रवीन्द्रनाथ टैगोर | 06 Dec 2018
प्रत्येक शिशु एक संदेश लेकर आता है कि भगवान मनुष्य को लेकर हतोत्साहित नहीं है!
कला में व्यक्ति खुद को उजागर करता है कलाकृति को नहीं!
मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती!
मैं सो गया तथा स्वप्न लिया कि जीवन आनंद है। मैं जगा और देखा कि जीवन सेवा है। मैंने कर्म किया और देखा कि सेवा ही आनंद था!
प्रेम आधिपत्य का दावा नहीं करता अपितु स्वतंत्रता देता है!
संगीत दो आत्माओं के बीच की अनंतता को भर देता है!
शिक्षा छात्रों की संज्ञानात्मक अनभिज्ञता के रोग का उपचार करने वाले तकलीफदेह अस्पताल की तरह नहीं है, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य की एक क्रिया है, उनके मस्तिष्क के चेतना की एक सहज अभिव्यक्ति है।