एथिक्स
लोक सेवा भर्ती प्रक्रिया में नैतिक मानकों को बनाए रखना
- 01 Aug 2024
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"सत्यनिष्ठा व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर मूल्यों के आधार पर आपके विचारों एवं कार्यों का चयन करती है।" - क्रिस कर्चर
"एक झूठ एक हजार सत्य को बर्बाद कर देता है" का एक आदर्श उदाहरण लोक सेवा परीक्षाओं और अन्य परीक्षाओं में आरक्षण के दुरुपयोग के विषय वर्तमान बहस का मुद्दा है। यह विवाद न केवल सिविल सेवाओं के आधारभूत मूल्यों पर संदेह उत्पन्न करता है, बल्कि हाशिए के समुदायों को लाभान्वित करने के लिये आरक्षण नीतियों की विश्वसनीयता को भी कम करता है। भर्तियों से निष्पक्षता एवं न्याय की रक्षा करने की आशा की जाती है, और इस तरह के धोखाधड़ी उन आधारभूत मूल्यों को खतरे में डालती है। यह नैतिक बहस जनता के विश्वास और संस्थागत सत्यनिष्ठा पर इस तरह के उल्लंघनों के व्यापक प्रभाव को समझने के लिये विभिन्न दृष्टिकोणों तथा नैतिक ढाँचे से नैतिक चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करेगी।
इस तरह की बहस के अंर्तगत, सिविल सेवा के संदेहास्पद मूल्य?
- सत्यनिष्ठा:
- सत्यनिष्ठा प्रभावी शासन और सिविल सेवाओं की आधारशिला है। यह नैतिक सिद्धांतों के पालन की मांग करता है, जहाँ लोक सेवकों को स्वयं को ईमानदारी के साथ कार्य करना चाहिये और साथ ही चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बनाए रखना चाहिये।
- आरक्षण के दुरुपयोग तथा नियमों एवं प्रक्रियाओं में कमियों का उपयोग करने के आरोप सत्यनिष्ठा में कमी लाते हैं, और साथ ही इस प्रणाली की निष्पक्षता और योग्यता के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं। इसके अतिरिक्त, एक सिविल सेवक से इस सेवा में सत्यनिष्ठा को बनाए रखने की आशा नहीं की जा सकती है।
- लोगों का विश्वास:
- क्योंकि जनता को सिविल सेवाओं पर अत्यधिक विश्वास है, इसलिये उन्हें उच्चतम नैतिक मानकों को बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
- इस प्रकार विकलांगता, आय एवं जातीय स्थिति के कपटपूर्ण दावों सहित आरक्षण कोटा का कथित दुरुपयोग, इस सत्यनिष्ठा के उल्लंघन का प्रतिनिधित्व करता है।
- निष्पक्षता एवं अवसर की समानता:
- आरक्षण या अन्य कोटा एवं छूट का दुरुपयोग निष्पक्षता के सिद्धांत को गहराई से प्रभावित करता है।
- आरक्षण नीतियों का उद्देश्य अवसर की समानता को बढ़ावा देना और साथ ही ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त करना है।
- हालाँकि, इन नीतियों का लक्ष्य इसके कपटपूर्ण उपयोग से कम हो गया है, जो वास्तव में योग्य व्यक्तियों को अवसरों को वंचित करता है।
- संस्थागत मूल्य:
- नीतियों एवं प्रक्रियाओं में जाली दस्तावेजों और अंतराल का उपयोग आवेदकों की नैतिकता के साथ -साथ भर्ती एजेंसी के कर्मचारियों पर संदेह करता है।
- भर्ती एजेंसियों के अधिकारियों में नैतिक मूल्यों की कमी होती है और वे भ्रष्ट प्रथाओं में लिप्त हो जाते हैं, इस प्रकार धोखाधड़ी वाले उम्मीदवारों को सिस्टम में प्रवेश करने की अनुमति प्राप्त होती है। यह संस्थागत मूल्यों एवं संस्थानों की सत्यनिष्ठा को कम करता है।
- जवाबदेहिता:
- व्यक्तियों तथा संगठनों को अपने कार्यों के लिये जवाबदेहिता लेनी चाहिये, अपने निष्कर्षों पर खुले तौर पर संवाद करना चाहिये, और साथ ही असमानताओं को समाप्त करना चाहिये।
- व्यक्तियों और संस्थानों को अपने कार्यों की जवाबदेही लेनी चाहिये, निष्कर्षों का खुलासा करने में पारदर्शी होना चाहिये और साथ ही असमानताओं को समाप्त करना चाहिये।
- यह जवाबदेहिता सुनिश्चित करती है कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष बनी हुई है और सभी उम्मीदवारों का मूल्यांकन, योग्यता एवं वास्तविक पात्रता के आधार पर किया जाता है।
- सिविल सेवा चयन प्रक्रिया में जवाबदेहिता प्रमुख चिंताओं में से एक है। प्रमाणपत्रों के कथित हेरफेर से जवाबदेही तंत्र में एक प्रणालीगत विफलता प्रस्तुत करता है।
- व्यक्तियों तथा संगठनों को अपने कार्यों के लिये जवाबदेहिता लेनी चाहिये, अपने निष्कर्षों पर खुले तौर पर संवाद करना चाहिये, और साथ ही असमानताओं को समाप्त करना चाहिये।
- पारदर्शिता:
- सरकारी प्रक्रियाओं में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये पारदर्शिता आवश्यक है। प्रमाणपत्र जालसाज़ी और आरक्षण के दुरुपयोग के दावे सत्यापन प्रक्रियाओं की पारदर्शिता में गंभीर कमियों की ओर इशारा करते हैं।
- प्रभावी पारदर्शिता में न केवल प्रमाण पत्र प्राप्त करने और सत्यापित करने के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश शामिल हैं, और साथ ही कपटपूर्ण गतिविधियों को रोकने के लिये विशिष्ट निगरानी प्रणालियों की स्थापना करना भी शामिल है।
- प्रभावी नैतिकता एवं चरित्र:
- विवाद भी प्रभावी/सदाचार नैतिकता से संबंधित मुद्दों को उजागर करता है, जैसा कि अरस्तू द्वारा व्यक्त किया गया है। नैतिक चरित्र के महत्त्व और गुणों के विकास पर सदाचार नैतिकता द्वारा ज़ोर दिया जाता है।
- आरक्षण प्रणाली में हेरफेर करने वालों की क्रियाएँ उनके चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण दोष को दर्शाती हैं।
- यह लोक सेवा के लिये ऐसे व्यक्तियों की उपयुक्तता के बारे में चिंताओं को भी बढ़ाता है।
दार्शनिक दृष्टिकोणों से लोक सेवा के मूल्य
- अधिकार-आधारित परिप्रेक्ष्य:
- जब आरक्षण प्रणाली के दुरुपयोग की जाँच अधिकार-आधारित परिप्रेक्ष्य से की जाती है, तब यह स्पष्ट होता है कि विभिन्न हितधारकों के अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है।
- आरक्षण लाभों का दुरुपयोग सभी के निष्पक्ष और पारदर्शी चयन प्रक्रियाओं के साथ -साथ उन लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करता है जो वास्तव में समान अवसरों के लिये अक्षम हैं।
- अधिकार-आधारित परिप्रेक्ष्य के अनुसार, इन अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिये मज़बूत संस्थागत एवं कानूनी संरचनाओं की आवश्यकता होती है।
- कर्तव्यशास्त्र संबंधी परिप्रेक्ष्य:
- कर्तव्यशास्त्र परिप्रेक्ष्य का मानना है कि,आरक्षण का दुरुपयोग करने वाले लोग परिणामों की चिंता किये बिना ही कार्य कर रहे हैं जो आंतरिक रूप से निकृष्ट है।
- कांट की कर्तव्यादेश नैतिकता इस बात पर ज़ोर देती है कि कर्मों को नैतिक दायित्वों एवं उद्देश्यों का पालन करना चाहिये।
- इसलिये, संभावित लाभों की चिंता किये बिना, जो इस तरह की गतिविधियों के परिणामस्वरूप हो सकते हैं, आरक्षण प्रणाली में हेरफेर करना ईमानदारी और न्याय के नैतिक दायित्वों के विरुद्ध है।
- उपयोगितावादी दृष्टिकोण:
- उपयोगितावादी दृष्टिकोण समग्र सामाजिक कल्याण पर पड़ने वाले परिणामों के आधार पर कार्यों की नैतिकता का मूल्यांकन करता है।
- हालाँकि,आरक्षण के दुरुपयोग के प्रत्यक्ष परिणामस्वरूप कुछ लोगों को अनुचित लाभ प्राप्त होता है, लेकिन संस्थागत सत्यनिष्ठा के साथ-साथ लोक विश्वास पर दीर्घकालिक प्रभाव नकारात्मक होता है।
- उपयोगितावादी दृष्टिकोण के आधार पर, कमियाँ किसी भी संभावित लाभ से कहीं अधिक होंगी। इसलिये, इस समस्या के समाधान हेतु समग्र सामाजिक कल्याण को अधिकतम करने और साथ ही लोक सेवा में विश्वास बहाल करने के लिये प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता है।
- उपयोगितावादी दृष्टिकोण समग्र सामाजिक कल्याण पर पड़ने वाले परिणामों के आधार पर कार्यों की नैतिकता का मूल्यांकन करता है।
- सामाजिक अनुबंध सिद्धांत:
- सामाजिक अनुबंध सिद्धांत के दृष्टिकोण से आरक्षण का दुरुपयोग नागरिकों एवं राज्य के बीच सामाजिक अनुबंध का उल्लंघन है।
- राज्य के प्रतिनिधि के रूप में सिविल सेवकों का यह विशेष दायित्व है कि वे इस अनुबंध को बनाए रखें तथा यह सुनिश्चित करें कि सरकारी पदों को निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से भरा जाना चाहिये।
- आरक्षण प्रणाली में हेरफेर इस अंतर्निहित समझौते को कमज़ोर करता है और शासन संरचना की वैधता को चुनौती देता है। सामाजिक अनुबंध और सिविल सेवा में विश्वास बहाल करने के लिये इन मुद्दों को संबोधित करना आवश्यक है।
- सामाजिक न्याय एवं सकारात्मक कार्रवाई:
- सामाजिक न्याय एवं सकारात्मक कार्रवाई पर बहस इस विवाद के केंद्र में है।
- अमर्त्य सेन का क्षमता दृष्टिकोण यह सुझाव देता है कि सकारात्मक कार्रवाई का प्राथमिक लक्ष्य हाशिए के समूहों की क्षमताओं को बढ़ाना होना चाहिये। आरक्षण का दुरुपयोग इस लक्ष्य को प्राप्त करने में विफलता का संकेत देता है, क्योंकि यह उन लोगों से लाभ छीन लेता है जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है।
- यह सुनिश्चित करना कि आरक्षण से जरूरतमंदों को वास्तव में लाभ मिले तथा निष्पक्षता एवं सामाजिक न्याय को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- शक्तियों के पृथक्करण तथा नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत:
- शक्तियों के पृथक्करण तथा नियंत्रण एवं संतुलन के मोंटेस्क्यू के सिद्धांत शासन में कठोर निगरानी की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं। जिस सहजता से प्रणाली में हेर-फेर किया जाता है, उससे मज़बूत सत्यापन प्रक्रियाओं एवं उन्नत जवाबदेही तंत्र की आवश्यकता का संकेत प्राप्त होता है।
लोक सेवाओं के नैतिक मूल्यों को बनाए रखना
लोक सेवकों के लिये नैतिक मूल्यों का पालन सुनिश्चित करने तथा आरक्षण के दुरुपयोग से उत्पन्न चिंताओं का समाधान करने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। आगे बढ़ने के लिये प्रणालीगत सुधारों, नैतिक प्रशिक्षण, बढ़ी हुई पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता के लिये मज़बूत तंत्रों का संयोजन शामिल होना चाहिये। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं:
- कठोर जाँच एवं संतुलन लागू करना:
- धोखाधड़ी वाले दावों को रोकने हेतु विकलांगता प्रमाणपत्र जैसे पात्रता दस्तावेजों के लिये अधिक कठोर सत्यापन प्रक्रियाएँ विकसित करने के साथ-साथ उन्हें लागू करना भी शामिल होगा।
- उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की जाँच तथा सत्यापन के लिये प्रौद्योगिकी एवं डेटा विश्लेषण का उपयोग करना।
- उदाहरण के लिये, UPSC आधार-आधारित फिंगरप्रिंट प्रमाणीकरण, चेहरे की पहचान और क्यूआर कोड स्कैनिंग को शामिल करके अपनी परीक्षा प्रणाली में सुधार की योजना बना रहा है।
- निष्पक्षता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिये स्वतंत्र प्राधिकरणों को शामिल करते हुए सत्यापन के कई स्तर लागू करना।
- इसके अतिरिक्त आरक्षण लाभों का दुरुपयोग करने अथवा धोखाधड़ी करने के दोषी पाए जाने वालों के लिये स्पष्ट एवं आनुपातिक दंड निर्धारित किया जाना चाहिये।
- स्वतंत्र निगरानी तंत्रों की स्थापना:
- सत्यापन प्रक्रियाओं की निगरानी और समीक्षा करने तथा आरक्षण से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिये स्वतंत्र निरीक्षण समितियाँ अथवा निकाय स्थापित करना।
- इन निकायों को धोखाधड़ी गतिविधियों की जाँच करने के साथ-साथ सुधारात्मक कार्रवाई करने का अधिकार होना चाहिये।
- नियमित लेखापरीक्षा करना:
- संभावित कमज़ोरियों और सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने के साथ ही उन्हें दूर करने हेतु आरक्षण प्रणाली एवं संबंधित प्रक्रियाओं की नियमित और व्यापक लेखापरीक्षा लागू करना।
- जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये लेखापरीक्षा रिपोर्ट और कार्ययोजना प्रकाशित करना।
- नैतिकता की संस्कृति को बढ़ावा देना:
- उदाहरण नेतृत्व, नैतिक व्यवहार की मान्यता तथा नैतिक मूल्यों पर विशेष ज़ोर देकर नैतिकता की संस्कृति विकसित करने के लिये लोक सेवा संस्थाओं को प्रोत्साहित करना।
- लोक सेवकों के लिये कार्य निष्पादन मूल्यांकन के साथ कैरियर उन्नति मानदंडों में नैतिक विचारों को एकीकृत करना।
- अनैतिक व्यवहार के परिणामों तथा नैतिक आचरण के महत्त्व को उजागर करने के लिये प्रशिक्षण में केस स्टडी और वास्तविक जीवन परिदृश्यों को शामिल करना।
- कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना:
- कानूनी ढाँचे और विनियमों की समीक्षा करना और उन्हें अद्यतन करना ताकि उन खामियों और कमियों को दूर किया जा सके जो दुरुपयोग की संभावना को जन्म देती हैं।
- अनैतिक व्यवहार को रोकने के लिये त्वरित कानूनी कार्यवाही एवं प्रवर्तन कार्रवाई की सुविधा प्रदान करना।
- संस्थागत सत्यनिष्ठा में सुधार:
- संस्थागत सत्यनिष्ठा को मज़बूत करने हेतु लोक कर्मचारियों के लिये नैतिकता और व्यवहार के कठोर मानकों को अपनाना और लागू करना।
- अनैतिक व्यवहार के लिये शून्य-सहिष्णुता की नीति को बढ़ावा देना और सुनिश्चित करना कि सभी कर्मचारी नैतिक दिशानिर्देशों से परिचित हों तथा उनका पालन करें।
- सार्वजनिक सहभागिता को बढ़ावा देना:
- नैतिक शासन तथा आरक्षण नीतियों की प्रभावशीलता के बारे में चर्चा में नागरिक समाज संगठनों, वकालत समूहों एवं जनता को शामिल करना।
- आरक्षण तथा लोक सेवा की नैतिकता से संबंधित नीतियों एवं प्रथाओं में सुधार के लिये विभिन्न हितधारकों की प्रतिक्रिया को शामिल करना।
- धोखाधड़ी और कदाचार की रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के लिये मुखबिरों को कानूनी और संस्थागत सहायता प्रदान करना।
निष्कर्ष
"हमने ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के बारे में सीखा - कि सत्य मायने रखता है... कि आप शॉर्टकट नहीं अपनाते या अपने बनाए नियमों से नहीं चलते... और सफलता तब तक मायने नहीं रखती जब तक आप इसे निष्पक्ष और ईमानदारी से अर्जित नहीं करते।"- मिशेल ओबामा
लोक सेवा में नैतिक मूल्यों को सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो प्रणालीगत कमज़ोरियों को संबोधित करता है, नैतिक आचरण को बढ़ावा देता है तथा पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता को बढ़ावा देता है। कठोर सत्यापन प्रक्रियाओं को लागू करके, पारदर्शिता में वृद्धि करके, नैतिक प्रशिक्षण प्रदान करके, कठोर दंड लागू करके, संस्थागत संरचनाओं में सुधार करके, हितधारकों को शामिल करके तथा नीतियों का निरंतर मूल्यांकन करके, लोक सेवाओं की सत्यनिष्ठा को बनाए रखा जा सकता है। इन उपायों से जनता का विश्वास बहाल करने, लोक सेवाओं की विश्वसनीयता बनाए रखने तथा यह सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करती है कि आरक्षण नीतियाँ सामाजिक न्याय और समानता में प्रभावी रूप से योगदान प्रदान करें। इसके अतिरिक्त, लोक सेवा संस्थानों को उदाहरण के माध्यम से नेतृत्व, नैतिक व्यवहार की मान्यता और नैतिक मूल्यों पर विशेष ध्यान देने के माध्यम से नैतिकता की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित करना।