केंद्रीय सतर्कता आयोग | 22 Jun 2020

 Last Updated: July 2022 

केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) एक शीर्षस्‍थ सतर्कता संस्‍थान है जो किसी भी कार्यकारी प्राधिकारी के नियंत्रण से मुक्‍त है तथा केंद्रीय सरकार के अंतर्गत सभी सतर्कता गतिविधियों की निगरानी करता है साथ ही केंद्रीय सरकारी संगठनों में विभिन्‍न प्राधिकारियों को उनके सतर्कता कार्यों की योजना बनाने, निष्‍पादन करने, समीक्षा करने एवं सुधार करने के संबंध में सलाह देता है। 

सतर्कता (Vigilance) का अर्थ है विशेष रूप से कर्मियों और सामान्य रूप से संस्थानों की दक्षता एवं प्रभावशीलता की प्राप्ति के लिये स्वच्छ तथा त्वरित प्रशासनिक कार्रवाई सुनिश्चित करना, क्योंकि सतर्कता का अभाव अपव्यय, हानि और आर्थिक पतन का कारण बनता है।

CVC को सरकार द्वारा फरवरी, 1964 में के. संथानम की अध्यक्षता वाली भ्रष्टाचार निरोधक समिति (Committee on Prevention of Corruption) की सिफारिशों पर स्थापित किया गया था। संसद द्वारा अधिनियमित केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 द्वारा इसे सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।

CVC किसी भी मंत्रालय/विभाग के अधीन नहीं है। यह एक स्वतंत्र निकाय है जो केवल संसद के प्रति उत्तरदायी है।

कार्य

  • CVC भ्रष्टाचार या कार्यालय के दुरुपयोग से संबंधित शिकायतें सुनता है और इस दिशा में उपयुक्त कार्रवाई की सिफारिश करता है। निम्नलिखित संस्थाएँ, निकाय या व्यक्ति CVC के पास अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं:
    • केंद्र सरकार
    • लोकपाल
    • सूचना प्रदाता/मुखबिर/सचेतक (Whistle Blower) 
      • सूचना प्रदाता/मुखबिर/सचेतक किसी कंपनी या सरकारी एजेंसी का कर्मचारी या कोई बाहरी व्यक्ति (जैसे मीडिया या पुलिस सेवा से संबद्ध या कोई उच्च सरकारी अधिकारी) हो सकता है जो धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार आदि रूपों में किसी भ्रष्ट कृत्य को सार्वजनिक करता है या इसकी सूचना किसी उच्च प्राधिकारी/प्राधिकरण को देता है। 
  • केंद्रीय सतर्कता आयोग कोई अन्वेषण एजेंसी नहीं है। यह या तो CBI के माध्यम से या सरकारी कार्यालयों में मुख्य सतर्कता अधिकारियों (Chief Vigilance Officers- CVO) के माध्यम से मामले की जाँच/अन्वेषण कराता है। 
  • यह लोकसेवकों की कुछ श्रेणियों द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (Prevention of Corruption Act), 1988 के तहत किये गए भ्रष्टाचारों की जाँच कराने की शक्ति रखता है। 
  • इसकी वार्षिक रिपोर्ट आयोग द्वारा किये गए कार्यों का विवरण देती है और उन प्रणालीगत विफलताओं को इंगित करती है जिनके परिणामस्वरूप सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार होता है। 
    • रिपोर्ट में सुधार और निवारक उपाय (Improvements and Preventive Measures) भी सुझाए जाते हैं। 

पृष्ठभूमि

  • भारत सरकार द्वारा वर्ष 1941 में विशेष पुलिस स्थापन (Special Police Establishment- SPE) का गठन किया गया था। 
    • उस समय SPE का कार्य द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के युद्ध और आपूर्ति विभाग (War & Supply Department of India) के साथ लेन-देन में रिश्वत तथा भ्रष्टाचार के मामलों का अन्वेषण करना था।
    • युद्ध की समाप्ति के बाद भी केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा रिश्वत और भ्रष्टाचार के मामलों के अन्वेषण के लिये एक केंद्रीय एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गई।
    • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम (Delhi Special Police Establishment Act- DSPE), 1946 लागू किया गया।
  • इस अधिनियम की घोषणा के बाद SPE के अधीक्षक को गृह विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया और भारत सरकार के सभी विभागों को दायरे में लाने के लिये इसके कार्यक्षेत्र का विस्तार किया गया।
    • SPE के अधिकार क्षेत्र का विस्तार सभी केंद्रशासित प्रदेशों के पर किया गया और अधिनियम द्वारा यह उपबंध भी किया गया कि राज्य सरकार की सहमति से इसके कार्यक्षेत्र का विस्तार राज्यों के पर भी होगा।
  • वर्ष 1963 तक SPE को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1947 के तहत किये गए अपराधों के साथ ही भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की 91 भिन्न धाराओं और 16 अन्य केंद्रीय अधिनियमों तहत किये गए अपराधों का अन्वेषण कराने के लिये अधिकृत कर दिया गया था। 
  • केंद्र सरकार के स्तर पर एक केंद्रीय पुलिस एजेंसी की बढ़ती आवश्यकता महसूस की गई जो न केवल रिश्वत और भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच कर सके, बल्कि निम्नलिखित विषय भी उसकी जाँच के दायरे में हों:
  • केंद्रीय राजकोषीय कानूनों का उल्लंघन 
  • भारत सरकार के विभागों से संबंधित बड़ी धोखाधड़ी 
  • सार्वजनिक संयुक्त स्टॉक कंपनियाँ 
  • पासपोर्ट धोखाधड़ी
  • समुद्र में होने वाले अपराध
  • हवाई जहाज़ों में होने वाले अपराध
  • संगठित अपराधी गुटों और पेशेवर अपराधियों द्वारा किये गए गंभीर अपराध
  • भ्रष्टाचार निवारण विषय पर गठित संथानम समिति की सिफारिशों पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) की स्थापना 1 अप्रैल, 1963 को गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी। 
    • बाद में इसे कार्मिक मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया और अब इसे संलग्न कार्यालय का दर्जा प्राप्त है। 
  • वर्ष 1964 में के. संथानम की अध्यक्षता वाली भ्रष्टाचार निरोधक समिति (Committee on Prevention of Corruption) की सिफारिशों पर सरकार द्वारा CVC की स्थापना की गई थी जिसका कार्य सतर्कता के मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देना और उसका मार्गदर्शन करना है।
  • विनीत नारायण एवं अन्य बनाम भारत संघ (1997) निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने CVC की अग्रणी भूमिका के बारे में निर्देश जारी किये। 
    • इस निर्णय में न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की भूमिका की आलोचना करते हुए यह निर्देश दिया था कि CVC को CBI के ऊपर एक पर्यवेक्षी भूमिका सौंपी जानी चाहिये।
  • केंद्र सरकार वर्ष 1998 में एक अध्यादेश लेकर आई जिसमें CVC को सांविधिक दर्जा दिया गया और उसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन के कार्यकलाप के अधीक्षण की शक्ति दी गई। इसके साथ ही उसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत हुए अपराधों के मामले में अन्वेषण की प्रगति की समीक्षा करने की शक्ति भी दी गई।
  • बाद में वर्ष 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम (The Central Vigilance Commission Act) लाकर आयोग के सांविधिक दर्जे की पुष्टि कर दी गई।
    • CVC अधिनियम, 2003 के अधिनियमित होने के बाद आयोग एक बहु सदस्यीय निकाय बन गया जिसमें एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) और अधिकतम दो सतर्कता आयुक्त (सदस्य) शामिल हैं। इन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • वर्ष 2003 में एक मुखबिर/सचेतक श्री सत्येंद्र दुबे की हत्या पर दायर रिट याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि जब तक एक विधान का निर्माण नहीं कर लिया जाता तब तक के लिये मुखबिरों की सूचना पर कार्रवाई हेतु एक तंत्र का निर्माण किया जाए। 
    • इस संकल्प को लोकप्रिय रूप से ‘व्हिसल ब्लोअर्स रेजोल्यूशन’ (Whistle Blowers Resolution) के रूप में जाना जाता है। इसने भ्रष्टाचार या पद के दुरुपयोग के संबंध में कोई भी आरोप या शिकायत प्राप्त करने और उस पर कार्रवाई करने वाली एजेंसी के रूप में केंद्रीय सतर्कता आयोग को नामित किया है।
    • PIDPI संकल्प के तहत शिकायत दर्ज कराते समय शिकायतकर्त्ता की पहचान गुप्त रखने की ज़िम्मेदारी आयोग को सौंपी गई है ताकि सूचना प्रदाता को किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान की जा सके। 
    • इस निर्देश का अनुसरण करते हुए भारत सरकार ने सार्वजनिक हित प्रकटीकरण और सूचना प्रदाता संरक्षण संकल्प (Public Interest Disclosure and Protection of Informers Resolution- PIDPI), 2004 को अधिसूचित किया: 
  • सार्वजनिक हित प्रकटीकरण और सूचना प्रदाता संरक्षण (Public Interest Disclosure and Protection to Person Making the Disclosures- PIDPPMD) विधेयक 2010 का नाम बदलकर सूचना प्रदाता संरक्षण विधेयक/व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण विधेयक (Whistle Blowers’ Protection Bill), 2011 किया गया और संसद से पारित होने के बाद इसे सूचना प्रदाता संरक्षण अधिनियम, 2014 (Whistle Blowers’ Protection Act, 2014) के रूप में लागू किया गया।
  • बाद के अन्य अध्यादेशों और विधानों के माध्यम से सरकार ने आयोग के कार्यों और शक्तियों में वृद्धि की है।
  • वर्ष 2013 में संसद ने लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम (Lokpal and Lokayuktas Act), 2013 को अधिनियमित किया। 
    • इस अधिनियम ने CVC अधिनियम, 2003 में संशोधन किया जिसके तहत आयोग को लोकपाल द्वारा संदर्भित शिकायतों की प्रारंभिक पूछताछ और आगे के अन्वेषण का अधिकार दिया गया है।
  • CVC अधिनियम और लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम के बीच क्षेत्राधिकार के अधिव्यापी/ओवरलैप होने के मुद्दे पर लोकपाल एवं लोकायुक्त तथा अन्य संबंधी विधि (संशोधन) विधेयक, 2014 के परीक्षण के दौरान आयोग ने कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी समिति (स्थायी समिति) को अपने सुझावों से अवगत कराया था।

प्रशासन 

  • केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास स्वयं का सचिवालय, मुख्य तकनीकी परीक्षक खंड (CTE) और विभागीय जाँच आयुक्त खंड (CDI) है। अन्वेषण कार्य के लिये CVC को दो बाहरी स्रोतों, CBI और मुख्य सतर्कता अधिकारियों (CVO) पर निर्भर रहना पड़ता है।

संरचना

  • इस बहु-सदस्यीय आयोग में एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) और अधिकतम दो सतर्कता आयुक्त (सदस्य) शामिल होते हैं। 
  • केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और सतर्कता आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), गृह मंत्री (सदस्य) और लोकसभा में विपक्ष के नेता (सदस्य) शामिल होते हैं। 
  • केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और सतर्कता आयुक्तों का कार्यकाल पदभार ग्रहण करने की तिथि से चार वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो होता है। 

सचिवालय

  • CVC के सचिवालय में अपर सचिव स्तर का एक सचिव, संयुक्त सचिव स्तर के चार अधिकारी, निदेशक/उप सचिव स्तर के तीस अधिकारी (दो विशेष कार्य अधिकारियों सहित), चार अवर सचिव और कार्यालय कर्मचारी शामिल होते हैं। 

मुख्य तकनीकी परीक्षक संगठन

(Chief Technical Examiners' Organisation- CTEO)

  • मुख्य तकनीकी परीक्षक संगठन केंद्रीय सतर्कता आयोग का तकनीकी खंड है और इसमें मुख्य इंजीनियर स्तर के दो इंजीनियर (मुख्य तकनीकी परीक्षक के रूप में पदनामित) तथा सहायक इंजीनियरिंग कर्मी शामिल हैं। इस खंड को सौंपे गए मुख्य कार्य हैं: 
    • सरकारी संगठनों के निर्माण कार्यों का सतर्कता के दृष्टिकोण से तकनीकी अंकेक्षण करना
    • निर्माण कार्यों से संबंधित शिकायतों के विशिष्ट मामलों का अन्वेषण करना
    • तकनीकी मामलों से संबद्ध अन्वेषणों और दिल्ली में संपत्तियों का मूल्यांकन करने में CBI की सहायता करना
    • तकनीकी मामलों से संबद्ध सतर्कता मामलों में आयोग और मुख्य सतर्कता अधिकारियों को सलाह व सहायता देना।
  • वर्ष 2017 के दौरान CTEO ने 52 संगठनों को दायरे में लेते हुए 66 खरीद मामलों का गहन परीक्षण किया। कुछ संगठन जहाँ गहन परीक्षण किये गए उनमें शामिल हैं:
    • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRT&H)
    • केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD)
    • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS)
    • कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC)
    • पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय (PCU)
    • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI)
    • उत्तरी दिल्ली नगर निगम (NDMC)
    • तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC)
    • बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) 

विभागीय जाँच आयुक्त

(Commissioners for Departmental Inquiries- CDIs)

  • आयोग में विभागीय जाँच आयुक्त के कुल 14 पद हैं जिसमें से 11 निदेशक स्तर के पद हैं और 3 उपसचिव स्तर के पद हैं।
  • CDIs लोकसेवकों के विरुद्ध शुरू की गई विभागीय कार्यवाही में मौखिक पूछताछ के लिये पूछताछ अधिकारियों के रूप में कार्य करते हैं।

इंटीग्रिटी इंडेक्स डेवलपमेंट

(Integrity Index Development- IID)

  • IID सार्वजनिक संगठनों के पारदर्शी, उत्तरदायी और कुशल शासन को दर्शाता है। 
  • CVC ने भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद को एक अनुसंधान-आधारित दृष्टिकोण अपनाते हुए एक इंटीग्रिटी इंडेक्स के निर्माण का कार्य सौंपा है। इसका उपयोग विभिन्न संगठन स्वयं के मूल्यांकन के लिये करेंगे और बदलती आवश्यकताओं के साथ इसका विकास होता जाएगा।

बाह्य एजेंसियों के माध्यम से CVC का अन्वेषण

  • CVC के पास स्वयं की अन्वेषण शाखा नहीं है और यह अन्वेषण के लिये CBI और CVO पर निर्भर है, जबकि CBI के पास स्वयं की अन्वेषण शाखा है जो दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन (SPE) अधिनियम से अपनी शक्तियाँ प्राप्त करती है।

मुख्य सतर्कता अधिकारी (Chief Vigilance Officers- CVOs)

  • विभागों/संगठनों में सतर्कता प्रशासन का नेतृत्व मुख्य सतर्कता अधिकारियों द्वारा किया जाता है और आयोग की जाँच संबंधी गतिविधियाँ इनके द्वारा या इनके सहयोग से आगे बढ़ती है।
  • आयोग को प्राप्त शिकायतों की गहनता से जाँच की जाती है और जो भी सतर्कता प्रकृति के विशिष्ट और सत्यापन योग्य आरोप होते हैं, उन्हें त्वरित व कुशल जाँच/अन्वेषण तथा आयोग को रिपोर्ट सौंपने के लिये CVO/CBI को अग्रसारित कर दिया जाता है। 
  • सभी विभागों/संगठनों में CVO की नियुक्ति आयोग से पूर्व-परामर्श के बाद की जाती है।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो

(Central Bureau of Investigation- CBI)

  • यह भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 से संबंधित मामलों में CVC की समग्र निगरानी में काम करती है।
    • भ्रष्टाचार की रोकथाम और प्रशासन में ईमानदारी बनाए रखने में CBI महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • CVC अधिनियम CBI निदेशक के लिये दो वर्ष के निश्चित कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करता है।
  • CBI के निदेशक और SP रैंक एवं उससे ऊपर के अन्य अधिकारियों के चयन के लिये स्थापित समिति का अध्यक्ष मुख्य सतर्कता अधिकारी होता है।

CVC का अधिकार क्षेत्र

केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 

केंद्र सरकार, किसी केंद्रीय अधिनियम द्वारा या उसके अंतर्गत गठित निगम, सरकारी कंपनियाँ, केंद्र सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में संचालित सोसाइटियाँ और स्थानीय प्राधिकरण में कार्यरत लोक सेवकों की कुछ श्रेणियों द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के अंतर्गत किये गए अपराधों के मामले में आयोग को जाँच का अधिकार प्राप्त है। लोक सेवकों की ये श्रेणियाँ हैं: 

  • अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्‍य जो संघ के विषय क्षेत्रों में सेवा दे रहे हैं और केंद्र सरकार के समूह ‘A’ के अधिकारी।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में श्रेणी-V तथा उससे उच्च स्‍तर के अधिकारी।
  • भारतीय रिजर्व बैंक, नाबार्ड तथा सिडबी में ग्रेड ‘D’ तथा इससे उच्च स्‍तर के अधिकारी
  • अनुसूची ‘A’ तथा ‘B’ सार्वजनिक उपक्रमों में मुख्‍य कार्यपालक, कार्यपालक मण्‍डल तथा E-8 एवं इससे उच्च स्तर के अन्‍य अधिकारी।
  • अनुसूची ‘C’ तथा ‘D’ सार्वजनिक उपक्रमों में मुख्‍य कार्यपालक, कार्यपालक मण्‍डल तथा E-7 एवं इससे ऊपर के अन्‍य अधिकारी।
  • सामान्‍य बीमा कंपनियों में प्रबंधक एवं इससे ऊपर के अधिकारी।
  • जीवन बीमा निगमों में वरिष्‍ठ मण्‍डलीय प्रबंधक एवं इससे ऊपर के अधिकारी।
  • समितियों तथा अन्‍य स्‍थानीय प्राधिकरणों में अधिसूचना की तिथि को तथा समय-समय पर यथासंशोधित अनुरूप केंद्र सरकार डी.ए. प्रतिमान पर 8700/- रुपये प्रतिमाह तथा इससे ऊपर वेतन पाने वाले अधिकारी। 

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013

  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के कुछ प्रावधानों में संशोधन किया है जिसके तहत आयोग को समूह 'B', 'C' और 'D' के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के संबंध में लोकपाल द्वारा भेजी गई शिकायतों की प्रारंभिक जाँच करने का अधिकार दिया गया है।
    • समूह ‘A’ अधिकारियों के संबंध में प्रारंभिक जाँच हेतु आयोग में एक जाँच निदेशालय स्थापित करना होगा।
  • समूह ‘A’ और ‘B’ अधिकारियों के संबंध में लोकपाल द्वारा संदर्भित ऐसे मामलों में प्रारंभिक जाँच रिपोर्ट आयोग द्वारा लोकपाल को भेजना आवश्यक है
  • आयोग को यह अधिदेश भी है कि समूह 'C' और 'D' के अधिकारियों के संबंध में ऐसे लोकपाल संदर्भों में आगे की जाँच (प्रारंभिक जाँच के बाद) कराए तथा उनके विरुद्ध आगे की जाने वाली कार्रवाई का निर्णय करे।

सूचना प्रदाता संरक्षण अधिनियम, 2014 

(The Whistleblowers Protection Act, 2014)

  • यह अधिनियम आयोग को निम्नलिखित मामलों में सक्षम प्राधिकार के रूप में सशक्त बनाता है:
    • किसी लोक सेवक के विरुद्ध भ्रष्टाचार के किसी अभिकथन पर या जानबूझकर शक्ति के दुरूपयोग अथवा जानबूझकर विवेकाधिकार के दुरूपयोग के प्रकटन से संबंधित शिकायतों को प्राप्त करना तथा ऐसे प्रकटन की जाँच करना या कराना
    • ऐसे शिकायत करने वाले व्यक्ति को उत्पीड़न से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करना। 

CVC के संबंध में नवीनतम सुधार: 

  • april 2021 में केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission- CVC) द्वारा  सरकारी संगठनों की सतर्कता इकाइयों में अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग से संबंधित दिशा-निर्देशों को संशोधित करते हुए अधिकारियों के कार्यकाल को किसी एक स्थान पर तीन वर्ष तक सीमित कर दिया। 
  • निचले स्तर के अधिकारियों सहित सतर्कता इकाई में कर्मियों का कार्यकाल एक स्थान पर केवल तीन वर्ष तक सीमित होना चाहिये। 
  • हालांँकि किसी अन्य स्थान पर पोस्टिंग के साथ कार्यकाल को तीन  वर्षों तक और बढ़ाया जा सकता है। 
    • जिन कर्मचारियों/कार्मिकों द्वारा एक ही स्थान पर सतर्कता इकाइयों में पाँच वर्ष से अधिक समय पूरा कर लिया है उन्हें  सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर स्थानांतरित किया जाना चाहिये। 
  • किसी एक संगठन की सतर्कता इकाई से स्थानांतरण के बाद एक व्यक्ति को पुनः स्थानांतरित करने से पूर्व कम-से-कम तीन वर्ष  की अवधि का अनिवार्य कार्यकाल दिया जाएगा। 

CVC की सीमाएँ

  • CVC को प्रायः एक शक्तिहीन एजेंसी माना जाता है क्योंकि इसे महज एक सलाहकार निकाय के रूप में देखा जाता है जिसके पास सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज करने की शक्ति नहीं है, न ही इसके पास संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों के विरुद्ध जाँच के लिये CBI को निर्देश देने की शक्ति है।
  • यद्यपि CVC अपने कार्यकलाप में "अपेक्षाकृत स्वतंत्र" है, लेकिन उसके पास न तो संसाधन हैं और न ही भ्रष्टाचार की शिकायतों पर कार्रवाई करने की शक्ति है।

निष्कर्ष

निकट अतीत भारत एक प्रगतिशील और जीवंत अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में तेज़ी से विकास के साथ देश की अवसंरचना, निर्माण क्षेत्र, खुदरा क्षेत्र एवं अन्य क्षेत्रों में भारी निवेश किया गया है। अर्थव्यवस्था में तीव्र वृद्धि के साथ भ्रष्टाचार के खतरे में भी वृद्धि हुई है जिसके विरुद्ध संघर्ष के लिये CVC के समक्ष चुनौतियाँ और बढ़ गई हैं। इस परिदृश्य में CVC की प्रणालीगत कमियों को दूर करना समय की बड़ी आवश्यकता है।