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सुरक्षा को प्राथमिकता: हाल ही की आगजनी की घटनाओं से सीख

  • 28 May 2024
  • 2 min read

हाल ही में गुजरात के राजकोट में एक गेमिंग ज़ोन और दिल्ली में बच्चों वाले अस्पताल में हुई आग की घटनाओं ने अग्नि सुरक्षा नियमों तथा उनके प्रवर्तन के महत्त्व को रेखांकित किया है। इन घटनाओं (जिनमें मात्र 24 घंटों के अंदर कम-से-कम 40 लोगों की जान चली गई) से सार्वजनिक स्थलों एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में जीवन रक्षा हेतु बनाए गए सुरक्षा प्रोटोकॉल के संबंध में कमियाँ उजागर हुई हैं। जिनमें होने वाली जन-धन की क्षति (विशेष रूप से उन स्थानों पर जहाँ कठोर सुरक्षा उपाय होने चाहिये) चिंता का विषय है।

इन अग्नि दुर्घटनाओं के परिणाम बहुआयामी और विनाशकारी रहे हैं। मानवीय स्तर पर जीवित बचे लोगों तथा पीड़ितों के परिवारों को होने वाली जान-माल की हानि एवं शारीरिक व भावनात्मक आघात व्यापक हैं। ये त्रासदियाँ सुरक्षा मानकों को लागू करने और बनाए रखने में प्रणालीगत विफलताओं को भी उजागर करती हैं। प्रायः गेमिंग ज़ोन और अस्पताल जैसी इमारतें बड़ी संख्या में लोगों को सेवा प्रदान करती हैं, जिनमें बच्चे भी शामिल है। ऐसी जगहों पर अग्नि सुरक्षा नियमों को लागू करने में विफलता केवल एक नियामक चूक नहीं है, बल्कि एक गंभीर नैतिक चूक है जो अनगिनत लोगों के जीवन को खतरे में डालती है।

इन घटनाओं के आलोक में समाज अपनी प्राथमिकताओं में किस प्रकार परिवर्तन ला सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मानव सुरक्षा और जीवन को आर्थिक तथा नौकरशाही हितों से ऊपर रखा जाए?

अपने निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में भवन मालिकों और संचालकों के क्या नैतिक उत्तरदायित्व हैं तथा अग्नि सुरक्षा उपायों में चूक के लिये उन्हें किस प्रकार उत्तरदायी ठहराया जा सकता है?

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