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आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20

भारतीय अर्थव्यवस्था

अध्याय-6 (Vol-2)

  • 23 Jun 2020
  • 22 min read

संधारणीय विकास और जलवायु परिवर्तन

प्रस्तावना: 

  • वर्ष 2019 में संधारणीय विकास हेतु एजेंडा-2030 और पेरिस समझौते को अपनाए हुए 4 वर्ष पूरे हो गए है। 
  • भारत संधारणीय विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) के कार्यान्वयन के लक्ष्यों पर आगे बढ़ रहा है। 
  • राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों का श्रेणी निर्धारण 16 SDG लक्ष्यों के अंतर्गत इनके संपूर्ण कार्य निष्पादन के आधार पर किया जाता है।
  • SDG प्राप्तांक 0 से 100 अंकों तक की सीमा में होते हैं।
    • 100 अंकों के प्राप्तांक का अभिप्राय है कि ऐसे राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों ने वर्ष 2030 के लिये निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कर लिये हैं। 
    • 0 प्राप्तांक का अभिप्राय है कि संबंधित राज्य/संघ राज्य क्षेत्र तालिका में सबसे नीचे है।

भारत और संधारणीय विकास लक्ष्य: 

  • योजनाओं की एक व्यापक व्यूहरचना के कार्यान्वयन द्वारा भारत संधारणीय विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये एक समग्रतामूलक अवधारणा का अनुसरण करता है। संधारणीय विकास लक्ष्यों (SDG) की दिशा में की गई प्रगति का आकलन एसडीजी इंडिया इंडेक्स-2019 द्वारा किया गया है।
  • समग्र रूप में यह देखा गया है कि भारत के लिये समग्र प्राप्तांक वर्ष 2018 में 57 से सुधरकर वर्ष 2019 में 60 हो गया है।
  • लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में यह धनात्मक छलांग पाँच लक्ष्यों जैसे- SDG-6 (स्वच्छ जल स्वच्छता), SDG-7 (वहनीय एवं स्वच्छ ऊर्जा), SDG-9 (उद्योग, नवीकरणीय और अवसंरचना), SDG-15 (भूमि पर जीवन) तथा SDG-16 (शांति, न्याय एवं सामाजिक संस्थाएँ) के अंतर्गत देशव्यापी कार्यनिष्पादन द्वारा व्यापक रूप से प्रेरित है जहाँ भारत द्वारा 65 और 99 के बीच अंक हासिल किये गए हैं।
  • वही दो लक्ष्यों जिनमें समग्र प्राप्तांक 50 से नीचे है उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है इनमें शामिल है: SDG-2 (भूख के स्तर को शून्य पर लाना) और SDG-5 (लैंगिक समानता)
  • समग्र रूप में देश का प्राप्तांक 50 और 64 के बीच है जिसमें आगामी वर्षों में सुधार हो सकता है।

SDG गठजोड़: एक निदर्शी उपागम

  • नेक्सस या गठजोड़ दृष्टिकोण विभिन्न क्षेत्रों एवं पैमानों पर प्रबंधन व शासन को एकीकृत करने पर बल प्रदान करता है। 
  • यह एप्रोच व्यक्तिगत घटकों या अल्पकालिक परिणामों के बजाय पूरी व्यवस्था के आत्मावलोकन की आवश्यकता पर बल देती है अन्य क्षेत्रों से अंतर-संबंधित फीडबैक को देखने और दुर्लभ संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा को कम करते हुए क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देती है।

चुनिंदा क्षेत्रों में नेक्सस के निम्नलिखित उदाहरण हैं:

  • शिक्षा एवं विद्युत का संबंध: विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के संबंध में बिजली बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं का एक अहम हिस्सा है। यह देखा गया है कि बिजली की सहायता से विद्यालयों को आधुनिक तरीकों एवं शिक्षण तकनीकों तक पहुँच से छात्रों के समग्र विकास में मदद मिलती है और अधिगम के प्रति उनका आकर्षण बढ़ता है। 
  • स्वास्थ एवं ऊर्जा क्षेत्र: बहुत सी स्वास्थ्य सुधार योजनाएँ-बाल चिकित्सा देखभाल, आपातकालीन सेवाएँ और सफल टीकाकरण प्रदान करना स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली की उपलब्धता पर बहुत अधिक निर्भर करती है। 

जलवायु परिवर्तन: 

  • भारत द्वारा देश की विकासात्मक आवश्यकताओं/अनिवार्यताओं को ध्यान में रखते हुए पेरिस समझौते के तहत ‘सर्वश्रेष्ठ प्रयास के आधार’ पर अपना ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (Nationally Determined Contribution-NDC) प्रस्तुत किया गया।
  • NDC में भारत ने वर्ष 2005 की तुलना में वर्ष 2030 तक अपनी GDP में उत्सर्जन की तीव्रता के स्तर को 33 से 35% कम करने तथा वर्ष 2030 तक कुल बिजली उत्पादन स्थापित क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने और इसके वन एवं वृक्ष आच्छादन को बढ़ाकर 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन-डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिये कार्बन सिंक क्षमता निर्माण का वादा किया है।

भारत की जलवायु परिवर्तन नीतियों में प्रगति:

  • भारत द्वारा वर्ष 2008 में प्रारंभ जलवायु परिवर्तन पर ‘राष्ट्रीय कार्य योजना’ (NAPCC) कई ऐसे उपायों की पहचान करती है जो संकेंद्रित राष्ट्रीय मिशनों के माध्यम से देश के विकास और जलवायु परिवर्तन से संबंधित अनुकूलन एवं शमन उद्देश्य को आगे बढ़ाती हैं।
    • यह योजना महत्त्वपूर्ण अनुकूलन आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करने और वैज्ञानिक ज्ञान एवं तत्परता के निर्माण के लिये भी बनाई गई थी क्योंकि जलवायु परिवर्तन मौजूदा सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों को बिगाड़ते हुए अतिसंवेदनशील वर्गों के लिये ‘जोखिम गुणक’ के रूप में कार्य करती है।
  • भारत ने पेरिस समझौते के तहत NDC के अनुरूप NAPCC को संशोधित करने का फैसला किया है ताकि इसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के संदर्भ में अधिक व्यापक बनाया जा सके। इसके लिये निम्नलिखित राष्ट्रीय मिशनों के तहत कार्य किया जा रहा है जो इस प्रकार है:
    • राष्ट्रीय सौर मिशन 
    • राष्ट्रीय जल मिशन 
    • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन 
    • राष्ट्रीय संधारणीय आवास मिशन 
    • संधारणीय कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन 
    • हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को सपोषित करने के लिये रक्षोपाय के लिये उपयुक्त प्रबंधन एवं नीतिगत उपाय विकसित करना है। 
    • जलवायु परिवर्तन के लिये रणनीतिक ज्ञान संबंधित राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत एक ऐसा ज्ञानतंत्र सृजित करने की कोशिश की जाती है जो पारिस्थितिकीय रूप से संधरणीय विकास सूचित करेगा और उसमें सहायता करेगा।  

वित्तीय प्रणाली के साथ संधारणीयता को एकरूप करना:

  • दिसंबर 2007 में RBI ने भारत के बैंकों को विविध अंतरराष्ट्रीय पहल की तरफ सुग्राही बनाया तथा उन्हें कहा गया कि वे स्वयं को संधारणीयता के क्षेत्र में विकास के साथ ले चले और ऐसे विकास के आलोक में अपनी उधार देने वाली कार्य नीतियों/योजनाओं का क्रमवेशन करें।
  • वर्ष 2012 में भारतीय प्रतिभूति विनियम बोर्ड (सेबी) ने वार्षिक व्यापार उत्तरदायित्व रिपोर्टिंग (ए.बी.आर.आर.) का ढाँचा जारी किया। यह एक रिपोर्टिंग ढाँचा है जो कोर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा व्यापार के सामाजिक, पर्यावरणीय तथा आर्थिक उत्तरदायित्वों पर जारी राष्ट्रीय स्वैच्छिक दिशा-निर्देशों पर आधारित है।
  • वर्ष 2011 में भारतीय कोर्पोरेट कार्य संस्थान ने कोर्पाेरेट क्षेत्र द्वारा अंगीकार करने के लिये NVG (National Voluntary Guidelines on Social, Environmental and Economic Responsibilities of Business) नामक संकल्पना विकसित की। सेबी ने बैंकों सहित सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों को NVG को अंगीकार करने का आदेश दिया।
  • वर्ष 2014-15 में भारतीय बैंक संघ (IBA) द्वारा उत्तरदायित्व पूर्ण वित्तीयन की संकल्पना सृजित करने के लिये एक कार्यकारी समूह की स्थापना की। कार्यकारी समूह ने ‘उत्तरदायित्व पूर्ण वित्तीयन के लिये NVG दिशा निर्देशों को अंतिम रूप दिया।
  • इन दिशा-निर्देशों ने 8 सिद्धांत निर्धारित किये हैं जो सूचित व्यावसायिक कार्यों के विविध पर्यावरणीय, सामाजिक और सुशासन उत्तरदायित्वों के पहलुओं को दर्शाते हैं। 
  • हरित बाॅण्ड (ग्रीन बाॅण्ड) ऋण प्रतिभूति होते हैं जो सार्वजनिक संस्थानों द्वारा जारी किये जाते है जहाँ आय का 100% उपयोग हरित परियोजनाओं और अस्तियों के वित्तपोषण के लिये किया जाता है। 
  • वर्ष 2019 के पूर्वार्ध में संधारणीयता/एस डी जी बाॅण्डों ने यू.एस. $ 10.3 बिलियन के लेन-देन के साथ व्यापक लेबल बाज़ार में अपना स्थान सुरक्षित बनाए रखा है।   
  • सामाजिक बाॅण्डों ने भी लेबल बाज़ार में यू.एस. $ 5.5 बिलियन जारी करके अपनी दृश्यता बरकरार रखी। 
  • पर्यावरणीय रूप से संधारणीय निवेश में प्रवर्द्धन के लिये भारत ने अक्तूबर, 2019 में अंतर्राष्ट्रीय संधारणीय वित्तपोषण मंच में भाग लिया है। यह मंच वित्तीय बाजारों की वैश्विक प्रकृति की स्वीकृति देता है जिसमें निधियन के वैश्विक स्रोत वित्त संबंधी आवश्यकताओं को मिला कर हरित, निम्न कार्बन एवं जलवायु प्रत्यास्थी अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने के लिये वित्तीय सहायता करने में सक्षम हो। 

भारत और COP-25:

  • UNFCCC के पक्षकारों के सम्मेलन का 25वाँ सत्र चिली की अध्यक्षता में मैड्रिड, स्पेन में आयोजित किया गया।
  • भारत ने पेरिस समझौते को क्रियान्वित करने तथा जलवायु परिवर्तन का सामूहिक रूप से सामना करने के अपने संकल्प को दोहराया जिसमें औचित्य एवं सामान्य सिद्धांतों पर विचार करना, परंतु उत्तरदायित्वों एवं संबंधित क्षमताओं में अंतर करना शामिल है। 
  • COP-25 के अंतिम निर्णयों में शीर्षक ‘चिली मैड्रिड टाइम फॅार एक्शन’ में उन अनुवर्ती चुनौतियों पर बल दिया है जिसका सामना विकासशील देश वित्तीय प्रौघोगिकीय एवं क्षमता निर्माण सहायता के निर्धारण के दौरान करते हैं तथा अपने राष्ट्रीय अनुकूलन एवं न्यूनीकरण प्रयासों को मजबूत करने के लिये विकासशील देशों की सहायता करने के प्रावधान में वृद्धि करने की अत्यावश्यक जरूरत की पहचान करते हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहल:

(a) अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन:

  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) पहला संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन है जिसका मुख्यालय भारत में है।
  • ISA का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 1000 बिलियन यूएस डालर की राशि जुटा कर सदस्य देशों की मांगों के लिये भावी सौर ऊर्जा उत्पादन, भंडारण एवं प्रौघोगिकियों के लिये रास्ता प्रशस्त करना है।

(b) आपदा सह्य आधारिक संरचना के लिये समूह:

  • भारत द्वारा सितंबर 2019 मेें आयोजित यूएन महासचिव की जलवायु कार्रवाई सम्मेलन के दिशा-निर्देशों पर आपदा सह्य आधारिक संरचना (CDRI) के लिये समूह बनाया है।
  • CDRI का लक्ष्य आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं पेरिस जलवायु समझौते के लिये सेंदाई ढाँचे के अनुरूप कार्य करते हुए मूल सेवाओं तक सार्वभौमिक अभिगम का विस्तार करने के उद्देश्यों की प्राप्ति तथा एसडीजी को सक्षम बनाना है।
  • राष्ट्रीय सरकारों यूएन एजेंसियों, बहुपक्षीय विकास बैंकों, निजी क्षेत्र एवं ज्ञान आधारित संस्थाओं की यह अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी जलवायु एवं आपदा जोखिमों के लिये नए एवं मौजूदा आधारित संरचना प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ावा देगी जो संधारणीय विकास को सुनिश्चित करने में मददगार करने में साबित होगी।

भारत और यूएनसीसीडी:

  • भारत ने 2-13 सितंबर, 2019 के मध्य मरूस्थलीकरण से निपटने के लिये COP-14 के सत्र की मेजबानी की।
  • इस अवसर पर ‘भूमि बचाओ भविष्य बचाओ’ के नारे के साथ COP-14 के सम्मेलन की परिकल्पना की गई।
  • इस सम्मेलन में भारत ने कहा कि मानवीय क्रियाकलापों के कारण पर्यावरण बदलाव, भूमि अवक्रमण और जैव विविधता की क्षति में तीव्रता आई है। अतः मज़बूत इरादे एवं प्रौघोगिकी का सही उपयोग करते हुए इसकी भरपाई की जा सकती है।
  • UNCCD में एक पक्षकार के रूप में भारत ने स्वैच्छिक रूप से प्रतिबद्धता जाहिर की है कि भूमि क्षरण की स्थिति की ठीक करने के लिये अब से वर्ष 2030 के बीच 21 मिलियन से 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि को इस स्थिति से बाहर निकाला जाएगा।

भारत और इसके वन:

  • विश्व में भारत उन देशों में शामिल है जहाँ विकास कार्यों के बावजूद वन क्षेत्र में वृद्धि सकारात्मक रूप से बढ़ी है।
  • वितान वृक्ष की संख्या के संदर्भ में अति सघन वन (VDF) का क्षेत्र 99,278 वर्ग कि.मी. (3.02%) है, मध्यम सघन वन (MDF) का क्षेत्र 3,08,472 वर्ग कि.मी. (9.39%) और खुले वन (OF) का क्षेत्र 3,04,499 वर्ग कि.मी. (9.26%) हैं।
  • वर्ष 2019 के अनुसार देश का कुल वन क्षेत्र 7,12,249 वर्ग कि.मी. है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.67 प्रतिशत है।
  • जिन राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के वन क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है उनमें शामिल है- कर्नाटक (1,025 वर्ग कि.मी.), आंध्र प्रदेश (990 वर्ग कि. मी.), केरल (823 वर्ग कि. मी.) और जम्मू एवं कश्मीर (371 वर्ग कि. मी.) है। 
  • जबकि मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम राज्यों के वन क्षेत्रों में कमी देखने को मिली है।
  • भारत, विश्व में 17 अति जैव विविधता वाले देशों में से एक है। यह जैव विविधता से संबंधित शैनन-वीनर इंडेक्स (Shannon-Wiener index of diversity) में प्रदर्शित होता है जिसका प्रयोग प्रचुर एवं पर्याप्त प्रजातीय वर्गों के मापन के लिये किया जाता है। 
  • इस इंडेक्स से यह पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन केरल के बाद कर्नाटक में अधिक है। उष्णकटिबंधीय आर्द्र पतझड़ी वन क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में अधिक है। उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ी वन अरुणाचल प्रदेश में अधिक है और अर्द्ध-सदाबहार वन कर्नाटक में अधिक है। उष्णकटिबंधीय तटीय और दल-दल वन उत्तर प्रदेश में अधिक है और उष्णकटिबंधीय काँटेदार वन व्यापक रूप से आंध्र प्रदेश में दिखाई देता है।

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  • वन रिपोर्ट 2019 में वन में कुल कार्बन स्टाॅक 7,124.6 मिलियन टन के रूप में आँका गया है। वर्ष 2017 के पिछले आँकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टाॅक में 42.6 मिलियन टन की वृद्धि हुई है।   
  • भारत में कार्बन स्टॉक का निवल परिवर्तन यह दर्शाता है कि निवल परिवर्तन सबसे अधिक मृदा जैव कार्बन में है उसके बाद भूमि के ऊपर बायोमास एवं सूखी लकड़ियों में है। 
  • वर्ष 2017 के मूल्यांकन की तुलना में अपशिष्ट कार्बन में नकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की है।

फसल अवशिष्टों का जलाया जाना: एक बड़ी चिंता

  • खेतों में फसल (कृषि) अपशिष्टों को जलाया जाना एक ऐसा कार्य है जिससे पर्यावरण संबंधी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है।
  • शहरी मानकों पर किये गए विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि कृषि अपशिष्टों को जलाने से शहरी क्षेत्रों में 2.5 PM की सांद्रता में अहम वृद्धि होती है।
  • इस समस्या के समाधान के लिये विभिन्न सुझाव दिये गए हैं जिसमें से कुछ इस प्रकार हैं:
    • चावल, गेहूँ, मक्का आदि जैसे निम्न लिग्नोसेलुलोसिक फसल अवशेषों के साथ कृषि के संरक्षण की पद्धति को बढ़ावा देना।
    • फसल अवशेष की बिक्री के लिये बाजारों का सृजन किया जाए और ताप विघुत संयंत्रों में कोयले के साथ फसल अवशेषों को जलाना अनिवार्य किया जाए।
    • कृषि उपकरणों के लिये वित्तपोषण एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिये कार्यशील पूंजी हेतु विशेष क्रेडिट लाइन बनाने की आवश्यकता है।
    • वैकल्पिक ईंधन के रूप में स्थानीय उद्योगों, ईंट भट्टा और होटल/ढाबा में फसल अवशेष आधारित ईंधन उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए।
    • राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को दिये जाने वाले प्रोत्साहन और आवंटन का निर्णय करते समय प्रदूषण नियंत्रण को एक पैरामीटर के रूप में रखा जाए।
  • इस संबंध में राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा वर्ष 2015 में दिशा-निर्देश जारी किये गए कि यदि दिल्ली के NCT(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के तहत राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसी भी हिस्से में फसल अवशिष्टों को जलाया जाता है तो यह अधिकरण के नियमों का उल्लंघन होगा तथा व्यक्ति एवं निकाय पर्यावरण क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी होगा।

भावी परिदृश्य:

  • भारत भली-भाँति इस बात से परिचित है कि संधारणीयता के लिये कार्रवाई किया जाना मानवता से निर्विवादित रूप से संबंधित है।
  • भारत अपनी राष्ट्रीय कार्य सूची में एसडीजी को दर्शाता है और इसकी नीतियाँ विकास के तीन स्तंभों (आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण) के मध्य संतुलन सुनिश्चित करती हैं।
  • एसडीजी को सभी स्तरों पर प्रशासन, मॉनीटरिंग और कार्यान्वयन के उच्च मानकों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिये सहकारी संघीय व्यवस्था की भावना के अनुरूप केंद्र और राज्य सरकारें उस परिवर्तन के लिये कदम से कदम मिला कर चल रही हैं जिसकी भारत को आवश्यकता है।
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