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न्याय एवं विविधता के बीच संतुलन: उत्तराखंड की UCC यात्रा

  • 22 Feb 2024
  • 2 min read

समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने का उत्तराखंड का ऐतिहासिक निर्णय भारत के कानूनी परिदृश्य में एक मील का पत्थर है, जिससे गहन नैतिक विचार-विमर्श शुरू हुआ है। UCC के प्रवर्तन से सांस्कृतिक बहुलवाद एवं विधिक एकरूपता के साथ व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण के बारे में प्रश्न उठते हैं।

एक ओर इसके समर्थकों का तर्क है कि एक समान विधिक ढाँचे से व्यक्तिगत कानूनों में अंतर्निहित भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करके समानता और न्याय को बढ़ावा मिलेगा। दूसरी ओर इसके आलोचक विविध परंपराओं तथा मान्यताओं के सम्मान एवं महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए, इसके संदर्भ में सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक स्वतंत्रता के संभावित क्षरण के बारे में चिंता व्यक्त करते हैं। इसके अतिरिक्त इससे संबंधित नैतिक निहितार्थ लैंगिक समानता के विचारों तक विस्तारित हैं, क्योंकि UCC मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों में निहित असमानताओं को समाप्त करने पर केंद्रित है।

उत्तराखंड ने इस विधायी सुधार में अग्रणी भूमिका निभाई है इसलिये हमारे समक्ष इन नैतिक दुविधाओं से निपटने तथा न्याय एवं विविधता दोनों को बनाए रखने वाले कानूनी ढाँचे को बढ़ावा देने की राह तलाशने की चुनौती है।

हम यह किस प्रकार सुनिश्चित करें कि UCC से सांस्कृतिक संवेदनशीलता का सम्मान होने के साथ लैंगिक समानता को बढ़ावा मिल सके? इसके अलावा, UCC के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप हाशिये पर रहने वाले समुदायों पर किसी भी प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिए?

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