पशुधन पर प्रतिजैविक का उपयोग | 11 Mar 2023
भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science- IISc) के शोधकर्त्ताओं की एक टीम के अनुसार, जंगली शाकाहारी जानवरों की तुलना में पालतू पशुओं की चराई से मृदा में कार्बन भंडारण में कमी आती है।
- पशुधन में पृथ्वी पर सबसे प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले बड़े स्तनधारी शामिल हैं। यदि पशुधन द्वारा मृदा में संग्रहीत कार्बन को थोड़ी मात्रा में भी बढ़ाया जाता है, तो इसका जलवायु शमन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
प्रमुख बिंदु
- पिछले अध्ययन में यह देखा गया था कि शाकाहारी जानवर मृदा में कार्बन की मात्रा को स्थिर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जबकि हाल के अध्ययन में यह पाया गया है कि जंगली शाकाहारी जानवरों जैसे- याक और आइबेक्स की तुलना में भेड़ एवं मवेशी जैसे- पालतू पशु मृदा के कार्बन भंडारण को कैसे प्रभावित करते हैं।
- प्रतिजैविक/एंटीबायोटिक्स दवाओं का प्रभाव: मवेशियों पर पशु चिकित्सा संबंधी प्रतिजैविक जैसे टेट्रासाइक्लिन का उपयोग अन्य शाकाहारी जीवों की तुलना में मृदा में कार्बन भंडारण को कम कर रहा है।
- ये प्रतिजैविक, जब गोबर और मूत्र के माध्यम से मृदा में निष्कर्षित होते हैं, तो मृदा में सूक्ष्म जीवों को ऐसे तरीकों से परिवर्तित कर देते हैं जो कार्बन पृथक्करण के लिये हानिकारक सिद्ध होते हैं।
- टेट्रासाइक्लिन जैसे प्रतिजैविक लंबे समय तक जीवित रहते हैं और दशकों तक मृदा में रह सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- कार्बन उपयोग दक्षता में अंतर: यद्यपि वन्यजीव और मवेशी क्षेत्रों की मृदा में कई समानताएँ थीं, वे कार्बन उपयोग दक्षता (CUE) नामक एक प्रमुख पैमाने पर भिन्न थीं, जो मृदा में कार्बन को संग्रहीत करने के लिये रोगाणुओं की क्षमता निर्धारित करती है।
- CUE को एक अवधि के दौरान सकल कार्बन अधिग्रहण करने के लिये शुद्ध कार्बन लाभ के अनुपात के रूप में परिभाषित किया गया है।
- मवेशी क्षेत्रों में मृदा में 19% कम कार्बन उपयोग दक्षता (CUE) पाई गई।
प्रतिजैविक (Antibiotics):
- एंटीबायोटिक्स/प्रतिजैविक उल्लेखनीय दवाएँ हैं जो शरीर को नुकसान पहुँचाए बिना किसी के शरीर में जैविक जीवों को मारने में सक्षम हैं।
- इनका उपयोग सर्जरी के दौरान संक्रमण को रोकने से लेकर कीमोथेरेपी के दौर से गुज़र रहे कैंसर रोगियों की सुरक्षा तक के लिये किया जाता है।
- भारत एंटीबायोटिक दवाओं का विश्व में सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत द्वारा अत्यधिक एंटीबायोटिक उपयोग बैक्टीरिया में एक शक्तिशाली उत्परिवर्तन उत्पन्न कर रहा है जिसे पहले कभी नहीं देखा गया।