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एथिक्स


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वैज्ञानिक उन्नति के लिये पशु परीक्षण

  • 16 Oct 2024
  • 17 min read

पशु परीक्षण वैज्ञानिक अनुसंधान का आधार रहा है, जिसने चिकित्सा क्षेत्र में सफलताओं और प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने घातक बीमारियों को समाप्त करने वाले टीके और जीवन रक्षक दवाइयों को विकसित किया है। हालाँकि, यह तकनीक मानवीय लाभ के लिये संवेदनशील प्राणियों के उपयोग के संबंध में गंभीर नैतिक विचार प्रस्तुत करती है तथा ज्ञान और कल्याण की खोज में ऐसे कार्यों की नैतिकता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।

वैज्ञानिक प्रगति के लिये पशु परीक्षण के पक्ष में तर्क क्या हैं?

  • मानवीय पहलू:
    • पशु मानव रोगों के लिये मॉडल के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिससे शोधकर्त्ताओं को रोग की प्रगति का अध्ययन करने, संभावित कारणों की पहचान करने और लक्षित उपचार विकसित करने में सहायता मिलेगी।
      • मधुमेह के लिये इंसुलिन और कैंसर के उपचार जैसी कई चिकित्सा संबंधी उपलब्धियाँ पशु मॉडलों का उपयोग करके विकसित की गईं।
      • तर्क यह है कि अगर इस तरह के परीक्षण से मानव स्वास्थ्य को महत्त्वपूर्ण लाभ मिलता है तो यह उचित है। कोविड-19 महामारी के दौरान सबसे खास बात यह रही कि फाइज़र-बायोएनटेक और मॉडर्ना जैसे टीकों के विकास में जानवरों पर परीक्षण बहुत ज़रूरी था, जिसका परीक्षण गैर-मानव प्राइमेट्स पर किया गया, जिससे स्वास्थ्य संकट के लिये तेज़ी से प्रतिक्रिया करना संभव हुआ।
    • मानव परीक्षण से पहले नई दवाओं की सुरक्षा का मूल्यांकन करने के लिये पशु परीक्षण महत्त्वपूर्ण है। यह संभावित हानिकारक यौगिकों की पहचान करने में सहायता करता है, जिससे मानव स्वयंसेवकों के लिये जोखिम कम हो जाता है।
      • अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन तथा यूरोपीय औषधि एजेंसी जैसी नियामक एजेंसियों को नई दवाओं को स्वीकृति देने से पहले पशु परीक्षण डेटा की आवश्यकता होती है।
  • तकनीकी पहलू:
    • पशु मॉडल का उपयोग ऊतक पुनर्जनन का अध्ययन करने तथा रीढ़ की हड्डी की चोटों, हृदय रोग और ज़ेनोबोट्स जैसी नई स्थितियों के लिये नई चिकित्सा पद्धति विकसित करने के लिये किया जाता है।
      • पुनर्योजी चिकित्सा में स्टेम कोशिकाओं की क्षमता को समझने तथा सुरक्षित और प्रभावी उपचार विकसित करने के लिये पशु परीक्षण आवश्यक है।
    • कृत्रिम अंगों/प्रोस्थेटिक और प्रत्यारोपण जैसे नए चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा एवं प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिये भी पशु परीक्षण का उपयोग किया जाता है।
  • पर्यावरणीय पहलु:
    • पशु परीक्षण का उपयोग रसायनों और अन्य पदार्थों की विषाक्तता का आकलन करने के लिये  किया जा सकता है, जिससे उत्पादों तथा पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है।
      • इन अध्ययनों में औद्योगिक अपशिष्ट, प्रदूषकों या कृषि अपवाह जैसे रसायनों के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों की जाँच के लिये पशु मॉडल का उपयोग किया जाता है।
      • वे यह निर्धारित करने में सहायता करते हैं कि क्या ये पदार्थ खाद्य शृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं, जैव विविधता को नुकसान पहुँचा सकते हैं या आवासों को प्रभावित कर सकते हैं।
  • नैतिक रूपरेखा:
    • वैज्ञानिक जानवरों पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिये "Three Rs" सिद्धांत (रिडक्शन, रिफाइनमेंट और रिप्लेसमेंट) का पालन करते हैं। इस नैतिक दिशा-निर्देश का उद्देश्य है:
      • प्रयोगों में इस्तेमाल किये जाने वाले जानवरों की संख्या कम करना।
      • पीड़ा कम करने के लिये प्रयोगात्मक तकनीकों को परिष्कृत करना।
      • जहाँ भी संभव हो, पशु मॉडल को गैर-पशु विकल्पों से बदलना।

पशु परीक्षण से जुड़ी नैतिक चिंताएँ क्या हैं?

  • पशु कल्याण और पीड़ा: प्राथमिक नैतिक मुद्दों में से एक पशुओं को दर्द, पीड़ा और संकट पहुँचाने की क्षमता है। कई प्रयोगों से जानवरों को बहुत नुकसान पहुँच सकता है या उनके जीवन की गुणवत्ता कम हो सकती है।
    • प्रयोगशाला पशुओं को ऐसे वातावरण में रखा जा सकता है जो उनकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता, जिससे तनाव और हानि होती है।
  • वैज्ञानिक वैधता: आलोचक यह भी कहते हैं कि प्रजातियों में अंतर के कारण पशु परीक्षण के परिणाम हमेशा मनुष्यों पर सीधे लागू नहीं हो सकते हैं। 
    • इससे पशु परीक्षण की विश्वसनीयता और आवश्यकता पर सवाल उठते हैं।
  • जैव विविधता पर प्रभाव: पशु परीक्षण प्रजातियों की कमी और आवास विनाश का कारण बनकर जैव विविधता को प्रभावित करता है। विशिष्ट प्रजातियों के परीक्षण से जनसंख्या में कमी आती है जबकि सुविधाएँ प्राकृतिक आवासों को बाधित कर सकती हैं।
    • यह प्रथा पारिस्थितिकी असंतुलन उत्पन्न करती है, जिसका असर खाद्य जाल और अन्य जीवों पर पड़ता है। इसके अतिरिक्त, सीमित प्रजातियों पर निर्भर रहने से आनुवंशिक विविधता कम हो जाती है, जिससे पर्यावरणीय परिवर्तनों और बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • पशुओं के उपयोग का व्यापक संदर्भ: पशुओं का उपयोग परीक्षण से आगे बढ़कर भोजन, वस्त्र, मनोरंजन और संगति में उनकी भूमिका तक फैल जाता है, जिससे इन क्षेत्रों में उनके उपचार तथा अधिकारों के विषय में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • केवल पशु परीक्षण पर ध्यान केंद्रित करने से अक्सर कृषि और मनोरंजन में पशु शोषण से जुड़े व्यापक नैतिक मुद्दों से ध्यान भटक जाता है, जिससे सभी संदर्भों में पशुओं के साथ किस प्रकार व्यवहार किया जाता है, इसका व्यापक मूल्यांकन करने की आवश्यकता पर बल मिलता है।

वैज्ञानिक उन्नति के लिये पशु परीक्षण पर केस स्टडीज़

  • सफल परिणाम:
    • इंसुलिन विकास: मधुमेह के लिये इंसुलिन विकसित करने में कुत्तों के साथ पशु परीक्षण महत्त्वपूर्ण था क्योंकि शोधकर्त्ताओं ने रोग का अध्ययन करने और प्रभावी उपचार बनाने के लिये मधुमेह कुत्तों में लक्षणों का निरीक्षण किया।
    • पोलियो वैक्सीन: बंदरों ने जोनास साल्क के पोलियो वैक्सीन के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे शोधकर्त्ताओं को पोलियोवायरस का अध्ययन करने और वैक्सीन की प्रभावकारिता का परीक्षण करने में सहायता मिली।
    • एंटीबायोटिक्स: पेनिसिलिन और टेट्रासाइक्लिन जैसे एंटीबायोटिक्स की खोज में पशु परीक्षण आवश्यक रहा है, जिससे शोधकर्त्ताओं को संक्रामक रोगों का अध्ययन करने तथा प्रभावी उपचारों की पहचान करने में सहायता मिली।
  • विफलताएँ:
    • थैलिडोमाइड त्रासदी: थैलिडोमाइड, जिसका परीक्षण गर्भवती चूहों पर शामक और मतली-रोधी दवा के रूप में किया गया था, के परिणामस्वरूप हज़ारों शिशुओं में गंभीर जन्मजात असामान्यताएँ उत्पन्न हुईं। इसके टेराटोजेनिक प्रभावों की पहचान करने में पशु परीक्षण की विफलता ने प्रमुख नैतिक विवाद को उत्पन्न किया और पशु परीक्षण प्रथाओं का पुनर्मूल्यांकन किया।
    • Vioxx: इस दर्द निवारक दवा को वर्ष 2004 में बाज़ार से वापस ले लिया गया था, क्योंकि अध्ययनों में इसे दिल के दौरे और स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से जोड़ा गया था। जबकि जानवरों पर किये गए परीक्षणों में किसी भी महत्त्वपूर्ण हृदय संबंधी जोखिम का संकेत नहीं मिला था, लेकिन मनुष्यों में किये गए नैदानिक ​​परीक्षणों से दवा के खतरनाक दुष्प्रभावों का पता चला।

पशु परीक्षण पर दार्शनिक दृष्टिकोण क्या हैं?

  • उपयोगितावाद: यह कार्यों की नैतिकता का मूल्यांकन उनके परिणामों के आधार पर करता है तथा तर्क देता है कि यदि कोई कार्य समग्र खुशी को अधिकतम करता है तथा दुख को न्यूनतम करता है तो वह सही है।
    • पशु परीक्षण की समीक्षा करते समय, उपयोगितावादी पशु पीड़ा के विरुद्ध चिकित्सा उपलब्धियों को मापते हैं और इसे स्वीकार्य मानते हैं यदि बीमारी के उपचार जैसे लाभ, उत्पन्न पीड़ा से अधिक हैं। आलोचकों का कहना है कि यह तर्क कई लोगों के लाभ के लिये कुछ लोगों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाने को उचित ठहरा सकता है।
  • कर्त्तव्य-संबंधी नैतिकता (अधिकार-आधारित दृष्टिकोण): इमैनुअल कांट के दर्शन पर आधारित, कर्त्तव्य-संबंधी नैतिकता इस तर्क पर ज़ोर देती है कि परिणाम की परवाह किये बिना नियमों के पालन के आधार पर कार्य नैतिक रूप से सही हैं।
    • इमैनुअल कांट ने तर्क दिया कि यद्यपि पशु नैतिक नहीं हैं और उनमें तर्कशीलता का अभाव है, फिर भी उनके प्रति क्रूरता नैतिक रूप से गलत है, क्योंकि इससे मानव चरित्र का ह्रास होता है, भले ही परीक्षण से लाभकारी परिणाम प्राप्त हों।
  • पारिस्थितिकी-केंद्रित नैतिकता: पर्यावरण नैतिकता में निहित यह दृष्टिकोण नैतिक समुदाय का विस्तार करके संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र और प्रजातियों को शामिल करता है। दार्शनिकों का तर्क है कि जानवरों पर किये जाने वाले परीक्षण का मूल्यांकन पारिस्थितिकी संतुलन पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के आधार पर किया जाना चाहिये। यदि यह पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है या प्रजातियों को नुकसान पहुँचाता है, तो इसे नैतिक रूप से अस्वीकार्य माना जाता है, जो मानव-केंद्रितता को चुनौती देता है और मानव-केंद्रित लाभों पर स्थिरता को प्राथमिकता देता है।
  • पशु मुक्ति और पशु अधिकार सिद्धांत: ये सिद्धांत इस बात पर ज़ोर देते हैं कि पशुओं का आंतरिक मूल्य है और उन्हें मनुष्यों के समान अधिकार दिये जाने चाहिये।
  • प्रजातिवाद की आलोचना: यह अवधारणा प्रजातिवाद को नस्लवाद और लिंगवाद के बराबर मानती है तथा इस धारणा को चुनौती देती है कि मनुष्य अन्य प्रजातियों की तुलना में उच्च नैतिक स्थिति रखता है।
    • इस दृष्टिकोण से, पशु परीक्षण को नैतिक रूप से गलत माना जाता है क्योंकि यह गैर-मानव प्रजातियों के खिलाफ अन्यायपूर्ण भेदभाव करता है, जो उनके नैतिक महत्त्व के पुनर्मूल्यांकन और मनमाने भेदभाव के आधार पर पीड़ा का कारण बनने वाली प्रथाओं को समाप्त करने का समर्थन करता है।

पशु अनुसंधान और मध्य मार्ग की आवश्यकता

  • Three Rs: "3Rs" सिद्धांत का पालन करना। इसका अर्थ है कि जब भी संभव हो, पशु परीक्षण के स्थान पर वैकल्पिक पद्धतियों का इस्तेमाल करना, इस्तेमाल किये जाने वाले पशुओं की संख्या को कम करना और पशुओं की पीड़ा को कम करने के लिये पद्धतियों को परिष्कृत करना।
  • नैतिक दिशानिर्देश: पशु अनुसंधान के लिये सख्त नैतिक दिशानिर्देश विकसित करना और उनका क्रियान्वयन करना, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पशुओं के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए तथा उनकी पीड़ा को न्यूनतम किया जाए।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: पशु अनुसंधान प्रथाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना और पशुओं के प्रति उनके व्यवहार के लिये शोधकर्त्ताओं को जवाबदेह बनाना महत्त्वपूर्ण है।
    • इसमें यूनाइटेड किंगडम के पशु अनुसंधान पर खुलेपन पर समझौते जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर करना शामिल है, जो संगठनों को अनुसंधान में पशुओं के उपयोग के बारे में खुले तौर पर संवाद करने के लिये प्रतिबद्ध करता है और इसमें शामिल नैतिक विचारों के बारे में सार्वजनिक समझ को बढ़ावा देता है।
  • पशु परीक्षण से संबंधित चिंताओं को दूर करने तथा नैतिक प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये खुले संवाद और सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है।
  • पशु परीक्षण के विकल्प: इन विट्रो अध्ययन और कंप्यूटर सिमुलेशन जैसे गैर-पशु परीक्षण विधियों का विकास, पशु परीक्षण के लिये आशाजनक विकल्प प्रस्तुत करता है।
    • हालाँकि, ये तरीके तुरंत पशु परीक्षण की जगह नहीं ले सकते। जहाँ संभव हो, वहाँ वैकल्पिक पद्धतियों का इस्तेमाल करते हुए धीरे-धीरे बदलाव करना और जब बिल्कुल जरूरी हो, तब पशु परीक्षण को बरकरार रखना एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है।
  • विनियामक सुधार: मान्य वैकल्पिक पद्धतियों के उपयोग को अनुमति देने और प्रोत्साहित करने के लिये विनियमों को अद्यतन करने की आवश्यकता है। इसमें वैकल्पिक पद्धतियों का उपयोग करके परीक्षण की गई दवाओं के लिये नए अनुमोदन मार्ग बनाना शामिल हो सकता है।
  • मामला-दर-मामला मूल्यांकन: व्यापक नीतियों के बजाय प्रत्येक शोध प्रस्ताव का मूल्यांकन उसके गुणों के आधार पर किया जा सकता है तथा नैतिक लागतों के विरुद्ध संभावित लाभों का मूल्यांकन किया जा सकता है।

निष्कर्ष

पशु परीक्षण से जुड़े नैतिक विचार जटिल और बहुआयामी हैं। पशु कल्याण की रक्षा के लिये नैतिक दायित्वों के विरुद्ध मानव स्वास्थ्य के संभावित लाभों को संतुलित करना एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है जो सामाजिक मूल्यों और वैज्ञानिक समझ में बदलाव के साथ विकसित होता रहता है। इन नैतिक निहितार्थों को संबोधित करने के लिये एक विचारशील और सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो मनुष्यों एवं गैर-मानव प्रजातियों दोनों के हितों का सम्मान करता है।

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