समृद्ध और कुशल अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण में विश्वास की भूमिका | 08 Jan 2025

चूँकि वैश्विक अर्थव्यवस्था को ट्रेड वॉर, रूढ़िवादी सरकारों और अंतर्मुखी नीतियों की ओर बदलाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिये पारंपरिक आर्थिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करना और विश्वास-आधारित अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करना आवश्यक है। जबकि भूमि, श्रम, पूंजी और कानून जैसे मूर्त कारकों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, विश्वास का अमूर्त कारक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक के रूप में उभर रहा है। यह वैश्विक चुनौतियों और विकसित होती गतिशीलता के मद्देनजर आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिये एक आवश्यक नैतिक आधार के रूप में विश्वास की भूमिका को रेखांकित करता है।

विश्वास-आधारित अर्थव्यवस्था में विश्वास की क्या भूमिका है?

  • असमानताओं को कम करना: विश्वास कमज़ोर व्यवसायों और व्यक्तियों के शोषण को कम करके निष्पक्षता को बढ़ावा देता है। यह समय पर भुगतान और समान व्यवहार सुनिश्चित करता है, तथा प्रणालीगत असमानताओं और भ्रष्टाचार के नैतिक बोझ को कम करता है।
  • आर्थिक लेन-देन में सत्यनिष्ठा: विश्वास आधारित अर्थव्यवस्था सत्यनिष्ठा के नैतिक सिद्धांत को कायम रखती है, यह सुनिश्चित करती है कि व्यापारिक लेन-देन पारदर्शी और छल-कपट से मुक्त हो, तथा दीर्घकालिक संबंधों और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा मिले।
  • नैतिक उद्यमिता: अनिश्चितताओं और जोखिमों को कम करके, विश्वास व्यक्तियों को शोषण या प्रणालीगत बाधाओं के डर के बिना नैतिक रूप से नवाचार और उद्यमिता को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाता है, जिससे न्याय और अवसर को बढ़ावा मिलता है।
  • संस्थागत नैतिकता: विश्वास जवाबदेही और वादों के अनुपालन को सुनिश्चित करके संस्थाओं के नैतिक कामकाज को आधार प्रदान करता है, जो अनुबंधों का सम्मान करने और शासन में सामाजिक विश्वास का निर्माण करने के लिये मौलिक है।
  • सामूहिक कल्याण: एक उच्च-विश्वास वाला समाज तनाव को कम करके और मन की शांति को बढ़ावा देकर परोपकार के नैतिक सिद्धांतों के साथ संरेखित होता है, जिससे नागरिक व्यक्तिगत विकास, सामुदायिक जुड़ाव और व्यापक कल्याण में योगदान देने पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होते हैं।

विश्वास-आधारित अर्थव्यवस्था में नैतिक दुविधाएँ क्या हैं?

  • विश्वसनीयता बनाम संशयवाद: संस्थागत विश्वास का क्षरण सरकारों, न्यायालयों और नियामक निकायों की नैतिक विश्वसनीयता को चुनौती देता है, क्योंकि व्यापक संशय न्याय, निष्पक्षता और जवाबदेही प्रदान करने की उनकी क्षमता पर प्रश्न उठाता है।
  • निष्पक्षता बनाम भ्रष्टाचार: विश्वास की कमी से रिश्वतखोरी और पक्षपात जैसी अनैतिक प्रथाओं का मार्ग प्रशस्त होता है, जिससे नैतिक दुविधा उत्पन्न होती है, जहाँ प्रतिस्पर्द्धा में निष्पक्षता से समझौता होता है, बाज़ार विकृत होते हैं और समान अवसरों को नुकसान पहुँचता है।
  • सत्यनिष्ठा बनाम अस्तित्व: प्रणालीगत अविश्वास के माहौल में, व्यक्तियों और व्यवसायों को सत्यनिष्ठा बनाए रखने और अस्तित्व के लिये अनुचित प्रथाओं को अपनाने के बीच नैतिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जिससे नैतिक मोहभंग की संस्कृति कायम रहती है।
  • सामंजस्य बनाम संघर्ष: अविश्वास सामाजिक सामंजस्य को बाधित करता है, नैतिक चुनौतियाँ उत्पन्न करता है क्योंकि समुदायों और हितधारकों के बीच संघर्ष सामूहिक प्रगति एवं समान विकास में बाधा डालता है, तथा एकता और समावेश के व्यापक सिद्धांतों को कमज़ोर करता है।
  • उपभोक्ता अधिकार बनाम शोषण: व्यवसायों में विश्वास की कमी उपभोक्ता संरक्षण के बारे में नैतिक चिंताओं को जन्म देती है, क्योंकि अविश्वास के कारण शोषण, निम्नस्तरीय प्रस्तुतिकरण और सेवा प्रदाताओं द्वारा अनैतिक प्रथाओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

किसी अर्थव्यवस्था में विश्वास की कमी के मूल कारण क्या हैं?

  • अप्रत्याशित शासन व्यवस्था: अस्थिर नीतिगत परिवर्तन और निर्णय लेने में पारदर्शिता की कमी से सरकारी प्रणालियों में जनता का विश्वास कम होता है।
  • न्यायिक विलंब: विवादों का विलंब समाधान, विशेष रूप से अनुबंध प्रवर्तन के मामलों में, न्याय प्रणाली में विश्वास को हतोत्साहित करता है।
  • कमज़ोर वित्तीय जवाबदेही: वित्तीय धोखाधड़ी और कुप्रबंधन की घटनाएँ व्यवसायों और वित्तीय संस्थानों में विश्वास को कम करती हैं।
  • अविश्वास के सांस्कृतिक मानक: ऐतिहासिक अनुभव और सांस्कृतिक दृष्टिकोण प्रायः सार्वजनिक और निजी प्रणालियों में अविश्वास को कायम रखते हैं।
  • अप्रभावी संचार: प्राधिकारियों द्वारा अप्रभावी संचार और सार्वजनिक सहभागिता की कमी से मिथ्याबोध उत्पन्न होता है और विश्वास कम होता है।

विश्वास के संबंध में दार्शनिक विचार क्या हैं?

  • सामाजिक अनुबंध के रूप में विश्वास: विश्वास को सामाजिक अनुबंध की नींव के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ व्यक्ति साझा मानदंडों और मूल्यों द्वारा निर्देशित होकर पारस्परिक लाभ के लिये स्वेच्छा से सहयोग करते हैं ।
  • पारस्परिकता की नैतिकता: पारस्परिकता का दार्शनिक सिद्धांत ("दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप चाहते हैं कि आपके साथ किया जाए") समाज में निष्पक्षता और न्याय बनाए रखने में आपसी विश्वास की भूमिका को रेखांकित करता है।
  • कांट का परिप्रेक्ष्य: इमैनुअल कांट का कर्त्तव्य और सद्भावना पर ज़ोर इस बात पर प्रकाश डालता है कि विश्वास बाहरी बाध्यता के बजाय अंतर्निहित नैतिक ज़िम्मेदारी से उत्पन्न होना चाहिये।
  • उपयोगितावादी तर्क: उपयोगितावादी दृष्टिकोण से, विश्वास लेन-देन की लागत को कम करके, सहयोग को बढ़ावा देकर और सामूहिक प्रगति को सक्षम करके सामाजिक खुशी को अधिकतम करता है।
  • अरस्तू की सद्गुण नैतिकता: अरस्तू की सद्गुण की अवधारणा विश्वास को एक नैतिक उत्कृष्टता के रूप में महत्त्व देती है जो चरित्र का निर्माण करती है, संबंधों को मज़बूत करती है, और एक समृद्ध समाज का समर्थन करती है।

विश्वास आधारित अर्थव्यवस्था बनाने के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • नैतिक शिक्षा: छोटी उम्र से ही विश्वास को बढ़ावा देने के लिये स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रमों में नैतिक अध्ययन को एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने "मूल्य प्रवाह" दिशानिर्देश प्रस्तुत किये हैं, जिनका उद्देश्य उच्च शिक्षा संस्थानों में मानवीय मूल्यों और व्यावसायिक नैतिकता को विकसित करना है। यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का हिस्सा है और छात्रों के बीच मौलिक कर्त्तव्यों और संवैधानिक मूल्यों के प्रति सम्मान विकसित करने पर केंद्रित है।
  • सामुदायिक विश्वास मंच: शिकायतों के समाधान और आपसी विश्वास का निर्माण करने के लिये सरकार, व्यवसायों और नागरिकों के बीच संवाद हेतु मंच उपलब्ध कराना ।
    • "MyGov" प्लेटफॉर्म भारत में सामुदायिक विश्वास मंच का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया यह प्लेटफॉर्म सरकार और नागरिकों के बीच संवाद को सुगम बनाता है, जिससे लोगों को अपने विचार और शिकायतें साझा करने और शासन में भाग लेने का अवसर मिलता है।
  • निगरानी के लिये AI: धोखाधड़ी का पता लगाने और रोकने तथा शासन और व्यवसाय में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग किया जाना चाहिये ।
    • अहमदाबाद भारत का पहला ऐसा शहर बन गया है जिसने AI-संचालित नागरिक निगरानी प्रणाली लागू की है। यह प्रणाली यातायात, सुरक्षा और स्वच्छता पर निगरानी रखती है, जिससे शहर के प्रबंधन में पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
  • सोशल क्रेडिट सिस्टम: नैतिक प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के लिये व्यवसायों और संस्थानों के लिये विश्वास-रेटिंग तंत्र लागू करना।
    • यद्यपि भारत में चीन की तरह कोई औपचारिक सोशल क्रेडिट सिस्टम नहीं है, हालाँकि आधार प्रणाली व्यक्तिगत डेटा प्रशासन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह व्यापक व्यक्तिगत डेटा को एकत्रित करता है और विभिन्न क्षेत्रों में विश्वास और जवाबदेही पर प्रभाव डालता है।
  • सत्यनिष्ठा को पुरस्कृत करना: उन व्यक्तियों और संगठनों के लिये मान्यता कार्यक्रम लागू करना जो विश्वसनीयता और नैतिक व्यवहार का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
    • केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने नागरिकों और संगठनों को नैतिक आचरण के लिये प्रतिबद्ध होने के लिये प्रोत्साहित करते हुए "सत्यनिष्ठा प्रतिज्ञा" पहल शुरू की है । इस पहल का उद्देश्य सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
  • पारदर्शी शासन: पारदर्शिता बढ़ाने और भ्रष्टाचार को कम करने के लिये मुक्त डेटा पहल और सूचना तक पहुँच कानूनों को लागू किया जाना चाहिये।
    • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005, भारत में एक ऐतिहासिक पहल है जो शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देती है। यह नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकारियों से सूचना प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे भ्रष्टाचार कम होता है और पारदर्शिता बढ़ती है।
  • व्हिसलब्लोअर संरक्षण: भ्रष्टाचार और कदाचार को उज़ागर करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये विधिक ढाँचे को मज़बूत किया जाना चाहिये।
    • व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014, लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग की जाँच के लिये एक तंत्र प्रदान करता है। यह उन व्यक्तियों को भी संरक्षण प्रदान करता है जो गलत कार्यों को उज़ागर करते हैं, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करता है तथा पारदर्शिता को प्रोत्साहित करता है।

निष्कर्ष 

आर्थिक दक्षता, सामाजिक सद्भाव और सतत् विकास के लिये विश्वास का निर्माण महत्त्वपूर्ण है। अविश्वास के मूल कारणों को दूर करके, नवीन समाधानों को अपनाकर और नैतिक प्रथाओं को बढ़ावा देकर, हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जहाँ सहयोग और दक्षता का विकास हो, जिससे भारत अपनी वास्तविक क्षमता प्राप्त करने में सक्षम हो सके।