन पुस्तकों को पढ़ा नहीं है सर।

सदस्य-2: समर, यूराल-अल्ताई भाषा परिवार की तुर्की उपसमूह की भाषाओं के बारे में कुछ बताएँ?

स.फा.रिज़वीः सर, इसमें अल्ताई, खिरगीज़, उज़बेक , तुर्कमेनियन, अज़रबेजानियन आदि भाषाएँ आती हैं... इनमें से अधिकांश हिस्से पहले सोवियत संघ के हिस्से थे।

सदस्य-3: मानव प्रजातियों के बारे में ग्रिफिथ टेलर के वर्गीकरण के बारे में कुछ बताएँ?

स.फा.रिज़वीः टेलर ने सिर व बालों के आधार पर मानव प्रजातियों को 7 भागों में बाँटा। उसका मानना था कि मध्य एशिया प्रजातियों के विकास का उद्गम क्षेत्र था। उन्होंने ‘प्रवास कटिबंध सिद्धांत’ भी दिया है।

सदस्य-3: क्या प्रजातियों के बारे में यूनेस्को ने भी कोई शोध कराया है?

स.फा.रिज़वीः हाँ सर, उसके निष्कर्ष बहुत ही महत्त्वपूर्ण थे। 1950 में आई उसकी रिपोर्ट प्रजातीय भेदभाव के तर्कों पर प्रहार करती थी। उसमें स्पष्ट किया गया था कि मानव वर्गों में बुद्धि, स्वभाव और आंतरिक गुणों की भिन्नता नहीं होती है।

सदस्य-4: इस बारे में आप क्या मानती हैं?

स.फा.रिज़वीः सर, रंग और प्रजाति के आधार पर किसी भी भेदभाव को मैं अप्राकृतिक मानती हूँ।

सदस्य-1: अच्छा, आप लखनऊ में पली-बढ़ी हैं। यह लखनवी तहज़ीब क्या चीज़ होती है? लखनऊ के बारे में कुछ पढ़ना हो तो किसे पढ़ें?

स.फा.रिज़वीः सर, पुराने लखनऊ के भाषा-व्यवहार और खान-पान की मिली-जुली तासीर लखनवी तहज़ीब कहलाती है, जिसने नवाबों के ज़माने में आकार लिया था। सर, लखनऊ को जानने-पढ़ने के लिये योगेश प्रवीण की पुस्तकें नायाब हैं- दास्ताने अवध, दास्ताने लखनऊ, आपका लखनऊ जैसी कई पुस्तकें उन्होंने लिखी हैं।

सदस्य-3: क्या सचमुच अभी लखनवी तहज़ीब वहाँ बची भी है?

स.फा.रिज़वीः सर, तहज़ीब पर संकट तो लगभग हर जगह है। हर जगह अच्छे-बुरे परिवर्तन हो रहे हैं, पर चौक में आप उस तहज़ीब को कुछ-न-कुछ तो महसूस करेंगे ही, अभी वह पूरी तरह से मरी नहीं है।

सदस्य-3: क्रीमिया को लेकर रूस और यूक्रेन के पक्षों को लेकर आपकी क्या राय है? भारत को इस पर क्या प्रतिक्रिया देनी चाहिये?

स.फा.रिज़वीः सर, क्रीमिया पहले एक स्वतंत्र खानत हुआ करती थी, जो एक बड़े साम्राज्य का हिस्सा थी, बाद में उसका विलय रूसी साम्राज्य में कर लिया गया। जब सोवियत संघ की स्थापना हुई तो रूस ने सद्भावना दिखाने के लिये यूक्रेन को यह हिस्सा दे दिया। यूक्रेन के पूर्वी हिस्से की तरह क्रीमिया में भी रूसी मूल के लोग बहुमत में हैं। रूसी मूल के लोग यूक्रेन को स्वतंत्र देशों के राष्ट्रकुल से मज़बूती से जोड़ना चाहते हैं, तो यूक्रेनी मूल के लोग जो पश्चिमी भाग में रहते हैं वे यूरोपीय संघ के साथ जुड़ाव चाहते हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने यूरोपीय यूनियन के साथ एक संभावित समझौते को रद्द कर दिया तो उनके खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। इसकी परिणति उनके गद्दी छोड़ने से हुई, इस घटना को ‘ऑरेंज क्रांति’ कहा गया। इसी के बाद रूस ने ‘अपनी हितों’ की रक्षा के लिये क्रीमिया में सेना भेज दी। बाद में क्रीमिया ने एक विवादास्पद जनमत-संग्रह के बाद रूसी संघ में विलय कर लिया।

सदस्य-3: क्या ऐसे जनमत संग्रह भारत में संभव हैं, या होने चाहियें?

स.फा.रिज़वीः भारत में राज्यों को इस तरह के अधिकार नहीं हैं और मेरा मानना है कि भारत जैसे देश में ऐसे प्रावधान संघात्मक ढाँचे के लिये खतरनाक होंगे।

सदस्य-3: आपने अभी एक शब्द क्रीमिया की ‘खानत’ का इस्तेमाल किया। ज़रा इसके बारे में कुछ विस्तार से बताएँ।

स.फा.रिज़वीः सर, क्रीमिया में तुर्क ऑटोमन साम्राज्य की एक जागीर स्थापित हुई थी जिसके हिस्से आज के रूस, यूक्रेन एवं माल्दोविया में फैले हैं। यहाँ पर चंगेज़ खान व तैमूर के वंशों से संबंधित कुछ सरदार जिन्हें ‘खान’ कहते थे, शासन करते थे। यह जागीर पंद्रहवीं शताब्दी में स्थापित हुई और 18वीं शताब्दी तक रही। सर मुझे इससे ज़्यादा और कुछ मालूम नहीं।

अध्यक्षः समर, क्या आपको नहीं लगता कि तीन तलाक जैसे मुद्दों पर स्त्रियों के साथ गैर-बराबरी का व्यवहार हो रहा है? तलाक का अधिकार सिर्फ पुरुष को क्यों हो? आखिर इस बारे में समान नागरिक संहिता लागू होने में बाधा क्या है?

स.फा.रिज़वीः मैम, दरअसल इस मुद्दे पर हमारे उलेमा वर्ग की सोच प्रतिगामी है। अधिकांश इस्लामी देशों ने जिनमें पाकिस्तान भी शामिल है, इस सिलसिले में आधुनिक कानूनों को अपना लिया है। हमारे देश का दुर्भाग्य यह है कि उदारवादी मुस्लिम नेतृत्व का यहाँ विकास ही नहीं हो पाया है। अतः मुसलमानों का नेतृत्व कट्टरपंथी उलेमा वर्ग ही कर रहा है, वह हर ऐसे प्रयास को धार्मिक अस्मिता के साथ जोड़कर वैसा उबाल पैदा कर रहा है जैसा शाहबानो केस में हुआ था।

अध्यक्षः समर, वहाबी विचारधारा के लगातार फैलाव के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? इसके लिये अमेरिकी नीतियाँ कहाँ तक ज़िम्मेवार हैं?

स.फा.रिज़वीः मैम, अमेरिका द्वारा सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में हस्तक्षेप तथा मुजाहिद्दीनों को समर्थन एक जल विभाजक की तरह था। खाड़ी युद्ध, सद्दाम हुसैन का पतन, 9/11 एवं पुनः इराक एवं अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप से मुस्लिम जगत में अमेरिका और उसके हितैषियों की छवि मुस्लिम-विरोधी बन गई। सद्दाम और ओसामा इस विरोध के प्रतीक बन गए। इन स्थितियों में अमेरिका को सऊदी अरब व पाकिस्तान का साथ चाहिये था। इस साथ की कीमत दोनों ने खूब निकाली। सऊदी अरब ने वहाबी विचार को पूरी दुनिया में निर्यात किया तथा पाकिस्तान ने तालिबान द्वारा आधे से अधिक अफगानिस्तान को जीतकर यह आशा जगा दी कि ऐसे संगठन राज्यों के निर्माता भी बन सकते हैं। ‘दाइश’ जैसे संगठन इसीलिये पैदा हुए।

अध्यक्षः आपने ‘दाइश’ शब्द का प्रयोग किया। आमतौर पर इसके लिये ‘इस्लामिक स्टेट’ का प्रयोग होता है। दोनों में कुछ फर्क है?

स.फा.रिज़वीः मैम, इस्लामिक स्टेट शब्द से इस्लाम की छवि धूमिल होती है। ऐसा लगता है कि जैसे ये इस्लाम के लिये लड़ने वाले योद्धा हों, पर हकीकत यह है कि इनका इस्लाम से कोई वास्ता नहीं है। इसलिये इनके लिये ‘दाइश’ शब्द प्रचलित हुआ, जिसका अर्थ है- ‘आस्तीन के साँप’।

अध्यक्षः यह ‘लेवांट’ क्या बला है?

स.फा.रिज़वीः यह एक भौगोलिक अवधारणा थी जिसमें भूमध्यसागर से जुड़े मध्य-पूर्व के देशों को ‘लेवांट’ नामक एक इकाई माना गया था। इसे लेंवाटियन कहा जाता था। इसमें तुर्की, साइप्रस, सीरिया, लेबनान, फिलिस्तीन, जॉर्डन, सिनाई प्रायद्वीप और इराक के कुछ हिस्से शामिल माने जाते थे। ब्रिटेन ने एक लेवांट कंपनी भी बनाई थी, जो ऑटोमन साम्राज्य के व्यापार पर एकाधिकार के लिये थी। अब कथित इस्लामिक स्टेट ने अपने को इस्लामिक स्टेट ऑफ सीरिया एण्ड लेवांट कहकर इस क्षेत्र का स्वयंभू खलीफा घोषित कर रखा है।

सदस्य-1: आपकी एक हॉबी सूफी संगीत भी है? एक धारणा है कि इस्लाम और संगीत साथ-साथ नहीं चल सकते, पर पाकिस्तान में एक से बढ़कर एक महान संगीतकार हुए हैं, इस अंतर्विरोध को आप किस रूप में लेती हैं?

स.फा.रिज़वीः वस्तुतः सूफीवाद की बुनियाद इस्लामिक है, वह शुद्धता और ईश्वरीय प्रेम से संबंधित है। पाकिस्तान में बाबा बुल्लेशाह, बाबा फरीद, बाबा लतीफ वगैरह का आम जनता पर गहरा प्रभाव है, इसलिये वहाँ उस्ताद गुलाम अली खान, आबिदा परवीन एवं नुसरत फतेह अली खान जैसे संगीतकारों को बेहद पसंद किया जाता रहा है। हाँ, कुछ तबकों में इसका विरोध ज़रूर है, पर जनता में उनका प्रभाव कम है।

सदस्य-1: आपके पसंदीदा सूफी गायक कौन से हैं?

स.फा.रिज़वीः नुसरत फतेह अली खान, साबरी ब्रदर्स, वारसी ब्रदर्स, आबिदा परवीन, अली अजमत आदि के संगीत को पसंद करती हूँ।

सदस्य-2: क्या सूफी संगीत और क़व्वाली एक ही हैं?

स.फा.रिज़वीः सूफी संगीत की रेंज बहुत बड़ी है। उसमें गज़लें, सूफी रॉक, क़व्वाली आदि सभी शामिल हैं। उर्दू, हिंदी, पंजाबी, फारसी आदि भाषाओं में सूफी काव्य लिखा गया है। सर, क़व्वाली का जन्म ईरान-अफगानिस्तान की सूफी परंपरा में हुआ। यह समां यानी सूफी संगीत को गाने का सामूहिक तरीका था, जिसमें वरिष्ठ क़व्वाल सबसे दाएँ बैठते हैं और वही आलाप के साथ पहला छंद गाते हैं जो अल्लाह की शान में होता है। बाद में अन्य क़व्वाल उन्हें दोहराते हैं।

सदस्य-2: कुछ खास सूफी धुनें जो आपको पसंद हों?

स.फा.रिज़वीः खुसरो की ‘आज रंग है’, उन्हीं की ‘फूल रही सरसों सकल बन’, नुसरत सहाब की ‘साँसों की माला पे सिमरूँ मैं पी का नाम, बुल्ला की जाणां मैं कौन, अँखियाँ नू चैन न आवे, झूमो रे दरवेश, खुसरो निज़ाम से बात जो लागी...’ आदि बेहद पसंद हैं, जिनको मैं लगभग रोज़ सुनती हूँ।

सदस्य-2: अच्छा, आपने वेंडी डोनीगर की पुस्तक "द हिंदूज़, एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री" के बारे में कुछ पढ़ा है?

स.फा.रिज़वीः सर, बस इतना सुना है कि उसमें कुछ विवादास्पद तथ्य थे और विवाद बढ़ने पर पेंगुइन इंडिया ने यह पुस्तक वापस ले ली।

सदस्य-2: क्या इस तरह की चीज़ें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये सही हैं?

स.फा.रिज़वीः हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लोकहित में कुछ युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए हैं, हमें दोनों पक्षों को देखना होगा। हमारे देश में भावनाएँ भड़कने का खतरा बराबर बना रहता है क्योंकि हम अभी इतने परिपक्व लोकतांत्रिक देश नहीं बन पाए हैं।

सदस्य-2: यह सचिन तेंदुलकर को जो भारत रत्न दिया जा रहा है, उस पर आपकी क्या राय है?

स.फा.रिज़वीः निःसंदेह, सचिन महान खिलाड़ी थे। क्रिकेट से जुड़ी राष्ट्रभावना की वज़ह से वे भारत की पहचान बन गए, पर क्या वे बाबा साहेब आम्टे, वर्गीज़ कुरियन, एम.एस. स्वामीनाथन, कमला देवी चट्टोपाध्याय, इला भट्ट, आर.के.लक्ष्मण से ज़्यादा हकदार ठहरते हैं? मुझे तो नहीं लगता सर!

सदस्य-3: समर, यदि आपको कभी मुस्लिम महिलाओं के बीच काम करने का मौका मिले तो आप किन चीज़ों पर फोकस होना चाहोगी?

स.फा.रिज़वीः सर, मेरे अनुसार मुस्लिम महिलाओं का शैक्षिक एवं आर्थिक सशक्तीकरण मेरी प्राथमिकता होगी। इस दिशा में मेरी माँ का उदाहरण मुझे प्रेरणा देता है जो लखनवी चिकन के काम द्वारा अपने साथ 20-25 महिलाओं को रोज़गार प्रदान कर रही हैं। आधुनिक शिक्षा तथा सशक्तीकरण की मुख्यधारा से जुड़ाव आज मुस्लिम महिलाओं की मुख्य चुनौती है, मैं इस पर काम करना चाहूंगी।

सदस्य-3: इस बारे में आपके सामने कोई आदर्श है?

स.फा.रिज़वीः हाँ सर, मैं अजीम प्रेमजी, सुधा नारायण मूर्ति, इला भट्ट और कमला देवी चट्टोपाध्याय से बहुत प्रभावित हूँ। इन लोगों ने शिक्षा व रोज़गार के क्षेत्र में बहुत काम किया है। 

सदस्य-3: कमलादेवी चट्टोपाध्याय का क्या विशेष काम रहा है?

स.फा.रिज़वीः सर, मैं उन्हें आधुनिक भारत की महानतम महिलाओं में मानती हूँ। स्वतंत्रता आंदोलन और शरणार्थियों के पुनर्वास में तो उनका असाधारण योगदान रहा ही है, साथ ही भारतीय लोक कलाओं तथा शिल्पों के संरक्षण में भी उनका विशेष योगदान रहा है जिससे करोड़ों लोगों को स्वरोज़गार के अवसर प्राप्त हुए। सर, इस महान गांधीवादी महिला का इतिहास ने उचित मूल्यांकन नहीं किया है।

सदस्य-2: अच्छा, सुना है वे एक नारीवादी भी थीं?

स.फा.रिज़वीः हाँ सर, बाल विधवा ब्राह्मणी होने के बावजूद उन्होंने विद्रोह करके पुनर्विवाह किया था, उस युग में यह एक असाधारण साहस था। उन्होंने स्त्री अधिकारों तथा उनके सशक्तीकरण के अनेक सरकारी व सामुदायिक प्रयासों में भाग लिया जिसके लिये उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी मिला।

सदस्य-4:  आपका शोध विषय क्या है?

स.फा.रिज़वीः बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर एवं बहराइच ज़िलों के तराई क्षेत्र का मानव भौगोलिक अध्ययन।

सदस्य-4: इन्हीं 3 ज़िलों का खास अध्ययन क्यों?

स.फा.रिज़वीः (थोड़ा मुस्कुराते हुए) दरअसल बलरामपुर में हमारा ननिहाल है और वहाँ के स्थानीय कॉलेज से हमें बहुत सपोर्ट मिल जाता है तो हमने यह शोध विषय चुना।

सदस्य-4:  समर, आपने अपने प्रिय कथाकारों में इस्मत, और मंटो का नाम लिया था। क्या एक लिहाज़ से ये दोनों कथाकार कुछ ज़्यादा  ही विद्रोही नहीं रहे हैं?

स.फा.रिज़वीः हाँ, लेकिन उनकी भाषा मुझे आकर्षित करती रही है। उन्होंने उर्दू गद्य को बंधी-बंधाई लीक से ऊपर उठाया।

सदस्य-3: समर, आपको भारत के शहरी नियोजन में कुछ कमियाँ नज़र आती हैं?

स.फा.रिज़वीः हाँ सर, भारतीय शहरों का नियोजन हमें हड़प्पा युग की याद दिलाता है, जहाँ एक तरफ नियोजित ‘उच्च शहर’ होता था और दूसरी तरफ अनियोजित ‘निम्न शहर’। बहुत कम शहर हैं जहाँ पूरी प्लानिंग के साथ शहर बने हों। अधिकांश शहरों में नगरपालिकाओं व नगर निगमों के भ्रष्टाचार की वज़ह  से योजनाबद्ध विकास नहीं हो पाया। इसलिये ‘जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन’ चलाया जा रहा है। सीवर, पेयजल तथा परिवहन के ढाँचे पर विशेष काम हो रहा है।

सदस्य-2: दुनिया के कुछ ऐसे शहर बताएँ जो इस मामले में हमारे लिये रोल मॉडल हो सकते हैं?

स.फा.रिज़वीः सर, सिंगापुर हमारे लिये एक अच्छा उदाहरण है। हमारे ही देश में चंडीगढ़ एक अच्छी प्लानिंग का नमूना है। सियोल, कोपेनहेगेन, एमस्टर्डम भी शहरी नियोजन के अच्छे उदाहरण हैं। सिंगापुर की जल संरक्षण प्रणाली अनुकरणीय है।

सदस्य-1: आप अलीगढ़ में अध्यापन कर रही हैं, कहा जाता है कि अलीगढ़ से जुड़े बुद्धिजीवियों ने ही भारत के विभाजन की नींव रखी थी?

स.फा.रिज़वीः हाँ सर, अलीगढ़ आंदोलन था तो शैक्षिक आंदोलन, पर शुरू से ही वह राजनीति का प्रवक्ता बना रहा। इसकी मुख्य वज़ह  वहाँ का सामंती ढाँचा रहा। धीरे-धीरे वह अंग्रेज़ समर्थक अलगाववादी लोगों का गढ़ बन गया। दुर्भाग्य से रफी अहमद किदवई, ख्वाजा अहमद अब्बास, राजाराव, के.एम. पनिक्कर, बलराज साहनी, प्रो. हुमायूँ कबीर तथा अन्य महान विद्वानों के ऊपर लियाकत अली खाँ जैसे लोग हावी हो गए।

सदस्य-1: समर, आप उत्तर प्रदेश की हैं। उत्तर प्रदेश काडर में जाना भी चाहती हैं। दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में स्थित होने के बावजूद इसे ‘बीमारू’ राज्यों में क्यों गिना जाता है?

स.फा.रिज़वीः सर, दो-तीन कारण मुझे ज़्यादा प्रभावी लगते हैं। पहला कारण तो मुझे कानून व्यवस्था का लगता है जिसके कारण क्षेत्र का औद्योगीकरण प्रभावित हुआ है, तो बिजली-सड़क की समस्याएँ भी गंभीर रहीं और तीसरा कारण सक्षम शैक्षिक ढाँचे का अभाव भी है, खासकर स्कूली स्तर पर।

सदस्य-1: कोई जगह बताएँ जहाँ कानून व्यवस्था की समस्या की वज़ह  से कोई पहल न हो पाई हो?

स.फा.रिज़वीः सर, पूर्वांचल में इसको हर जगह महसूस किया जा सकता है। कानपुर-गोरखपुर एक ज़माने में उद्योग-धंधों से युक्त थे लेकिन बिजली व कानून-व्यवस्था ने माहौल को नुकसान पहुँचाया।

सदस्य-4: अच्छा समर आपने पश्चिमी घाट की बनावट पर ध्यान दिया है कि वहाँ की नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती हैं? 

स.फा.रिज़वीः सर, इस क्षेत्र की नदियाँ रिफ्ट वैली से होकर बहती हैं, जिससे इनका बहाव बहुत तेज़ होता है इसलिये डेल्टा नहीं बन पाता। दूसरा कारण यह है कि पठारी भाग में बहने की वज़ह  से नदियों में अवसाद कम आ पाता है।

सदस्य-4:  कुछ और कारण हैं? ये तो बहुत सामान्य कारण बताए आपने!

स.फा.रिज़वीः सॉरी सर, अन्य कारण सोच नहीं पा रही।

सदस्य-4: समर, पश्चिम घाट पर बहुत उच्च ज्वार आते हैं जो अवसाद को गहरे समुद्र में पहुँचा देते हैं। पश्चिमी घाट की चट्टानें बहुत खड़ी ढलान की हैं, इसलिये भी डेल्टा संभव नहीं हो पाता है।

स.फा.रिज़वीः धन्यवाद सर!

अध्यक्षः समर, आप ईरान-सऊदी अरब संबंधों के कारण दुनिया पर पड़ रहे प्रभावों की समीक्षा करते हुए लगातार 1 मिनट तक बोलिये।

स.फा.रिज़वीः मैम, सऊदी अरब अपने को सुन्नी जगत का नेता समझता है तथा इस वज़ह  से वह इस्लाम के सऊदी-वहाबी प्रकार का दुनिया भर के मुसलमानों के बीच निर्यात करना चाहता है। इस्लामी क्रांति के बाद ईरान भी दुनिया भर में इस्लाम और शियाओं का नेतृत्व करना चाहता है। इस क्रम में इराक, सीरिया, बहरीन, फिलिस्तीन, लेबनान आदि में दोनों के हित टकराते हैं। फिलिस्तीन में ‘हमास’ को सऊदी अरब, तो ‘हिज़बुल्लाह’ को ईरान मदद करता है। इराक तथा सीरिया में शिया प्रभाव वाली सरकारों को हटाने के लिये सऊदी अरब ने तकफीरी-वहाबी आतंकियों को बढ़ावा दिया। उनके इस काम में तुर्की और कतर का भी सहयोग रहा। ईरान सऊदी अरब के पूर्वी प्रांत के शियाओं, यमन के हूतियों तथा बहरीन के शिया राजनीतिज्ञों के माध्यम से सऊदी अरब के हितों को प्रभावित करने की स्थिति में है।....

अध्यक्षः बहुत अच्छा... समर। अब आप जा सकती हैं। गुड लक।

स.फा.रिज़वीः धन्यवाद, मैम!

मॉक इंटरव्यू का मूल्यांकन

समर फातिमा रिज़वी का मॉक इंटरव्यू पढ़कर आपके मन में एक ज़हीन लड़की का खाका बनेगा जो अपने उद्देश्यों के लिये स्पष्ट एवं दृढ़ है, साथ ही प्रगतिशील एवं प्रतिभावान भी है। समर के शैक्षिक आँकड़े भी उसके भीतर के जीनियस के गवाह हैं। समर ने अपने पूरे इंटरव्यू में असाधारण संतुलन एवं धैर्य का परिचय दिया। शायद उसके अध्यापकीय जीवन एवं डिबेटिंग को लेकर उसके अनुभवों ने उसे आत्मविश्वास दिया होगा। समर पहले ही मानती थी कि बायो-डाटा ही इंटरव्यू का सिलेबस हो सकता है, इसलिये वह अधिकतम संभावित प्रश्नों के लिये तैयार थी। आमतौर पर इंटरव्यू के दौरान कुछ चौंकाने वाले या घुमाने वाले प्रश्न आ ही जाते हैं, पर समर से पूरे इंटरव्यू के दौरान कोई अप्रत्याशित सवाल नहीं पूछा गया। आधे से ज़्यादा  समय उसकी हॉबीज़ और पृष्ठभूमि के इर्द-गिर्द सवाल चलते रहे। ऐसा लग रहा था कि जैसे शुरुआत के कुछ मिनटों के बाद से ही बोर्ड समर के लिये सकारात्मक और आश्वस्त था, वह बस अपनी आश्वस्ति पर मुहर भर लगाना चाहता था। इस तरह समर ने प्रभावी तरीके से अपनी बातें बोर्ड के सामने रखीं, इसलिये कहा जा सकता है कि यह एक बढ़िया इंटरव्यू था। इसके बावजूद समर के उत्तरों से कई नकारात्मक बातें भी निकाली जा सकती हैं। हम इस इंटरव्यू के सकारात्मक एवं नकारात्मक बिंदुओं पर क्रमशः प्रकाश डालेंगे-

समर फातिमा रिज़वी के पक्ष में रहे बिंदु

1. समर के उत्तरों से कोई भी सहज अनुमान लगा सकता है कि वह एक जज़्बाती एवं हिम्मती लड़की है। घर में उर्दू साहित्य की परंपरा होने तथा उसमें गहरे तक रमे होने के बावजूद उसने अपने लिये एक नया रास्ता चुनने और उस पर मज़बूती से आगे बढ़ने का निर्णय लिया, यह उसकी हिम्मत को दर्शाता है। परिवार वालों की भावनाओं को प्रकट करते हुए उसकी भावनाएँ खुलकर प्रकट होती हैं, पर उन भावनाओं में भी तर्क प्रवीणता है, जो समर को विशिष्ट लड़की बनाता है।

2. कठिन व असहज करने वाले तथा आस्था से जुड़े सवालों पर भी समर की धैर्यवान एवं तार्किक विचार-पद्धति ने निश्चय ही बोर्ड को प्रभावित किया होगा। हिज़ाब के मसले पर उसके बेलाग पर संतुलित विचार किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं। समर ने हिज़ाब के प्रति धार्मिक आग्रहों के उभार पर जो टिप्पणी की वह काफी साहसी थे। तीन तलाक के बारे में उलेमा वर्ग पर उसकी टिप्पणी के लिये भी यही कहा जा सकता है। वहाबी इस्लाम के सऊदी निर्यात पर समर का दृष्टिकोण भी बहुत तीखा एवं आक्रामक था, जो निश्चय ही समर की स्पष्टवादिता को प्रभावशाली ढंग से उभारता हुआ दिखता है।

3. पूरे इंटरव्यू में समर की बेलाग एवं प्रगतिशील छवि ने प्रभाव जमाया। अपने पसंदीदा लोगों में मंटो व इस्मत चुगताई को शामिल करना, "कई चाँद थे सरे आसमाँ" का विशेष रूप से उल्लेख करने जैसी चीज़ें समर की एक प्रगतिशील छवि बनाती हैं, जो एक आम मुस्लिम महिला से हटकर है। अलीगढ़ को अलगाववाद के एक प्रतीक के रूप में उसकी साहसी स्वीकारोक्ति भी एक विशिष्ट एवं नोट करने वाली बात थी। सबसे अहम बात यह है कि समर चीज़ों के बारे में अपने विचारों को खुलकर प्रकट करने में न तो संकोच करती है और न ही इन विचारों को लेकर उसे कोई उहापोह है। सऊदी-ईरान संबन्धों पर समर की टिप्पणी अपने आप में एक गागर में सागर की तरह थी। इससे ज़्यादा  सघन विचार इतनी कम समयावधि में रखना संभव न था।

4. समर अपनी अभिरुचियों तथा अपनी पृष्ठभूमि दोनों को लकर बेहद आश्वस्त भी है। उर्दू-साहित्य, सूफी संगीत, लखनऊ आदि के बारे में उसके विचार बड़े सारगर्भित हैं। उसके अपने विषय भूगोल पर भी ढेर सारे प्रश्न पूछे गए, जिनमें से एक को छोड़कर सभी प्रश्नों के उत्तर बेहद सटीक थे। मालूम पड़ता है कि समर अपने पिता एवं माँ दोनों की पृष्ठभूमि से बेहद प्रभावित है तथा उसने उसे जीवन में भी उतार लिया है।

5. अपने आदर्श के रूप में समर जिन लोगों का नाम लेती है उससे उसकी विचार शैली का पता चलता है। वह विशेषकर शिक्षा तथा रोज़गार निर्माण के क्षेत्र में काम करने का सपना देखती है। उसके आदर्श व्यक्ति भी इन्हीं क्षेत्रों से सम्बद्ध हैं। सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने के मामले में उसने उन लोगों का बेलाग होकर नाम लिया जो उसके अनुसार सचिन से बड़े दावेदार थे पर उनको यह सम्मान नहीं मिला। उसने खासतौर पर कुरियन, स्वामीनाथन, बाबा आम्टे, कमला देवी चट्टोपाध्याय, इला भट्ट, आर.के. लक्ष्मण का नाम लिया। संभव है कि कई अन्य नामों पर अन्य लोगों की राय आ सकती है, किंतु समर की साहसी स्पष्टवादिता प्रभावित करने वाली है। हालाँकि सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिया जाए या नहीं, इसका सबसे अच्छा उत्तर वह तो कतई नहीं था जो उसने दिया, पर समर को अपनी बात पर भरोसा था इसलिये उसने बगैर अपराध बोध के सरकार के फैसले पर प्रश्नचिह्न लगाया। हालाँकि पूरी तरह से यह एक सकारात्मक बात नहीं थी पर अक्सर रिस्क लेकर अपनी बात को दृढ़ता से रखना सफलता के  अंत तक ले जाता है।

6. समर का कॅरियर रिकॉर्ड बहुत ही प्रभावी है। उसी के अनुसार उसका इंटरव्यू प्रवाहपूर्ण रहा। यानी उसने अपने एकेडमिक रिकॉर्ड के साथ न्याय किया। उसके अधिकांश उत्तर औसत से बेहतर रहे। भूगोल को लेकर अपने निर्णय, अध्यापकीय जीवन के आगे के कॅरियर पर उसकी भावुक टिप्पणी, हिज़ाब पर उसका प्रगतिशील दृष्टिकोण, बहावी प्रसार पर कड़ी टिप्पणी, अपने विषय पर अच्छी पकड़, सूफीवाद, सूफी संगीत की गहरी समझ जैसी बातें कुल मिलाकर समर के व्यक्तित्व को साहसी, प्रगतिशील और जागरूक सिद्ध करती हैं। किसी भी साक्षात्कार में सफलता की यही कुंजियाँ हैं।

समर फातिमा रिज़वी के विपक्ष में रहे बिंदु 

1. समर के व्यक्तित्व में कहीं-कहीं दुविधा है तो कहीं-कहीं अनावश्यक आक्रामकता है। ये दोनों चीज़ें अक्षम्य तो नहीं हैं पर अच्छा प्रभाव नहीं छोड़तीं। हिज़ाब के मुद्दे पर समर के विचारों में थोड़ा फाँक है। इस फाँक को अनुभवी लोग बहुत आसानी से पकड़ सकते थे। उसने फ्राँस में हिज़ाब के मुद्दे पर इस्लामी दुनिया का दृष्टिकोण तो बताया पर पता नहीं क्यों अपना मत बताने से परहेज़ किया। इससे लगा कि वह प्रतिबंध के खिलाफ है और हिज़ाब का समर्थन करती है, जबकि इसी इंटरव्यू में वह इसकी खिलाफत कर चुकी थी।

2. समर ने कई जगह अति साहसी निर्णय लेते हुए वक्तव्य दिये। खासकर सचिन को भारत रत्न देने के मामले में उसने एक तरह से सीमा ही पार कर दी। उसने बाकायदा उन नामों की भी घोषणा कर दी जिन्हें सचिन से पहले भारत रत्न मिलना चाहिये था। निश्चय ही यह एक सुविचारित और संतुलित उत्तर न था। बेहद परिपक्व उत्तरों के बीच उसका यह उत्तर उसके स्तर को थोड़ा तनु करता दिखा।

3. शहरी विकास के बारे में समर ने सारा दोष नगर निगमों के भ्रष्टाचार पर डालकर काम चला लिया, जबकि और भी महत्त्वपूर्ण कारक मौजूद थे।

4. ‘दाइश’ शब्द के बारे में बताते हुए समर ने इसकी फ्राँसीसी पृष्ठभूमि नज़रअंदाज़ कर दी, जो बहुत आवश्यक थी। ‘दाइश’ कहा जाए अथवा ‘इस्लामिक स्टेट’ मुख्य मुद्दा यह नहीं है, जबकि समर ने इसे मुख्य मुद्दा बनाकर इस्लामिक स्टेट, तालिबान, बोको हरम जैसे गुटों के कारनामों को महज़ गैर-इस्लामिक बताकर उससे पल्ला झाड़ लिया। यह बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति है। इस्लामी कट्टरवाद की निंदा करना ज़्यादा विश्वसनीय तरीका होता।

5. हिज़ाब के उभार को केवल वहाबी निर्यात के रूप में लेना भी सरलीकरण है। इसे वस्तुतः पश्चिम के प्रति आम मुसलमानों की प्रतिक्रिया से भी संबंधित किया जा सकता है।

6. फ्राँस में हिज़ाब पर प्रतिबंध के बारे में समर के विचार और गहरे संदर्भों की मांग करते थे, जिसकी चर्चा समर ने शायद जानबूझकर नहीं की।

7. समर के व्यक्तित्व को देखते हुए ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं प्रतिबंधों की राजनीति’ पर बोर्ड को उससे कहीं ज़्यादा  स्पष्ट उत्तर की उम्मीद ज़रूर रही होगी। लेकिन उसने गोल-मोल जवाब देकर बचने की कोशिश की, यह सचमुच उसके अन्य उत्तरों की प्रकृति से भिन्न व्यवहार था। उसने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की कमी को लेकर भी थोड़ा ज़्यादा आग्रह दिखाया, जबकि इस क्षेत्र के पिछड़ेपन के कई और भी कारण थे।

उपरोक्त कमियों के बावजूद समर आपको विचारों की परिपक्वता और स्पष्टवादिता का एक मानक प्रदान करती है, जो किसी भी इंटरव्यू के लिये बहुत ज़रूरी है। असहज प्रश्नों पर संतुलन कैसे बनाए रख सकते हैं? संभावित प्रश्नों को लेकर सघन रूप से तैयार कैसे हो सकते हैं? ये सब उसने अपने उत्तरों से स्पष्ट किया। समर के सामने अपने व्यक्तित्व में नेतृत्व-क्षमता को प्रदर्शित करने की चुनौती थी, जो उसने बखूबी प्रदर्शित की। फलस्वरूप उसे 275 में से 200 अंक प्राप्त हुए और उसका चयन IRS के लिये हुआ।

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