अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन | 27 Jan 2020
Last Updated: July 2022
वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) ने अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाई।
- यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
मई 2022 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने वर्ल्ड ऑफ वर्क रिपोर्ट पर ILO मॉनिटर का नौवाँ संस्करण ज़ारी किया, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2021 की अंतिम तिमाही के दौरान महत्त्वपूर्ण लाभ के बाद वर्ष 2022 की पहली तिमाही में वैश्विक स्तर पर काम के घंटों की संख्या में गिरावट आई है, जो कोविड-19 से पहले रोज़गार की स्थिति से 3.8 प्रतिशत कम है।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई।
- वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
- मुख्यालय: जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड
- स्थापना का उद्देश्य: वैश्विक एवं स्थायी शांति हेतु सामाजिक न्याय आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों एवं श्रमिक अधिकारों को बढ़ावा देता है।
- वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को निम्नलिखित कार्यों के लिये नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया-
- विभिन्न सामाजिक वर्गों के मध्य शांति स्थापित करने हेतु
- श्रमिकों के लिये सभ्य कार्य एवं न्याय का पक्षधर
- अन्य विकासशील राष्ट्रों को तकनीकी सहायता प्रदान करना
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने निम्नलिखित क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई-
- महामंदी के दौरान श्रमिक अधिकारों को सुनिश्चित करना
- वि-औपनिवेशिकरण की प्रक्रिया
- पोलैंड में सॉलिडैरिटी (व्यापार संगठन) की स्थापना
- दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद पर विजय
- वर्तमान में यह एक न्यायसंगत वैश्वीकरण हेतु नैतिक एवं लाभदायक ढाँचे के निर्माण में आवश्यक सहायता प्रदान कर रहा है।
नोट: ILO का आधार त्रिपक्षीय सिद्धांत है, अर्थात संगठन के भीतर आयोजित वार्ताएँ सरकारों एवं व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों तथा सदस्य राष्ट्रों के नियोक्ताओं के मध्य होती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की संरचना
ILO तीन मुख्य निकायों सरकारों, नियोक्ताओं एवं श्रमिकों के प्रतिनिधियों के माध्यम से अपना कार्य संपन्न करता है:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन: यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों एवं ILO की व्यापक नीतियों को निर्धारित करता है। यह प्रतिवर्ष जेनेवा में आयोजित किया जाता है। इसे प्रायः अंतर्राष्ट्रीय श्रम संसद के रूप में संदर्भित किया जाता है।
- सामाजिक एवं श्रम संबंधी प्रश्नों पर चर्चा के लिये भी यह एक प्रमुख मंच है।
- शाषी निकाय: यह ILO की कार्यकारी परिषद है। प्रतिवर्ष जेनेवा में इसकी तीन बैठकें आयोजित की जाती हैं।
- यह ILO के नीतिगत निर्णयों का निर्धारण एवं कार्यक्रम तथा बजट तय करता है, जिन्हें बाद में ‘स्वीकृति हेतु सम्मेलन’ (Conference for Adoption) में प्रस्तुत किया जाता है।
- संचालन निकाय एवं श्रम संगठन के कार्यालय के कार्यों में त्रिपक्षीय समितियों द्वारा सहायता की जाती है जो कि प्रमुख उद्योगों को कवर करती हैं।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण, प्रबंधन विकास, व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, औद्योगिक संबंध, श्रमिकों की शिक्षा तथा महिलाओं और युवा श्रमिकों की विशेष समस्याओं जैसे मामलों पर विशेषज्ञों की समितियों द्वारा भी इसे समर्थन प्राप्त होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय: यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का स्थायी सचिवालय है।
- यह ILO की संपूर्ण गतिविधियों के लिये केंद्र बिंदु है, जिसे संचालन निकाय की संवीक्षा एवं महानिदेशक के नेतृत्व में तैयार किया जाता है।
- विशेष रुचि के मामलों की जाँच हेतु समय-समय पर ILO सदस्य राष्ट्रों की क्षेत्रीय बैठकें संबंधित क्षेत्रों के लिये आयोजित की जाती हैं।
ILO के कार्य
- सामाजिक तथा श्रम मुद्दों को हल करने हेतु निर्देशित समन्वित नीतियों एवं कार्यक्रमों का निर्माण करना।
- अभिसमयों के रूप में अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को अपनाना तथा उनके कार्यान्वयन को नियंत्रित करना।
- सामाजिक एवं श्रम समस्याओं को सुलझाने में सदस्य राष्ट्रों की सहायता करना।
- मानवाधिकारों (काम करने का अधिकार, संघ की स्वतंत्रता, सामूहिक वार्ता, बलात् श्रम से सुरक्षा, भेदभाव से सुरक्षा, आदि) का संरक्षण करना।
- सामाजिक एवं श्रम मुद्दों पर कार्यों का अनुसंधान तथा प्रकाशन करना।
ILO के लक्ष्य
- कार्य के मानकों एवं मौलिक सिद्धांतों तथा अधिकारों को बढ़ावा देना और उन्हें वास्तविक धरातल पर लाना।
- सभ्य कार्य सुनिश्चित करने हेतु महिलाओं एवं पुरुषों के लिये अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर सृजित करना।
- सभी के लिये सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना तथा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता को बढ़ाना।
- त्रिपक्षीय एवं सामाजिक संवाद को मज़बूत करना।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक
- ILO विभिन्न सम्मेलनों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को निर्धारित करता है, जिनकी सदस्य राष्ट्रों द्वारा पुष्टि की जाती है। ये गैर-बाध्यकारी हैं।
- ILO में सरकारों, श्रमिकों और नियोक्ताओं के समूहों के इनपुट के साथ कन्वेंशन तैयार किये जाते हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन द्वारा अपनाया जाता है।
- ILO कन्वेंशन/अभिसमय की पुष्टि करने हेतु एक सदस्य राष्ट्र इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार करता है। कई देश अपने राष्ट्रीय कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप तैयार करने के लिये एक दस्तावेज़ के रूप में इन कन्वेंशनों/अभिसमयों का उपयोग करते हैं।
सभ्य कार्य का एजेंडा
- ILO का एक प्रमुख उद्देश्य सामाजिक संवाद, सामाजिक सुरक्षा तथा रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों के तहत सभी को सभ्य कार्य प्रदान करना है।
- विकास भागीदारों के समर्थन द्वारा ILO इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में 100 से अधिक देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
कार्य के मौलिक सिद्धांतों एवं अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की घोषणा
- इसे वर्ष 1998 में अपनाया गया था, घोषणा में सदस्य राष्ट्रों को चार श्रेणियों में विभक्त आठ मौलिक सिद्धांतों तथा अधिकारों को मान्यता देने एवं उन्हें बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध किया गया जहाँ उन्होंने प्रासंगिक कन्वेंशनों की पुष्टि की है अथवा नहीं। ये चार श्रेणियाँ हैं:
- संघ की स्वतंत्रता एवं सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार ( कन्वेंशन 87 और 98)
- बलात् श्रम या अनिवार्य श्रम का उन्मूलन (कन्वेंशन संख्या 29 एवं संख्या 105)
- बाल श्रम का उन्मूलन ( कन्वेंशन संख्या 138 एवं संख्या 182)
- रोज़गार एवं व्यवसाय संबंधी भेदभाव का उन्मूलन (कन्वेंशन संख्या 100 एवं संख्या 111)
ILO के मुख्य कन्वेंशन
- आठ मौलिक कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार फ्रेमवर्क का एक अभिन्न हिस्सा हैं, और उनका अनुसमर्थन सदस्य राष्ट्रों के मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता का एक महत्त्वपूर्ण संकेत है।
- कुल 135 सदस्य राष्ट्रों ने सभी आठ मौलिक सम्मेलनों की पुष्टि की है। दुर्भाग्य से, उच्चतम जनसंख्या वाले विश्व के 48 सदस्य राष्ट्रों द्वारा (183 सदस्य राज्यों में से) सभी आठ कन्वेंशन की पुष्टि करना अभी शेष है।
- ILO के मुख्य आठ कन्वेंशन हैं:
- बलात् श्रम पर कन्वेंशन (संख्या 29)
- बलात् श्रम का उन्मूलन पर कन्वेंशन (संख्या 105)
- समान पारिश्रमिक पर कन्वेंशन (संख्या 100)
- भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) पर कन्वेंशन (संख्या 111)
- न्यूनतम आयु पर कन्वेंशन (संख्या 138)
- बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरूप पर कन्वेंशन (संख्या 182)
- संघ की स्वतंत्रता एवं संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा पर कन्वेंशन (संख्या 87)
- संगठित एवं सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार पर कन्वेंशन (संख्या 98)
- सभी क्षेत्रों में श्रमिकों के कल्याण और आजीविका के लिये वैश्विक आर्थिक एवं अन्य चुनौतियों का सामना करने हेतु आठ कन्वेंशनों को एक साथ लाना वर्तमान समय में अधिक प्रासंगिक हो गया है।
- वास्तव में ये मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता, सभी को सुरक्षा प्रदान करने एवं एक वैश्विक तंत्र में सामाजिक न्याय की आवश्यकता को साधने हेतु व्यापक संरचना का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- ये पूर्ण रूप से संयुक्त राष्ट्र प्रणाली, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और स्थानीय समुदायों के मुख्य स्रोत हैं।
भारत और ILO
- भारत ILO का संस्थापक सदस्य है और यह वर्ष 1922 से ILO के संचालन निकाय का स्थायी सदस्य है।
- भारत में ILO का पहला कार्यालय वर्ष 1928 में स्थापित किया गया था। ILO और इसके भागीदारों के मध्य परस्पर विश्वास एवं सम्मान इसके अंतर्निहित सिद्धांतों के रूप में स्थापित है। यह निरंतर संस्थागत क्षमताओं के निर्माण तथा भागीदारों की क्षमताओं को मज़बूत करने का आधार है।
- भारत ने आठ प्रमुख/मौलिक ILO कन्वेंशनों में से 6 की पुष्टि की है। ये कन्वेंशन निम्नलिखित हैं:
- बलात् श्रम पर कन्वेंशन (संख्या 29)
- बलात् श्रम के उन्मूलन पर कन्वेंशन (संख्या 105)
- समान पारिश्रमिक पर कन्वेंशन (संख्या 100)
- भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) पर कन्वेंशन (संख्या 111)
- न्यूनतम आयु पर कन्वेंशन (संख्या 138)
- बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरुप पर कन्वेंशन (संख्या 182)
- भारत ने दो प्रमुख/ मौलिक कन्वेंशनों, अर्थात् संघ बनाने की स्वतंत्रता एवं संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा पर कन्वेंशन, 1948 (संख्या 87) और संगठित होने तथा सामूहिक सौदेबाजी पर कन्वेंशन, 1949 (संख्या 98) की पुष्टि नहीं की है।
- ILO की कन्वेंशन संख्या 87 एवं 98 की पुष्टि नहीं होने का मुख्य कारण सरकारी कर्मचारियों पर लगाए गए कुछ प्रतिबंध हैं।
- इन कन्वेंशनों की पुष्टि करने हेतु भारत को सरकारी कर्मचारियों को कुछ ऐसे अधिकार देने होंगे जो वैधानिक नियमों के तहत निषिद्ध हैं, अर्थात् हड़ताल करने का अधिकार, सरकारी नीतियों की स्पष्ट रूप से आलोचना करना, वित्तीय योगदान को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करना, विदेशी संगठनों में स्वतंत्र रूप से शामिल होना, आदि।
ILO में व्यापार संगठन
- व्यापार संगठन ILO की विकासशील नीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, श्रमिक समूह का प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय व्यापारिक संगठनों द्वारा किया जाता है।
- सचिवालय में श्रमिक गतिविधियाँ ब्यूरो स्वतंत्र और लोकतांत्रिक व्यापारिक संगठनों को मज़बूत करने के लिये समर्पित है ताकि वे श्रमिकों के अधिकारों एवं हितों का बेहतर बचाव कर सकें।
ILO की पर्यवेक्षी भूमिका
- ILO सदस्य राष्ट्रों द्वारा अनुमोदित ILO कन्वेंशन के कार्यान्वयन की निगरानी करता है। इसे निम्न माध्यम से किया जाता है:
- कन्वेंशनों और सिफारिशों को लागू करने संबंधी विशेषज्ञों की समिति द्वारा।
- कन्वेंशनों एवं सिफारिशों को लागू करने संबंधी अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन की त्रिपक्षीय समिति द्वारा।
- सदस्य राष्ट्रों को भी उन कन्वेंशनों के कार्यान्वयन की प्रगति पर रिपोर्ट भेजना आवश्यक होता है जिसकी उन्होंने पुष्टि की हैं।
शिकायतें
- ILO अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं के खिलाफ शिकायत दर्ज करता है; हालाँकि यह सरकारों पर प्रतिबंध नहीं लगाता है।
- सदस्य राष्ट्रों के खिलाफ भी इस आधार पर शिकायत दर्ज की जा सकती है कि उन्होंने उन ILO कन्वेंशनों का अनुपालन नहीं किया है जिसकी उन्होंने पुष्टि की है।
- शिकायतें किसी ऐसे सदस्य राष्ट्र द्वारा की जा सकती है, जिसने उसी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये हों, यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन अथवा ILO के संचालन निकाय के एक प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
ILO का ग्लोबल कमीशन ऑन द फ्यूचर ऑफ वर्क
- ILO के ग्लोबल कमीशन ऑन द फ्यूचर ऑफ वर्क का गठन ILO फ्यूचर ऑफ़ वर्क इनिशिएटिव में दूसरे चरण को चिह्नित करता है।
- इसकी सह-अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा एवं स्वीडिश प्रधानमंत्री स्टीफन लफ्वेन द्वारा की गई थी।
- आयोग एक मानव-केंद्रित एजेंडे हेतु रूपरेखा तैयार करता है जो लोगों की क्षमताओं, संस्थानों और सतत् कार्य में निवेश करने पर आधारित है।
- इसने फ्यूचर ऑफ वर्क का गहन परीक्षण किया है जो 21वीं सदी में सामाजिक न्याय के वितरण के लिये विश्लेषणात्मक आधार प्रदान कर सकता है।
- यह नई तकनीक, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को रेखांकित करता है एवं श्रम की दुनिया में पैदा होने वाले व्यवधानों पर एक सामूहिक वैश्विक प्रतिक्रिया का आह्वान करता है।
- आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ऑटोमेशन और रोबोटिक्स के परिणामस्वरूप रोज़गार के अवसरों में कमी आएगी क्योंकि पुरानी कुशलताएँ अप्रचलित हो जाएंगी।
- इसके प्रमुख सुझाव हैं:
- एक सार्वभौमिक श्रम गारंटी, जो श्रमिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है, आजीविका हेतु एक पर्याप्त पारिश्रमिक, कार्य का नियत समय तथा सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करती है।
- जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक सामाजिक सुरक्षा की गारंटी जो लोगों की ज़रुरतों का समर्थन करे।
- आजीवन सीखने के लिये एक सार्वभौमिक अधिकार जो लोगों को कौशल प्रदान करे, कौशल का नवीनीकरण करें एवं कौशल विकास हेतु सक्षम बनाए।
- डिज़िटल श्रम प्लेटफार्मों के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय शासन प्रणाली सहित सभ्य कार्य को बढ़ावा देने हेतु तकनीकी परिवर्तन का प्रबंधन।
- देखभाल, हरित एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में अधिक से अधिक निवेश।
- लैंगिक समानता हेतु एक परिवर्तनकारी एवं मापने योग्य एजेंडा।
- दीर्घावधि निवेश को बढ़ावा देने हेतु व्यापार प्रोत्साहन को नया रूप देना।