भारतीय अर्थव्यवस्था
अध्याय-2 (Vol-1)
- 21 Apr 2020
- 12 min read
ज़मीनी स्तर पर उद्यमिता एवं धन सृजन
Entrepreneurship and Wealth Creation at the Grassroots
भारत सरकार का ‘स्टार्टअप इंडिया’ अभियान भारत में उत्पादकता वृद्धि एवं धन सृजन को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीति के रूप में उद्यमिता को मान्यता देता है। इस पहल को देखते हुए इस अध्याय में भारत के 500 से अधिक ज़िलों के उद्यमिता संबंधी कार्यकलापों के विषय एवं संचालकों का परीक्षण किया गया है।
उद्यमिता एवं जीडीपी (ENTREPRENEURSHIP AND GDP):
- सर्वेक्षण से पता चलता है कि उद्यमिता गतिविधियों के कारण सकल घरेलू ज़िला उत्पाद (GDDP) में महत्त्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- किसी ज़िले में प्रति वर्ष नई फर्मों के पंजीकरण में 10% की वृद्धि से जीडीडीपी में 1.8% की वृद्धि होती है। यह परिणाम इस बात पर बल देते हैं कि उद्यमशीलता का महत्त्व भारत की आर्थिक वृद्धि एवं परिवर्तन के इंजन के रूप में है।
- भारत में औपचारिक क्षेत्र में नई फर्मों की औसत संचयी वृद्धि दर जो वर्ष 2006-16 के बीच 3.8% थी वह वर्ष 2014-18 में बढ़कर 12.2% हो गई। वर्ष 2014 में जहाँ 70000 नई फर्में सृजित हुई थी, वहीं वर्ष 2018 में 80% की वृद्धि के साथ इनकी संख्या 1,24,000 हो गई। यह वृद्धि भारत के नये आर्थिक ढाँचे में सेवा क्षेत्र की प्रमुखता को दर्शाती है।
उद्यमिता गहनता (Entrepreneurial Intensity): इसे प्रति 1000 कर्मचारी वाली नई पंजीकृत निजी फर्म द्वारा परिभाषित किया जाता है।
- विकसित देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति के आधार पर भारत की औपचारिक अर्थव्यवस्था में उद्यमिता गहनता निम्न है जबकि भारत के अधिकतर उद्यम अनौचारिक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत ही संचालित होते हैं।
- भारत में उद्यम क्रियाकलाप सिर्फ प्रेरक एवं रोज़गार की कमी के कारण नहीं हैं बल्कि परिणाम दर्शाते हैं कि आने वाले वर्षों में औपचारिक क्षेत्र में उत्पादकता एवं संवृद्धि के लिये निर्देशित उद्यम क्रियाकलाप महत्त्वपूर्ण होंगे।
उद्यम क्रियाकलाप में स्थानिक विषमता
(Spatial Heterogeneity in Entrepreneurial Activity):
- आर्थिक क्षेत्र में नई फर्म के प्रवेश का सबसे अधिक प्रभाव विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र पर होता है, उद्यमिता आने वाले दशकों में भारत की आर्थिक प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
-
भारत के चार क्षेत्रों के लिये उद्यम संबंधी क्रियाकलापों में समय के अनुसार वृद्धि को दर्शाता है। पूर्वी भारत को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्र समयोपरांत उद्यम क्रियाकलापों में मज़बूत वृद्धि दर्शाते हैं।
-
हालाँकि उद्यम गतिविधियों के स्तर के बावजूद सभी क्षेत्र उद्यमशीलता और जीडीडीपी के बीच मज़बूत संबंध दर्शाते हैं जो उद्यमिता के व्यापक लाभों को चिंहित करता है।
- सर्वेक्षण के अनुसार अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उद्यम क्रियाकलाप ज़िलों के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं जैसे:
- कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector): इस क्षेत्र से संबंधित उद्यम क्रियाकलापों का सबसे अधिक घनत्व मणिपुर, मेघालय, मध्यप्रदेश, असम, त्रिपुरा,ओडिशा राज्यों में है।
- विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector): इस क्षेत्र से संबंधित उद्यम क्रियाकलापों का सबसे अधिक घनत्व गुजरात, मेघालय, पुद्दुचेरी, पंजाब और राजस्थान राज्यों में है।
- सेवा क्षेत्र (Service Sector): इस क्षेत्र से संबंधित उद्यम क्रियाकलापों का सबसे अधिक घनत्व दिल्ली, मिज़ोरम, उत्तरप्रदेश, केरल, अंडमान एवं निकोबार और हरियाणा राज्यों में है।
- अवसंरचना क्षेत्र (Infrastructure Sector): इस क्षेत्र से संबंधित उद्यम क्रियाकलापों का सबसे अधिक घनत्व झारखंड, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर और बिहार राज्यों में है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) डेटा के आधार पर पता लगाया गया है कि ज़िले में उद्यमी क्रियाकलाप, ज़िले में बेरोज़गारी से सहसंबंधित है। इसका तात्पर्य है कि जब किसी ज़िले के विनिर्माण क्षेत्र में किसी नई फर्म का प्रवेश होता है तो उस ज़िले में बेरोज़गारी दर में कमी आती है।
उद्यमी क्रियाकलापों के निर्धारक तत्त्व
(DETERMINANTS OF ENTREPRENEURIAL ACTIVITY):
- सर्वेक्षण में उद्यमी क्रियाकलापों के निर्धारक तत्त्वों के अंतर्गत ज़िला स्तरीय विशेषताओं के दो प्रमुख समुच्चयों पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो ज़िले में उद्यम क्रियाकलापों को बढ़ावा देते हैं।
- सामाजिक ढाँचा (Social Infrastructure)
- भौतिक ढाँचा (Physical Infrastructure)
सामाजिक ढाँचा (Social Infrastructure):
- सामाजिक ढाँचे के अंतर्गत ज़िले में शिक्षा के स्तर को प्रमुखता दी जाती है। एक ज़िले में उच्च शिक्षा का स्तर बेहतर मानव पूंजी के विकास को बढ़ावा देता है जो विचारों एवं उद्यमियों की आपूर्ति में वृद्धि से संबंधित होता है।
- उच्च शिक्षा प्राप्त प्रतिभा के माध्यम से उद्यमियों को अपनी कंपनियों की प्रबंधन एवं विकास क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है। इस प्रकार यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बेहतर शिक्षा स्तर वाले ज़िलों में उद्यमी क्रियाकलाप अधिक होंगे।
- किसी ज़िले में महाविद्यालयों की संख्या तथा साक्षर जनसंख्या अनुपात ज़िले में शिक्षा ढाँचे को मापने के लिये उपयोग किया जाता है।
- पंजीकृत नई फर्मों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि तब दिखाई दी जब भारत की साक्षरता दर 72% से अधिक हो गई। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि ज़िले की साक्षरता में वृद्धि के साथ पंजीकृत नई फर्मों की संख्या बढ़ जाती है।
भौतिक ढाँचा (Physical Infrastructure):
- भौतिक ढाँचे को किसी ज़िले में पक्की सड़कों के अनुपात के आधार पर मापा जाता है। यह माप बिजली, पानी/स्वच्छता सुविधाओं और दूर संचार सेवाओं जैसे अन्य सार्वजनिक वस्तुओं तक पहुँच के साथ सह संबंधित है जो सभी व्यवसायों का मूल आधार है।
- भौतिक जुड़ाव को जनसंख्या केंद्र से औसत दूरी के रूप में मापा जाता है जिसमें कम-से-कम 500,000 लोग होते हैं। बड़े जनसंख्या केंद्रों से निकटता से किसी स्टार्टअप को बाज़ारों तक पहुँच तथा बड़े पैमाने पर संचालन करने की अनुमति मिलती है।
- सर्वेक्षण बताता है कि किसी ज़िले में महाविद्यालयों की संख्या में वृद्धि और भौतिक ढाँचे में मज़बूती (अर्थात् ज़िले के 91% गाँव पक्की सड़कों द्वारा जुड़े हो) प्रदान करने से उस ज़िले में नई फर्मों की संख्या एकतरफा बढ़ जाती है।
गतिशील उद्यमिता एवं धन सृजन हेतु नीति निहितार्थ
(POLICY IMPLICATIONS FOR FAST-TRACKING ENTREPRENEURSHIP AND WEALTH CREATION):
- भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी (ब्राज़ील और दक्षिण कोरिया के बाद) उद्यमिता परिवेश वाला देश है इसके बावजूद भारत में अन्य देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति आधार पर औपचारिक उद्यमिता की दर कम है।
- सर्वेक्षण के आँकड़ों के आधार पर एक ज़िले में पंजीकृत होने वाली नई फर्मों की संख्या और उस ज़िले के GDDP के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध पाया जाता है अर्थात् यदि नई फर्मों के पंजीकरण में 10% की वृद्धि होती है तो GDDP में 1.8% की वृद्धि होती है। GDDP में उद्यमिता क्रियाकलाप का यह योगदान विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र से सर्वाधिक अहम है।
- इसके अतिरिक्त ज़िलों में उद्यमी क्रियाकलाप में महत्त्वपूर्ण विविधता दिखाई देती है जिसमें सामाजिक एवं भौतिक ढाँचा अहम भूमिका निभाता है जैसे- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के पूर्वी भागों में साक्षरता दर सबसे कम (लगभग 59.6%) थी परिणामतः इसी क्षेत्र में औपचारिक उद्यमिता क्रियाकलाप भी सबसे कम था।
- शिक्षा में निवेश: सर्वप्रथम अधिक विद्यालयों एवं महाविद्यालयों की स्थापना ज़रिये साक्षरता दर में वृद्धि की जाए जिससे लोग उद्यमिता की तरफ आकर्षित होंगे फलस्वरूप धन सृजन में वृद्धि होगी।
- बुनियादी ढाँचे में निवेश: पक्की सड़कों के द्वारा गाँवों का जुड़ाव जिससे स्थानीय बाज़ारों तक पहुँच तथा उद्यमिता क्रियाकलाप में वृद्धि होगी।
- कारोबारी सुगमता तथा लचीले श्रम विनियमों को प्रोत्साहन देने वाली नीतियाँ जिनसे उद्यम क्रियाकलापों विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र के कार्यकलापों को प्रोत्साहन प्रदान करेंगी क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र में अधिकतम रोज़गार सृजन करने की क्षमता है।