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आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20

भारतीय अर्थव्यवस्था

अध्याय-4 (Vol-2)

  • 13 Jun 2020
  • 11 min read

मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता

Monetary Management and Financial Intermediation 

प्रस्तावना:        

  • मौद्रिक नीति वर्ष 2019-20 में उदार बनी रही। धीमी गति से विकास और निरंतर मुद्रास्फीति के कारण उक्त वित्त वर्ष में मौद्रिक नीति समिति की लगातार चार बैठकों में रेपो दर में 110 आधार अंकों की कटौती की गई। हालाँकि दिसंबर 2019 में आयोजित पाँचवीं बैठक में इसे अपरिवर्तित रखा गया है।    
  • वर्ष 2019 में मार्च से सिंतबर के बीच अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल अनिष्पादक अग्रिम अनुपात 9.3% पर अपरिवर्तित रहा तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय निगमों के संबंध में यह मामूली वृद्धि के साथ मार्च 2019 के 6.1% से बढ़कर सितंबर, 2019 में 6.3% हो गया।

वर्ष 2019-20 के दौरान मौद्रिक घटनाक्रम:

  • वर्ष 2019-20 के दौरान मौद्रिक नीति का कार्यान्वयन संशोधित सांविधिक रूपरेखा के अधीन किया गया जो कि 27 जून, 2016 को लागू हुई।
  • दिसंबर 2019 में अपने पाँचवें द्विमासिक मौद्रिक नीतिगत विवरण में रेपो दर को 5.15% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय RBI द्वारा किया गया।

तरलता (नकदी) की स्थिति और इसका प्रबंधन:

  • वर्ष 2019-20 में प्रणालीगत तरलता जून 2019 से काफी हद तक अधिशेष में रही है।
  • सांविधिक नकदी अनुपात (Statutory Liquidity Ratio-SLR) में चार चरणों में प्रत्येक बार 25 आधार बिंदु दर (BPS) की कमी की गई जो क्रमशः 13 अप्रैल 2019, 6 जुलाई 2019, 12 अक्तूबर 2019 तथा 4 जनवरी 2020 से प्रभावी हुई जिससे बैंकों की ‘शुद्ध मांग और सावधिक उत्तरदायित्व’ (Net Demand and Time Liabilities- NDTL) में 18.25% की वृद्धि हुई है। यह दिसंबर 2018 में घोषित रूपरेखा के अनुसार है जिसका लक्ष्य है SLR को तरलता व्याप्ति अनुपात (LCR) से साथ एकरूप करना।

सरकारी प्रतिभूति बाजार घटनाक्रम:

  • वर्ष 2019-20 की पहली छमाही के दौरान 10 वर्ष के सरकारी प्रतिभूति मानकों के लाभ प्राप्ति में कमी देखने को मिली है।
  • इसका मुख्य कारण कच्चे तेल की कीमतों की कमी, अधिशेष तरलता और लगातार चार नीतिगत दरों में कटौती की मात्रा (जो 110 BPS है) में कमी है।
  • आरबीआई द्वारा ‘स्पेशल मार्केट आपरेशन’ जिसका अर्थ दीर्घकालिक प्रतिभूतियों की खरीद और साथ ही लघु अवधि की प्रतिभूतियों की बिक्री था, ने दस साल की सरकारी प्रतिभूति पर लाभ प्राप्ति को नीचे लाने में सहायता की। इससे दीर्घ और अल्प अवधि के बाॅड लाभप्राप्ति के बीच अंतर को कम करके लाभ प्राप्ति वक्र में सुधार लाने की उम्मीद बनी।
  • पहले दौरे में 10000 करोड़ रुपए मूल्य की बिक्री एवं खरीद की गई। जिसे 23 दिसंबर, 2019 को पूरा किया गया। दूसरा और तीसरा दौर क्रमशः 30 दिसम्बर, 2019 और 6 जनवरी, 2020 को इसी राशि के लिये पूरा किया गया था। इसकी वजह से दस साल की सरकारी प्रतिभूति की लाभ प्राप्ति में मामूली गिरावट आई।

बैंकिंग क्षेत्र:

  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल गैर-निष्पादित अग्रिम अनुपात प्रतिशत के रूप में जी.एन.पी.ए. का सकल गैर निष्पादित अग्रिम अनुपात सितंबर 2019 के अंत में 9.3% पर समान बना रहा जैसा कि मार्च 2019 के अंत में था। इसी प्रकार उसी अवधि में उनका पुनर्गठित मानक अग्रिम अनुपात 0.4% पर अपरिवर्तित रहा।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पूंजी एवं जोखिम भारित परिसंपदा अनुपात (Capital to Risk-Weighted Asset Ratio-CRAR)  मार्च 2019 से सितंबर 2019 के बीच 14.3% से बढ़कर 15.1% तक देखा गया।

मौद्रिक संचरण:

  • मौद्रिक संचय का प्रसारण वर्ष 2019 में तीनों स्तरों (दर संरचना, साख वृद्धि और आवधिक संरचना) पर कमजोर रहा।

a) दर संरचना:

  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की भारित औसत उधार दर (Weighted Average Lending Rate- WALR) में जनवरी 2019 से 135 BPS की रेपो दर में कमी होने के बावजूद वर्ष 2019 में कोई गिरावट देखने को नहीं मिली।
  • जनवरी 2019 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक का WALR 10.38% था और अक्तूबर, 2019 में 10.40% है।

b) साख वृद्धि:

  • पॉलिसी दरों में कमी आने के बावजूद अर्थव्यवस्था में इस वर्ष की शुरुआत से ही साख वृद्धि में गिरावट रही है।
  • बैंक क्रेडिट वृद्धि (वर्ष-दर-वर्ष) अप्रैल 2019 में 12.9% से सामान्य होकर 20 दिसंबर, 2019 तक 7.1% हो गई।

c) आवधिक संरचना:

  • RBI की मौद्रिक सुगमता और एलएएफ तरलता का प्रभाव अल्पकालीन ब्याज दरों पर निर्भर रहा है किंतु इस क्षति की भरपाई दीर्घकालिक परिपक्वता के माध्यम से नहीं हो रही है। क्योंकि इस वर्ष की शुरुआत में अल्पकालिक सरकारी प्रतिभूतियों (364 दिन वाले T-Bills) के प्रतिफल में कमी दीर्घकालिक सरकारी प्रतिभूतियों (10 वर्ष) की तुलना में काफी तेज़ गति से हुई।   
  • RBI द्वारा विशेष खुले बाजार संचालन द्वारा प्रक्रिया में बदलाव करने के बाद छुट-पुट कमी को छोड़कर वास्तव में अगस्त 2019 के बाद 10 वर्ष वाली सरकारी प्रतिभूति के प्रतिफल में अधिक कमी नहीं आई है। 

गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र (NBFC): 

  • वर्ष 2017-18 और वर्ष 2018-19 की अर्द्ध छमाही में अति तेजी से बढ़ने के बाद इस क्षेत्र में अवमंदन की स्थिति  देखने को मिली है। 
  • गैर बैंकिंग वित्तीय निगमों से ऋणों की वृद्धि सितंबर 2018 में 27.6%, दिसंबर 2018 में 21.6% से सितंबर 2019 के अंत में गिरकर 9.9% रही है। 

गैर-बैंकिंग वित्तीय विनियमन/पर्यवेक्षण से संबंधित मुख्य नीतिगत परिवर्तन:

  • NBFC सेक्टर के विनियमन और पर्यवेक्षण को मजबूत करने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन ताकि रिज़र्व बैंक में अतिरिक्त शक्तियाँ निहित की जा सकें।  
  • अधिकृत डीलर के रूप में योग्य एनबीएफसी-एनडी-एसआई-द्वितीय श्रेणी: रिज़र्व बैंक ने जनता को अपने दैनिक गैर-व्यापार चालू खाता लेन-देन के लिये प्रदान की गई सेवाओं की पहुँच एवं दक्षता बढ़ाने के लिये 16 अप्रैल, 2019 से गैर-डिपाॅजिट लेने वाली प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण एनबीएफसी-आईसीसी को ए डी-द्वितीय श्रेणी अनुज्ञप्ति/लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी है। 
  • NBFC के लिये तरलता जोखिम ढाँचा। 
  • NBFC-सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं (NBFC-MFI) के लिये सीमाओं की समीक्षा करना। 

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) द्वारा निवेश :

  • अप्रैल-दिसंबर, 2019 के दौरान भारतीय पूंजीगत बाजार में FPI के संदर्भ में निवल आमद 0.81 लाख करोड़ रुपए थी जबकि अप्रैल-दिसंबर 2018 के दौरान में यह 0.94 लाख करोड़ रुपए थी। 
  • 31 दिसंबर, 2019 तक FPI द्वारा कुल संचित निवेश (240.1 बिलियन यूएस डॉलर) में 7.8% की बढ़ोत्तरी के साथ यह 259.5 बिलियन यूएस डॉलर पहुँच गया। 

बीमा क्षेत्र:

  • अंतर्राष्ट्रीय रूप से बीमा क्षेत्र की संभावना एवं निष्पादन क्षमता के मूल्यांकन को सामान्यतः दो मापकों (बीमा संबंधी निवेश व बीमा संबंधी सघनता) के आधार पर मापा जाता है।
  • भारत में बीमा संबंधी सघनता वर्ष 2001 में 11.5 अमेरिकी डाॅलर थी जो वर्ष 2018 में 74 अमेरिकी डाॅलर तक पहुँच गई (जीवन बीमा- 55 अमेरिकी डाॅलर और गैर जीवन बीमा-19 अमेरिकी डाॅलर)। 
  • 12.47% की वृद्धि दर्ज करते हुए वर्ष 2018-19 के दौरान गैर-जीवन बीमित क्षेत्र का सकल प्रत्यक्ष प्रीमियम पिछले वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1.51 लाख करोड़ रुपए की तुलना 1.69 लाख करोड़ रुपए था।
  • 10.75% की वृद्धि दर्ज करते हुए जीवन बीमा उद्योग ने पिछले वित्तीय वर्ष में 4.59 लाख करोड़ रुपए की तुलना वित्तीय वर्ष 2018-19 में 5.08 लाख करोड़ रुपए की प्रीमियम आय दर्ज की।
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