छात्र अभियानों में अभिव्यक्ति और जवाबदेही का मार्ग प्रशस्त करना | 06 Nov 2024

सार्वजनिक संपत्ति के विरूपण का समाधान होने तक दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनावों में वोटों की गिनती रोकने के दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया फैसले ने एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक बहस को सामने ला दिया है - अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच तनाव, जो लोकतांत्रिक जुड़ाव का मुख्य स्तंभ, और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, तथा प्रत्येक नागरिक के उत्तरदायित्व का प्रतिनिधित्व करती है।

भारत जैसे संवैधानिक लोकतंत्र में, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में भाग लेने का अधिकार मौलिक है, खासकर शैक्षणिक संस्थानों में जो भविष्य के नेताओं को तैयार करते हैं। विचाराधीन मुद्दा भविष्य के नेताओं के नैतिक आचरण विशेषकर सार्वजनिक संपत्ति, विधि के शासन और नागरिक ज़िम्मेदारी के संदर्भ में को दर्शाता है।

छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नैतिक औचित्य क्या हैं?

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:
    • विरोध के रूप में कला: भित्तिचित्र, पोस्टर और पर्चे विरोध और अभिव्यक्ति के पारंपरिक साधन हैं। विश्वविद्यालय परिवेश में, इस तरह के कार्य छात्रों के असहमति व्यक्त करने और मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के अधिकार का हिस्सा हैं।
    • लोकतांत्रिक सहभागिता: पोस्टर और भित्तिचित्र जैसी अभियान सामग्रियाँ छात्रों की भागीदारी को सुगम बनाती हैं और लोकतांत्रिक भागीदारी का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिससे उम्मीदवारों को अपने विचारों को व्यापक छात्र समुदाय तक पहुँचाने का अवसर मिलता है।
    • ऐतिहासिक संदर्भ: भारत समेत विश्व भर में छात्र आंदोलनों ने अभिव्यक्ति के लिये प्रायः सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल किया है। दिल्ली में पिंजरा तोड़ आंदोलन, जो महिलाओं पर लगाए गए प्रतिबंधात्मक और लैंगिक भेदभावपूर्ण नियमों को खत्म करने के उद्देश्य से छात्रों के नेतृत्त्व में चलाया गया अभियान था, और कोलकाता में छात्रों द्वारा संचालित भित्तिचित्र लोकतांत्रिक संवाद को आकार देने में इन अभिव्यक्तियों के सांस्कृतिक महत्त्व को प्रकट करते हैं।
  • नागरिक भागीदारी:
    • छात्रों को सशक्त बनाना: राजनीतिक अभियानों में भाग लेने और सार्वजनिक स्थानों पर संदेश प्रदर्शित करने से छात्रों को सशक्त महसूस करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जुड़ने में मदद मिलती है।
    • प्रतिनिधित्व: इन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने से छात्रों की अपनी आवाज़ उठाने की क्षमता कम हो सकती है, जिससे चुनावों की लोकतांत्रिक प्रकृति कमज़ोर हो सकती है।
  • प्रतिरोध की अभिव्यक्ति के रूप में कला:
    • भित्तिचित्र और पोस्टर क्रांतिकारी कला रूप माने जाते हैं, जिनका जागरूकता और प्रतिरोध बढ़ाने का लंबा इतिहास रहा है। 
    • वे सामूहिक हताशा, राय साझा करने और सामाजिक आलोचना व्यक्त करने का एक साधन हैं, जो एक जीवंत लोकतांत्रिक समाज के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

नागरिक उत्तरदायित्व की रक्षा के लिये नैतिक विचार क्या हैं?

  • सार्वजनिक संपत्ति का संरक्षण:
    • प्रबंधन और जवाबदेही: नेतृत्त्व करने वाले या नेतृत्त्व की भूमिका निभाने के इच्छुक लोगों को सार्वजनिक संसाधनों के संरक्षक के रूप में कार्य करना चाहिये। अभियान के उद्देश्यों के लिये सार्वजनिक संपत्ति का उपयोग करना सामुदायिक संपत्तियों के प्रति उपेक्षा दर्शाता है।
    • विधि का शासन: सार्वजनिक स्थलों को बिना रोक-टोक क्षतिग्रस्त करने की अनुमति देना विधिके शासन को कमज़ोर करता है, तथा साझा स्थानों और सार्वजनिक संसाधनों के प्रति सम्मान के बारे में गलत संदेश देता है।
  • अधिकारों और ज़िम्मेदारियों में संतुलन:
    • सामाजिक बनाम वैयक्तिक अधिकार: यद्यपि छात्रों को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन इसे स्वच्छ, अक्षत स्थानों का आनंद लेने के व्यापक सार्वजनिक अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
      • अनियंत्रित अभिव्यक्ति अन्य लोगों के अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है जो समुदाय का हिस्सा हैं।
    • शैक्षिक संस्थानों की ज़िम्मेदारी: नैतिक मूल्यों को स्थापित करना विश्वविद्यालयों का कर्त्तव्य है। अनैतिक व्यवहार पर कार्यवाही करने में विफलता नैतिक मार्गदर्शक के रूप में संस्थान की भूमिका को कमज़ोर करती है।
      • यह जवाबदेही के सिद्धांत के अनुरूप है और यह सुनिश्चित करता है कि अभिव्यक्ति नागरिक व्यवस्था की कीमत पर न हो।
  • अनैतिक प्रचार को रोकना:
    • अत्यधिक अभियान व्यय की लागत: उच्च न्यायालय का निर्णय चुनाव प्रचार पर अत्यधिक व्यय को हतोत्साहित करता है।
      • इससे एक सशक्त संदेश देकर निष्पक्षता को बढ़ावा मिलता है कि अभियानों को दृश्यों के बजाय विषय-वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये।
    • अवांछित प्रभाव: यदि इस पर अंकुश न लगाया जाए, तो अत्यधिक व्यय और सार्वजनिक विरूपण के परिणामस्वरूप अवांछित प्रभाव उत्पन्न हो सकता है, जहाँ धनी उम्मीदवार हावी हो सकते हैं, तथा समान प्रतिनिधित्व को अनुचित रूप से सीमित कर सकते हैं।

नागरिक उत्तरदायित्व और स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर दार्शनिक दृष्टिकोण क्या हैं?

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम नागरिक उत्तरदायित्व:
    • उदारवाद: उदारवादी दर्शन वैयक्तिक स्वतंत्रता के महत्त्व पर बल देता है, जिसमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल है, जिसे अनावश्यक रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिये।
      • छात्रों को लोकतांत्रिक जीवन में सक्रिय भागीदार के रूप में देखा जाता है, तथा उनके विरोध करने तथा अपनी बात कहने के अधिकार को बरकरार रखा जाना चाहिये।
    • नागरिक गणतंत्रवाद: यह दर्शन व्यक्तिगत अधिकारों को नागरिक कर्त्तव्यों के साथ संतुलित करने के महत्त्व पर बल देता है।
      • छात्रों सहित नागरिकों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे सामुदायिक स्थानों और विधियों का सम्मान करें तथा यह सुनिश्चित करें कि सार्वजनिक संपत्ति सामूहिक भलाई के लिये संरक्षित रहे।
  • परिणामवाद (परिणाम-आधारित नैतिकता):
    • छात्रों की अभिव्यक्ति के लिये: परिणामवादी यह तर्क दे सकते हैं कि भित्तिचित्रों और पोस्टरों की अनुमति देने का व्यापक प्रभाव, बढ़ी हुई लोकतांत्रिक भागीदारी और सहभागिता, सार्वजनिक संपत्ति के अस्थायी विरूपण को उचित ठहराती है।
    • संपत्ति संरक्षण के लिये: इसके विपरीत, वे यह भी तर्क दे सकते हैं कि विरूपण के नकारात्मक परिणाम (लागत, अव्यवस्था, सार्वजनिक स्थान का ह्रास) लाभों से अधिक हैं, जिससे मतगणना रोकने का न्यायालय का निर्णय वैध हो जाता है।
  • कर्त्तव्यपरक नीतिशास्त्र (कर्त्तव्य-आधारित नैतिकता):
    • सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने का कर्त्तव्य: नैतिक दृष्टिकोण से, सार्वजनिक संपत्ति को बनाए रखना और विधियों को बनाए रखना छात्र की मंशा चाहे जो भी हो, सबसे महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य है। अभिव्यक्ति के नाम पर नागरिक कर्त्तव्य से समझौता नहीं किया जाना चाहिये।

कौन सी रणनीतियाँ परिसर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ नागरिक ज़िम्मेदारी को संतुलित कर सकती हैं?

  • वैकल्पिक अभियान विधियाँ:
    • डिजिटल अभियान: छात्रों को डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से प्रचार करने के लिये प्रोत्साहित करें, जिससे भौतिक पोस्टरों और भित्तिचित्रों की आवश्यकता कम हो जाएगी और साथ ही उन्हें अपने दर्शकों तक प्रभावी ढंग से पहुँचने का अवसर भी मिलेगा।
    • निर्दिष्ट स्थान: विश्वविद्यालय, विद्यार्थियों को पोस्टर और भित्तिचित्र प्रदर्शित करने के लिये विशिष्ट क्षेत्र उपलब्ध करा सकते हैं, जिससे सार्वजनिक अभिव्यक्ति की आवश्यकता और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित हो सके।
  • नागरिक उत्तरदायित्व पर शैक्षिक कार्यक्रम:
    • छात्र जागरूकता: विश्वविद्यालयों को छात्रों को नागरिक ज़िम्मेदारी के बारे में शिक्षित करने के लिये अभियान या कार्यशालाएँ शुरू करनी चाहिये, जिसमें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के नैतिक निहितार्थ भी शामिल हों।
    • सहयोगात्मक सफाई: छात्र उम्मीदवारों को अभियान के बाद सार्वजनिक स्थानों की सफाई में सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित करें, जिससे ज़िम्मेदारी की संस्कृति को बढ़ावा मिले।
  • लचीलेपन के साथ सख्त प्रवर्तन:
    • उचित सीमाओं के साथ विनियमन: सार्वजनिक रूप से विरूपण के बारे में मौजूदा विधियों को लागू करें और सुनिश्चित करें कि छात्र अभी भी ज़िम्मेदार तरीके से अपने विचार व्यक्त कर सकें। विरूपण की सीमा के आधार पर दंड का पैमाना तय किया जा सकता है।
    • पुनर्स्थापनात्मक उपाय: केवल ज़ुर्माने के बजाय, उम्मीदवारों को सामुदायिक सेवा या सफाई प्रयासों में योगदान करने की आवश्यकता हो सकती है, तथा शिक्षा के साथ प्रवर्तन को भी शामिल किया जा सकता है।
  • हितधारकों के बीच संवाद:
    • सहयोगात्मक समाधान: छात्रों, विश्वविद्यालय के अधिकारियों, नागरिक निकायों और न्यायपालिका को संवाद में शामिल करें ताकि ऐसे समाधान निकाले जा सकें जो अभिव्यक्ति की आवश्यकता एवं सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा दोनों का सम्मान करें।

निष्कर्ष

निष्कर्ष रूप में, छात्र राजनीति युवा लोगों में आलोचनात्मक सोच, नेतृत्त्व और नागरिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देकर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से छात्रों को अपनी राय व्यक्त करने, यथास्थिति को चुनौती देने और सामाजिक प्रगति में सार्थक योगदान करने का मौका मिलता है। छात्र सक्रियता भविष्य के नेताओं को विकसित करने और सामाजिक जागरूकता उत्पन्न करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच है, जो बदले में समाज के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मज़बूत करता है। यह छात्रों को शासन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये कौशल और ज्ञान से सुसज्जित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि शैक्षणिक संस्थानों के भीतर और बाहर लोकतंत्र के मूल्यों को बरकरार रखा जाए।

जैसा कि नेल्सन मंडेला ने सटीक रूप से कहा था, "आज के युवा कल के नेता हैं।" यह छात्र सक्रियता की परिवर्तनकारी शक्ति को उज़ागर करता है, जो न केवल व्यक्तिगत विकास को आकार देता है, बल्कि हमारे समाज का मार्गदर्शन करने वाले लोकतांत्रिक आदर्शों को भी मज़बूत करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न :

प्रश्न. छात्र राजनीति के संदर्भ में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा के बीच नैतिक तनाव का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। इन दो प्रतिस्पर्द्धी हितों के बीच संतुलन कैसे हासिल किया जा सकता है? (15 अंक)

प्रश्न. छात्रों द्वारा राजनीतिक अभिव्यक्ति के लिये सार्वजनिक स्थानों के उपयोग से जुड़े नैतिक विचारों की जाँच कीजिये। ऐसे स्थानों के लोकतांत्रिक और सम्मानजनक उपयोग को सुनिश्चित करने में नागरिक ज़िम्मेदारी की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (15 अंक)