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आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20


भारतीय अर्थव्यवस्था

अध्याय-6 (Vol-1)

  • 06 May 2020
  • 16 min read

भारत में व्यवसाय को सुगम बनाने का लक्ष्य

Targeting Ease of Doing Business in India  

उद्यमशीलता, नवाचार और धन सृजन के प्रयास में ईज़ आफ डूइंग बिज़नेस एक महत्त्वपूर्ण घटक है। हाल के वर्षों में विश्व बैंक द्वारा घोषित की जाने वाली ईज़ आफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में भारत ने महत्त्वपूर्ण सुधार किया है किंतु कई ऐसी श्रेणियाँ है जिनमें भारत अभी भी पीछे है जैसे- व्यवसाय प्रारंभ करना, संपत्ति का पंजीकरण करना, करों का भुगतान करना और संविदाओं का प्रवर्तन कराना। इस अध्याय में इन्ही मानकों पर फोकस किया गया है और भारत के कार्यनिष्पादन की तुलना इसके समकक्षों तथा सर्वोत्तम श्रेणी धारकों के साथ की गई है।

भूमिका:

  • भारत विश्व बैंक की डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट के वर्ष 2014 में 142वें स्थान से वर्ष 2019 में 63वें स्थान पर पहुँच गया है। हालाँकि भारत व्यवसाय प्रारंभ करने की सुगमता (रैंक-136), संपत्ति का पंजीकरण (रैंक-154), करों का भुगतान (रैंक-115) और संविदाओं का प्रवर्तन (रैंक-163) जैसे मापदंडों में अभी भी पिछड़ी स्थिति है।

वैश्विक तुलना: 

भारत के कार्यनिष्पादन की तुलना इसके समकक्ष देशों (चीन, ब्राज़ील एवं इंडोनेशिया) के साथ-साथ ईओडीबी (ईज़ आफ डूइंग बिज़नेस) में पहले स्थान पर न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था से की गई है।        

  • वर्तमान में भारत में व्यवसाय शुरू करने के लिये औसतन 18 दिन लगते हैं जबकि वर्ष 2009 में 30 दिन लगते थे, वहीं न्यूजीलैंड में एकल फार्म एवं न्यूनतम लागत के साथ मात्र आधा दिन लगता है, जबकि इंडोनेशिया में 13 दिन, ब्राजील में 17-18 दिन लगते हैं।   
  • भारत में संपत्ति पंजीकरण के लिये कुल नौ प्रक्रियाएँ हैं और इसमें कम-से-कम 49 दिन लगते हैं और भारत में किसी को अपनी संपत्ति के पंजीकरण के लिये संपत्ति के मूल्य का 7.4-8.1% शुल्क देना पड़ता है। वहीं न्यूजीलैंड में इसके लिये केवल दो प्रक्रियाएँ है और संपत्ति के मूल्य का 0.1% निम्नतम लागत है, जबकि इंडोनेशिया में केवल 6 प्रक्रियाएँ हैं और यहाँ 31 दिन लगते हैं।  
  • भारत में करों का भुगतान करने के लिये प्रतिवर्ष 250-254 घंटे लगते हैं  वहीं दूसरी ओर न्यूजीलैंड में प्रतिवर्ष 140 घंटे लगते हैं, जबकि इंडोनेशिया में 191 घंटे, ब्राजील में 1501 घंटे तथा चीन में 138 घंटे लगते हैं।     
  • भारत में एक औसत विवाद के समाधान में 1445 दिन लगते हैं, वहीं दूसरी ओर न्यूजीलैंड में 216 दिन लगते हैं।     

विनिर्माण में विधिक जटिलता एवं सांविधिक अनुपालन की आवश्यकता 

(DENSITY OF LEGISLATION AND STATUTORY COMPLIANCE REQUIREMENTS IN MANUFACTURING):  

  • अधिकांश कंपनियों के समक्ष आने वाली एक बड़ी चुनौती विधिक जटिलता और सांविधिक अनुपालन की अपेक्षाओं सहित भारतीय संविधान के ढाँचे की जटिल संरचना है।
  • विनिर्माण क्षेत्र में: विनिर्माण इकाइयों द्वारा अनुपालन किये जाने वाले कुल 51 अधिनियम एवं उनकी 6796 धाराएँ हैं जिसके कारण समय अधिक लगता है। 
  • सेवा क्षेत्र में: नियमित व्यवसायों के लिये भी सेवा क्षेत्र को कई नियामक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। बार एवं  रेस्टोरेंट क्षेत्र दुनिया में हर जगह रोज़गार एवं विकास का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। यह एक ऐसा व्यवसाय भी है जो अपनी प्रकृति के विपरीत नए व्यवसायों को शुरू करने तथा पुराने को बंद करने की उच्च आवृत्ति का सामना करता है।
    • भारत में एक रेस्टोरेंट खोलने के लिये अपेक्षित लाइसेंसों की संख्या 12-16 है, जबकि चीन एवं सिंगापुर में केवल चार लाइसेंसों की जरूरत होती है।       
    • नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) के अनुसार, बंगलूरू दिल्ली में 26 और मुंबई में एक रेस्टोरेंट खोलने के लिये कुल 36 अनुमोदन की आवश्यकता होती है। इसके अलावा दिल्ली एवं कोलकाता के लिये एक 'पुलिस ईटिंग हाऊस लाइसेंस' की भी आवश्यकता होती है। दिल्ली पुलिस से यह लाइसेंस प्राप्त करने के लिये आवश्यक दस्तावेज़ों की संख्या 45 है।
    • इसके अलावा भारत में लाइसेंस एवं अनुमतियों की सूची केवल एक सरकारी पोर्टल या सूचना केंद्र से प्राप्त की जा सकती है। वहीं दूसरी ओर न्यूजीलैंड जैसे देशों में निजी सूचना केंद्र द्वारा भी सभी प्रकार की सूचनाएँ, दिशा-निर्देश आदि प्रदान किये जाते हैं।

विस्तृत व्यापार पैमाने को प्राप्त करना:  

  • सर्वेक्षण में व्यापारिक पैमाने को भारत में व्यापार की व्यापकता के रास्ते में मुख्य मुद्दा बताया गया है। भारत में अधिकांश विनिर्माण इकाइयाँ कम क्षमता की है परिणामस्वरूप कम निर्माण क्षमता की हानि वैश्विक आपूर्ति शृंखला को उठानी  पड़ती है।
  • बांग्लादेश, चीन, वियतनाम जैसे देशों के बड़े उद्यमों द्वारा निर्यात किये जा रहे उत्पादों का बाज़ार मूल्य 80% से अधिक है जबकि भारत में छोटे उद्यमों द्वारा निर्यात किये जा रहे उत्पादों का बाज़ार मूल्य 80% से अधिक है।  

सीमा पार व्यापार:    

  • सीमा पार व्यापार संकेतक सामानों के निर्यात एवं आयात की लॉजिस्टिक प्रक्रिया से संबद्ध समय एवं लागत को रिकॉर्ड करता है।
  • जहाँ भारत में सीमा पार निर्यात एवं आयात हेतु दस्तावेज़ीकरण क्रमशः 60-68 व 88-82 घंटे का समय लगता है, वहीं इटली में प्रत्येक के लिये केवल एक घंटे का समय लगता है। इसके अलावा इटली में अनुपालन लागत शून्य आती है, वहीं भारत के मामले में इसकी लागत क्रमशः निर्यातों एवं आयातों के लिये 260-281 यूएस डॉलर और 360-373 यूएस डॉलर आती है।      
  •  निर्यात एवं आयात दोनों मामलों में लगभग 70% विलंब का कारण पोर्ट या बॉर्डर हैंडलिंग प्रक्रियाएँ हैं जो अनिवार्यतः प्रक्रियात्मक जटिलताओं (व्यापार के लिये आवश्यक प्रक्रियाओं की संख्या एवं विविधता), विविध दस्तावेज़ों तथा अनुमोदन एवं अनुमति के लिये विविध एजेंसियों की कार्यवाही से संबंधित होती है।
  • यद्यपि भारत सरकार ने पहले से ही प्रक्रियात्मक और दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं को काफी कम कर दिया है। बढ़ते डिजिटलीकरण एवं एक ही मंच पर कई एजेंसियों को समेकित रूप से एकीकृत करते हुए इन प्रक्रियागत अक्षमताओं को महत्वपूर्ण रूप से कम कर सकते हैं और उपयोगकर्त्ता अनुभव में काफी सुधार किया जा सकता है। जैसे कि प्राधिकृत आर्थिक संचालक (Authorized Economic Operators) योजना के माध्यम से पंजीकृत निर्यातकों/आयातकों के लिये प्रक्रिया को सुचारु बनाने के लिये किया जा रहा है।   

प्राधिकृत आर्थिक संचालक (Authorized Economic Operators) योजना:

  • प्राधिकृत आर्थिक संचालक (AEO) वैश्विक व्यापार को सुरक्षित करने एवं सुविधाजनक बनाने के लिये विश्व सीमा शुल्क संगठन (World Customs Organization- WCO) सुरक्षित मानक फ्रेमवर्क के तत्वावधान में संचालित एक कार्यक्रम है।

उद्देश्य: 

  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला सुरक्षा में वृद्धि करना और माल के  आवागमन को सुविधाजनक बनाना है।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लगे प्रतिष्ठानों को सीमा शुल्क संगठन द्वारा आपूर्ति शृंखला सुरक्षा मानकों के अनुपालनकर्त्ता के रूप में अनुमोदित किया जाता है और प्राधिकृत आर्थिक प्रचालक की हैसियत प्रदान की जाती है। 
  • यह अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला के मुख्य हितधारकों जैसे- आयातकों, निर्यातकों, कर्मचारियों एवं माल की व्यव्स्थाकर्त्ताओं, संरक्षकों, सीमा शुल्क दलालों और माल गोदाम प्रचालकों जो सीमा शुल्क के प्राधिकारियों से अधिमान्य व्यवहार की दृष्टि से लाभ पहुँचाते हैं, के उचित सहयोग के माध्यम से कार्गो सुरक्षा में वृद्धि करने  और उसे सरल एवं कारगर बनाने में समर्थन करता है।

विशिष्ट खंडो में संभारतंत्र में भारत के निष्पादन का केस अध्ययन:

CASE STUDIES OF INDIA’S PERFORMANCE IN LOGISTICS IN SPECIFIC SEGMENTS:

      निर्यात होने वाले कालीन का केस स्टडी

      आयात होने वाले कालीन का केस स्टडी

  • एक कालीन निर्माता जो एक AEO है, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से न्यू जर्सी को उत्पादों का निर्यात करता है।
  • शिपमेंट के बाद मिर्जापुर में फैक्ट्री से निकलने के पश्चात हरियाणा के पियाला में इनलैंड कंटेनर डिपो (ICD) तक पहुँचने में दो दिन लगते हैं।
  • इनलैंड कंटेनर डिपो (ICD) में कंसाइनमेंट को कस्टम क्लीयरेंस मिलने में एक दिन लगता है।
  • अगले तीन दिनों में खेप को कंटेनरों में भरकर मुंद्रा पोर्ट भेजा जाता है।
  • मुंद्रा बंदरगाह तक ट्रेन के माध्यम से शिपमेंट को ले जाने में 3-4 दिन लगते हैं।
  • पोर्ट में प्रवेश करने के लिये कतार में 6-7 घंटे का समय लगता है।
  • पोत अगले दो दिनों में लोड किया जाता है और उसे 13वें दिन रवाना किया जाता है।
  • पोत को 36वें दिन न्यूयॉर्क बंदरगाह तक पहुँचने में लगभग 23 दिनों का समय लगता है।
  • अमेरिका में कंसाइनमेंट को कस्टम क्लीयरेंस मिलने तथा परिवहन में 4-5 दिन लगते हैं।
  • यद्यपि AEO होने के संदर्भ में भारत से किसी शिपमेंट के प्रस्थान करने में लगने वाले दिनों की संख्या में उल्लेखनीय कमी  (पिछले मामले की तुलना में) आने के बाद भी यह अभी भी देश के भीतर अत्यधिक समय लेता है। 
  • यह केस स्टडी इटली से आयातित कालीन के मिलान से राजस्थान के ब्यावर के एक गोदाम तक पहुँचने में सम्‍मिलित समयावधि का विवरण है।
  • मिलान में फैक्ट्री के गेट पर शिपमेंट तैयार होने के बाद, 773  किलोमीटर दूर नेपल्स तक शिपमेंट को ले जाने में केवल 10 घंटे लगते हैं।
  • कस्टम क्लीयरेंस में दो घंटे खर्च होते हैं और फिर जहाज पर लोड करने में केवल एक घंटे का समय लगता है।
  •  तक जहाज को समुद्री रास्ते को तय करने में 23 दिन लगाते हैं और 24वें दिन वह गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर पहुँचता है।
  • मुंद्रा पोर्ट पर कस्टम क्लीयरेंस मिलने और प्रवेश के इंतजार में 6 दिन लगते है।
  • सड़क के माध्यम से राजस्थान के ब्यावर तक पहुँचने में 2 दिन लगते हैं।
  • यद्यपि समुद्री बंदरगाहों के माध्यम से निर्यात/आयात प्रक्रिया बहुत अप्रभावी होती है वहीं हवाई अड्डों पर इस प्रक्रिया में नाटकीय रूप से सुधार किया गया है।

इलेक्टॅनिक्स की केस स्टडी

(Case Study of Electronics):

  • बंगलूरू से हाॅन्गकाॅन्ग को इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के निर्यात करने के लिये लगने वाले समय की तुलना AEO पंजीकरण या गैर- AEO पंजीकरण के साथ की गई है।
  • बंगलूरू के कारखाने में शिपमेंट तैयार होने के बाद इसे कैम्पेगौड़ा हवाई अड्डे तक ले जाने में तीन घंटे लगते हैं। हवाई अड्डे पर निर्यात टर्मिनल में प्रवेश करने में एक घंटे का समय लगता है। अब तक AEO और गैर- AEO के बीच कोई अंतर नहीं है।
  • कस्टम क्लीयरेंस और परीक्षण प्रक्रिया में AEO पंजीकरण वाले निर्यात में 2 घंटे और गैर- AEO पंजीकरण वाले निर्यात में 6 घंटे लगते हैं।
  • AEO के कार्यान्वयन के हाॅन्गकाॅन्ग (7 घंटे) की तुलना में भारत (6 घंटे) में बिताए गए कुल समय की अवधि कम है।

निष्कर्ष:    

  • चूँकि भारत 2024-25 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है इसलिये व्यापार अनुकूल विनियामक वातावरण को को तैयार करने और उसे सरल बनाए रखने की आवश्यकता होगी। व्यापार हेतु शामिल विनियामक प्रक्रियाओं में बाधाओं एवं अंतराल को कम करने के लिये देश की प्रगति का आकलन करना आवश्यक है।
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