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मीडिया की स्वतंत्रता में नैतिक दुविधाएँ

  • 15 Jan 2025
  • 11 min read

मीडिया की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आधारशिला है, जो जवाबदेही सुनिश्चित करती है और सूचित सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा देती है। पुलित्जर पुरस्कार विजेता कार्टूनिस्ट एन टेलनेस का द वाशिंगटन पोस्ट से इस्तीफा, क्योंकि उनके द्वारा जेफ बेज़ोस की आलोचना करने वाले कार्टून को अस्वीकृत कर दिया गया था, अखबार के मालिक ने गंभीर नैतिक दुविधाओं को उज़ागर किया है। यह घटना संपादकीय स्वतंत्रता पर कॉर्पोरेट स्वामित्व के प्रभाव तथा लोकतंत्र और सार्वजनिक विश्वास पर इसके व्यापक प्रभाव के बारे में गंभीर चिंताओं को प्रकाश में लाती है।

मीडिया की स्वतंत्रता में शामिल नैतिक दुविधाएँ क्या हैं? 

  • हितों का टकराव: अखबार के मालिक की आलोचना के कारण टेलनेस के कार्टूनों को अस्वीकार करना स्पष्ट रूप से हितों के टकराव को उज़ागर करता है। ऐसे उदाहरण संपादकीय अखंडता को कमज़ोर करते हैं और इस बारे में चिंताएँ बढ़ाते हैं कि क्या मीडिया नैतिक पत्रकारिता या कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता देता है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन: असहमति की आवाज़ों पर सेंसरशिप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमज़ोर करती है। संपादकीय कार्टूनिस्ट, जिन्हें प्राधिकार को चुनौती देने और बहस को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया है, वे अप्रभावी हो जाते हैं जब उनके काम को कॉर्पोरेट या राजनीतिक कारणों से दबा दिया जाता है।
  • जवाबदेही में कमी: मीडिया एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है, जो सत्ता को जवाबदेह बनाता है। जब प्रभावशाली व्यक्तियों की आलोचना को दबा दिया जाता है, तो जवाबदेही खत्म हो जाती है, और मीडिया के चुनिंदा आख्यानों का साधन बन जाने का खतरा पैदा हो जाता है।
  • सार्वजनिक विश्वास पर प्रभाव: पत्रकारिता की ईमानदारी की तुलना में कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता देने वाली कार्यवाहियाँ मीडिया में जनता के विश्वास को नुकसान पहुँचाती हैं, तथा सूचना और बहस के लिये एक निष्पक्ष मंच के रूप में इसकी विश्वसनीयता को कम करती हैं।
  • व्यावसायिक दबाव: विज्ञापन राजस्व पर निर्भरता मीडिया की स्वतंत्रता से समझौता कर सकती है, क्योंकि विज्ञापनदाता प्रमुख विज्ञापनदाताओं की आलोचनात्मक कवरेज़ से बच सकते हैं, तथा ईमानदारी की अपेक्षा लाभ को प्राथमिकता दे सकते हैं।

लोकतंत्र में स्वतंत्र और अप्रतिबंधित मीडिया का क्या महत्त्व है?

  • नैतिक शासन: एक स्वतंत्र मीडिया अनैतिक प्रथाओं को उज़ागर करता है, तथा पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के प्रति अधिकारियों को जवाबदेह बनाता है। उदाहरण के लिये, भारत में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 ने पत्रकारों और नागरिकों को सरकारी कार्यों में भ्रष्टाचार और अक्षमताओं को उज़ागर करने का अधिकार दिया है, जिससे अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही आई है।
  • पत्रकारिता की अखंडता: स्वतंत्र मीडिया बाह्य दबावों का प्रतिरोध करता है तथा नैतिक मानक के रूप में सत्य और निष्पक्ष रिपोर्टिंग को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिये, 2G स्पेक्ट्रम घोटाले जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर एक प्रसिद्ध समाचार पत्र की खोजी पत्रकारिता, पत्रकारिता की अखंडता के महत्त्व को उज़ागर करती है।
  • लोक कल्याण: कॉर्पोरेट या राजनीतिक हितों की तुलना में सामाजिक कल्याण को प्राथमिकता देकर, मीडिया सार्वजनिक आख्यानों में नैतिक संरेखण सुनिश्चित करता है। उदाहरण के लिये, स्वच्छ भारत अभियान को व्यापक मीडिया कवरेज़ मिला, जिसने संपूर्ण भारत में स्वच्छता में सुधार के लिये जन जागरूकता और भागीदारी बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • नैतिक जवाबदेही: स्वतंत्र मीडिया शासन और नीतियों की खुली आलोचना को सक्षम बनाता है, तथा सार्वजनिक संवाद में पारदर्शिता और नैतिक प्रतिबिंबन को बढ़ावा देता है। भारतीय मीडिया द्वारा निर्भया मामले की कवरेज़ से महिला सुरक्षा के मुद्दे पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित हुआ तथा ऐसे मामलों से निपटने में महत्त्वपूर्ण कानूनी सुधार और जवाबदेही बढ़ी।
  • सत्ता की जाँच: अप्रतिबंधित मीडिया प्रभावशाली व्यक्तियों और संस्थाओं की नैतिक निगरानी सुनिश्चित करके सत्ता के दुरुपयोग को रोकता है। उदाहरण के लिये, कोयला आवंटन घोटाले को भारतीय मीडिया द्वारा व्यापक रूप से कवर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा और कोयला ब्लॉक आवंटन को रद्द कर दिया गया, जिससे सत्ता में बैठे लोगों की नैतिक जाँच सुनिश्चित हुई।

मीडिया की स्वतंत्रता पर दार्शनिक दृष्टिकोण क्या हैं?

  • उपयोगितावाद: मीडिया में लिये जाने वाले निर्णयों का उद्देश्य सामाजिक कल्याण को अधिकतम करना होना चाहिये। आलोचनात्मक पत्रकारिता को दबाने से कुछ लोगों को लाभ होता है, लेकिन इससे व्यापक जनमानस को नुकसान होता है, क्योंकि इससे सूचनात्मक चर्चा सीमित हो जाती है और सामाजिक चुनौतियों से निपटने में मीडिया की भूमिका कम हो जाती है ।
  • कर्त्तव्यशास्त्र-संबंधी नैतिकता: मीडिया संगठनों का नैतिक कर्त्तव्य है कि वे सत्य और स्वतंत्रता को बनाए रखें। किसी विषय-वस्तु को उसकी योग्यता के बजाय उसके विषय के आधार पर अस्वीकार करना, इस नैतिक ज़िम्मेदारी का सम्मान करने में विफलता को दर्शाता है।
  • सद्गुण नैतिकता: संपादकीय स्वतंत्रता में साहस, ईमानदारी और जवाबदेही जैसे सद्गुण शामिल होते हैं। टेल्नास का इस्तीफा व्यक्तिगत या कॉर्पोरेट लाभ की तुलना में नैतिक सिद्धांतों को प्राथमिकता देने के नैतिक दायित्व को उजागर करता है।
  • रॉल्स का न्याय का सिद्धांत: निष्पक्षता के लिये सभी आवाज़ों के लिये समान अवसर की आवश्यकता है, जिसमें असहमति रखने वाली आवाज़ें भी शामिल हैं। आलोचनात्मक विषय-वस्तु को दबाने से असमान गतिशीलता उत्पन्न होती है, जो सार्वजनिक हित के ऊपर शक्तिशाली हितों को प्राथमिकता देती है।
  • काण्टीय सार्वभौमिकता: प्रभावशाली व्यक्तियों की आलोचनाओं को सेंसर करने जैसी प्रथाएँ सार्वभौमिक रूप से लागू होने पर अक्षम्य हैं, क्योंकि वे स्वतंत्र प्रेस और लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांतों को कमज़ोर करती हैं।

मीडिया की स्वतंत्रता को मज़बूत करने के लिये क्या सुझाव हैं?

  • संपादकीय स्वतंत्रता को संस्थागत बनाना: मीडिया संगठनों को यह सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत नीतियाँ स्थापित करनी चाहिये कि संपादकीय निर्णय कॉर्पोरेट या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहें।
  • पारदर्शिता बढ़ाना: मीडिया संगठनों के भीतर संभावित हितों के टकराव के बारे में प्रकटीकरण को अनिवार्य बनाने से जनता का विश्वास पुनः स्थापित हो सकता है और विश्वसनीयता सुदृढ़ हो सकती है।
  • नैतिक पत्रकारिता को बढ़ावा देना: पत्रकारों और संपादकों के लिये निरंतर नैतिक प्रशिक्षण से उन्हें हितों के टकराव से निपटने और पेशेवर ईमानदारी बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
  • स्वतंत्र मंचों को प्रोत्साहित करना: वैकल्पिक मंचों के माध्यम से स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करना यह सुनिश्चित करता है कि विविध दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व हो और आलोचनात्मक आवाज़ों को सुना जाए।
  • सार्वजनिक वकालत को सशक्त बनाना: जागरूकता अभियान नागरिकों को मीडिया संगठनों से जवाबदेही की मांग करने के लिये सशक्त बना सकते हैं, जिससे अधिक पारदर्शिता और नैतिक मानकों के अनुपालन को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष

एन टेलनेस मामला लोकतंत्र की सुरक्षा में संपादकीय स्वतंत्रता के महत्त्व को रेखांकित करता है। नैतिक पत्रकारिता के लिये कॉरपोरेट और राजनीतिक दबावों के बावजूद भी सत्य और जवाबदेही के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। इन मूल्यों को कायम रखना जनता के विश्वास को बनाए रखने तथा जागरूक एवं सक्रिय नागरिक वर्ग को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है। एक स्वतंत्र मीडिया न केवल लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सत्ता जवाबदेह हो, जिससे समाज में न्याय और समानता के सिद्धांत मज़बूत होते हैं।

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