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स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुँच: एक नैतिक अनिवार्यता

  • 03 Oct 2023
  • 2 min read

अनिल एक स्वास्थ्य देखभाल प्रशासक हैं जो निजी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के समन्वय वाले देश में एक सार्वजनिक अस्पताल के प्रबंधन कार्यों में संलग्न हैं। वह जिस सार्वजनिक अस्पताल का प्रबंधन करते हैं वह मुख्य रूप से कम आय वाले लोगों और परिवारों को आवश्यक चिकित्सा सेवाएँ और उपचार उपलब्ध कराता है।

हाल ही में सरकार द्वारा सार्वजनिक अस्पतालों में हाशिये पर स्थित समुदायों की स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच को बढ़ाने के उद्देश्य से चिकित्सा खर्चों पर सब्सिडी प्रदान करने पर आधारित एक नीति प्रस्तुत की गई है। यह नीति स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में समानता लाने के साथ कम आय वाले लोगों पर चिकित्सा सेवाओं के बोझ को कम करने हेतु डिज़ाइन की गई है।

भले ही यह नीति अच्छे इरादे से बनाई गई हो लेकिन इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक अस्पतालों में इलाज हेतु रियायती सेवाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये अधिक समृद्ध पृष्ठभूमि वाले मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। मरीजों की संख्या में होने वाली इस वृद्धि से अस्पताल के संसाधनों पर दबाव में वृद्धि हुई है। इसके कारण भीड़भाड़ होने से चिकित्सा हेतु लोगों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ रहा है और इससे हाशिये पर स्थित एवं कम आय वाले समुदायों की स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता के साथ समझौता हो रहा है। मरीजों को उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि के आधार पर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं से दूर रखना, स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुँच के सिद्धांत के खिलाफ है।

इस संदर्भ में क्या अस्पताल को स्वयं धनी व्यक्तियों द्वारा प्राप्त की जाने वाली सब्सिडी सेवाओं को रोकने हेतु उपाय लागू करने चाहिये या फिर इस नीति को संशोधित किया जाना चाहिये?

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