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भारतीय अर्थव्यवस्था

अध्याय: 5

  • 04 Nov 2019
  • 11 min read

मत्स्य न्याय का समापनः निचली न्यायपालिका की क्षमता कैसे बढाएं

प्रस्तावना

ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों (District and Subordinate Courts) में कुल लंबित मामलों के87.54 प्रतिशत मामले हैं, इस अध्याय में इस संदर्भ पर प्रकाश डाला जाएगा तथा निपटान अवधि, लंबित अवधि, मामलों के प्रकारों और मामला निस्तारण दर जैसे मानकों के संबंध में इसके निष्पादन का मूल्यांकन किया जाएगा। इस अध्याय में 100 प्रतिशत निस्तारण दर हासिल करने तथा अगले पाँच वर्षों में लंबित मामलों के स्टॉक को समाप्त करने के लिये न्यायालयों के विभिन्न स्तरों पर अतिरिक्त न्यायाधीशों की आवश्यकता और कार्यक्षमता वर्द्धन का विश्लेषण भी किया जाएगा।

परिचय

  • भारतीय न्यायिक प्रणाली में 3.53 करोड़ से अधिक मामले लंबित है।
  • भारत के संविधान की उद्देशिका यह परिभाषित करती है कि राज्य की प्रथम भूमिका ‘इसके सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय सुनिश्चित करना है’। दूसरे शब्दों में, इसे पूर्ण रूप से स्वीकार किया जाता है कि आर्थिक सफलता और समृद्धि की संविदाओं को लागू करने और विवादो का समाधान करने की सामर्थ्य से काफी अधिक सहबद्धता है।

भारतीय न्याय व्यवस्था (Indian Judicial System):

लंबित मामले

Pendency

pending cases

  • किसी दी गई तारीख को किसी मामले का लंबित रहना उस मामले को दायर करने की तारीख से उस तारीख तक लगने वाला समय माना जाएगा।
  • सभी मामलों में से 64 प्रतिशत से अधिक मामले एक वर्ष से ज्यादा अवधि से लंबित हैं।
  • सिविल और आपराधिक दोनों ही प्रकार के मामलों में राष्ट्रीय औसतों की तुलना में ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और गुजरात में लंबित मामलों का औसत उच्चतर है जबकि पंजाब और दिल्ली में लंबित मामलों का औसत सबसे कम है।

निपटान

Disposal

  • मामला दायर करने की तारीख से लेकर निर्णय सुनाए जाने तक की तारीख तक लगने वाले समय को निपटान समय के रूप में मापा जाता है।
  • 74.7 प्रतिशत सिविल मामलों और 86.5 प्रतिशत आपराधिक मामलों का निपटान तीन वर्ष की अवधि के भीतर कर दिया जाता है।
  • सिविल और आपराधिक दोनों मामलों में बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक निपटान समय लगता है। इसके अलावा, पंजाब और दिल्ली में औसत निपटान समय सबसे कम है।
  • जब काउंसिल ऑफ यूरोप के सदस्यों के औसत (2016) की तुलना वर्ष 2018 में भारतीय डीएंडएस न्यायालयों में सिविल और आपराधिक मामलों के लिये औसत निपटान समय के साथ की गई, तब यह क्रमशः 4.4 गुना था और 6-गुना अधिक था।

मामला निस्तारण दर

Case Clearance Rate (CCR)

  • किसी वर्ष में दायर मामलों की संख्या की तुलना में उस वर्ष में निपटान किये गए मामलों की संख्या के अनुपात को मामला निस्तारण दर (सीसीआर) कहते हैं। इसे प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है।
  • सीसीआर 2015 में 86.1 प्रतिशत की तुलना में 2017 में बढ़कर 90.5 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, परंतु 2018 में फिर गिरकर 88.7 प्रतिशत रह गई।
  • भारत में सिविल मामलों और आपराधिक मामलों के लिये मामला निस्तारण दर 2018 में क्रमशः 94.76 प्रतिशत और 87.41 प्रतिशत थी, जबकि
  • सीओई सदस्य 2016 में ही सिविल और आपराधिक दोनों मामलों के लिये 100 प्रतिशत से अधिक निस्तारण दर हासिल कर चुके थे।

विधिक गतिरोध को समाप्त करना

Clearing the Legal Logjam

  • न्यायपालिका को अधिक कार्यक्षम बनाने के लिये फिलहाल दो मुख्य मुद्दों का समाधान करने की आवश्यकता
    • पहला, 100 प्रतिशत निस्तारण दर हासिल करना ताकि मौजूदा लंबित वादों में आगे कोई वृद्धि न हो।
    • दूसरा, प्रणाली में पहले से मौजूद मामलों के बैकलॉग को समाप्त करना।
  • वर्तमान दक्षता पर सरल इनपुट-आउटपुट मॉडल का उपयोग करके निम्नलिखित गणना की गई है:
Supreme Court High Court D&S Court
Pendency 56.2 Lakh 40.22 Lakh 3.04 Crore
Case Clearance Rate 98% 88% 89%
Annual Disposal Rate (per judge) 1,179 case 2,348 case 746 case
Additional Judges required to achieve 100% Clearance in a year 1 93 2279
Additional Judges required to clear all backlog in 5 years. 8 361 8,152


भारतीय न्यायालयों को और अधिक कार्यशील बनाना

दक्षता और रिक्तियाँ भारतीय न्यायिक प्रणाली के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले दो महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं और इसमें सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है। इनके अलावा, न्यायपालिका के प्रदर्शन को बेहतर बनाने हेतु कुछ सुझावों पर नीचे चर्चा की गई है।

  • कार्य दिवसों की संख्या बढ़ाना: भारतीय अदालतें छुट्टियों के कारण लंबी अवधि के लिये बंद हो जाती हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट एक वर्ष में केवल 190 दिन काम करता है। कार्य दिवसों की संख्या बढाकर सर्वोच्च न्यायालय और कुछ उच्च न्यायालयों के प्रदर्शन में महत्त्वपूर्ण सुधार किया जा सकता है, जबकि इस निर्णय से निचली अदालतों के अप्रभावित रहने की संभावना है क्योंकि उनके औसत कार्य दिवस लगभग सरकारी विभागों के समान ही हैं।
  • भारतीय न्यायालयों और अधिकरण सेवाओं की स्थापनाः अधिकतर न्यायिक सुधारों का रुझान न्यायाधीशों की गुणवत्ता और संख्या पर ही विशेष ध्यान देने वाला रहा है, परंतु प्रमुख समस्या न्यायालयों की प्रणाली, प्रमुखतया अनुषंगी एवं अप्रत्यक्ष कार्यप्रणालियों और प्रक्रियाओं के प्रशासन की गुणवत्ता से सहबद्ध है। वर्तमान प्रणाली में, भारतीय न्यायालयों में प्रशासन की मुख्य जिम्मेदारी मुख्य न्यायिक अधिकारी को सौंपी गई है। उसके पास इस कार्य के लिये अत्यधिक कम समय होने के अलावा, यह अवधारणा प्रणालीगत सुधारों और प्रशासनिक सुधारों संबंधी संस्थागत ज्ञान के क्रमिक संचय में सहायक नहीं है। इस संदर्भ में, भारतीय न्यायालय और अधिकरण सेवा (आईसीटीएस) नामक विशिष्ट सेवा का सृजन करने का प्रस्ताव किया गया है जो विधिक प्रणाली के प्रशासनिक पहलुओं पर विशेष ध्यान देती है। आईसीटीएस द्वारा अदा की जाने वाली प्रमुख भूमिकाएँ:
  1. न्यायपालिका द्वारा आवश्यक प्रशासनिक सहायता प्रदान करना
  2. प्रक्रिया की अक्षमताओं की पहचान करना और कानूनी सुधारों पर न्यायपालिका को सलाह देना
  3. प्रक्रिया पुनःअभियांत्रिकी का क्रियान्वयन।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोगः प्रौद्योगिकी से न्यायालय की क्षमता में काफी सुधार आ सकता है।

eCourts परियोजना:

  • इसे राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस मिशन के तहत कानून और सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों का डिजिटलीकरण और साथ ही उच्च स्तर पर आईसीटी का उन्नयन करना है।

राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड

  • यह प्रणाली अधिकतर मामलों, उनकी स्थिति और प्रगति संबंधी सूचना प्रस्तुत करने का सामर्थ्य रखती है।

मेन्स के लिये कीवर्ड

मत्स्य न्याय थ्योरी: अराजकता की अवधि में, जब कोई शासक नहीं होता है, शक्तिशाली व्यक्ति कमजोर व्यक्ति को नष्ट करता है, जैसे- सूखे की अवधि में बड़ी मछली छोटी मछली खाती है। इस प्रकार, एक शासक की आवश्यकता को निरपेक्ष रूप में देखा गया था। बस, हम इसे मछली / जंगल का नियम कहते हैं।

महत्त्वपूर्ण तथ्य और रुझान

  • सभी लंबित मामलों के 87.54% मामले D&S कोर्ट में हैं।
  • आपराधिक मामलों (71.62%) की पेंडेंसी सिविल मामलों (28.38) से लगभग 2.5 गुना अधिक है और आपराधिक मामलों में D&S अदालतों में CCR भी कम है।
  • CCR 2015 में 86.1% से बढ़कर 2017 में 90.5% हो गया था, लेकिन फिर 2018 में घटकर 88.7% रह गया।
  • गुजरात और छत्तीसगढ़ को 2018 में 100% से अधिक की निपटान दर है।

नोट: रुझानों पर ध्यान दें और सटीक आंकड़ों पर नहीं।

मेन्स के लिये महत्त्वपूर्ण प्रश्न

Q1. "भारत में व्यापार करने में आसानी के लिये सबसे बड़ी बाधा अब अनुबंधों को लागू करने और विवादों को हल करने की क्षमता है।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में, जाँच करें कि हमारे देश में कानूनी लॉगजाम को कैसे दूर किया जा सकता है?

Q2. देश की आर्थिक सफलता और समृद्धि इसके न्यायिक और कानूनी परिदृश्य से निकटता से जुड़ी हुई है। अर्थव्यवस्था पर मामलों की पेंडेंसी के निहितार्थ पर चर्चा करें?

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