अवैध खनन में नैतिक चुनौतियों का पता लगाना | 28 Jan 2025

दक्षिण अफ्रीका और भारत में अवैध खनन एक विवादास्पद मुद्दा है, जो आर्थिक अस्तित्व, मानवाधिकारों और पर्यावरण संरक्षण के बीच के संबंध में गंभीर प्रश्न उठाता है। दक्षिण अफ्रीका में, सरकार का ऑपरेशन वाला उमगोडी (Vala Umgodi) अवैध खनन से निपटने के प्रयासों को दर्शाता है, जबकि भारत में कानूनी प्रतिबंध के बावजूद रैट-होल खनन का निरंतर प्रचलन प्रवर्तन और जवाबदेही की चुनौतियों को उज़ागर करता है। ये समानांतर परिदृश्य अपराधीकरण, हाशिये पर पड़े समुदायों के शोषण एवं सतत् और न्यायसंगत प्रथाओं को सुनिश्चित करने में शासन की जिम्मेदारी के बारे में गहरी नैतिक दुविधाओं को उज़ागर करते हैं।

अवैध खनन में नैतिक दुविधाएँ क्या हैं?

  • गरीबी का अपराधीकरण बनाम प्रणालीगत असमानता को संबोधित करना: कारीगर खनिकों को अपराधी मानना उन सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की अनदेखी है जो उन्हें खनन के लिये प्रेरित करती हैं। दुविधा यह है कि क्या इन गतिविधियों को अपराध घोषित किया जाए या गरीबी और वैकल्पिक आजीविका के अभाव सहित प्रणालीगत असमानता को दूर किया जाए, जो ऐसी प्रथाओं को कायम रखती हैं।
  • मानवाधिकार बनाम कानून प्रवर्तन: दक्षिण अफ्रीका में, भूमिगत खननकर्त्ताओं को जल और भोजन की आपूर्ति में कटौती के कारण जीवन की क्षति हुई, जबकि भारत में, खतरनाक खनन स्थितियों के कारण नियमित रूप से मौतें होती हैं। कानूनों के प्रवर्तन और मानवीय गरिमा के संरक्षण के बीच संतुलन कायम करना एक प्रमुख नैतिक चुनौती है।
  • पर्यावरणीय उत्तरदायित्व बनाम तत्काल आर्थिक लाभ: दक्षिण अफ़्रीका में खनन निगमों द्वारा की गई लापरवाही के कारण अवैध खनन को बढ़ावा मिला है। भारत में, रैट-होल खनन से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है, जिसमें जल प्रदूषण और वनोन्मूलन भी शामिल है। पर्यावरणीय बहाली को प्राथमिकता देने और सुभेद्द आबादी की तत्काल आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के बीच तनाव मौजूद है।
  • प्रणालीगत भ्रष्टाचार बनाम पारदर्शी शासन: दक्षिण अफ्रीका और भारत की स्थिति अवैध खनन अर्थव्यवस्था को जारी रखने में अधिकारियों और अभिजात वर्ग की मिलीभगत को प्रकट करती है। इस समस्या का समाधान करने के लिये इन प्रणालियों पर निर्भर आजीविका को बाधित करने के जोखिम के साथ जवाबदेही को संतुलित करना आवश्यक है। 
  • संगठित अपराध बनाम आजीविका के अवसर: दक्षिण अफ्रीका में खनिक प्रायः अपने श्रम से लाभ कमाने वाले सिंडिकेटों के नियंत्रण में रहते हैं। इसी तरह, भारत के रैट-होल खनन में स्थानीय माफिया कमज़ोर श्रमिकों का शोषण करते हैं। दुविधा यह है कि खनिकों को व्यवहार्य आजीविका के अवसरों तक पहुँच बनाए रखते हुए शोषणकारी नेटवर्क को कैसे समाप्त किया जाए।
  • हाशिये पर पड़े समुदायों को कलंकित करना बनाम कानून के प्रति लोगों की धारणा: दक्षिण अफ्रीकी ज़ामा ज़ामास (अवैध कारीगर खनिक) और भारतीय रैट-होल खनिकों को अपराधी के रूप में चित्रित करना सामाजिक कलंक को बढ़ावा देता है। सरकारों को कानून व्यवस्था को बनाए रखने की आवश्यकता और कमज़ोर आबादी को और अधिक हाशिये पर धकेलने के जोखिम के बीच संतुलन बनाना होगा।

अवैध खनन को रोकने का क्या महत्त्व है?

  • आर्थिक न्याय: कारीगर खनन को औपचारिक रूप देने से राज्य के लिये राजस्व उत्पन्न हो सकता है और आर्थिक असमानता कम हो सकती है। दक्षिण अफ्रीका में, खननकर्त्ताओं को कानूनी अर्थव्यवस्था में एकीकृत करने से अवैध नेटवर्क को समाप्त किया जा सकता है। भारत में कोयला निष्कर्षण को विनियमित करने से प्रणालीगत गरीबी का समाधान हो सकता है।
  • मानवाधिकार संरक्षण: खनिकों के प्रति मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करना दक्षिण अफ्रीका के संवैधानिक मूल्यों और श्रम अधिकारों के प्रति भारत के दायित्वों के अनुरूप है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: दक्षिण अफ्रीका में परित्यक्त खदानों की समस्या का समाधान करने तथा भारत में खनन प्रथाओं को विनियमित करने से पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सकता है।
  • सुदृढ़ शासन: दोनों देशों में भ्रष्टाचार से निपटने और पारदर्शी नीतियाँ बनाने से जनता का विश्वास बढ़ेगा और नैतिक शासन को बढ़ावा मिलेगा।
  • क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्थिरता: अवैध खनन के सामाजिक-आर्थिक कारणों पर ध्यान देने से दक्षिण अफ्रीका में सीमा पार अपराध में कमी आ सकती है तथा भारत के संसाधन संपन्न क्षेत्रों में और अधिक शोषण को रोका जा सकता है।

अवैध खनन की दुविधा से संबंधित नैतिक रूपरेखा क्या हैं?

  • उपयोगितावाद: उपयोगितावादी दृष्टिकोण उन नीतियों की वकालत करेगा जो कारीगर खनन को वैध और औपचारिक बनाती हैं। खतरनाक रैट-होल खनन के विकल्प, जैसे कि मशीनीकृत और विनियमित पद्धतियों को प्रोत्साहित करने से सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सकेगा।
    • बेहतर सुरक्षा, पर्यावरण क्षरण में कमी, तथा सतत् आजीविका, व्यापक जनसंख्या का कल्याण सुनिश्चित करने के उपयोगितावादी उद्देश्य के अनुरूप हैं।
  • कर्त्तव्यशास्त्र-संबंधी नैतिकता: इमैनुअल कांट के दर्शन पर आधारित कर्त्तव्यशास्त्र-संबंधी नैतिकता, व्यक्तियों की अंतर्निहित गरिमा और मूल्य पर ज़ोर देती है। 
    • कर्त्तव्यशास्त्र-संबंधी के अनुसार सरकार को खनिकों को अपने आप में एक लक्ष्य मानना ​​चाहिये, न कि उन्हें कानून प्रवर्तन में बाधा मानना ​​चाहिये। उनके अधिकारों का सम्मान करने के लिये खनन कानूनों में सुधार करके उनमें कारीगरों की गतिविधियों को भी शामिल करना आवश्यक है। 
  • सद्गुण नैतिकता: एक सद्गुण से युक्त सरकार अवैध खनन के प्रणालीगत कारणों को संबोधित करके न्याय, करुणा और अखंडता के साथ कार्य करेगी। 
    • इसमें परित्यक्त खदानों का पुनर्वास, सिंडिकेट को खत्म करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि खनिकों के पास वैकल्पिक आजीविका हो। खनिक स्वयं भी लचीलापन और दृढ़ता का प्रदर्शन करते हैं, ऐसे गुण जिन्हें औपचारिकता और समर्थन के माध्यम से सकारात्मक रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है।
  • रॉल्स का न्याय का सिद्धांत: रॉल्स के "निष्पक्षता के रूप में न्याय" के सिद्धांत की मांग है कि सबसे गरीब और सबसे हाशिये पर पड़े लोग, जैसे कि कारीगर खनिक, आर्थिक नीतियों से लाभान्वित हों। सुलभ खनन परमिट और राजस्व-साझाकरण तंत्र के माध्यम से समान अवसर सुनिश्चित करने से समानता को बढ़ावा मिलेगा। 

अवैध खनन से निपटने के लिये क्या सुझाव हैं?

  • कारीगर खनन को औपचारिक बनाना: स्पष्ट विनियमन और सुलभ लाइसेंसिंग, कारीगर खनिकों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में एकीकृत करने तथा अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिये आवश्यक हैं। भारत में, सर्वोच्च न्यायालय ने ओडिशा सरकार को पर्यावरण कानूनों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये कारीगर खननकर्त्ताओं को औपचारिक रूप देने का निर्देश दिया।
    • खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम (MMDR), 1957 की धारा 23C राज्य सरकारों को अवैध खनन को रोकने के लिये नियम बनाने की शक्ति देती है।
  • परित्यक्त खदानों का पुनर्वास: परित्यक्त खदानों का पुनर्वास करने से पर्यावरण संबंधी खतरों को कम किया जा सकता है और आस-पास के समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। दक्षिण अफ्रीका का पुनर्वास कार्यक्रम इस बात पर प्रकाश डालता है कि परित्यक्त खदानों को बहाल करने से किस तरह पारिस्थितिकी संबंधी चिंताओं का समाधान होता है और सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है। 
  • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: खनन निर्णयों और लाभ-साझाकरण में स्थानीय समुदायों को शामिल करने से नैतिक व्यवहार सुनिश्चित होता है और संघर्ष कम होते हैं। पेरू का पूर्व परामर्श कानून खनन गतिविधियों को शुरू करने से पहले स्थानीय समुदायों की सहमति की आवश्यकता के द्वारा उनकी रक्षा करता है। 
  • सिंडिकेट के विरुद्ध कानून प्रवर्तन को मज़बूत करना: व्यक्तिगत खनिकों को दंडित करने के बजाय अवैध खनन में संगठित अपराध नेटवर्क को लक्षित करना अधिक निष्पक्ष दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है। 
  • क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: क्षेत्रीय सहयोग से अवैध खनन के सीमा-पार कारकों को संबोधित किया जा सकता है और स्थायी संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा दिया जा सकता है। मनो रिवर यूनियन (MRU) सहयोगी नीतियों के माध्यम से अवैध खनन का मुकाबला करने में पश्चिम अफ्रीकी देशों को एकजुट करता है। 
  • कॉर्पोरेट जवाबदेही: पर्यावरण और सामाजिक क्षति के लिये खनन कंपनियों को जवाबदेह ठहराना सतत् खनन प्रथाओं के लिये महत्त्वपूर्ण है। ज़िम्मेदार खनन सूचकांक (RMI) कॉर्पोरेट व्यवहार का मूल्यांकन करता है, सामाजिक और पर्यावरणीय मानकों का पालन सुनिश्चित करता है।

निष्कर्ष

अवैध खनन से जुड़ी नैतिक दुविधाओं के लिये दंडात्मक से सुधारात्मक दृष्टिकोण की ओर बदलाव की आवश्यकता है। प्रणालीगत गरीबी, पर्यावरण क्षरण और शासन विफलताओं को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है। मानवीय गरिमा को कायम रखकर और समावेशी नीतियों को बढ़ावा देकर सरकारें आर्थिक विकास को नैतिक जवाबदेही के साथ संतुलित कर सकती हैं। कारीगर खनिकों को अपराधियों के बजाय हितधारकों के रूप में पहचानना, दीर्घकालिक समाधानों को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है जो संपूर्ण समाज को लाभान्वित करते हैं।