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कोकबोरोक भाषा

  • 18 Jan 2025
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू

त्रिपुरा विधानसभा के प्रवेश द्वार पर विरोध प्रदर्शन करने पर त्विप्रा छात्र संघ (TSF) के सदस्यों को हिरासत में लिया गया। वे पाठ्यपुस्तकों और सरकारी कार्यों में कोकबोरोक (एक चीनी-तिब्बती भाषा) के लिये रोमन लिपि को शामिल करने की मांग कर रहे थे।

  • भाषा और समुदाय: कोकबोरोक, त्रिपुरा में बोरोक लोगों (त्रिपुरी) और आदिवासी समुदायों की मातृभाषा है, जिनमें देबबर्मा, रियांग, जमातिया और अन्य शामिल हैं।
    • व्युत्पत्ति: "कोक-बोरोक" शब्द कोक (भाषा) और बोरोक (मनुष्य) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है "मनुष्य की भाषा" या "बोरोक लोगों की भाषा।"
  • लिपि और लेखन: कोकबोरोक में मूलतः कोलोमा लिपि का प्रयोग किया जाता था, लेकिन अब इसकी कोई स्थानीय लिपि नहीं है और इसे बंगाली लिपि में लिखा जाता है।
  • इतिहास: कम-से-कम पहली शताब्दी ई. से अस्तित्व में है। राजरत्नाकर, त्रिपुरी राजाओं का एक इतिहास, शुरू में दुर्लोबेंद्र चोंटई द्वारा कोकबोरोक और कोलोमा लिपि में लिखा गया था।
  • मान्यता: कोकबोरोक को वर्ष 1979 में त्रिपुरा की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई (त्रिपुरा की 23.97% आबादी द्वारा बोली जाती है (2011 की जनगणना)), जो बंगाली के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • रोमन लिपि का प्रयोग: आदिवासी समूहों द्वारा बोली जाने वाली कोकबोरोक को दशकों से रोमन लिपि में लिखा जाता रहा है। श्यामा चरण त्रिपुरा और पबित्र सरकार के नेतृत्व में दो आयोगों ने रोमन का समर्थन किया, जबकि सरकार ने बंगाली को प्राथमिकता दी। 
    • जनजातीय समूह बंगाली या देवनागरी लिपि के खिलाफ हैं क्योंकि उनका मानना ​​है कि इससे उनकी पहचान खत्म हो जाएगी और उनकी संस्कृति उन पर थोपी जाएगी।

और पढ़ें: त्रिपुरा में NRC

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