सरोगेट विज्ञापन में धोखे की नैतिकता | 28 Nov 2024
सरोगेट विज्ञापन, जिसमें व्यवसाय अप्रत्यक्ष रूप से शराब एवं तंबाकू जैसे प्रतिबंधित उत्पादों को बढ़ावा देते हैं, एक जटिल नैतिक और कानूनी मुद्दा बन गया है। लोगो, नारे या कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहल जैसे ब्रांड तत्त्वों का लाभ उठाकर कंपनियाँ विज्ञापन नियमों को दरकिनार करते हुए प्रतिबंधित वस्तुओं के लिये उपभोक्ता रिकॉल बनाए रखती हैं। यह अभ्यास धोखे, सुभेद्य दर्शकों के शोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को कमज़ोर करने सहित महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंताएँ उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त, यह ग्रीनवाशिंग के मुद्दे के समानांतर है, जो एक नैतिक चिंता का विषय है क्योंकि यह पर्यावरणीय प्रथाओं के विषय में उपभोक्ताओं को धोखा देता है, विश्वास को समाप्त करता है और कंपनियों को वास्तविक जवाबदेही के बिना झूठे स्थिरता के दावों से लाभ कमाने की अनुमति देता है। इन चुनौतियों के समाधान की आवश्यकता को समझते हुए, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) सरोगेट विज्ञापन पर अंकुश लगाने के लिये दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार कर रहा है। यह बहस सरोगेट विज्ञापन के विभिन्न आयामों का पता लगाने का प्रयास करती है, जबकि इसे प्रभावी और ज़िम्मेदारी से विनियमित करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार करती है।
सरोगेट विज्ञापन में नैतिक चिंताएँ क्या हैं?
- धोखा और हेरफेर: सरोगेट विज्ञापन असंबंधित उत्पादों का उपयोग करके, प्रतिबंधित वस्तुओं का गुप्त रूप से प्रचार करके, भ्रामक तरीके से संचालित होता है, जिससे वैध और अनैतिक विज्ञापन के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।
- पारदर्शिता का यह अभाव ईमानदारी और जवाबदेही के नैतिक मानदंडों के विपरीत है तथा विज्ञापन के उद्देश्य के विषय में उपभोक्ताओं को गुमराह करता है।
- सूक्ष्म ब्रांड संबंधों के माध्यम से उपभोक्ता मनोविज्ञान के शोषण के संबंध में नैतिक चिंताएँ उभरती हैं।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को कमज़ोर करना: सरोगेट विज्ञापन का प्रसार, परिष्कृत विपणन चैनलों का निर्माण करके सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिये गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न करता है, जो संभावित रूप से सामुदायिक कल्याण की रक्षा करने और हानिकारक उत्पादों के संपर्क को कम करने के लिये बनाए गए प्रतिबंधों को दरकिनार कर देते हैं।
- सरोगेट विज्ञापन, प्रतिबंधित उत्पादों को ग्लैमर और सफलता से जोड़कर, प्रारंभिक ब्रांड निष्ठा को बढ़ावा देकर तथा हानिकारक प्रभावों से प्रभावित जनसांख्यिकी की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाए गए नैतिक मानदंडों का खंडन करके, सुभेद्य युवाओं का शोषण करते हैं।
- सरकार शराब और तंबाकू के उपभोग और इससे होने वाली हानियों पर अंकुश लगाने के लिये इनके प्रत्यक्ष विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाती हैं, लेकिन सरोगेट विज्ञापन अप्रत्यक्ष रूप से इनके उपयोग को बढ़ावा देकर तथा हानि न्यूनीकरण लक्ष्यों में बाधा उत्पन्न करके इन प्रयासों को कमज़ोर करते हैं।
- ब्रांड लाभ के लिये CSR का शोषण: CSR पहलों का दुरुपयोग, सरोगेट विज्ञापन की नैतिकता को और अधिक जटिल बना देता है।
- शिक्षा, स्वास्थ्य या पर्यावरण संरक्षण जैसे उद्देश्यों के साथ अपने ब्रांड को जोड़कर हानिकारक उत्पादों को बढ़ावा देने वाली कंपनियाँ CSR प्रयासों की प्रामाणिकता को कमज़ोर करती हैं।
- इससे न केवल जनता गुमराह होती है, बल्कि ऐसी पहलों के वास्तविक उद्देश्यों पर भी सवाल उठते हैं।
- लाभ और ज़िम्मेदारी के बीच नैतिक संघर्ष: मूलतः सरोगेट विज्ञापन लाभ-संचालित कॉर्पोरेट रणनीतियों और समाज के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी के बीच संघर्ष को दर्शाता है।
- जबकि व्यवसाय यह तर्क देते हैं कि विकास के लिये उन्हें ब्रांड दृश्यता की आवश्यकता है, यह प्रयास अक्सर उपभोक्ता विश्वास, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण की कीमत पर होता है।
- विनियामक अनुपालन और नैतिकता: विज्ञापन प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिये परिष्कृत विपणन रणनीतियों का उपयोग करने के नैतिक निहितार्थ कॉर्पोरेट अखंडता और सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिये बनाए गए नियामक ढाँचे की भावना के विषय में बुनियादी सवाल उठाते हैं।
- विनियामक निकायों को व्यापक दिशानिर्देश विकसित करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो वैध व्यावसायिक हितों और ब्रांड विस्तार के अवसरों की रक्षा करते हुए, सरोगेट विज्ञापन की सूक्ष्म प्रकृति को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकें।
सरोगेट विज्ञापन पर दार्शनिक और सामाजिक दृष्टिकोण क्या हैं?
- दार्शनिक परिप्रेक्ष्य:
- नैतिकता रहित वाणिज्य: दार्शनिक दृष्टिकोण से, सरोगेट विज्ञापन गांधीजी के सात सामाजिक पापों में से एक का उदाहरण है - "नैतिकता रहित वाणिज्य" जहाँ सामाजिक कल्याण की अपेक्षा लाभ को प्राथमिकता दी जाती है।
- यह प्रथा विनियामक खामियों का लाभ उठाकर प्रतिबंधित उत्पादों को बढ़ावा देती है, जो वाणिज्यिक हितों और नैतिक ज़िम्मेदारी के बीच के अंतर को उजागर करती है। यह गांधी के व्यवसाय के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग है, जिसे भ्रामक विपणन के माध्यम से इसे कमज़ोर करने के बजाय सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना चाहिये।
- सार्वभौमिक मैक्सिम परीक्षण: सार्वभौमिक मैक्सिम परीक्षण (कांट का सार्वभौमिक कानून का सूत्र) के अनुप्रयोग से सरोगेट विज्ञापन में अंतर्निहित नैतिक विरोधाभास का पता चलता है।
- इस तरह की भ्रामक प्रथाओं को सार्वभौमिक बनाने से वाणिज्यिक संचार में विश्वास टूट जाएगा और सार्थक उपभोक्ता विकल्प समाप्त हो जाएंगे ।
- अज्ञान का पर्दा: जॉन रॉल्स की पुस्तक वील ऑफ इग्नोरेंस, सरोगेट विज्ञापन को अनैतिक मानती है, क्योंकि यह हाशिये पर पड़े समुदायों को नुकसान पहुँचाता है और सबसे कम सुविधा प्राप्त लोगों को लाभ पहुँचाने के अंतर सिद्धांत के मानक को पूरा नहीं करता है।
- सद्गुण नैतिकता : यह दृष्टिकोण विज्ञापनदाताओं और व्यवसायों के चरित्र और नैतिक गुणों पर जोर देता है । सरोगेट विज्ञापन को अनैतिक माना जा सकता है यदि यह ईमानदारी , ईमानदारी या जिम्मेदारी की कमी को दर्शाता है , क्योंकि यह अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक उत्पादों को बढ़ावा देकर जनता को हेरफेर करता है।
- सद्गुण नैतिकता: यह दृष्टिकोण विज्ञापनदाताओं और व्यवसायों के चरित्र तथा नैतिक गुणों पर ज़ोर देता है। सरोगेट विज्ञापन को अनैतिक माना जा सकता है यदि यह हानिकारक उत्पादों का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करके जनता को गुमराह करने में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी या ज़िम्मेदारी की कमी को प्रदर्शित करता है।
- कर्त्तव्यपरायण नैतिकता: कर्त्तव्यपरायण नैतिकता के अनुसार, नियमों या कर्त्तव्यों के पालन के आधार पर कार्य नैतिक रूप से सही या गलत होते हैं, चाहे परिणाम कुछ भी हों। सरोगेट विज्ञापन ईमानदारी और पारदर्शिता के नैतिक कर्त्तव्यों का उल्लंघन करता है।
- परिणामवाद: परिणामवादी दृष्टिकोण से, सरोगेट विज्ञापन की नैतिकता उसके परिणामों से आंकी जाती है। यदि सरोगेट विज्ञापनों के कारण शराब या तंबाकू जैसे हानिकारक उत्पादों की खपत बढ़ जाती है, तो नकारात्मक परिणाम (जैसे, सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम) किसी भी संभावित व्यावसायिक लाभ से अधिक होते हैं, जिससे सरोगेट विज्ञापन अनैतिक हो जाता है।
- नैतिकता रहित वाणिज्य: दार्शनिक दृष्टिकोण से, सरोगेट विज्ञापन गांधीजी के सात सामाजिक पापों में से एक का उदाहरण है - "नैतिकता रहित वाणिज्य" जहाँ सामाजिक कल्याण की अपेक्षा लाभ को प्राथमिकता दी जाती है।
- सामाजिक परिप्रेक्ष्य:
- सामाजिक परिप्रेक्ष्य से, सरोगेट विज्ञापन प्रतिबंधित वस्तुओं को खेल आयोजनों, संगीत समारोहों या पर्यावरण अभियानों जैसे सकारात्मक अनुभवों के साथ जोड़कर उन्हें सूक्ष्म रूप से सामान्य बना देता है तथा हानिकारक उपभोग को कलंकित करने के प्रयासों को कमज़ोर कर देता है।
- IPL 2024 के दौरान पान मसाला, संगीत समारोहों में किंगफिशर और सोडा तथा संगीत एल्बम को बढ़ावा देने वाले मैकडॉवेल नंबर 1 जैसे सरोगेट विज्ञापन, विज्ञापन प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिये मशहूर हस्तियों, जीवनशैली की आकांक्षाओं एवं भावनात्मक कथाओं का रणनीतिक रूप से उपयोग करते हैं। ये तरीके जनता में विशेष रूप से शहरी युवाओं के बीच ब्रांड जागरूकता को सूक्ष्मता से समाहित करते हैं।
- सार्वजनिक धारणा और व्यवहार पैटर्न पर सरोगेट विज्ञापन के संचयी प्रभाव के लिये दीर्घकालिक सामाजिक निहितार्थों तथा सामुदायिक कल्याण की रक्षा के लिये संभावित हस्तक्षेपों की सावधानीपूर्वक जाँच की आवश्यकता है।
- सामाजिक परिप्रेक्ष्य से, सरोगेट विज्ञापन प्रतिबंधित वस्तुओं को खेल आयोजनों, संगीत समारोहों या पर्यावरण अभियानों जैसे सकारात्मक अनुभवों के साथ जोड़कर उन्हें सूक्ष्म रूप से सामान्य बना देता है तथा हानिकारक उपभोग को कलंकित करने के प्रयासों को कमज़ोर कर देता है।
भारत में सरोगेट विज्ञापनों से संबंधित विधिक ढाँचा क्या है?
- केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995: यह अधिनियम टेलीविजन पर तंबाकू और शराब जैसे उत्पादों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है, जिसमें सरोगेट विज्ञापन भी शामिल हैं। यह अनिवार्य करता है कि ऐसे उत्पादों के किसी भी विज्ञापन में मूल उत्पाद का प्रचार या अप्रत्यक्ष रूप से प्रचार नहीं किया जाना चाहिये।
- भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) संहिता: ASCI सरोगेट विज्ञापन के खिलाफ दिशानिर्देश प्रदान करता है, जिसमें इस बात पर बल दिया जाता है कि प्रतिबंधित उत्पादों के विज्ञापनों से जनता को गुमराह नहीं किया जाना चाहिये या अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक उत्पादों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिये।
- FSSAI विनियम: भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) खाद्य एवं पेय पदार्थों से संबंधित सरोगेट विज्ञापन को नियंत्रित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि गैर-अल्कोहल पेय पदार्थों को बढ़ावा देने वाले ब्रांड अप्रत्यक्ष रूप से मादक उत्पादों का विज्ञापन न करें।
- सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (COTPA), 2003: यह अधिनियम विशेष रूप से तंबाकू के विज्ञापन और असंबंधित क्षेत्रों में तंबाकू ब्रांड नामों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
सरोगेट विज्ञापन की जाँच के लिये क्या सुझाव दिये जाने चाहिये?
- नैतिक विपणन प्रथाओं को प्रोत्साहित करना: कंपनियों को ऐसी विपणन रणनीतियों को अपनाना चाहिये जो ईमानदारी, पारदर्शिता और सामाजिक ज़िम्मेदारी के नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप हों।
- वास्तविक ब्रांड विस्तार और सतत् व्यावसायिक प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करके व्यवसाय सामाजिक कल्याण के साथ लाभप्रदता को संतुलित कर सकते हैं।
- हितधारकों के बीच सहयोगात्मक प्रयास: सरकारों, नियामक निकायों, गैर सरकारी संगठनों एवं निगमों को एक ऐसा वातावरण बनाने के लिये सहयोग करना चाहिये जो अनैतिक विज्ञापन को हतोत्साहित करे और साथ ही नवाचार व ज़िम्मेदार व्यावसायिक प्रथाओं को बढ़ावा दे।
- नैतिक ब्रांडिंग और मार्केटिंग को प्रोत्साहित करने से इस सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा मिल सकता है।
- उपभोक्ताओं को शिक्षित करना: सार्वजनिक जागरूकता अभियानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को सरोगेट विज्ञापन में प्रयुक्त युक्तियों के विषय में शिक्षित किया जाना चाहिये।
- व्यक्तियों को ऐसी प्रथाओं को पहचानने और उन पर सवाल उठाने के लिये सशक्त बनाने से उनके प्रभाव को कम किया जा सकता है तथा सूचित निर्णय लेने को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- विनियामक ढाँचे को मज़बूत करना: सरोगेट विज्ञापन द्वारा उत्पन्न नैतिक चुनौतियों से निपटने के लिये मज़बूत विनियमन आवश्यक हैं।
- सरोगेट विज्ञापनों की स्पष्ट परिभाषा और उल्लंघन के लिये कठोर दंड से व्यवसायों को कानूनी खामियों का लाभ उठाने से रोका जा सकता है।
- CSR पहलों में पारदर्शिता को बढ़ावा देना: दुरुपयोग को रोकने के लिये कंपनियों को अपनी CSR गतिविधियों को ब्रांड प्रचार से अलग करना होगा।
- CSR अभियानों की स्वतंत्र लेखापरीक्षा और प्रकटीकरण से विश्वसनीयता बढ़ सकती है। यह सुनिश्चित हो सकता है कि ऐसी पहल अप्रत्यक्ष विज्ञापन के बजाय वास्तव में सामाजिक कल्याण पर केंद्रित है।
निष्कर्ष
सरोगेट विज्ञापन सार्वजनिक स्वास्थ्य पर लाभ को प्राथमिकता देते हैं, जिससे धोखाधड़ी और सुभेद्य आबादी का शोषण होता है। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिये नैतिक विपणन, हितधारक सहयोग, उपभोक्ता शिक्षा और मज़बूत विनियमन को शामिल करने वाला एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है।