पेशेवरों द्वारा हड़ताल: अधिकारों और कर्तव्यों में संतुलन | 28 Aug 2024

“लोक सेवा को कुशलतापूर्वक एवं ईमानदारी से कार्य करने से कहीं अधिक होनी चाहिये। यह जनता और राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिये" - मार्गरेट चेस स्मिथ

व्यावसायिक नैतिकता में वे नैतिक सिद्धांत शामिल होते हैं जो विभिन्न व्यवसायों में व्यवहार को नियंत्रित करते हैं, तथा पारदर्शिता, जवाबदेहिता, गोपनीयता, निष्पक्षता, सम्मान और कानून के पालन जैसे मूल्यों पर ज़ोर देते हैं। ये सिद्धांत उन पेशेवरों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जो जानकारीपूर्ण, नैतिक निर्णय लेने के लिये विशिष्ट ज्ञान और कौशल का उपयोग करते हैं।

इस दृष्टिकोण से, हड़ताल करने की स्वतंत्रता एक गंभीर नैतिक दुविधा प्रस्तुत करती है, विशेषकर जब बात सार्वजनिक सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी आवश्यकताओं की हो। हालाँकि हड़ताल, श्रमिकों के लिये बेहतर परिस्थितियों और उचित व्यवहार की वकालत करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है, लेकिन जब इसका प्रभाव उन विशेष सेवाओं पर पड़ता है जिन पर जनता निर्भर करती है, तो इससे जटिल नैतिक समास्याएँ उत्पन्न होती हैं। आवश्यक सेवाओं तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी के साथ हड़ताल के अधिकार को संतुलित करना इन संदर्भों में व्यावसायिक नैतिकता का एक चुनौतीपूर्ण पहलू है। डॉक्टरों (जो हिप्पोक्रेटिक शपथ से बंधे हैं) और अन्य प्रमुख कर्मचारियों सहित पेशेवरों की हड़तालों का सार्वजनिक कल्याण के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण सेवाओं की आपूर्ति पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, जिससे एक जटिल नैतिक परिदृश्य का निर्माण हो सकता है।

विभिन्न दृष्टिकोणों का विश्लेषण के साथ-साथ व्यापक रूप से सामाजिक निहितार्थों पर विचार करके, इस चर्चा का उद्देश्य व्यावसायिक हड़तालों में निहित नैतिक चुनौतियों से निपटने के तरीके के बारे में सूक्ष्म समझ प्रदान करना है, विशेष रूप से जब वे महत्त्वपूर्ण सेवाओं एवं कमज़ोर आबादी को प्रभावित करते हैं, अंततः इन प्रतिस्पर्द्धी चिंताओं में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करना है।

हड़ताल के अधिकार के पक्ष में तर्क क्या हैं?

  • समता एवं निष्पक्षता: प्रत्येक श्रमिक को, चाहे उसका पेशा कुछ भी हो, अपने हितों की वकालत करने का समान अधिकार होना चाहिये।
    • यह सिद्धांत इस बात पर ज़ोर देता है कि सभी श्रमिकों को अनुचित प्रथाओं को चुनौती देने और अपनी कार्य स्थितियों में सुधार के लिये बातचीत करने का अधिकार है।
  • सौदेबाज़ी की शक्ति: हड़तालें श्रमिकों को बातचीत में लाभ प्रदान करती हैं, तथा कर्मचारियों एवं नियोक्ताओं के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने में सहायता प्रदान करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, जून 2011 में मारुति प्रबंधन द्वारा मारुति सुजुकी कर्मचारी संघ (MSEU) के नेताओं को बर्खास्त करने और निलंबित करने के कारण श्रमिकों ने 13 दिन की हड़ताल की। हड़ताल का समापन हरियाणा सरकार एवं मारुति प्रबंधन के बीच MSEU को मान्यता देने, बर्खास्त श्रमिकों को बहाल करने तथा आगे से उत्पीड़न से बचने के समझौते के साथ हुआ।
    • कर्मचारी विवादों में न्यायसंगत परिणाम प्राप्त करने के लिये इस तरह के उत्तोलन की शक्ति आवश्यक है। 
  • सामाजिक प्रगति: हड़ताल जैसी सामूहिक कार्रवाइयों ने ऐतिहासिक रूप से कर्मचारियों के अधिकारों और सामाजिक न्याय में प्रगति को प्रेरित किया है।
    • वे सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने में संगठित कर्मचारियों की शक्ति का प्रमाण हैं।
  • लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति: हड़ताल का अधिकार बेहतर परिस्थितियों के लिये संघ की स्वतंत्रता एवं सामूहिक सौदेबाज़ी को प्रतिबिंबित करके लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है।

आवश्यक सेवाओं में हड़ताल के विरुद्ध तर्क क्या हैं?

  • अंतिम विकल्प के रूप में हड़ताल: बातचीत के अन्य तरीके विफल हो जाने के बाद हड़ताल ही अंतिम उपाय होना चाहिये।
    • हालाँकि ये गंभीर विवादों को सुलझाने के लिये आवश्यक हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवा या सार्वजनिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं के मामले में नैतिक दुविधा और भी बढ़ जाती है, जहाँ सार्वजनिक कल्याण को होने वाली संभावित हानि को श्रमिकों के अधिकारों के साथ सावधानीपूर्वक संतुलित किया जाना चाहिये।
  • सार्वजनिक सुरक्षा: स्वास्थ्य देखभाल या आपातकालीन प्रतिक्रिया जैसी आवश्यक सेवाओं में हड़ताल, सार्वजनिक सुरक्षा के लिये गंभीर जोखिम उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण के लिये, डॉक्टरों या अग्निशमन कर्मियों की हड़ताल से तत्काल सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिये नुकसान या मृत्यु का खतरा बढ़ सकता है।
  • नैतिक दायित्व: आवश्यक सेवाओं में कार्यरत कर्मियों का नैतिक दायित्व है कि वे लोक कल्याण को प्राथमिकता दें।
    • परोपकार के सिद्धांत के अनुसार इन पेशेवरों को उन लोगों के सर्वोत्तम हित में कार्य करना चाहिये जिनकी वे सेवा करते हैं, जो उनके हड़ताल करने के अधिकार के साथ टकराव उत्पन्न कर सकता है।
  • सामाजिक अनुबंध: आवश्यक सेवा प्रदाताओं और समाज के बीच एक अंतर्निहित सामाजिक अनुबंध है।
    • इन क्षेत्रों के पेशेवरों को लोक कल्याण को प्रभावित करने वाली ज़िम्मेदारियाँ सौंपी जाती हैं, और यह विश्वास उनके कर्मचारियों के अधिकारों पर कुछ सीमाएं लगाता है।
  • असंगत प्रभाव: आवश्यक सेवाओं में हड़ताल से प्राय: कमज़ोर वर्ग प्रभावित होता है, जो इन सेवाओं पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत में डॉक्टरों की किसी भी हड़ताल के दौरान, अस्पतालों और क्लीनिकों के बंद होने से आवश्यक चिकित्सीय सेवाएँ बुरी तरह बाधित हो जाती हैं, जिससे न्यूनतम आय वाले परिवारों और तत्काल स्वास्थ्य आवश्यकताओं वाले व्यक्तियों जैसी कमज़ोर आबादी को समय पर देखभाल नहीं मिल पाती है।
    • इससे उन लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं जो व्यवधानों से निपटने में सबसे कम सक्षम हैं।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान(ADR): मध्यस्थता एवं पंचनिर्णय जैसे वैकल्पिक तरीकों से पूर्ण कार्य-स्थगन के बिना शिकायतों का समाधान किया जा सकता है, जिससे विवादों का समाधान करते समय सेवा की निरंतरता बनाए रखने में सहायता प्राप्त होती है।

पेशेवरों द्वारा हड़ताल पर विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोण क्या हैं?

  • उपयोगितावाद: समग्र कल्याण को अधिकतम एवं दुख को न्यूनतम करने के लिये, उपयोगितावाद कार्यों का उनके प्रभावों के अनुसार मूल्यांकन करता है।
    • उपयोगितावादी दृष्टिकोण से, यदि समाज पर समग्र सकारात्मक प्रभाव अल्पकालिक पीड़ा से अधिक है, उस स्थिति में हड़ताल को उचित माना जा सकता है।
    • उपयोगितावादी अल्पकालिक हानि एवं दीर्घकालिक लाभ के बीच संतुलन पर विचार करते हैं, तथा यह मूल्यांकन करते हैं कि क्या पेशेवरों के लिये बेहतर परिस्थितियों और उचित वेतन के लाभ, हड़ताल के दौरान जनता के लिये उत्पन्न तात्कालिक खतरों से अधिक हैं।
  • कर्तव्यशास्त्र संबंधी नैतिकता: कर्तव्यशास्त्र संबंधी नैतिकता परिणामों के स्थान पर नैतिक कर्तव्यों और सिद्धांतों के पालन पर केंद्रित होती है।
    • इस दृष्टिकोण के अनुसार, पेशेवरों का दायित्व है कि वे हानि से बचें और आवश्यक सेवाएँ प्रदान करें। चूँकि वे सार्वजनिक हितों की रक्षा करने के पेशेवर दायित्व का उल्लंघन करते हैं, इसलिये महत्त्वपूर्ण सेवाओं को प्रभावित करने वाली हड़तालों को नैतिक रूप से गलत माना जा सकता है।
  • सामाजिक अनुबंध सिद्धांत: यह व्यक्ति और समाज के बीच अंतर्निहित समझौतों की पड़ताल करता है तथा पारस्परिक अपेक्षाओं और ज़िम्मेदारियों पर प्रकाश डालता है।
    • यह अनुबंध स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों जैसे महत्त्वपूर्ण सेवा प्रदाताओं को उनके कार्य की विशेष प्रकृति के कारण विशिष्ट विश्वास और स्थिति प्रदान करता है।।
    • तर्क के अनुसार, अनिवार्य हड़ताल के अधिकार को निलंबित कर दिया जाना चाहिये, क्योंकि सार्वजनिक हित सर्वोपरि है और यह समाज के साथ उनके अनुबंधों का हिस्सा नहीं है।
  • गांधीवाद: गांधीजी हड़तालों को लोगों के विरुद्ध अन्याय को दूर करने के लिये शांतिपूर्ण प्रतिरोध का एक वैध रूप मानते थे, तथा इस बात पर बल देते थे कि हड़तालें अहिंसक प्रक्रिया एवं  स्पष्ट, न्यायोचित मांगों के साथ की जानी चाहिये।
    • उन्होंने केवल तभी हड़ताल की वकालत की जब उसका कारण वास्तविक हो तथा हड़ताल करने वाले एकजुट हों और साथ ही अहिंसा के लिये प्रतिबद्ध हों।

पेशेवरों द्वारा हड़ताल पर कानूनी दृष्टिकोण क्या है?

  • प्रमुख मामले:
    • कामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य (1962): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि हड़ताल का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(c) (संघ या यूनियन बनाने का अधिकार) के तहत मौलिक अधिकार नहीं है।
    • दिल्ली पुलिस बनाम भारत संघ (1986): सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस बल (अधिकारों पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1966 के अधिनियमन और उसके बाद संशोधन नियम, 1970 में किये गए संशोधनों के बाद अराजपत्रित पुलिस कर्मियों द्वारा संगठन बनाने पर प्रतिबंध को बनाए रखा।
    • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (M) बनाम भारत कुमार(1997):  सर्वोच्च न्यायालय ने बंद (सामान्य हड़ताल) पर प्रतिबंध लगाने के केरल उच्च न्यायालय के निर्णय को बनाए रखा। न्यायालय ने बंद और हड़ताल के बीच अंतर करते हुए कहा कि हड़ताल भले ही विरोध का एक रूप हो, लेकिन बंद नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
    • टी.के. रंगराजन बनाम  तमिलनाडु सरकार (2003): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि कर्मचारियों को हड़ताल करने का मौलिक अधिकार नहीं है, तथा तमिलनाडु सरकारी कर्मचारी आचरण नियम, 1973 के अंर्तगत हड़ताल पर प्रतिबंध को रेखांकित किया।
  • अंतिम कानूनी परिप्रेक्ष्य:
    • भारत में, विरोध करने का अधिकार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत एक मौलिक अधिकार है। लेकिन हड़ताल करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं बल्कि विधिक अधिकार है और इस अधिकार के साथ औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में वैधानिक प्रतिबंध जुड़ा हुआ है।
    • उपरोक्त मामलों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रदर्शन या धरना देने का अधिकार शामिल है, लेकिन हड़ताल करने का अधिकार शामिल नहीं है।
      • इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय का रुख हड़ताल के अधिकार पर लोक कल्याण और आवश्यक सेवाओं को प्राथमिकता देने के सामान्य सिद्धांत को दर्शाता है, विशेष रूप से सरकारी कर्मचारियों के लिये। हालाँकि, इसका अर्थ यह नहीं है कि सामूहिक सौदेबाजी या विरोध के सभी प्रकार अवैध हैं। न्यायालय का ध्यान आवश्यक सेवाओं को बनाए रखने और सार्वजनिक जीवन में व्यवधान को रोकने पर रहा है।

पेशेवर के रूप में अधिकारों तथा कर्तव्यों में संतुलन कैसे स्थापित करें?

  • न्यूनतम हानि सिद्धांत: यदि आवश्यक सेवाओं में हड़ताल होती है, तो उसे इस प्रकार से संचालित किया जाना चाहिये कि जनता को न्यूनतम हानि हो। इसमें व्यवधान को सीमित करने के लिये चयनात्मक सेवा वापसी या गैर-आपातकालीन कार्य रोकना शामिल हो सकता है।
  • आनुपातिकता: हड़ताल के कारण संभावित हानि के समानुपाती होने चाहिये। हड़ताल को छोटी-मोटी शिकायतों के स्थान पर महत्त्वपूर्ण मुद्दों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिये, जो व्यवधान को उचित ठहराते हैं।
  • पारदर्शिता एवं संचार: हड़ताल के कारणों और उसके प्रभाव को कम करने के लिये उठाए गए उपायों के बारे में स्पष्ट संचार से जनता का विश्वास बनाए रखने में सहायता प्राप्त हो सकती है। पारदर्शिता के माध्यम से जनता की समझ और समर्थन को भी बढ़ावा मिल सकता है।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र: हड़तालों का सहारा लिये बिना शिकायतों के समाधान के लिये मज़बूत तंत्र विकसित करने से अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाने में प्राप्त हो सकती है। व्यवधानों को रोकने के लिये मध्यस्थता, पंचनिर्णय और अन्य बातचीत तकनीकों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • कानूनी ढाँचे: कई देशों में कर्मचारियों के अधिकारों और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने के लिये आवश्यक सेवाओं में हड़तालों को नियंत्रित करने वाले कानून हैं। इन कानूनी रूपरेखाओं में प्राय: विवादों के दौरान आवश्यक सेवाओं को बनाए रखने के प्रावधान शामिल होते हैं।

निष्कर्ष

विशेष रूप से आवश्यक सेवाओं में पेशेवरों द्वारा की जाने वाली हड़तालों के संबंध में नैतिक बहस, व्यक्तिगत अधिकारों, व्यावसायिक कर्तव्यों एवं लोक कल्याण के बीच एक जटिल अंतर्संबंध प्रस्तुत करती है। यद्यपि हड़ताल का अधिकार श्रम अधिकारों का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो श्रमिकों को अनुचित परिस्थितियों को चुनौती देने तथा बेहतर शर्तों की वकालत करने में सक्षम बनाता है, किंतु इसका क्रियान्वयन नैतिक रूप से समस्याग्रस्त हो जाता है जब इससे स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यक सेवाएँ बाधित होती हैं। इस अधिकार का प्रयोग करने और कमज़ोर आबादी के लिये निर्बाध देखभाल सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी के बीच तनाव एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अंततः, संतुलन बनाने के लिये न्यूनतम हानि, आनुपातिकता और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर सावधानीपूर्वक विचार करना आवश्यक है। वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र विकसित करने और स्पष्ट संचार सुनिश्चित करने से शिकायतों का समाधान करते हुए हड़तालों के प्रभाव को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है। इन नैतिक चुनौतियों का विचारपूर्वक सामना करके, पेशेवर लोग सार्वजनिक कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखते हुए अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।