एथिक्स
व्यावसायिक अभ्यास में चिकित्सकीय नैतिकता के नैतिक पहलू
- 28 Dec 2024
- 12 min read
चिकित्सकीय नैतिकता स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और रोगियों के बीच विश्वास की नींव होती है।
हालाँकि, एबवी इंडिया विवाद जैसी समकालीन घटनाएँ नैतिक समस्याओं को उजागर करती हैं, जिसमें कंपनी पर चिकित्सा सम्मेलनों के बहाने 30 डॉक्टरों को पेरिस और मोनाको ले जाने के लिये 1.91 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने का आरोप है।
फार्मास्यूटिकल्स विभाग (DoP) ने इसे फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस के लिये यूनिफ़ॉर्म कोड (UCPMP) का उल्लंघन माना, जिससे ऐसी प्रथाओं के नैतिक निहितार्थों पर सवाल उठे। यह मामला पेशेवर नैतिकता, कॉर्पोरेट हितों और रोगी कल्याण के बीच चिंताओं को उजागर करता है, जो स्वास्थ्य सेवा वितरण के लिये व्यापक निहितार्थों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
चिकित्सकीय नैतिकता में नैतिक चिंताएँ क्या हैं?
- नैदानिक निर्णय से समझौता: एबवी विवाद इस बात को रेखांकित करता है कि किस प्रकार दवा कंपनियों का अनुचित प्रभाव डॉक्टरों के नैदानिक निर्णयों को प्रभावित कर सकता है। अत्यधिक आतिथ्य या उपहार स्वीकार करने से हितों का टकराव हो सकता है, जिसके कारण रोगी कल्याण पर कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता देते हुए पक्षपातपूर्ण उपचार सिफारिशें की जा सकती हैं।
- जनता के भरोसे का ह्रास: एबवी इंडिया जैसे मामले चिकित्सा पेशेवरों और निगमों के बीच अनैतिक सहयोग को उजागर करते हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं में रोगियों का भरोसा खत्म होता है। नैतिकता और परोपकारिता से प्रेरित सेवा के रूप में स्वास्थ्य सेवा की सार्वजनिक धारणा से समझौता किया जाता है, जिससे पूरे चिकित्सा समुदाय की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है।
- व्यावसायिक सीमाओं का शोषण: सतत चिकित्सा शिक्षा (CME) के नाम पर भव्य यात्राओं का प्रलोभन देकर, डॉक्टरों और दवा कंपनियों के बीच व्यावसायिक संबंधों की सीमाओं का शोषण किया जाता है। इस तरह की नीतियाँ नैतिक सीमाओं को धुंधला कर देती हैं, क्योंकि सीएमई का उद्देश्य प्रचारात्मक रणनीति के बजाय वास्तविक ज्ञान साझा करना होना चाहिये।
- विनियामक अखंडता को कमज़ोर करना: उत्तरदायित्व से बचने के लिये एबवी का समय संबंधी विसंगतियों पर विश्वास दर्शाता है कि किस तरह कानूनी कमज़ोरियों का लाभ उठाया जाता है। यह UCPMP जैसे कानूनों की भावना को कमज़ोर करता है, जिन्हें दवा उद्योग में नैतिक प्रथाओं को बनाए रखने के लिये डिज़ाइन किया गया है। इस तरह के कदम सार्वजनिक स्वास्थ्य और उद्योग की पारदर्शिता पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिससे अंततः लोग नियामक प्रणालियों पर संदेह करने लगते हैं तथा नैतिकता की कमी महसूस करते हैं।
- स्वास्थ्य समानता पर प्रभाव: व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के बजाय प्रमुख स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रभावित करने के प्रयासों को प्राथमिकता देकर, कंपनियां स्वास्थ्य समानता में बढ़ती असमानता में योगदान देती हैं।
- भव्य आतिथ्य पर खर्च किये गए 1.91 करोड़ रुपए का उपयोग वंचित रोगियों को लाभ पहुँचाने वाली पहलों के लिये किया जा सकता था, जो कॉर्पोरेटलाभ और सामाजिक ज़िम्मेदारी के बीच नैतिक चिंताओं को उजागर करता है।
चिकित्सकीय नैतिकता पर दार्शनिक दृष्टिकोण क्या हैं?
- हिप्पोक्रेटिक शपथ: हिप्पोक्रेटिक शपथ चिकित्सकीय नैतिकता के मूलभूत दार्शनिक परिप्रेक्ष्य को मूर्त रूप देती है, जो स्वास्थ्य सेवा में परोपकारिता, अहितकारीता और व्यावसायिक अखंडता के सिद्धांतों पर प्रकाश डालती है।
- यह शपथ एक नैतिक दिशानिर्देश के रूप में कार्य करती है, जो चिकित्सकों को चिकित्सा पेशे की प्रतिष्ठित परंपराओं और नैतिक मानकों को बनाए रखने में मार्गदर्शन करती है।
- उपयोगितावाद और अधिकतम भलाई: उपयोगितावादी दृष्टिकोण से, एबवी की कथित आतिथ्य यात्राओं जैसी प्रथाएँ सामाजिक कल्याण को अधिकतम करने में विफल रहती हैं। कुछ डॉक्टरों के लिये भव्य यात्राओं पर खर्च किये गए संसाधन इसके बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में योगदान दे सकते हैं, जिससे बड़ी आबादी को लाभ मिल सकता है और अधिकतम लोगों के लिये अधितकम भलाई के सिद्धांत का पालन किया जा सकता है।
- मानदंडक नैतिकता और कर्तव्य-आधारित नैतिकता: मानदंडक नैतिकता नैतिक कर्तव्यों और सिद्धांतों के पालन पर ज़ोर देती है। एबवी केस में चिकित्सा पेशेवरों और निगमों के मौलिक कर्तव्य के उल्लंघन को उजागर किया गया है, जिसमें ईमानदारी और पारदर्शिता को प्राथमिकता देना शामिल है, भले ही इसमें शामिल पक्षों द्वारा दिये गए संभावित लाभ या औचित्य कुछ भी हों।
- सदाचार नैतिकता और व्यावसायिक ईमानदारी: सदाचार नैतिकता व्यक्तियों के चरित्र और गुणों पर केंद्रित है। एबवी जैसे मामलों में डॉक्टरों और दवा कंपनियों दोनों की नैतिक ईमानदारी जाँच के दायरे में आती है, जहाँ कार्य ईमानदारी, जवाबदेही तथा परोपकारिता जैसे पेशेवर गुणों की कमी को दर्शाते हैं।
- रॉल्स का न्याय का सिद्धांत: जॉन रॉल्स के सिद्धांतों के अनुसार, नैतिक कार्यों से समाज में सबसे कम सुविधा प्राप्त लोगों की रक्षा होनी चाहिये। एबवी के कथित कार्य इस परीक्षण में विफल रहे क्योंकि संसाधनों को स्वास्थ्य असमानताओं को संबोधित करने या वंचित रोगियों का समर्थन करने के बजाय विशेषाधिकार प्राप्त पेशेवरों की ओर निर्देशित किया गया था।
- कांटियन सार्वभौमिकता: सार्वभौमिकता के बारे में कांट का दर्शन बताता है कि क्या एबवी मामले में की गई कार्रवाइयों को स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में विश्वास को खत्म किये बिना सार्वभौमिक रूप से अपनाया जा सकता है। यदि सभी निगम ऐसी प्रथाओं में लगे रहते हैं, तो स्वास्थ्य सेवा पेशा अपना नैतिक आधार खो देगा, जिससे ऐसी कार्रवाइयाँ नैतिक रूप से अक्षम्य हो जाएंगी।
चिकित्सकीय नैतिकता को मूल्यवान बनाने के लिये क्या सुझाव दिये जाने चाहिये?
- भारत में सनशाइन एक्ट लागू करना: भारत को एक व्यापक प्रकटीकरण फ्रेमवर्क शुरू करना चाहिये, जिसमें दवा कंपनियों को स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ सभी वित्तीय लेन-देन को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करना अनिवार्य किया जाए। यह पारदर्शिता अनैतिक प्रथाओं को रोकेगी और रोगियों को अपनी देखभाल के संबंध में उचित निर्णय लेने में सहायक होगी।
- विनियामक निरीक्षण को सुदृढ़ करना: फार्मास्यूटिकल्स विभाग (DoP) और मेडिकल काउंसिल जैसे विनियामक निकायों के निरीक्षण तंत्र को बढ़ाना चाहिये तथा नैतिक मानकों के उल्लंघन के लिये सख्त दंड लगाना चाहिये। दवा कंपनियों और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की समय-समय पर ऑडिट नैतिक दिशा-निर्देशों के अनुपालन को सुनिश्चित करती है।
- चिकित्सा शिक्षा में नैतिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देना: नैतिकता, चिकित्सकीय शिक्षा का अभिन्न अंग होनी चाहिये, जिसमें निष्पक्ष नैदानिक निर्णय लेने के महत्त्व पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। निरंतर व्यावसायिक विकास कार्यक्रमों में हितों के टकराव से निपटने और नैतिक प्रथाओं का पालन करने का प्रशिक्षण शामिल होना चाहिये।
- सीएमई कार्यक्रमों के लिये स्वतंत्र वित्तपोषण को बढ़ावा देना: सतत चिकित्सा शिक्षा (CME) पहलों को दवा कंपनियों के बजाय तटस्थ संगठनों द्वारा स्वतंत्र रूप से वित्त पोषित किया जाना चाहिये। इससे संभावित पूर्वाग्रहों को खत्म किया जा सकेगा और यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि शैक्षिक सामग्री विपणन के बजाय चिकित्सा प्रगति पर केंद्रित रहे।
- लोगों और मरीज़ों की वकालत को प्रोत्साहित करना: अनैतिक प्रथाओं पर सवाल उठाने के लिये मरीज़ों और समर्थक समूहों को सशक्त बनाना, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में जवाबदेही को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को नैतिक मानकों और उनके अधिकारों के बारे में शिक्षितकिया जाना चाहिये, जिससे वे चिकित्सा देखभाल में बेहतर पारदर्शिता तथा ईमानदारी की मांग कर सकें।
निष्कर्ष
एबवी इंडिया का मामला आधुनिक स्वास्थ्य सेवा में सामने आने वाली नैतिक चुनौतियों की एक गंभीर याद दिलाता है, जहाँ कॉर्पोरेट हित अक्सर पेशेवर ज़िम्मेदारियों से जुड़ जाते हैं। सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने, रोगी कल्याण की रक्षा करने और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों की अखंडता सुनिश्चित करने के लिये चिकित्सकीय नैतिकता को बनाए रखना आवश्यक है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये प्रभावी विनियमन, पूर्ण पारदर्शिता तथा नैतिक प्रशिक्षण सहित एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। कॉर्पोरेट प्रथाओं को नैतिक सिद्धांतों के साथ जोड़कर, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र नवाचार एवं जवाबदेही के बीच संतुलन बना सकता है। अंततः,रोगी-केंद्रित मूल्यों को प्राथमिकता देना, एक भरोसेमंद और न्यायसंगत स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की कुंजी है।