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डीप फेक में नैतिक दुविधाएँ

  • 28 Nov 2023
  • 3 min read

तेज़ी से तकनीकी प्रगति कर रहे इस युग में, जेनरेटिव एआई अत्यधिक ठोस और यथार्थवादी कॉन्टेंट बनाने की क्षमता के साथ एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरा है, जिसके चलते अक्सर वास्तविकता और बनावट के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है। डीप फेक, जो जेनेरेटिव एआई का ही एक रूप है, ने दुरुपयोग की अपनी क्षमता के कारण नैतिक चिंताएँ बढ़ा दी हैं। इसने न केवल सरकारों बल्कि सिविल सेवकों के लिये भी इसे विनियमित करने और इसमें शामिल नैतिक दुविधाओं का समाधान करने के क्रम में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं, जिन्हें निम्नलिखित घटना के माध्यम से सटीक रूप से समझा जा सकता है।

एक प्रमुख चुनाव के लिये राजनीतिक अभियान चल रहा है और उम्मीदवार मतदाताओं से जुड़ने के लिये विभिन्न अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस संदर्भ में, उन्नत तकनीकी कौशल वाली एक अज्ञात इकाई जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की सहायता से प्रमुख राजनीतिक हस्तियों को प्रदर्शित करते हुए अत्यधिक यथार्थवादी डीप फेक वीडियो बनाती है। ये वीडियो जो कि पूरी तरह से मनगढ़ंत हैं, लोगों को इस प्रकार चित्रित करते हैं कि वे अनैतिक और अवैध गतिविधियों में शामिल प्रतीत होते हैं। डीप फेक को रणनीतिक रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के माध्यम से प्रसारित किया जाता है, जो व्यापक रूप से लोगों की धारणा तथा राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करता है।

विपक्षी उम्मीदवारों के बारे में गलत आख्यान बनाने के बावजूद, ये डीप फेक वीडियो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को प्रदत्त विधायी एवं संवैधानिक सुरक्षा उपायों के विपरीत हैं तथा सीधे तौर पर मज़बूत लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं व चुनावी तंत्र के विरुद्ध हैं। इसके अलावा, यह आदर्श आचार संहिता द्वारा लागू किये गए दायित्वों को भी नज़रअंदाज़ करता है तथा जनता के महत्त्वाकांक्षी प्रतिनिधियों की व्यक्तिगत एवं पेशेवर नैतिकता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

उपरोक्त घटना के संदर्भ में, जेनरेटिव एआई और डीप फेक प्रौद्योगिकियों में निहित नैतिक दुविधा को संबोधित करने में सिविल सेवाओं की भूमिका का आकलन करें।

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